scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होममत-विमतक्या पंजाब अगला असम और एमपी है? कांग्रेस सत्ता के बारे में क्या कहता है अमरिंदर-सिद्धू विवाद

क्या पंजाब अगला असम और एमपी है? कांग्रेस सत्ता के बारे में क्या कहता है अमरिंदर-सिद्धू विवाद

सीएम अमरिंदर सिंह आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए कमर कसते, वह इसके बजाय कांग्रेस आलाकमान के सम्मन का जवाब दे रहे हैं और पार्टी के अंदर चल रहे छोटे-छोटे संघर्षों को हल करने में जुटे हैं.

Text Size:

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच की खींचतान कांग्रेस की एक अजीब सी कमजोरी को उजागर करती है — उन राज्यों में भी अपने घर को व्यवस्थित रखने में पार्टी की असमर्थता जहां वो मजबूत है और सत्ता में है.

जहां नवजोत सिद्धू मंगलवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मिलने के लिए दिल्ली में थे, वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री दोनों नेताओं के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए पार्टी आलाकमान द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल के समक्ष उपस्थित हुए.

अमरिंदर सिंह शायद कांग्रेस के सबसे मजबूत मुख्यमंत्री हैं, और उन्हें अगले साल अपने राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटा होना चाहिए था. लेकिन इसके बजाय वो शीर्ष नेतृत्व के सम्मन का जवाब देने और पार्टी के भीतर के छोटे-मोटे झगड़ों को हल करने में व्यस्त हैं.

राज्य इकाइयों में अंतर्कलह राजनीतिक दलों के लिए कोई असामान्य बात नहीं है. लेकिन लगता है कांग्रेस को इसकी आदत हो गई है. असम से लेकर राजस्थान, और मध्यप्रदेश से पंजाब तक — पार्टी के सत्तासीन होने के बावजूद कांग्रेस-बनाम-कांग्रेस की खींचतान के तमाम उदाहरण हैं.

इन सबका एक ही मतलब निकलता है — एक अलग-थलग पड़ा हाईकमान जो समय पर, और विवेकपूर्ण निर्णय नहीं ले सकता.

कई विश्लेषकों का ये सुझाव है कि चूंकि गांधी परिवार राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को सफलता नहीं दिला सकता, इसे विभिन्न राज्यस्तरीय स्वायत्त कांग्रेसी गुटों के संरक्षक या होल्डिंग कंपनी की भूमिका निभानी चाहिए. लेकिन ये भी कोई अच्छा विकल्प नहीं लगता, खासकर ये देखते हुए कि कैसे शीर्ष परिवार ने अपने सफल क्षेत्रीय नेताओं के कद घटाने का काम किया है.


य़ह भी पढ़ें: किसानों के समर्थन में राहुल लेकिन अमरिंदर आंदोलन खत्म करने को ‘आतुर’, सुलह के लिए सिंघु बॉर्डर पर तैनात किए अधिकारी


सत्ता में होने के बावजूद विघटन

पंजाब, जहां 2017 में पार्टी ने मोदी लहर को धता बताते हुए निर्णायक जीत हासिल की थी, में भी पार्टी की वही हाल है जोकि एक निराशाजनक प्रतिमान बन गया लगता है.

2015 की बात करें, तो असम में तरुण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस का सत्ता में तीसरा कार्यकाल था. पार्टी के लिए सब कुछ बढ़िया चल रहा था — शीर्ष पर एक लोकप्रिय अनुभवी नेता और साथ में हिमंत बिस्वा सरमा जैसा चतुर नेता, जो जमीनी स्तर पर राजनीति को समझता हो और जिसके पास प्रशासनिक अनुभव हो. फिर भी पार्टी खुद को एकजुट नहीं रख सकी. नाखुश होकर हिमंत सरमा कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए. आगे जो हुआ, वो इतिहास है.

सिलसिलेवार पराजयों और चुनावी हाशिए पर चले जाने से हताश पार्टी को 2018 के दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में आकर ज़रूरी हौसला मिला जब वह तीन महत्वपूर्ण राज्यों — राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ — में मज़बूत भाजपा को हराने में कामयाब हुई.

लेकिन, ये खुशी अल्पकालिक साबित हुई. इनमें से दो राज्यों में, जल्दी ही पार्टी के प्रमुख नेताओं के बीच खटपट की बातें सामने आने लगीं. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनातनी तो बहुत ही बुरी तरह उजागर हुई और जिसने सरकार को अस्थिर करने का काम किया. वहां तनाव अब भी कायम है, हालांकि पायलट पार्टी छोड़ेंगे या नहीं छोड़ेंगे का सवाल भी लगातार सुर्खियों में बना रहा है.

मध्य प्रदेश में, पार्टी की किस्मत ज्यादा ही खराब निकली. मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से नाखुश ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अंततः गिर गई, और सिंधिया पूरे तामझाम के साथ भाजपा में शामिल हो गए.

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच खींचतान भले ही सुर्खियों में न आती हो, लेकिन ये बात शायद ही किसी से छुपी हो.

इसलिए, पंजाब के घटनाक्रम को असामान्य नहीं कहा जा सकता. पत्रकारिता में हम कहते हैं कि तीन से सीधी रेखा बनती है. पंजाब में कांग्रेस ने आसानी से साबित कर दिया है कि कैसे सत्ता में रहते हुए विघटित होना उसके लिए सामान्य बात हो गई है.


य़ह भी पढ़ें: पंजाब में चल रहा कांग्रेस बनाम कांग्रेस का खेल, ‘टीम राहुल’ के निशाने पर अमरिंदर


कमज़ोर बुनियाद

सत्ता में मौजूद राजनीतिक दलों के लिए, खासकर मोदी-शाह युग में, अपने समय का उपयोग खुद को मजबूत करने के लिए करना अनिवार्य हो गया है. क्योंकि विपक्ष के लिए, सत्ताधारी दल के हमलों से बचना और अपने नेताओं को बेहतर मौकों की तलाश में पार्टी छोड़ने से रोकना हमेशा एक बड़ी चुनौती होती है.

हालांकि, कांग्रेस के मामले में ये बात उल्टा लागू होते दिखती है. इसके मुख्यमंत्री और राज्य इकाइयां पार्टी की पकड़ मजबूत करने या भविष्य के चुनावी मुकाबलों की तैयारी करने के बजाय लगातार आपस में ही लड़ने में व्यस्त रहते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर 50 सीटों पर सिमट गई एक पार्टी जिसके केवल तीन राज्यों — राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ — में ही मुख्यमंत्री हैं, के लिए ये हास्यास्पद स्थिति है.

बारंबार आते इस संकट के केंद्र में है पार्टी मामलों को चतुराई और प्रभावी ढंग से संभालने में कांग्रेस आलाकमान, यानि गांधी परिवार, की अक्षमता.

पहली बात, एक कमजोर केंद्रीय नेतृत्व राज्य के नेताओं की सोच को प्रभावित करता है, जो सही ही मानते हैं कि वे खुद की क्षमताओं के सहारे चुनाव जीतने में सक्षम हैं और सबकुछ उनके मनमाफिक होना चाहिए. दूसरी बात, पिछले कुछ वर्षों के दौरान गांधी परिवार अपने नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के प्रबंधन में नाकाम रहा है, और वो अब भी अपनी पसंद थोपने या नेताओं की चिंताओं को खारिज करने से बाज नहीं आ रहा.

उदाहरण के लिए, असम में ये साफ था कि राहुल गांधी हिमंत के प्रशंसकों में से नहीं हैं और वह ये सुनिश्चित करना चाहते थे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री की इच्छा के अनुरूप तरुण गोगोई के बेटे गौरव को उत्तराधिकारी बनाया जाए. स्थिति पर नियंत्रण रखने वाला एक अनुभवी नेतृत्व दोनों पक्षों को शांत करके और सभी के लिए पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करके कोई बीच का रास्ता निकालता. लेकिन इस मामले से इतने खराब तरीके से निपटा गया कि कांग्रेस ने इस क्षेत्र की अपनी सबसे बड़ी प्रतिभा को शुभकामनाओं के साथ भाजपा को उपहार में दे दिया.

पंजाब अब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा झगड़ते नेताओं को समय रहते नहीं संभालने की एक और मिसाल बनने के कगार पर है. कांग्रेस वैसे भी एक अंधकारमय भविष्य की ओर बढ़ रही है. लेकिन कड़ी मेहनत से हासिल जीत को भी दयनीय क्षति बनने देकर, पार्टी ये सुनिश्चित कर रही है कि उसके लिए आशा की कोई किरण भी नहीं बचेगी.

(यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह पर गांधी फैमिली कोर्ट में मुकदमा क्यों चलाया जा रहा है


 

share & View comments