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Wednesday, 19 March, 2025
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एंटी-टैंक मिसाइल को लेकर भारत की दुविधाएं उन्हें खुद बनाने, बाहर से खरीदने और फौरी ज़रूरत पर केंद्रित

भारत वर्षों से देसी एटीजीएम बनाने की कोशिश में जुटा है ताकि उसकी सैन्य क्षमता मजबूत बने, विदेशी हथियार सप्लायरों पर निर्भरता घटे और सेना के ऑपरशन्स ज्यादा असरदार बने.

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भारत को अपनी रक्षा रणनीति के लिए जिस अहम चीज, अत्याधुनिक एवं बहुपयोगी एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) की ज़रूरत है उसकी तलाश जारी है. खासकर सुरक्षा संबंधी क्षेत्रीय दबावों और आधुनिक टैंकों से खतरों के मद्देनज़र भारत की सैन्य क्षमता को मजबूत बनाने के लिए थर्ड जेनेरेशन वाली आधुनिक एटीजीएम की सख्त ज़रूरत है.

भारत बीते कई साल से देसी एटीजीएम बनाने की कोशिश में जुटा है ताकि उसकी सैन्य क्षमता मजबूत बने, विदेशी हथियार सप्लायरों पर निर्भरता घटे और सेना के ऑपरशन्स ज्यादा असरदार बनें.

लेकिन मौजूदा क्षमताओं और देसी विकल्पों के, जिन्हें हासिल किया जाना है, बीच काफी चौड़ी खाई है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आधुनिक ‘मैन-पैक’ मिसाइल का अभाव है.

भारतीय एमपी-एटीजीएम का विकास

देसी ‘मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल’ (एमपी-एटीजीएम) का निर्माण टैंकों से खतरों के खिलाफ भारतीय सेना की क्षमता बढ़ाने वाली देसी एंटी-टैंक मिसाइल सिस्टम के विकास के भारतीय प्रयासों का एक अहम हिस्सा है. एमपी-एटीजीएम की परियोजना को 2010 में मंजूरी मिली, जिसका विकास डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) कर रहा है ताकि थलसेना की टुकड़ियों को ढोकर ले जाई जाने वाली हल्की मिसाइल सिस्टम उपलब्ध कराई जा सके. इनका इस्तेमाल आधुनिक टैंकों और बख्तरबंद वाहनों के खिलाफ किया जा सकता है.

एमपी-एटीजीएम के विकास के साथ भारत देश के अंदर ही उनके उत्पादन की ज़रूरी व्यवस्था बनाने पर भी ज़ोर दे रहा है. उम्मीद है कि इस सिस्टम के विकास के बाद भारतीय सरकारी डिफेंस सेक्टर के उपक्रम भारत डायनामिक्स लिमिटेड इसके उत्पादन की ज़िम्मेदारी संभाल लेगी. उम्मीद है कि एमपी-एटीजीएम को थलसेना और स्पेशल फोर्सेज़ यूनिट्स में शामिल कर लिया जाएगा और वह उन्हें शहरों में होने वाली लड़ाई या पारंपरिक लड़ाई आदि तमाम तरह की लड़ाइयों में टैंकों के खिलाफ शक्तिशाली औज़ार के रूप में इस्तेमाल कर सकेंगी.

2023 में डीआरडीओ ने विभिन्न इलाकों और स्थितियों में एमपी-एटीजीएम के परीक्षण किए, जो सफल रहे. मिसाइलों ने अचूक निशाने साधे और परीक्षण की स्थितियों में अपनी असरदार क्षमता का प्रदर्शन किया. अब इसे परीक्षण तथा प्रमाणीकरण के लिए सेना को सौंपे जाने की ज़रूरत है. डीआरडीओ के अधिकारियों का कहना है कि एमपी-एटीजीएम को अगले कुछ ही वर्षों में सेना में शामिल कर लिया जाएगा. अंतिम परीक्षण के बाद बड़े पैमाने पर इसके उत्पादन की मंजूरी दी जाएगी.


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आपात खरीद

इस चरण पर पहुंचने में एक दशक से ज्यादा समय लग गया और इस दौरान ऑपरेशन संबंधी कई कमियों को दूर किया गया. 2018 में, इज़रायल से 32,000 करोड़ रुपये मूल्य की 8000 ‘स्पाइक एटीजीएम’ मिसाइलें और 300 लौंचरों की खरीद के प्रस्ताव को इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भारत दौरे के ठीक पहले रद्द कर दिया गया. हालांकि, ये खबरें भी आ रही थीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेतन्याहू के बीच बातचीत के बाद सौदे को पुनर्जीवित किया जा सकता है, लेकिन कुछ हुआ नहीं और उसे रद्द किए जाने की वजह यह बताई गई कि नीतियों में बदलाव किया गया और अफसरशाही ने आशंकाएं ज़ाहिर की थी.

2010 से 2020 के बीच भारत को उत्तरी सीमा पर चीन की ओर से दो बड़े संकट का सामना करना पड़ा. पहला संकट 2017 में डोकलाम में आया जब चीन ने भूटान के साथ लगे विवादित क्षेत्र में सड़क बनाने की कोशिश की. दो महने तक चला तनाव और टकराव तब शांत हुआ जब दोनों पक्ष पुरानी स्थिति बहाल करने पर सहमत हुए. इसके जवाब में पूंजीगत खरीद के आपात अधिकार तीनों सेनाओं के मुख्यालयों को सौंप दिए गए. इन अधिकारों के तहत सेना ने मंजूर सीमा के अंदर सीमित संख्या में ‘स्पाइक एटीजीएम’ की खरीद की क्योंकि देसी ‘एमपी-एटीजीएम’ का अभी अता-पता नहीं था.

2020 में गलवान संकट के दौरान एक बार फिर आपात अधिकार सौंपे गए. क्षमता में वैसी ही कमी के मद्देनज़र सेना को फिर 300 करोड़ रुपये की अधिकृत सीमा के अंदर ‘स्पाइक एटीजीएम’ खरीदने पड़े. संख्या के हिसाब से देखें तो दोनों खरीद को मिलाकर भी ज़रूरत से काफी कम की खरीद हुई. अगर मूल सौदा हुआ होता तो सेना को आपात खरीद नहीं करनी पड़ती और वह ऑपरेशन चलाने के लिए अच्छी तरह तैयार होती.


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अमेरिकी ‘जेवलीन’ ने मामले को उलझाया

तीसरी जेनरेशन की उपयुक्त ‘एटीजीएम’ की तलाश जबकि जारी है, अमेरिका ने अत्याधुनिक ‘जेवलीन एटीजीएम’ की पेशकश करके मामले को और उलझा दिया. रेथियोन और लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित जेवलीन दुनिया में तीसरी जेनरेशन की सबसे आधुनिक ‘एटीजीएम’ है. इसकी ‘दागो और भूल जाओ’ वाली क्षमता, इन्फ्रा रेड गाइडेंस सिस्टम, और टॉप अटैक प्रोफाइल के कारण यह सेवारत आधुनिक टैंकों समेत आधुनिक आर्मर्ड वाहनों के खिलाफ सबसे असरदार है.

भारत की रणनीतिक जरूरतों, खासकर पाकिस्तान और चीन से उभरते खतरों का जवाब देने के मद्देनजर जेवलीन मिसाइल भारत की एंटी-टैंक युद्ध क्षमता के लिए एक मजबूत साधन साबित हो सकती है, लेकिन यह अच्छा विकल्प साबित होगा या नहीं यह कई बातों पर निर्भर होगी जिनमें लागत, उपलब्धता, तकनीकी तालमेल, और रणनीतिक लक्ष्य आदि शामिल हैं. किसी नए हथियार की तरह इसे भी परीक्षणों और मूल्यांकनों से गुज़रना होगा जिसमें काफी वक्त लग सकता है.

anti-tank guided missile systems

भविष्य में भारत टैंकों का मुकाबला कैसे करे

तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो ‘एमपी-एटीजीएम’ लागत की दृष्टि से लाभाकारी है और एक देसी साधन है जो छोटी और मध्यम पैमाने की लड़ाई की सामरिक ज़रूरतों के लिए प्रभावी है और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देती है और थलसेना और स्पेशल फोर्सेज़ के लिए उपयुक्त है, लेकिन यह कम दूरी तक मार करती है और अभी ऑपरेशन में नहीं है इसलिए इसे सेना में जल्दी शामिल नहीं किया जा सकता और इसे अल्पकालिक दृष्टि से प्रमुख एंटी-टैंक हथियार के रूप में अपनाया नहीं जा सकता.

‘स्पाइक’ मिसाइलें विविधतापूर्ण हैं और वह अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से उपलब्ध हैं, जो 25 किमी तक मार कर सकती हैं. उनकी प्रारंभिक खेप भारतीय सेना में उपयोग में है और यह लंबी दूरी तक हमला करने के लिए शानदार विकल्प है. हालांकि, यह महंगी हैं और विदेशी (इज़रायली) तकनीक पर निर्भर हैं इसलिए इनका बड़े पैमाने पर सीमित इस्तेमाल ही किया जा सकता है.

इस बीच, जेवलीन थलसेना के उपयोग के लिए बेहद असरदार है, जो टॉप-अटैक की क्षमता रखती है. यह कम दूरी से लेकर माध्यम दूरी तक के लिए शानदार काम करती है, लेकिन यह बेहद महंगी है और इसके साथ भू-राजनीतिक शर्तें जुड़ी हैं. खासकर मौजूदा अमेरिकी शासन इसके बड़े पैमाने पर उपयोग को सीमित कर सकता है.

अंततः, हर एक मिसाइल सिस्टम की अपनी विशेषता है. ‘एमपी-एटीजीएम’ एक आसान और देसी विकल्प है; स्पाइक कई तरह की दूरियों के लिए कारगर है; जेवलीन अत्याधुनिक तकनीक वाली है. हालांकि, काफी महंगी है और निर्यात संबंधी अनिश्चित शर्तें इसके जुड़ी हैं. अंततः किसे चुनना है यह भारत की ऑपरेशन संबंधी ज़रूरत पर और टेक्नोलॉजी में श्रेष्ठता तथा बजट की सीमा पर निर्भर करेगा.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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