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Friday, 20 December, 2024
होममत-विमतआईफोन 11 अब 'मेड इन इंडिया' हो गया लेकिन मोदी सरकार को देखना पड़ेगा कि टैक्स की ऊंची दरें बाधक न बने

आईफोन 11 अब ‘मेड इन इंडिया’ हो गया लेकिन मोदी सरकार को देखना पड़ेगा कि टैक्स की ऊंची दरें बाधक न बने

मौजूदा समय में जब दुनिया की विनिर्माण कंपनियां चीन पर निर्भर उच्च जोखिम वाली सप्लाई चेन के विकल्प ढूंढ रही हैं, भारत में आईफोन 11 असेंबल करने का एपल का निर्णय भारत की पात्रता को और अधिक विश्वसनीय बनाता है.

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यदि आपने हाल में आईफोन 11 खरीदा है, तो संभव है कि आपके हाथ में भारत में असेंबल किया गया स्मार्टफोन हो. साल भर से अधिक समय से अटकलें लगाई जा रही थीं कि एपल उच्च श्रेणी के अपने फोनों को भारत की किसी फैक्ट्री में असेंबल कराएगी या नहीं और आखिरकार गत सप्ताह ये खबर आई कि आईफोन 11 वास्तव में एक ‘मेड इन इंडिया’ उत्पाद है जिसे चेन्नई के पास एपल के निर्माण साझेदार फॉक्सकॉन की फैक्ट्री में तैयार किया जा रहा है. ये एक अच्छी खबर है जिसे नरेंद्र मोदी सरकार चाहे तो अपनी सफलता के रूप में प्रदर्शित कर सकती है. लेकिन ये समझना महत्वपूर्ण है कि यह अच्छी खबर क्यों है और यह किस तरह की सफलता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार की नई नीतियां इस उपलब्धि को कमज़ोर नहीं करती हो.


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भारत की क्षमता पर भरोसा

सबसे पहले, यह अच्छी खबर क्यों है? हालांकि अन्य स्मार्टफोन निर्माता पिछले कुछ वर्षों से अपने फोन के उन्नत मॉडलों को भारत में असेंबल करते रहे हैं लेकिन एपल का ऐसा करना इस तथ्य को मान्यता मिलने के समान है कि भारत उच्च कोटि के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के निर्माण के लिए तैयार है और प्रतिस्पर्धा कर सकता है. यदि सबकुछ सही रहता है– इसमें सरकार की अहम भूमिका है– तो एपल के मुख्य निर्माण साझेदार भारत में अपनी गतिविधियों का विस्तार कर सकेंगे जिससे हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा और इससे संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र विकसित होने पर लाखों लोगों को आजीविका के साधन मिल सकेंगे. इस कारण न सिर्फ उत्पादकता बढ़ेगी बल्कि भारत के कारखाना श्रमिकों के लिए काम और रहन-सहन की गुणवत्ता में भी भारी सुधार हो सकेगा. मौजूदा समय में जब दुनिया की विनिर्माण कंपनियां चीन पर निर्भर उच्च जोखिम वाली सप्लाई चेन के विकल्प ढूंढ रही हैं, भारत में आईफोन 11 असेंबल करने का एपल का निर्णय भारत की पात्रता को और अधिक विश्वसनीय बनाता है.

निर्भरता के त्रिकोण को तोड़ने में भारत की भूमिका

तो यह एक सफलता क्यों है? क्योंकि भारत ने अंतत: एपल, फॉक्सकॉन और चीन को मिलाकर बने कथित ‘निर्भरता के त्रिकोण’ को तोड़ दिया है. जैसा कि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पिछले दिनों रिपोर्ट किया था, ‘एपल फोन तैयार करने के लिए फॉक्सकॉन पर और उनकी बिक्री के लिए चीनी उपभोक्ताओं पर निर्भर होते गई. फॉक्सकॉन ने चीन के विशाल श्रमबल और फैक्ट्री निर्माण के लिए आवश्यक भूमि पर उसके नियंत्रण पर अपनी निर्भरता के सहारे अपना व्यवसाय खड़ा किया. जबकि चीन देश में निजी सेक्टर के सबसे बड़े नियोक्ता के रूप में फॉक्सकॉन पर और नई प्रौद्योगिकी के आपूर्तिकर्ताओं के प्रशिक्षक के रूप में एपल पर आश्रित हो गया.’ इससे एक संतुलन की स्थित निर्मित हुई जिसे एपल छेड़ना नहीं चाहती थी– कम ही देश इस तरह लाखों की संख्या में कुशल कामगार उपलब्ध करा सकेंगे जोकि फॉक्सकॉन के एक ही परिसर में कार्यरत हैं और उत्पादन चीन से बाहर ले जाने पर बीजिंग के कोप का भी खतरा था.

सबकुछ यथावत चलता रहता यदि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 2018 में चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाकर व्यापार युद्ध नहीं छेड़ा होता. उसके बाद कोविड-19 महामारी आ गई जिसने चीन में लॉकडाउन के कारण न सिर्फ उत्पादन को बाधित किया बल्कि दुनिया भर के निर्माताओं को झटका देकर चीन पर निर्भरता की उनकी लत का भी एहसास कराया. उनमें से कुछेक अपनी उत्पादन गतिविधियों को वियतनाम जैसे अन्य पूर्वी एशियाई देशों या अपने मुख्य बाज़ार के करीब के मेक्सिको जैसे देशों में ले जा सकते हैं. लेकिन इस समय चीन के समान विशाल स्तर पर निर्माण का भरोसा सिर्फ भारत ही दे सकता है– लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि लंबे समय से बड़ी फैक्ट्रियों को आकर्षित करने में भारत की अपनी अलग समस्याएं रही हैं.


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एपल को होने वाले फायदे

ऐसा लगता है कि एपल के फैसले के पीछे एक कारण मोदी सरकार की साम-दाम-दंड-भेद की नीति है. आईफोन 11 को भारत में असेंबल कर न सिर्फ 22 प्रतिशत के आयात शुल्क से बचा जा सकेगा बल्कि इसके कारण देश में एपल के रिटेल स्टोर खोलने के लिए अनिवार्य स्थानीय स्रोतों के इस्तेमाल की शर्त को भी पूरा किया जा सकेगा. इसी तरह फॉक्सकॉन को, हाईटेक निर्माताओं को भारत में आकर्षित करने के लिए मोदी सरकार द्वारा घोषित 50,000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना का फायदा मिलने की संभावना है. चीनी ब्रांडों पर सरकार की वक्रदृष्टि और उनके खिलाफ जनता के विरोध को देखते हुए एपल के लिए दुनिया के दूसरे सबसे बड़े स्मार्टफोन बाज़ार में पांव पसारने का ये सही मौका है. एपल के एक अन्य निर्माण साझेदार विस्ट्रॉन द्वारा बेंगलुरू स्थित अपनी फैक्ट्री में पिछले तीन वर्षों से आईफोन के एसई, 6 और 7 मॉडलों के उत्पादन को देखते हुए नवीनतम आईफोन मॉडल के भारत में निर्माण का फैसला एक क्रमबद्ध कदम माना था.

क्यों ये समय पूर्व जश्न मनाने जैसा है

भले ही भारत अपनी सफलता पर झूम रहा हो, पर हमें इस घटनाक्रम के सही संदेश को ग्रहण करना होगा. एपल का फैसला भारत की आर्थिक ताकत को और संभावनाओं के दोहन की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. लेकिन नहीं, आईफोन 11 उससे अधिक ‘मेड इन इंडिया’ नहीं होगा जितने पूर्व के आईफोन मॉडल ‘मेड इन चाइना’ थे. इसका ‘आत्मनिर्भरता’ से संबंध वास्तविक के बजाए भावनात्मक अधिक है. और हां, ऊंचे आयात शुल्क के कारण भारत में निर्माण के लिए अधिक निवेश आने की संभावना नहीं है.

दरअसल आईफोन वैश्वीकरण और अंतर्संबद्धता का प्रतीक है, न कि किसी देश की आत्मनिर्भरता या आत्मावलंबन का. भले ये फोन चीन या भारत में असेंबल किए जाते हों लेकिन उनके मुख्य हिस्से दर्जन भर अन्य देशों से आते हैं जिनमें अनेक अन्य देशों में निर्मित पुर्जे लगे होते हैं और उन पुर्जों में इस्तेमाल कच्चा माल अनेक अन्य देशों से आता है.

सॉफ्टवेयर और एप्स को भी जोड़ लें तो इन देशों की संख्या बढ़ती ही जाएगी. आप आईफोन असेंबल नहीं कर सकते यदि आपने उसके हिस्सों पर आयात शुल्क थोप रखे हों. इसी तरह आप दूसरे देशों में आईफोन नहीं बेच सकते, यदि आपके आयात शुल्क की प्रतिक्रिया में उन्होंने भी आयात शुल्क बढ़ा रखे हों. यही कारण है कि भारत को आयात शुल्क के अवरोधों का सहारा लेने के बजाए अपनी अनेक तुलनात्मक आर्थिक बढ़तों के आधार पर प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए.


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इसलिए, भले ही उच्च आयात शुल्क ने एपल को अपनी असेंबली लाइन भारत स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित किया हो, पर वो देश में कंपनी की सफलता, मुनाफे और विकास में बाधक बन सकता है. जैसा कि नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने सिफारिश की है, भारत को सभी वस्तुओं पर आयात शुल्क को घटाकर 7 प्रतिशत करते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के व्यापार गठजोड़ रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप में शामिल होना चाहिए. इससे भारत उस हाईटेक पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ सकेगा जिस पर कि एपल और उसके साझेदार आश्रित हैं.

और आखिर में, ये उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार के आर्थिक प्रबंधकों को इस बात का स्मरण होगा कि चेन्नई के पास मोबाइल फोन निर्माण क्लस्टर बनाने का पिछला प्रयास क्यों नाकाम हुआ था. एपल जैसी कंपनी को भारत में उत्पादन के लिए राज़ी करने में सरकार के अनेक विभागों और अधिकारियों की कड़ी मेहनत की दरकार होती है. लेकिन इसके विपरीत कार्य के लिए अकेला टैक्स विभाग ही पर्याप्त होता है.

(लेखक लोकनीति पर अनुसंधान और शिक्षा के स्वतंत्र केंद्र तक्षशिला संस्थान के निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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