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Wednesday, 8 May, 2024
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किस्तों के बोझ तले दबा जा रहा है भारत का मध्य वर्ग

देश में कोई भी उद्योग ऐसा नहीं है, जिसमें नौकरियां चकाचक मिल रही हों और उस क्षेत्र के लोगों के चेहरे खिले हुए हों या तो नौकरियों में स्थिरता बनी हुई है या नौकरियां जा रही हैं.

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भारत का नौकरीपेशा मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग इस समय अजीब संकट से जूझ रहा है. अगर नौकरी चल भी रही है तो वेतन नहीं बढ़ रहा. नौकरियां बदलने का विकल्प ही नहीं है, क्योंकि नई नौकरियां या तो हैं ही नहीं या फिर बेहद कम हैं. आंकड़ों में महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत नीचे है. लेकिन नौकरीपेशा तबके का तनाव चरम पर है.

करीब 8-10 साल पहले बाजार तेजी पर था और अर्थव्यवस्था में रौनक थी. दिल्ली-एनसीआर और देश के कई अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर लोगों ने खाली पड़े और गेहूं व धान उगे खेतों में अपनी कल्पनाओं में बहुमंजिली इमारतें देखी थीं. उसी कल्पना की इमारत में बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों ने अपने सपनों का फ्लैट खरीद लिया, जिसकी डिजाइन रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनियों ने अपने चमकते ब्रोशर पर बने नक्शों में दिखाई थी.

बिखर गई ईएमआई इकोनॉमी

सुहाने सपने देखते हुए लोगों ने खूब कर्ज लिए. होम लोन, कार लोन, एजुकेशन लोन, टेलीविजन, कंप्यूटर, रेफ्रिजरेटर तक खरीदने के लिए लोगों ने बड़े पैमाने पर कर्ज लिए. लोगों के सामने वर्तमान को लेकर बेफिक्री थी, बेहतर कल का सपना था और उस सपने के सहारे लोगों ने किस्तों की परवाह नहीं की.

अब स्थिति क्या है? लोग उन फ्लैट के लिए हर महीने किस्त चुका रहे हैं, जिनके बारे में लोगों को पता भी नहीं है कि फ्लैट मिलेगा भी या नहीं. बिल्डरों की स्थिति डांवाडोल है. कई बिल्डर जेल  जा चुके हैं. आम्रपाली और जेपी समूह जैसे एनसीआर के दिग्गज हाथ खड़े कर चुके हैं और उच्चतम न्यायालय अपने फैसलों से खरीदारों को राहत देने की कवायद कर रहा है. फ्लैटों के खरीदार बैंकों की किस्त सिर्फ इसलिए चुका रहे हैं कि बैंकों ने उनसे आंखें बंद कर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा रखे हैं और किस्त न चुकाने पर उत्पीड़न व गिरफ्तारी होने का डर है.


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वेतन न बढ़ने से किस्तों में डूबे निम्न मध्य वर्ग की हालत खस्ता है. जब बाजार चढ़ान पर था तो अलग गणित था. यह माना जाता था कि अगर मकान की किस्त 20,000 रुपये महीने आ रही है तो अभी 10,000 रुपये महीने किराये के मकान का किराया 5 साल बाद अपने मकान की किस्त के बराबर हो जाएगा. लोगों को यह लगता था कि किराया देना अपनी गाढ़ी कमाई को गंवाने जैसा है. अब हालत खराब है. इस फॉर्मूले पर सोचना तो दूर की बात, जो कर्ज के दुश्चक्र में फंसे हैं, उनकी जिंदगी प्रभावित हो रही है. वजह यह है कि इलाज का खर्च, बच्चों की फीस, रेल का किराया, बिजली का बिल जैसे न टाले जा सकने वाले खर्च बहुत तेजी से बढ़े हैं. उस अनुपात में वेतन करीब-करीब स्थिर है.

कर्ज में डूब रहे हैं लोग

भारत में लोगों का पर्सनल लोन बहुत तेजी से बढ़ा है. इसमें उपभोक्ता वस्तुएं, हाउसिंग, सावधि जमा के एवज में लिया गया अग्रिम, शेयरों, बॉन्ड आदि पर लिया गया अग्रिम, क्रेडिट कार्ड का बकाया, शिक्षा, वाहन पर लिए गए कर्ज के अलावा अन्य व्यक्तिगत कर्ज शामिल होता है. रिजर्व बैंक के हैंडबुक आफ स्टैटिस्टिक्स ऑन इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक ऐसा लोन 2010-11 में 6,879 अरब रुपये था, जो 2017-18 में बढ़कर 19,084 अरब रुपये पर पहुंच चुका है. इस तरह से देखें तो मध्य और निम्न मध्य वर्ग, जो ह्वाइट कॉलर जॉब्स वाला है, उसकी जेब पर कर्ज भारी पड़ रहा है. वेतन का बड़ा हिस्सा बैंकों का कर्ज और ब्याज चुकाने पर जा रहा है.

बचत और निवेश पर आमदनी घटी

इस वर्ग को निवेश पर मुनाफा भी होता था. अब बाजार में जो मुनाफा होता था, वह भी कम हुआ है. इक्विटी म्युचुअल फंड निवेशकों का मुनाफा पिछले एक साल में 34 प्रतिशत गिरा है. लघु बचत पर ब्याज दरों में भी भारी कमी आई है, जो साल दो साल के लिए पैसे फिक्स करने वालों के लिए बड़ी राहत हुआ करती थी.

कमाई घटने व किस्तों की मार के साथ मध्य व निम्न मध्य वर्ग की नौकरियां भी जा रही हैं. इस बीच बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी कंपनियों को अपने कर्मचारियों को वेतन देने में मुश्किल हो रही है. वहीं दूर संचार में तमाम विलय व अधिग्रहण होने से नौकरियां कम हुई हैं. एयर इंडिया संकट में है. जेट एयरवेज के करीब 14,000 कर्मचारी बेरोजगार  हो गए. वाहन क्षेत्र में जबरदस्त मंदी है. वाहनों के कल पुर्जे बनाने वाली कंपनियों में कॉन्ट्रैक्ट काम करने वाले 8 से 10 लाख लोगों की पिछले 11 महीने में नौकरी जा चुकी  है. कल पुर्जा बनाने वाली कंपनियों में नियमित कर्मचारियों की संख्या अब बहुत कम रह गई है और उनका रोजगार बचा हुआ है, लेकिन नौकरी चले जाने की स्थिति देखकर उनका भी सिर चकरा रहा है. ऑटो इंडस्ट्री में बड़ी संख्या में लोग डीलरों के यहां काम करते हैं. फेडरेशन आफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक वाहनों के शोरूम लगातार बंद हो रहे हैं और पिछले 3 महीने में 2 लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. अपने सिर पर मंडराते संकट को देखते हुए कर्मचारी सरकार से हस्तक्षेप की गुहार कर रहे हैं.

नौकरियों का संकट गहराया

देश में कोई भी उद्योग ऐसा नहीं है, जिसमें नौकरियां चकाचक मिल रही हों और उस क्षेत्र के लोगों के चेहरे पर खुशियां हों या तो नौकरियों में स्थिरता बनी हुई है या नौकरियां जा रही हैं. वहीं सरकारी क्षेत्र में भी नौकरियों की स्थिति खराब है. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले सरकारी क्षेत्र में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले रेलवे में 2 साल में 4,00,000 नौकरियां देने का वादा किया गया था, अब उसकी चर्चा बंद है. प्रचंड बहुमत से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार दूसरी बार बन जाने के बाद अब यह चर्चा हो रही है कि सरकार रेलवे के 3 लाख कर्मचारियों को नौकरी से निकालने जा रही है, हालांकि बाद में सरकार ने इसका खंडन कर दिया.


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तमाम सेक्टर में अचानक नौकरियां जाने से कर्मचारियों के परिवार सड़क पर आ गए हैं, जो पहले से ही ईएमआई के बोझ के नीचे दबे हुए थे. इसके साथ ही जिन लोगों की नौकरियां किसी तरह से बची हुई हैं, उनकी चिंता बस इतनी सी है कि किसी तरह से नौकरी चलती रहे और ईएमआई भरते रहा जा सके. बहुत मामूली संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके ऊपर ईएमआई का बोझ नहीं है. ऐसे लोग कर्ज के दुष्चक्र में फंसे अपने साथियों को महीने में कम पड़ रहे खर्च में उधारी देकर मदद कर रहे हैं. वे इतना डरे हुए हैं कि कोई भी लालच देकर उनसे निवेश नहीं कराया जा सकता है.

देखना होगा कि सरकार इस आर्थिक संकट से बचने के लिए कौन से कदम उठाती है. बैंक रेट करने के विकल्प पर वह काम कर सकती है, जिससे मार्केट में नकदी आएगी. लेकिन जब तक पूरी अर्थव्यवस्था की सूरत नहीं बदलती तब तक सिर्फ मौद्रिक उपायों से स्थिति को संभालना मुमकिन नहीं हो पाएगा.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)

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