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Friday, 26 April, 2024
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क्यों अपने आप को ISIS जैसा अतिवादी साबित करना चाहते हैं हिंदु : तसलीमा नसरीन

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यह उसी तरह की राजनीति है, जिसने भारत का विभाजन एक बार करवाया था और शायद एक बार फिर करवा दे, लेखिका तसलीमा नसरीन बताती हैं.

मैंने आतंकियों को बांगलादेश के स्वतंत्र चिंतकों अभिजीत, विजय, वशीकुर, दीपन आदि की हत्या करते नहीं देखा है.

हालांकि, मैंने देखा है कि शंभूलाल ने किस क्रूरता से राजस्थान में अफराजुल की हत्या की, जिसका वीडियो उसके भतीजे ने इंटरनेट पर डाल दिया है. जैसे ISIS वीडियो डालता है, ठीक उसी तरह. आइएसआइएस जानता है कि सीरिया के उसके गढ़ में कोई पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने नहीं आएगी. शंभूलाल ने भी शायद यही सोचा कि कोई उसे दंडित नहीं करेगा.

दयालुता और बर्बरता मनुष्यों के अंदर ही होती है. कुछ अपने अंदर के बर्बर को खत्म करते हैं, कुछ दयालुता को.

शंभूलाल किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त नहीं था. वह जब अफराजुल की हत्या कर रहा था, तो बेहद ठंडे और शांत तरीके से. हालांकि, अफराजुल की गलती क्या थी? वह पश्चिम बंगाल के एक गरीब गांव का गरीब आदमी था. उसके गांव के कई लोग राजस्थान और दूसरे राज्यों में मजदूरी कर रहे हैं. वह लगभग 50 वर्ष का था और वह गलत तरीके से किसी हिंदू महिला को प्यार या धर्म-परिवर्तन के लिए नहीं उकसा रहा था.

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शंभूलाल के दोस्तों का कहना है कि वह किसी हिंदू महिला से प्यार करता था, पर उस महिला का किसी मुसलमान से रिश्ता था, हालांकि वह व्यक्ति अफराजुल नहीं था. वह महिला अपने प्रेमी के साथ पश्चिम बंगाल भाग गयी थी और शंभूलाल उनके पीछे उन्हें वापस लाने गया था. शायद, वहीं उसकी कुछ बंगाली मुस्लिम मज़दूरों ने पिटाई की थी.

शंभूलाल के गांव से कई महिलाएं भागकर मुस्लिम पुरुषों से शादी कर चुकी हैं. कुछ का कहना है कि उसने मौका पाते ही पहले मुस्लिम पुरुष की हत्या कर दी, ताकि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिला से शादी कर उसका धर्म-परिवर्तित करने से डरे.

सवाल हैः शंभूलाल के पास ISIS जैसा दुस्साहस कहां से आया? क्या उसके जैसे और भी लोग हैं, जो मुस्लिमों के इस तरह खिलाफ हैं? उसने सोचा कि शायद उसकी निंदा नहीं होगी, उसे सराहा जाएगा. जब मैंने ट्विटर पर इस क्रूर हत्या की निंदा की, तो कई लोग शंभूलाल का समर्थन करने लगे. इससे पहले, जब मैंने गौरक्षकों द्वारा निर्दोष मुस्लिमों की पिटाई और हत्या की निंदा की, तब भी हिंदुओं का ऐसा ही गुस्सा मुझे झेलना पड़ा था. उन्होंने मुझे धमकी दी कि भारत में रहकर मुझे हिंदुओं के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलना चाहिए. अगर मैं हिंदू सभ्यता और परंपरा की बड़ाई नहीं कर सकती, तो मुझे देश तत्काल छोड़ देना चाहिए.

असहिष्णुता अभी अपने चरम पर है. मैंने पहले भी अतार्किक हिंदू परंपराओं और महिलाओं के दमन पर चर्चा की है, लेकिन ऐसी धमकियां कभी नहीं मिलीं. मेरे लिए मानवता, समानता, स्वतंत्रता और दयालुता हमेशा ही किसी भी धर्म से बढ़कर रहे हैं. मैंने चूंकि एक खास धर्म की आलोचना की है, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं बाकी सभी धर्मों को पसंद करती हूं. अगर समय के साथ धार्मिक मान्यताएं नहीं बदलती हैं, लोग बुद्धिमानी से धर्म के बदले मानवता को चुनेंगे या फिर धर्म में ही मानवता का घोल डाल देंगे.

भारत में जैसे-जैसे धार्मिक असहिष्णुता बढ़ेगी, वैसे-वैसे अ-धार्मिक लोगों से नफरत भी बढ़ेगी, नारी-विरोधी भावनाएं उकसायी जाएंगी. इसीलिए, पद्मावती की रिलीज रुक सकती है या फिर जो लोग मुसलमानों को गोमांस खाने के लिए मार डालते हैं, बेदाग बच सकते हैं. या, फिर कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसों को जिन्होंने मार डाला, उनका अभी तक पता नहीं चल सका है.

मैं इस बदले हुए भारत को नहीं स्वीकारना चाहती और मुझे उम्मीद है कि ये बदलाव अस्थायी होंगे.

लोकप्रिय टी.वी. चैनल या अखबारों ने शंभूलाल की हत्या को किसी भी दूसरी हत्या की तरह ही समझ रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. आइएसआइएस के हत्यारे जब किसी की हत्या करते हैं, तो मुखौटा पहनते हैं, शंभूलाल ने नहीं पहना था.

वीडियो का मुद्दा यह है कि मुस्लिमों को आसानी से मारा जा सकता है. उनको मारा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने भारत पर आक्रमण किया, मंदिरों को तोड़ा और गांवों को लूटा, हिंदुओं को धर्मांतरित किया, हिंदू भूमि पर कब्ज़ा किया और हिंदुओं पर शासन भी. अब उन्होंने ‘लव-जिंहाद’ छेड़ा है.कथित तौर पर मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को आकर्षित करने के लिए प्यार का नाटक करते हैं और उन्हें इस्लाम में दीक्षित करते हैं. यही शंभूलाल रोकना चाहता था. वह किसी भी हालत में मुस्लिम पुरुषों को हिंदू महिलाओं से शादी नहीं करने देगा.

‘लव-जिहाद’ के विरोध में हिंदू खुद का ‘घर-वापसी’ कार्यक्रम चला रहे हैं, जहां मुस्लिमों को इस्लाम छोड़कर हिंदुत्व को अपना लेना चाहिए. घर-वापसी और लव-जिहाद दोनों ही बराबरी के बेहूदे खयालात हैं और हिंदू-मुस्लिम युगल के बीच के सच्चे प्यार को न तो अपमान का विषय बनाना चाहिए, न ही उस पर बंदिश होनी चाहिए.

सवाल हालांकि यह है कि अफराजुल को भूतकाल के मुस्लिम आक्रमणकारियों की गलती के बदले क्यों भुगतना चाहिए?

6 दिसंबर 1992 को हिंदू अतिवादियों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया, मुस्लिम अतिवादियों ने बांगलादेश में एक हिंदू मंदिर को जलाकर इसका बदला लिया. बांगलादेश के निर्दोष हिंदुओं को भारत के हिंदू अतिवादियों की गलती की सज़ा क्यों मिलनी चाहिए? जो लोग समझते हैं कि निर्दोष हिंदू बाबरी-मस्जिद ध्वंस के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, क्या वे यह भी सोचते हैं कि अफराजुल जैसे निर्दोष मजदूरों को भी मुस्लिम आक्रमणकारियों की हरकत का जिम्मेदार नहीं होना चाहिए? अगर लोग इसको सही समझते हैं, तो वे बांटनेवाली राजनीति में भरोसा करते हैं. यह उसी तरह की राजनीति है, जिसने भारत का एक बार विभाजन करवाया था और एक बार और विभाजित कर सकता है.

शंभूलाल के समर्थक साबित करना चाहते हैं कि हिंदू भी मुस्लिम अतिवादियों की राह पर जा सकते हैं. वह जेल में हो सकता है, लेकिन हज़ारों शंभूलाल सड़कों पर गुस्से, खीझ और घृणा से भरे हुए छुट्टा घूम रहे हैं. इनमें से कितने लोगों को शांति की खातिर जेल में ठूंसा जा सकता है? कितने मुसलमानोंको उनके रोजाना के भय और आशंकाओं से मुक्ति दिलायी जा सकती है?

हम सभी भारतीय हैं, दक्षिण एशियाई—धर्म, जाति, भाषा, इतिहास हमारी पहचान नहीं बनाते. हमारा प्यार, हमारी सहानुभूति ही हमारी पहचान है.

तसलीमा नसरीन मशहूर लेखिका और टिप्पणीकार हैं.

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