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Sunday, 22 December, 2024
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2014 की तरह समाज और अर्थव्यवस्था में विकल्प चुनने का मौका गंवा चुका है भारत

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भारत में जैकबूट कानून हैं, सरकार आपको कुचलने के लिए तैयार है और जनता ऐसी है जो अक्सर नहीं समझती कि ये दोनों कितनी आसानी से उसे कुचल सकते हैं।

2014 में एक प्रसिद्ध लेखक और कमेंटेटर ने अपना मत प्रकट करते हुए कहा था कि वे समाज और अर्थव्यवस्था के बीच में से किसी एक का सौदा करने को तैयार हैं और वे नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे । ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाएंगे, भले ही उनकी पार्टी हिंसा फैलाये और वैसे समाजिक रुझानों की तरफदारी करे जो नकारात्मक हैं। आज के समय में आर्थिक फायदा तो नहीं ही हुआ है (डबल डिजिट विकास की बात याद रखें), उल्टे देश में एक शॉक-वेव सा चला है जिसकी गूंजें अबतक सुनाई दे रही हैं। इसका कारण है ऐसे लोगों की गिरफ्तारी जो ज़्यादा से ज़्यादा हाशिये के लोगों के समर्थक हैं न कि देश को उखाड़ फेंकने पर तुले हुए हिंसक क्रांतिकारी।

पुलिस के विश्वसनीय सबूत न जुटा पाने की स्थिति में ये गिरफ्तारियां एक “सिक्यॉरिटी स्टेट” बनने की ओर बढ़ा एक परेशान कर देने वाला कदम होंगी, एक ऐसा स्टेट जो कानून एवं व्यवस्था के मामले में खुले तौर पर पक्षपात करता हो। यह तब, जब हवा पहले से ही दूषित है : गाली गलौज करनेवाले ट्रोल, मीडिया पर दबाव, अल्पसंख्यकों के प्रति घृणास्पद बातें ( मुस्लिम पाकिस्तान चले जाएं, रामजादे और ह**ज़ादे) वगैरह । गोरक्षक खुलेआम राजमार्गों पर घूमते हैं और गोरक्षा के नाम पर लोगों को पीटते तो हैं ही, इसका व्यवसाय भी बना चुके हैं। यही नहीं, एक मंत्री ने मॉब लिंचिंग के नामजदों को मालाएं पहनाई हैं। इसी बीच लव-जिहाद के नाम पर मौलिक स्वतंत्रताओं को कुचल दिया गया है।


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इस सब के बीच उल्लेखनीय रहा है एक ऐसी राजनैतिक पार्टी का परिवर्तन जिसके नेता इंदिरा गांधी द्वारा 1975-77 में लगाई गई इमरजेंसी के दौरान जेल में थे और अब जहां नागरिक स्वतंत्रता, मतभेदों के बावजूद सहिष्णुता एवं सरकार पर बंदिशें लगाने के पक्ष में एक आवाज़ नहीं सुनाई देती।हां, इन गिरफ्तारियों को लेकर गोविंदाचार्य के रूप में एक अपवाद ज़रूर है हालांकि वे स्वयं भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्षधर नहीं हैं।

और फिर उस अर्थव्यवस्था का क्या जो इस दौरान हमारी क्षतिपूर्ति करनेवाली थी? अच्छे दिन के वायदों में तीव्र आर्थिक वृद्धि निहित थी लेकिन ऐसा होने के सारे सपने नोटबन्दी के साथ ही टूट गए । नोटबन्दी एक ऐसा फैसला था जिससे हासिल तो कुछ खास नहीं हुआ, उल्टा ज़्यादा नुकसान ही हो गया। किसान और छोटे व्यवसायी तो दुखी हैं ही, शायद व्यापारियों का भी बुरा हाल है। “मेक इन इंडिया” और निर्यात से भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। जिन लोगों ने सोचा था कि मोदी जी की सरकार में डॉलर का मान 60 रुपयों स घटकर 40 रुपये रह जायेगा वे देख पा रहे होंगे कि ठीक उल्टा हुआ है और अब एक डॉलर में सत्तर रुपये आते हैं (हालांकि यह कोई बुरी बात नहीं है)।

गिरफ्तारियां स्वयं भी किसी ज़माने में सक्षम रही महाराष्ट्र पुलिस को भी कीस्टोन कॉप्स के एक घातक रूप के तौर पर दिखती हैं। मांगे जाने पर एक अरेस्ट वारंट तक नहीं दिखाया जा सका। एफआईआर में गिरफ्तार किए जा रहे व्यक्ति का नाम गायब है। ऐसे मामलों में पुलिस अपने साथ जनता के कुछ लोगों को भी ले जाती है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि पुलिस सबूत प्लांट न कर पाए। ये प्रतिष्ठित लोग भी पुलिस के ही आदमी निकले।

बात केवल पुलिस तक ही सीमित नहीं है। कस्टडी के पक्ष में दलीलें दे रहे एक सरकारी वकील ने ऐसे हास्यास्पद तर्क दिए जिसका पेश किए गए दस्तावेज़ों से दूर-दूर तक का कोई संबंध नहीं है। और एक ऐसा मजिस्ट्रेट जो सामने रखे दस्तावेज़ों की भाषा नहीं समझता लेकिन फिर भी फैसला सुना देता है। मीडिया भी दोषी है क्योंकि पुलिस से लीक हुई खबरों के आधार पर मीडिया चैनल ऐसे कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ सामने लाते हैं जो कहानियों की तरह लगते हैं। असहिष्णुता के इस माहौल में एक गाने के दौरान आंख मारनेवाली अभिनेत्री का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। राहुल गांधी को निश्चित रूप से सतर्क हो जाना चाहिए।


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आजकल किसी भी सिविल ऐक्शन को आपराधिक बनाकर प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है। तीन तलाक के माध्यम से तलाक देनेवाला हर व्यक्ति जेल जा सकता है, हां इससे उसकी पत्नी की क्या मदद होगी, यह कोई नहीं जानता। कांग्रेस शासन के अंदर आनेवाला पंजाब पाकिस्तान की तर्ज़ पर अपने स्वयं के ईशनिंदा (ब्लासफेमी) कानून बनाने को उत्सुक तो है ही, आतंकवादी कर कानून भी अब तक बचे हैं। भारत में इंटरनेट शटडाउन भी किसी और देश की तुलना में कहीं अधिक होते हैं। सच यह है कि भारत में जैकबूट कानून हैं, सरकार आपको कुचलने के लिए तैयार है और जनता ऐसी है जो अक्सर नहीं समझती कि ये दोनों कितनी आसानी से उसे कुचल सकते हैं। इस पिच पर रिवर्स स्विंग की उम्मीद तभी की जा सकती है अगर थोड़ी जागरूकता बढ़े और कुछ घरेलू टॉमस पेन भी निकलकर सामने आएं।

बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष व्यवस्था द्वारा

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