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सोमवार, 28 अप्रैल, 2025
होममत-विमतमंत्रियों की ज़िम्मेवारी तय करना PM मोदी का स्टाइल नहीं, लेकिन उन्हें अब ऐसा क्यों करना चाहिए

मंत्रियों की ज़िम्मेवारी तय करना PM मोदी का स्टाइल नहीं, लेकिन उन्हें अब ऐसा क्यों करना चाहिए

देखा जाए तो अमित शाह ही जम्मू-कश्मीर को चला रहे हैं, लेकिन उनसे सुरक्षा चूक के लिए जवाबदेही मांगना अनुचित होगा क्योंकि उन्हें देश भर के हर चुनाव में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करनी है.

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जब भी कोई बड़ी त्रासदी होती है, जिसमें देश या राज्य पर शासन करने वालों की अक्षमता उजागर होती है, तो दो चीज़ें हमेशा होती हैं — संबंधित मंत्री के इस्तीफे की मांग और पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी यही हुआ. हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पीड़ितों में से एक लेफ्टिनेंट विनय नरवाल के परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की.

उनके ओडिशा समकक्ष मोहन माझी ने अकाउंटेंट प्रशांत सत्पथी के परिजनों को 20 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की. आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकारों ने 10-10 लाख रुपये की घोषणा की. अन्य सरकारों ने भी इसी तरह की घोषणाएं कीं. कुछ ने इसे और अधिक उदार दिखाने के लिए नौकरी या मुफ्त शिक्षा की घोषणा भी की.

हमारे राजनेता कितने असंवेदनशील और दयनीय हो सकते हैं! क्या आप शोकग्रस्त पत्नियों, माता-पिता और बच्चों को सांत्वना देने का यही तरीका अपनाते हैं — 5, 10 या 50 लाख रुपये की पेशकश करके? और वह अपनी उदारता का जनता के आगे बखान करते हैं. अगर वह अपनी जेब से यह पैसा देने की बात करें — जो कि कभी नहीं होता — तो भी ऐसी घोषणाओं का वक्त और तरीका बहुत ही असंवेदनशील और अपमानजनक होगा. परिवार की मदद करने के कई तरीके हैं — बिना दिखावा किए, लेकिन, फिर, हमारे राजनेता दुनिया को अपनी ‘उदारता’ कैसे दिखाएंगे?

क्या वह वाकई सोचते हैं कि उनके पैसे देने से परिवारों का दुख कम हो जाता है? या यह सत्तारूढ़ व्यवस्था की अक्षमता को छिपाने का एक तरीका है, चाहे वह आतंकवादी हमला हो या रेल दुर्घटना या पुल का गिरना?

जवाबदेही की कीमत

ज़रा उनकी मानसिकता के बारे में सोचिए. 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई. इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट की कि 16 फरवरी की सुबह जब मृतकों के परिवार वाले उनके शव लेने अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें 100 और 500 रुपये के नोटों के बंडल दिए गए, जिनकी कुल कीमत 10 लाख रुपये थी.

भारतीय रेलवे ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को 2.5 लाख रुपये और मामूली रूप से घायल यात्रियों को 1 लाख रुपये देने की घोषणा की थी. यह काफी हैरानी की बात है कि सरकारी अधिकारी भगदड़ के कुछ ही घंटों बाद बैंकों से इतनी नकदी कैसे निकाल सकते हैं. सरकार का संदेश स्पष्ट था: नकदी ले लो, शवों को घर ले जाओ और भूल जाओ कि क्या हुआ और क्यों हुआ.

अनुभव सहाय, जिनकी मां भगदड़ में मर गई, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जब मैं अपनी मां का शव लेने गया, तो उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं मुआवजा ले लूं. मैं पूछना चाहता हूं कि उन्होंने उस संख्या की गणना कैसे की? कोई किसी की ज़िंदगी की कीमत कैसे लगा सकता है?”

पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों के परिवार भी इसी तरह के सवाल पूछ रहे होंगे क्योंकि सरकारें मुआवजे की घोषणा कर रही हैं. ये परिवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपराधियों और साजिशकर्ताओं को “उनकी कल्पना से परे” सज़ा देने का इंतज़ार कर रहे होंगे. वह इस बात पर भरोसा कर सकते हैं कि वे ऐसा करेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री का उन पर एक और दायित्व भी है — खुफिया और सुरक्षा चूक के लिए जवाबदेही, जिसकी वजह से उन्होंने अपनों को खो दिया. वह (परिवार) निराश होने वाले हैं. अगर ऐसा होता भी है, तो यहां एक अधिकारी और वहां एक अधिकारी का तबादला या निलंबन हो जाएगा. शीर्ष स्तर पर किसी जवाबदेही की उम्मीद मत कीजिए.


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इतना तो चलता है वाला शासन

पहलगाम हमले से बमुश्किल 15 दिन पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आतंक पर जीत की घोषणा की थी. जम्मू-कश्मीर के अपने तीन दिवसीय दौरे के बाद उन्होंने कहा, “मोदी सरकार के निरंतर और समन्वित प्रयासों के कारण, जम्मू-कश्मीर में हमारे देश के विरोधी तत्वों द्वारा पोषित पूरे आतंकी पारिस्थितिकी तंत्र को पंगु बना दिया गया है.”

यह कोई रहस्य नहीं है कि शाह केंद्र शासित प्रदेश को चला रहे हैं. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर पुलिस भी केंद्र के अधीन है. पहलगाम हमला देश के गृह मंत्री के रूप में शाह के रिकॉर्ड पर एक बड़ा धब्बा है. ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है. बस कुछ अन्य का नाम लें: डोनाल्ड ट्रंप की भारत की पहली आधिकारिक यात्रा के दौरान 2020 में दिल्ली में हुए दंगे और मणिपुर में हुई हिंसा, लेकिन, ज़ाहिर है, शाह पूरी तरह से अलग मामला है. मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और भारतीय जनता पार्टी के लिए, वह अहमद पटेल, प्रणब मुखर्जी, पी चिदंबरम और एके एंटनी सब के सब अकेले मिश्रण की तरह हैं. वह ही सरकार चला रहे हैं.

जैसा कि उन्होंने पहलगाम हमले से कुछ दिन पहले दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में खुलासा किया था, इसमें कोई हैरानी नहीं कि वह खुद को फिट रखने के लिए भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं, अपने शरीर के लिए दो घंटे की कसरत और अपने दिमाग के लिए छह घंटे की नींद समर्पित कर रहे हैं.

आंतरिक सुरक्षा चूक के लिए शाह से जवाबदेही मांगना उचित नहीं होगा आखिर उन्हें नगर निगमों से लेकर विधानसभाओं और संसद तक हर चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करनी है.

इसके अलावा, जवाबदेही मांगना या तय करना कभी भी मोदी सरकार की शैली नहीं रही है क्योंकि इसका मतलब होगा कि सरकार ने कोई गलती की है और अगर प्रधानमंत्री मंत्रियों पर जवाबदेही तय करना शुरू कर दें, तो फिर बात कहां जाकर रुकेगी? डोकलाम से लेकर गलवान, मणिपुर से लेकर पहलगाम तक, लगातार रेल दुर्घटनाएं, सत्ता में 11 साल बाद भी बुलेट ट्रेन का न चलना, भारतमाला परियोजना में समय और लागत में भारी वृद्धि और इसके दूसरे चरण को रद्द करना, लंबित श्रम संहिता से लेकर 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को छोड़ देना — शासन की चूकों की सूची हर दिन लंबी होती जा रही है. मंत्री ऐसा नहीं करेंगे, लेकिन क्या होगा अगर वह पलटकर पूछें कि जब सभी फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा लिए जाते हैं, तो उन्हें सज़ा क्यों मिलनी चाहिए?

इसलिए, जवाबदेही मांगने और तय करने में मोदी की अनिच्छा समझ में आती है, लेकिन उन्हें जिस बात की चिंता होनी चाहिए, वह है लोगों में बढ़ती थकान और निराशा, जो कि शासन में आत्मसंतुष्टि और चलता है के रवैये से है, जो अब अहंकार की सीमा पर पहुंच चुका है. पहलगाम में हुई चूक इस मानसिकता का ताज़ा सबूत है, जिसके परिणामस्वरूप फिर से कई मौतें हुईं. प्रधानमंत्री मोदी भले ही टेफ्लॉन या टाइटेनियम-कोटेड हों, लेकिन सतह पर दरारें और छेद दिखने लगे हैं, क्योंकि जवाबदेही की कमी के साथ जनता का सब्र खत्म होता जा रहा है.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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