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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतक्या बांग्लादेश में होने वाले चुनावों के पहले अमेरिका 'अरब स्प्रिंग' जैसी आग भड़काने की कोशिश कर रहा है?

क्या बांग्लादेश में होने वाले चुनावों के पहले अमेरिका ‘अरब स्प्रिंग’ जैसी आग भड़काने की कोशिश कर रहा है?

'स्वतंत्र और निष्पक्ष' चुनावों की वकालत करना एक बात है, लेकिन चरमपंथी ताकतों से संपर्क करना दूसरी बात है. बांग्लादेश में अमेरिका का गेमप्लान क्या है?

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एक सेकंड के लिए कल्पना करें कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौर की एक चरमपंथी धुर-दक्षिणपंथी पार्टी आज के जर्मनी में खुद को पुनर्जीवित कर रही है. चूंकि वर्तमान सरकार समाज को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए लड़ रही है और अदालतें उस पार्टी को चुनावों से दूर रखने की कोशिश कर रही हैं, इसलिए अमेरिका हस्तक्षेप करता है. अमेरिकी दूतावास चरमपंथी पार्टी की बात सुनता है और जर्मन सरकार पर उनके साथ बातचीत करने के लिए दबाव डालता है. ताकि मामले सुलझ सकें और देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें.

अकल्पनीय? खैर, जर्मनी की जगह पर अब बांग्लादेश को रखें और द्वितीय विश्व युद्ध के दौर की पार्टी की जगह पर बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी से करें, और बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि अमेरिका आज भारत के पड़ोस में कर रहा है.

बांग्लादेशी मीडिया में आई खबरों की मानें तो अमेरिकी दूतावास के पहले राजनीतिक सचिव मैथ्यू बेह ने 16 अक्टूबर को जमात नेता सैयद अब्दुल्ला मुहम्मद ताहेर से मुलाकात की थी.

कथित बैठक ने न केवल शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार बल्कि बांग्लादेश के सिविल सोसायटी के कई लोगों और अधिकार समूहों की भी नाराजगी बढ़ा दी.

बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी, जिसे पहले जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, ने एक बार बांग्लादेश के गठन का विरोध किया था और इसके कई नेताओं को 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान हत्या, बलात्कार और नरसंहार का दोषी पाया गया था. अपने वर्तमान अवतार में, जमात खुलेआम बांग्लादेश में शरिया कानून की वकालत करती है और उस पर देश के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया है.

इसलिए, उग्रवादी जर्मन पार्टी से तुलना दूर की कौड़ी नहीं है.

19 नवंबर को, बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट ने जमात की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें 2013 के फैसले को पलटने की मांग की गई थी, जिसने उसे धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन करने के लिए चुनाव में हिस्सा लेने से रोक दिया था. इसलिए, जमात बांग्लादेश में 7 जनवरी के राष्ट्रीय चुनावों में भाग नहीं ले सकता है.

इस बीच, ऐसा लगता है कि अमेरिका अपनी ही राह पर है. इसके राजनयिक विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के साथ बातचीत कर रहे हैं और विदेश विभाग ने घोषणा की है कि वह उन लोगों पर वीजा प्रतिबंध लगाएगा जो बांग्लादेश में “स्वतंत्र और निष्पक्ष” चुनावों को कमजोर करने की कोशिश करेंगे.

हताश प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सामने आकर कहा है कि अमेरिका बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन चाहता है. जब किसी देश का प्रधानमंत्री चुनाव से ठीक पहले सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देता है, तो इससे बांग्लादेश में अमेरिका के गेम प्लान पर सवाल जरूर उठता है.

क्या अमेरिका भारत के पड़ोस में अरब स्प्रिंग चाहता है?


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सड़क से होगा फैसला

एक दशक से थोड़े से अधिक समय पहले, अरब दुनिया का अधिकांश हिस्सा सड़क पर विरोध प्रदर्शनों से हिल गया था जो तत्कालीन शक्तियों के खिलाफ हिंसक सशस्त्र विद्रोह में बदल गया.

बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट को लेकर व्यापक गुस्से के कारण ट्यूनीशिया में आग भड़क उठी, जिसकी लपटें तेजी से लीबिया, मिस्र, यमन, सीरिया और बहरीन तक फैल गईं. विरोध का इतना असर हुआ कि सरकारें ताश के पत्तों की तरह ढह गईं. 2011 और 2012 के बीच, ट्यूनीशिया के ज़ीन अल आबिदीन बेन अली, लीबिया के मुअम्मर गद्दाफी, मिस्र के होस्नी मुबारक और यमन के अली अब्दुल्ला सालेह जैसे सभी नेताओं को बाहर कर दिया गया.

आंदोलन में जो चीज़ सबसे खास थी वह था कई अरब देशों की सड़कों पर गूंजने वाला नारा: “लोग उस सत्ता को खत्म करना चाहते हैं”.

अब ऐसा ही एक नारा ढाका की सड़कों पर गूंज रहा है. जबकि अवामी लीग ने देश के 300 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने की तैयारी कर ली थी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात एक आम नारे – “सड़कों से होगा बांग्लादेश के भाग्य का फैसला” – के साथ हसीना को पद छोड़ने के लिए कह रहे थे.

विरोध प्रदर्शन एक महीने से अधिक समय से जारी है और इसने खूनी रूप ले लिया है. आगज़नी, मौतों और पत्रकारों पर हो रहे हमलों के बीच, अवामी लीग और बीएनपी हिंसा के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

तो क्या यह बांग्लादेश में ‘अरब स्प्रिंग’ की शुरुआत है? और क्या अमेरिकी दूतावास का विपक्षी दलों के साथ बातचीत करने के लिए देश की सरकार पर लगातार दबाव, साथ ही वीजा प्रतिबंधों की धमकी, उस प्रक्रिया को तेज कर रही है?

पूरे बांग्लादेश से समाचार रिपोर्टें बताती हैं कि इसका उत्तर ‘न’ में है.

बैलेट बॉक्स का बहुमत

हां, शेख हसीना सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है. 15 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद, सत्तारूढ़ दल के प्रति असंतोष होना स्वाभाविक है.

हसीना के मामले में, भ्रष्टाचार, असहमति के दमन और अर्द्धसैनिक बलों द्वारा ज्यादतियों को लेकर गंभीर चिंताएं हैं. देश के धीरे-धीरे एकदलीय राज्य बनने का डर है. लेकिन बांग्लादेश में वर्तमान सड़क विरोध प्रदर्शन ज्यादातर बीएनपी और जमात के कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है. हालात अभी ऐसे नहीं हुए हैं कि आम नागरिक, चाहे वे किसी भी राजनीतिक विचारधारा के हों, गुस्से में सड़कों पर उतर आए हों.

हसीना सरकार के खिलाफ सभी आलोचनाओं के बावजूद, दो सकारात्मक बातें सामने आती हैं: बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी और देश की पिछली सरकारों की तुलना में धार्मिक कट्टरपंथियों को दूर रखने का कहीं बेहतर रिकॉर्ड.

बांग्लादेशी एकेडमिक शरीन शाजहां नाओमी, जो वर्तमान में आंध्र प्रदेश में केआरईए विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं, का दावा है कि एक स्वतंत्र महिला के रूप में उन्हें हसीना के शासन के दौरान सबसे अधिक सुरक्षित महसूस हुआ.

वह कहती हैं, ”एक बांग्लादेश महिला होने के नाते, मुझे यह बेहद निराशाजनक लगता है कि अमेरिका, जो खुद को उदारवादी मूल्यों के अगुआ के रूप में पेश करता है, मेरी आजादी पर हमला करने वालों का पक्ष ले रहा है. बांग्लादेश के चुनावों में उनके हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप कट्टरपंथी ताकतों को भारी मनोवैज्ञानिक समर्थन मिल रहा है. क्या अमेरिका बांग्लादेशी महिलाओं के लिए बुर्क़ा और हिजाब अनिवार्य करना चाहता है?”

नाओमी का कहना है कि हसीना की चीन के साथ नज़दीकी से अमेरिका खुश नहीं है. और यही ढाका स्थित राजनीतिक पत्रकार साहिदुल हसन खोकोन का भी मानना है.

खोकोन का कहना है, “चुनाव के समय में हसीना सरकार पर अमेरिका द्वारा डाले जा रहा निरंतर दबाव यही बताता है. ऐसा लगता है जैसे वे विपक्षी दलों की तरह ही हसीना को गिरते हुए देखने के लिए मजबूर हैं. खोकोन कहते हैं, ”हसीना की अपनी शख्सियत है, वह कभी कठपुतली नहीं बनेंगी.”

लेकिन दुनिया के इस हिस्से में अरब स्प्रिंग देखने के लिए अमेरिका को एक और दिन का इंतजार करना होगा. सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के बावजूद, बांग्लादेश 7 जनवरी को मतदान के लिए तैयारी कर रहा है, जिस दिन बैलेट बॉक्स बोलेगा.

(दीप हलदर एक लेखक और पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @deepscribble है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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