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Sunday, 8 December, 2024
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भारत का मालदीव को धमकाना फायदेमंद नहीं, मजबूत राष्ट्र को जानना चाहिए कि उन्हें कैसा व्यवहार करना है

मालदीव छोटा हो सकता है, लेकिन वहां के लोगों को अपने देश पर उतना ही गर्व है जितना भारतीयों को. वे मुट्ठी भर शरारती लोगों के पापों के लिए समग्र रूप से सज़ा पाने के पात्र नहीं हैं.

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भारत की तरफ से मालदीव को मिली झिड़की और देशव्यापी विरोध को नरेंद्र मोदी के “नए भारत” की ताकत के सबूत के रूप में माना जा रहा है. लेकिन, वास्तव में, यह उसकी कमजोरी का एक पैमाना है. केवल एक दयनीय रूप से असुरक्षित देश ही एक छोटे से पड़ोसी द्वीपसमूह को परेशान करने में आत्म-प्रशंसा की भावना से प्रेरित होगा. मालदीव का अपमान करना ग्लैडीएटर खेल का नया भारतीय संस्करण है. इसका उद्देश्य मोदी के शासनकाल में लगभग मिट चुके राष्ट्र का मनोरंजन करना और उसे भ्रमित करना है.

नए भारत में युवाओं के लिए नौकरियों की संभावनाएं इतनी गंभीर हैं कि अकेले 2022 में भारतीय रेलवे में 35,000 रिक्तियों के लिए 1.25 करोड़ से अधिक लोगों ने आवेदन किया. पिछले साल, कुछ बेरोज़गार लोगों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए संसद के सुरक्षा घेरे को तोड़ दिया. खेती से आजीविका कमाने के लिए अपने गांव लौटने वाले युवाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो रही है.

लेकिन यह सब गौण है: वास्तव में जो मायने रखता है वह यह है कि भारत ने मालदीव की नाक में दम कर दिया है. तीन मंत्रियों, जिनका मोदी की जय-जयकार करने वाले अधिकांश भारतीय नाम नहीं बता सकते, को उनके पदों से निलंबित कर दिया गया है. भारत, मालदीव को कुचलने वाला है. भारत एक महाशक्ति है. मोदी ने अपने फॉलोवर्स और शुभचिंतकों को भारत के दस लाखवें हिस्से जितने छोटे आकार के देश पर अपने गुस्से और निराशा को उड़ेलने की अनुमति दे दी है.

इस व्यवहार की उम्मीद किसी महान राष्ट्र से नहीं की जाती है.’ यह एक दयनीय रूप से कमजोर राष्ट्र का आचरण है, एक ऐसा राष्ट्र जो खुद से झूठ बोलने का आदी हो गया है, एक ऐसा राष्ट्र जो एक बहुत छोटे से देश को चिढ़ाकर और पीड़ा पहुंचाकर एक महान शक्ति के रूप में अपनी ऐसी छवि को बनाने की कोशिश करता है जिसका स्वीकार करना मुश्किल है.

इनमें से कुछ भी मालदीव में मोहम्मद मुइज्जू की सरकार का बचाव करने या उसकी गलतियों को कमतर करके बताने के लिए नहीं है. मुइज्जू एक मौलवी वाली मानसिकता के राष्ट्रवादी हैं जो भारत को बदनाम करके सत्ता में आए हैं. उनकी सरकार से तीन निंदनीय कट्टरपंथियों को निलंबित किया जाना – उनके द्वारा किए गए सभी गलतियों के लिए – उनके छोटे दायरे को देखते हुए महत्वहीन है. उनके पदों को देखते हुए, उनके बयानों के लिए संभवतः नई दिल्ली से औपचारिक प्रतिक्रिया की ज़रूरत थी. लेकिन अपने अपमान से वे भारत को जो चोट पहुंचाने में सफल रहे, वह मालदीव को हुई शर्मिंदगी से कहीं अधिक है. तीन मंत्रियों की टिप्पणियों से आहत अधिकांश मालदीववासियों ने आगे आकर भारतीयों और भारत के प्रति अपना स्नेह व्यक्त किया.

ग्लेडिएटर स्पोर्ट, लेकिन भारत को सावधान रहना चाहिए

हालांकि, मोदी-भक्त भारतीयों को एक रोमांचक कारण मिल गया है. मालदीव ने उन्हें ज़ख्मी कर दिया है और साथ ही उन्हें खुद से ही सही होने का अहसास कराया है. क्या एक दशक तक किसी नेता की भक्ति करने और उसके प्रतिद्वंद्वियों को धमकाने से हुए मानसिक विक्षिप्त लोगों के लिए इससे अधिक रोमांचक कुछ और हो सकता है?

मशहूर हस्तियों के एक ग्रुप ने भी इस मामले में बढ़-चढ़कर अपनी असहमति को व्यक्त किया. हमारी सेलिब्रिटीज़ आम तौर पर किसी मामले में जल्दी उत्साह नहीं दिखाती हैं. बहुत कम ही चीज़ें उन्हें विचलित या अशांत कर पाती हैं, और वास्तव में कोई भी अत्याचार या गलत कार्य उन्हें सार्वजनिक रूप से आगे आकर विरोध करने के लिए जल्दी उत्साहित नहीं कर पाता. पिछले दशक में, उन्होंने अन्य डराने वाली चीज़ों के बीच, हिंदू भीड़ द्वारा मुसलमानों की पीट-पीट कर हत्या, चीन के हाथों भारतीय क्षेत्र का नुकसान, लोकतांत्रिक संस्थानों की महत्ता को कम किया जाना, कोविड की दूसरी लहर से विनाशकारी तरीके से निपटना और मणिपुर हिंसा के मामले से खुद को दूर ही रखा.

लेकिन जिस आक्रोश या गुस्से ने उन्हें झुंझलाकर देशभक्ति का प्रदर्शन करने के लिए उकसाया है वह मालदीव के तीन राजनेताओं द्वारा इंटरनेट पर किए गए पोस्ट हैं. ठीक दस साल पहले, उनमें से बहुतों को असहमत व्यक्ति की भूमिका निभाना, बढ़ती लागतों पर कमेंट करना और भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेना अच्छा लगता था. 2014 के बाद से, उन्होंने खुद को कायर सिद्ध किया है जो अपनी प्रसिद्धि का दुरुपयोग करने और इस सरकार की सेवा में खुद की गरिमा को कमतर बनाने के इच्छुक हैं.

यदि यह मज़ाक जारी रहा, तो भारत को मोदी के भक्तों द्वारा अनुभव किए जा रहे क्षणिक रोमांच की कीमत चुकानी पड़ेगी. मालदीव में भारत के मित्र खुद को अलग-थलग पाएंगे यदि उनके देश का लगातार मज़ाक उड़ाया जाता है, बदनाम किया जाता है और ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे कि वह तब तक जीवित है जब तक भारत उसके विरुद्ध कुछ कर नहीं रहा है. मालदीव छोटा हो सकता है, लेकिन वहां के लोगों को अपने देश पर उतना ही गर्व है जितना भारतीयों को. कोई भी व्यक्ति इस तरह के व्यवहार को लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकता है. न ही वे मुट्ठी भर शरारती लोगों की गलतियों के लिए समग्र रूप से सज़ा पाने के पात्र हैं.

किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं है कि मालदीव के पास विकल्प नहीं हैं. अगर भारत बचकाने तरीके से नखरे दिखाता रहा तो इससे माले का चीन की ओर झुकाव और बढ़ जाएगा और सामान्य मालदीववासियों का पछतावा समय के साथ तिरस्कार में बदल जाएगा. एक बार चीन के टूरिस्ट्स की अगर मालदीव में बाढ़ आ गई, जैसा कि बीजिंग अपने लोगों को वहां जाने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहा है, तो जो टूर ऑपरेटर वर्तमान में माफी मांगकर भारत को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं, वे भारतीय पर्यटकों से घृणा करने लगेंगे. और जो राजनेता मालदीव को हिंद महासागर में चीन का जागीरदार राज्य (Vassal State) बनाना चाहते हैं, उन्हें घरेलू स्तर पर किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ेगा.

(कपिल कोमिरेड्डी ‘मेलवोलेंट रिपब्लिक: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द न्यू इंडिया’ के लेखक हैं. टेलीग्राम और ट्विटर पर उन्हें फॉलो करें. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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