21 अक्टूबर 2008 को भारत और पाकिस्तान ने विश्वास बढ़ाने वाले कदमों के तहत नियंत्रण रेखा के पार व्यापार शुरू किया. उम्मीद थी कि इस आर्थिक गतिविधि से बेहद विवादित और अस्थिर सीमा के आर-पार साझेदारियां और लोगों के बीच रिश्ते बनेंगे.
पिछले चौदह सालों के दौरान, नियंत्रण रेखा पर व्यापार बार-बार शुरू होता और फिर रुकता आया है. व्यापार को रोके जाने के तीन मुख्य कारण रहे हैं-दोनों पक्षों के बीच बिगड़ते राजनीतिक रिश्ते, सीमा-पार से होने वाली सैन्य गतिविधियों में तेज़ी, और सुरक्षा संबंधी चिंताओं में बढ़ोतरी (जैसे हथियारों, गोला-बारूद, नकली मुद्रा और नशीली दवाओं की तस्करी). हालांकि, नियंत्रण रेखा पर व्यापार सिर्फ आपसी भरोसा बढ़ाने वाला उपाय नहीं है, बल्कि सरहदी इलाकों की छोटी अर्थव्यवस्था के लिए इसके काफी फायदे हैं, जिन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है. इस लेख में सीमा अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से ज़रूरी ढांचागत बदलावों के साथ व्यापार पर दोबारा विचार करने और उसे फिर से शुरू करने की बात कही गई है.
किस तरह होता था व्यापार
नियंत्रण रेखा पर व्यापार के लिए 2008 में एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर डॉक्यूमेंट जारी किया गया जिसमें व्यापार का ढांचा और एक सूची थी. इस सूची में व्यापार के लिए मंजूर किए गए आइटम, समय, परमिट, और आवाजाही के लिए आचार संहिता शामिल थी. इस व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था. वस्तु विनिमय प्रणाली या बार्टर सिस्टम. सीमा के दोनों तरफ के कारोबारी मुद्रा में नहीं बल्कि वस्तुओं में लेन-देन करते थे. उदाहरण के लिए, अगर किसी भारतीय कारोबारी ने, मान लीजिए, एक लाख रुपए के बराबर का सामान ए सीमा पार भेजा, तब पाकिस्तानी कारोबारी ने बराबर कीमत का सामान बी इस तरफ भेजा.
सीमा के दोनों तरफ कोई व्यापार शुल्क नहीं लिया जाता था. जिन सामानों को मंजूरी मिली थी उनमें कृषि उत्पाद, हथकरघा, और हस्तशिल्प उत्पाद शामिल थे. भारतीय कारोबारी प्याज़, नारियल, मसाले निर्यात करते थे और सूखे मेवे, फल, और कालीन आयात करते थे. बार्टर सिस्टम को आपसी भरोसा बढ़ाने के कदम के तौर पर डिज़ाइन और लागू किया गया था, ना कि आर्थिक फायदे के लिए.
सामानों की आवाजाही दो व्यापार सुविधा केंद्रों के माध्यम से होती है. पहला केंद्र है सलामाबाद (भारत से नियंत्रित) और मुज़फ्फराबाद (पाकिस्तान से नियंत्रित) के बीच, और दूसरा केंद्र है चकन दा बाग (भारत से नियंत्रित) और रावलकोट (पाकिस्तान से नियंत्रित) के बीच. भारतीय पक्ष की तरफ, इस काम की निगरानी एक व्यापार सुविधा अधिकारी (केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त) और नियंत्रण रेखा पर व्यापार के लिए एक संरक्षक (राज्य सरकार द्वारा नियुक्त) करते हैं. शुरुआत में, अक्टूबर 2008 में, जहां कारोबार की अनुमति हफ्ते में सिर्फ दो बार और दोनो पक्षों की तरफ से सिर्फ 25 ट्रक रोज़ के लिए थी, जुलाई 2011 में मंत्रालय-स्तरीय बातचीत के बाद, इसे बढ़ाकर हफ्ते में चार दिन और हर रोज़ के लिए 100 ट्रकों तक कर दिया गया था.
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व्यापार की राजनीति
अप्रैल 2019 में, भारत की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने सलाह दी कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों से जुड़े कुछ व्यापारियों द्वारा दुरुपयोग, हथियारों, नशीली दवाएं, नकली मुद्रा के अवैध कारोबार, और कम आयात शुल्क की वजह से तीसरे देश या किसी अन्य देश के सामान भेजे जाने के कारण व्यापार को रोक देना चाहिए. अधिकारियों ने सामानों के बिल पर कम कीमत दिखाने (ताकि कीमत मंजूरी की सीमा तक रहे) और फिर सीमा पार करने के बाद बाज़ार कीमत पर बेचे जाने का भी हवाला दिया. भारत के गृह मंत्रालय ने कहा कि व्यापार को “सख्त नियामक व्यवस्था लागू होने तक निलंबित किया जा रहा है.” तीन साल बाद भी इस नियामक व्यवस्था का लागू होना बाकी है.
अतीत में, युद्धविराम उल्लंघन के कारण व्यापार प्रभावित होता रहा है. उदाहरण के लिए, मार्च 2019 में, चकन दा बाग व्यापार सुविधा केंद्र पर पाकिस्तानी सेना की तरफ से मोर्टार दागने और छोटे हथियारों से की गई गोलीबारी के कारण व्यापार रोक दिया गया था – गोले कुछ शेड और एक एक्स-रे मशीन पर लगे थे. और, 2012 में कई बार, युद्धविराम उल्लंघन की घटनाओं, पाकिस्तानी सेना के साथ तनाव बढ़ने और दोनों सेनाओं के बीच झड़पों के कारण व्यापार रोका गया था.
पिछले दशक के दौरान कई बार व्यापार रोका गया है. हालांकि, कुछ बेहद चुनौतीपूर्ण घटनाओं, जैसे कि 2019 में पुलवामा आतंकवादी हमले के दौरान, नियंत्रण रेखा पर व्यापार जारी रहा. हालांकि, अगर इसे सिर्फ भरोसा बढ़ाने के एक कदम के तौर पर देखा जाता रहेगा, तब इसकी ढांचागत दिक्कतें- बैंकिंग सुविधाओं की कमी और सीमा-पार संवाद माध्यमों का ना होना- सुलझने की उम्मीद कम है, क्योंकि व्यापार सिर्फ एक प्रतीक बना रहेगा, आर्थिक संभावनाओं वाला माध्यम नहीं.
व्यापार का अर्थशास्त्र
नियंत्रण रेखा पर व्यापार शुरू करने का एक तर्क था दोनों तरफ शांति बनाए रखने के लिए आर्थिक हित तैयार करना. हालांकि व्यापार आपसी भरोसा बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम ज़रूर है, लेकिन इसकी बहाली के लिए ज़रूरी है कि इससे सरहदी इलाकों को आर्थिक फायदे मिलें. कुछ अनुमानों के मुताबिक, 2008 और 2018 के बीच दस साल की अवधि में, 23,632 भारतीय ट्रकों ने 9,467 करोड़ रुपए के सामानों के साथ नियंत्रण रेखा पार की और 8,259 करोड़ रुपए के सामान लेकर 12,362 पाकिस्तानी ट्रक पार हुए.
इससे ट्रांसपोर्टरों के लिए करीब 66.4 करोड़ रुपये के माल ढुलाई राजस्व के साथ 1,70,000 दैनिक रोज़गार के मौके बने. इस व्यापार से बनी लघु-अर्थव्यवस्था ने, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, 20 हज़ार से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दिया जिनमें ट्रक ड्राइवर, मज़दूर, रेस्टोरेंट मालिक, गैस स्टेशन कर्मचारी, मरम्मत करने वाले, वगैरह शामिल थे. इस व्यापार ने उरी और चकन दा बाग को बिज़नेस हब में बदल दिया और स्थानीय नौजवानों को मैनेजरों और वेतन कमाने वालों में. व्यापारिक मार्गों ने कुछ सामानों और कच्चे माल के लिए सस्ती पहुंच की सुविधा भी दी, जो आम तौर पर भारत के दूसरे हिस्सों से ऊंची कीमत पर आते.
व्यापार का रोका जाना ना सिर्फ पहले से दिए गए ऑर्डर, खरीदे गए स्टॉक, और भुगतान के तंत्र को प्रभावित और बाधित करता है बल्कि ऐसे कई परिवारों पर भी असर डालता है जिनकी रोज़ी-रोटी पूरी तरह इस व्यापार पर निर्भर है. जम्मू और कश्मीर में कुछेक चीज़ों की कीमतों पर इसका तुरंत प्रभाव भी देखने को मिला था- उदाहरण के लिए, जब 2019 में व्यापार रोका गया था, कुछ आयातित फलों की कीमतें 200 फीसदी तक बढ़ गई थीं.
अगर नियंत्रण रेखा के पार व्यापार को दोबारा बहाल करना है, तो इसके लिए कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों, इनवॉइस और टैक्स के नियम, सख्त कारोबारी पंजीकरण, व्यापार सुविधा केंद्रों पर बेहतर बुनियादी ढांचा (जैसे फुल-बॉडी ट्रक स्कैनर), सीमा-पार संवाद के माध्यम, विवादों के निपटारे, और सत्यापन के लिए सिस्टम, और बेहद ज़रूरी डिजिटाइज़ेशन की ज़रूरत होगी. समस्या ऐसी नहीं है जिसे कोई एक पक्ष सुलझा सके (उदाहरण के लिए, बैंकिंग सिस्टम की मांग को पाकिस्तान की तरफ से लगातार नामंजूर किया गया है). स्थानीय लघु-अर्थव्यवस्था में व्यापार के योगदान को ध्यान में रखते हुए, “नई रेगुलेटरी व्यवस्था” को तेज़ी से लागू किए जाने की ज़रूरत है. अगर नियंत्रण रेखा के पार व्यापार फिर से शुरू होता है, तो यह इलाके के समग्र विकास में नई तेज़ी ला सकता है, और सीमावर्ती इलाकों में सरकार का उद्देश्य भी यही है.
आगे का रास्ता
भले ही नियंत्रण रेखा के आर-पार होने वाला व्यापार भारतीय अर्थव्यवस्था का मामूली हिस्सा था, यह स्थानीय सीमांत अर्थव्यवस्था का एक बड़ा अंग था. एक अस्थिर इलाके में कारोबार के अलावा, इसका उद्देश्य विश्वास और लोगों के बीच सहयोग बढ़ाना भी था. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नियंत्रण रेखा के पार सफल व्यापार दूसरी सीमाओं के लिए भी एक मिसाल हो सकता है- उदाहरण के लिए, तमिलनाडु-उत्तरी श्रीलंका या राजस्थान-सिंध.
इस चुनौती का एक मुख्य पहलू है भरोसा और व्यापार का दुष्चक्र-जहां व्यापार की दोबारा बहाली के लिए बेहतर द्विपक्षीय संबंध एक शर्त है, वहीं दोनों देशों के बीच संबंधों को बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदमों में एक है व्यापार. व्यापार प्रणाली के लिए ज़रूरी ढांचागत बदलाव (जैसे डिजिटाइज़ेशन और इनवॉइस के नियम) को प्राथमिकता देने के साथ-साथ स्थानीय लघु-अर्थव्यवस्था में नियंत्रण रेखा के पार व्यापार के योगदान पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है.
फौरी तौर पर, राज्य और इलाके के व्यापारिक समुदाय को इस पर भी विचार करना चाहिए कि सीमा के कुछ बुनियादी ढांचे, श्रमिकों, और स्थानीय मांग और आपूर्ति की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता का कोई और इस्तेमाल किया जा सके ताकि नियंत्रण रेखा के आर-पार व्यापार की गैर-मौजूदगी में ये चीज़ें बगैर इस्तेमाल के या कम इस्तेमाल में ना रहें.
लेखक के विचार निजी हैं. यह लेख कार्नेगी इंडिया में पहले पब्लिश हो चुका है.
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