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Monday, 23 December, 2024
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पाकिस्तान में इस्लामिक काउंसिल ने फिल्मों और कोरोना से जुड़ी हिदायतों के खिलाफ खड़ा किया ‘तमाशा’

पाकिस्तान ने ऑस्कर पुरस्कारों के लिए जो फिल्म ‘ज़िंदगी तमाशा’ भेजी थी उसे पाकिस्तान के लोग ही नहीं देख पाएंगे, हालांकि इस पर दो साल से झगड़े-मुकदमे और विरोध जारी हैं.

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पाकिस्तानी फिल्म ‘ज़िंदगी तमाशा’ को लेकर जो बवाल चल रहा है वह यही जाहिर करता है कि इमरान खान की सरजमीं पर असली तमाशा कौन कर रहा है. जी हां, खुद इमरान खान यह नहीं कर रहे हैं. तमाशा तो कलमा कुफ़्र (ईश-निंदा) ) को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाले इस्लामी कट्टरपंथी कर रहे हैं.

सरमद खूसत की ‘ज़िंदगी तमाशा’ फिल्म को पिछले साल पाकिस्तान में रिलीज़ करने पर रोक लगा दी गई. इस फिल्म में एक बुजुर्ग और पक्के मुसलमान को दिखाया गया है, जो डांस करता है तो समाज उसके पीछे पड़ जाता है. उसके बाद, इस फिल्म को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए पाकिस्तान की अधिकृत प्रविष्टि के रूप में भेजा गया, छठे एशियन वर्ल्ड फिल्म फेस्टिवल में इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का स्नो लेपर्ड अवार्ड दिया गया. इससे पहले बूसान अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इसे किम जी-सेओक अवार्ड प्रदान किया जा चुका है.

इस फिल्म के निर्माता को जान से मारने की धमकियां मिल चुकी हैं, इस पर ईश निंदा के आरोप लगाए जा चुके हैं. नतीजा यह कि पाकिस्तान के दर्शक इस फिल्म को अब तक नहीं देख पाए हैं. फिल्म को सभी सेंसर बोर्डों ने मंजूरी दे दी है, लेकिन इमरान सरकार ने इस्लामी गुट तहरीक-ए-लब्बइक (टीएलपी) के दबाव में आकर ‘काउंसिल ऑफ इस्लामी आइडियोलॉजी’ से इस मामले पर फैसला करने के लिए कहा है. इस काउंसिल का मूल काम तो क़ानून बनाने की प्रक्रिया पर नज़र रखना है लेकिन सरकार ने उसे फिल्मों और प्रचार वाक्यों पर फैसला करने का काम भी सौंप दिया है. इस काउंसिल ने पिछले हफ्ते सरकार को कोविड वायरस के खिलाफ इस प्रचार वाक्य का इस्तेमाल करने से मना कर दिया— ‘कोरोना से डरना नहीं लड़ना है’. वजह : यह इस्लाम विरोधी है, क्योंकि वायरस तो ‘खुदा की मर्जी’ है जिससे लड़ा नहीं जा सकता.

इसलिए जाहिर है, खूसत की फिल्म के मामले में सिर्फ 130 सेकंड का इसका प्रोमो ही मरहूम टीएलपी नेता खादिम हुसैन रिजवी और उनके समर्थकों को गुस्सा दिलाने के लिए काफी था. उस प्रोमो से ही मजहबी गुट ने अंदाजा लगा लिया कि फिल्म ईश-निंदक है क्योंकि इसके नायक को ‘नात खावाँ’ (धार्मिक कविताएं सुनाने वाले) के रूप में दिखाया गया है, क्योंकि यह यौन दुर्व्यवहार की कहानी कहती है जिसमें मुल्लाओं की बुरी छवि उभरती है, क्योंकि प्रोमो में जो ‘आसिया’ नाम सुनाई देता है वह पाकिस्तान में ईश –निंदा कानून की भुक्तभोगी आसिया बीबी का है. वास्तव में, फिल्म राहत ख्वाजा (जिनका किरदार परदे पर आरिफ़ हसन ने निभाया है) के इर्दगिर्द घूमती है, जिन्होंने एक शादी के मौके पर डांस किया और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया तो उनका परिवार मुसीबत में फंस गया.

हालांकि ‘ज़िंदगी तमाशा’ की टीम ने अपनी स्थिति साफ करने की कई कोशिशें की, खूसत ने प्रधानमंत्री इमरान खान को पत्र भी लिखा लेकिन बात बनी नहीं. उलटे, रिजवी और उनके समर्थकों की स्थिति ही मजबूत हुई.


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ईश-निंदा का बहाना

ईश-निंदा का आरोप कलाकारों को परेशान करने का एक नया हथियार बन गया है.

2014 में जीओ टीवी पर सुबह के एक शो में भाग लेने वाली अभिनेत्री वीना मलिक, उनके पति असद खान, होस्ट शाइस्ता लोधी, जंग न्यूज़ के मालिक मीर शकीलुर-रहमान और सूफी गायक अमजद साबरी के खिलाफ ईश-निंदा के आरोप में मामला दर्ज कर लिया गया. कहा गया कि साबरी ने जो पुरानी कव्वाली गाई उसमें धार्मिक हस्तियों का ‘आपत्तिजनक’ जिक्र किया गया है. पाकिस्तान तालिबान ने 2016 में साबरी का खून कर दिया.

2020 में अभिनेत्री सबा क़मर और गायक बिलाल सईद ने लाहौर की वज़ीर खान मस्जिद में म्यूजिक वीडियो ‘कबूल’ की शूटिंग की तो रिजवी ने उनके खिलाफ मुहिम छेड़ दी और उनके खिलाफ भी ईश-निंदा के आरोप में मामला दर्ज कर दिया गया. अभिनेत्री और गायक ने माफी भी मांगी और कहा कि वास्तव में मस्जिद में कोई नाच-गाना नहीं हुआ मगर कोई फर्क नहीं पड़ा.

नफरत से भरे ऑनलाइन हमलों का नतीजा यह हुआ कि पहले तो ‘ज़िंदगी तमाशा’ पर रोक लगी, फिर ‘कबूल’ की टीम की मज़म्मत की गई, और अब निर्माताओं और कलाकारों की जिंदगी ही खतरे में पड़ गई है.

यही हाल इस साल ‘औरत मार्च’ में भाग लेने वालों का हुआ है. कई वीडियो में घालमेल करके और महिला दिवस पर लगाए गए बैनरों को तोड़मरोड़कर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया और ईश-निंदा की आरोपों की झड़ी लगा दी गई.

इससे कई महिलाओं का जीवन खतरे में पड़ गया. इस बीच, इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के मौलवियों ने ‘औरत मार्च’ और वैलेंटाइन डे के आयोजनों पर रोक लगाने की मांग की.

सख्त नियंत्रण

टीएलपी जैसे धार्मिक गुट जब भी ईश-निंदा विरोधी प्रदर्शन की धमकी देते हैं, सरकार जो सामान्य प्रतिक्रिया करती है उससे लोगों को कोई आश्चर्य नहीं होता. और पाकिस्तान में इतिहास खुद को दोहराता रहता है.

टीएलपी ने 2017 में जब नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग सरकार द्वारा चुनाव शपथपत्र में परिवर्तन का विरोध किया था तब से लेकर इमरान सरकार द्वारा अहमदी अर्थशास्त्री आतिफ़ खान को एक सलाहकार समूह से हटाए जाने, और अब हाल में फ्रांस सरकार के खिलाफ ईश-निंदा के आरोप में हुए प्रदर्शनों तक से जाहिर है कि टीएलपी ने पाकिस्तान को अपने पंजे में जकड़ लिया है.

इमरान सरकार ने टीएलपी के साथ एक सौदा कर लिया है और उससे वादा किया है कि वह फ्रांस के राजदूत को निष्कासित करेगी, फ्रांस में अपना राजदूत नहीं नियुक्त करेगी, और फ्रांसीसी सामान का बायकॉट करेगी, लेकिन पाकिस्तान को फ्रांस से जो मदद मिलती है उसका बायकॉट करेगी या नहीं यह पता नहीं.

विडंबना यह है कि प्रधानमंत्री टीएलपी के समर्थकों से ब्लैकमेल होने को तो तैयार रहते हैं, जिनके पास ईश-निंदा विरोधी हथियार है, लेकिन वे हाज़रा समुदाय के प्रदर्शनकारियों से ‘ब्लैकमेल’ नहीं होते, जो अपने धार्मिक उत्पीड़न से रक्षा के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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1 टिप्पणी

  1. भारत भी इसी रास्ते पर बढ़ रहा है। दुखी हूं। क्या भारत की स्थिति भी पाकिस्तान जैसी ही होती जाएगी।

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