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Thursday, 21 November, 2024
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जलवायु बिगड़ने के साथ भारत का बिजली सेक्टर संकट में, सरकार को कुछ करना होगा

भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही घटनाओं को अब ‘अप्रत्याशित’ नहीं कहा जा सकता है इसलिए सरकार को उनके लिए वैकल्पिक तरीकों के साथ तैयार होना पड़ेगा.

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अप्रैल महीने के अंत और मई के शुरू में चली ग्रीष्म लहर ने भारत के कई राज्यों में बिजली की चढ़ती मांग के कारण उसका संकट पैदा कर दिया. इस तरह का संकट गर्मी को गरीबों के लिए न केवल असहनीय बना देता है बल्कि यह औद्योगिक उत्पादन पर नुकसानदेह असर डालकर अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर चिंताओं को जन्म देता है. पिछले कुछ दिनों से ग्रीष्म लहर का कहर कम तो हुआ है लेकिन गर्मी के बाकी बचे महीनों में बिजली संकट बने रहने को लेकर चिंताएं कायम हैं.

ग्रीष्म लहर के कहर को यूक्रेन युद्ध के कारण आयातित कोयले की बेहद ऊंची कीमतों ने और बढ़ा दिया. इसके कारण, आयातित कोयले के इस्तेमाल में कमी आई और घरेलू कोयले पर निर्भरता बढ़ गई. इन घटनाओं के कारण घरेलू कोयले की मांग में भी बढ़ोतरी हो गई और खदानों से बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने की रेलवे की क्षमता पर भी दबाव बढ़ा.

केंद्र सरकार ने इस संकट से उबरने के लिए कई उपाय किए, जो कि स्वागतयोग्य कदम है. लेकिन इस बात को समझना महत्वपूर्ण है कि मौसम की बेरुखी के कारण उभरती चुनौतियां बढ़ती जाएंगी और ऊर्जा क्षेत्र में व्यवस्थागत दीर्घकालिक बदलाव जरूरी होते जाएंगे.


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मौसम की मारक घटनाएं और गंभीर होंगी

जलवायु परिवर्तन भारत के लिए खास तौर से मारक साबित हो सकता है. इसका असर हम मौसम की अति प्रतिकूलताओं के रूप में झेल रहे हैं. और जैसी कि जलवायु परिवर्तन पर 2021 के इंटरगवर्मेंटल पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट ने चेतावनी दी है, ये प्रतिकूलताएं और जल्दी-जल्दी तथा और ज्यादा गंभीर रूपों में सामने आएंगी. पहले जिसकी कल्पना नहीं की जाती थी वह अब सामान्य यानी ‘न्यू नॉर्मल’ बन गया है इसलिए अब हम जलवायु की अति प्रतिकूलताओं को ‘अप्रत्याशित’ नहीं घोषित कर सकते बल्कि उनके लिए तैयारी करनी चाहिए.

पहली बात यह कि इस तथ्य को मानना पड़ेगा कि आगामी दशकों में हमें बिजली क्षेत्र में ज्यादा अनिश्चितता देखनी पड़ेगी. इसकी मुख्य वजह होगी जलवायु परिवर्तन और मौसम की अति प्रतिकूलताएं, जो हाल में आए ग्रीष्म लहर के कहर के रूप में सामने आईं. इसमें अक्षय ऊर्जा के बढ़ते योगदान से वृद्धि होगी, जिसके कारण मौसम न केवल बिजली की मांग बल्कि उसकी आपूर्ति को भी प्रभावित करेगा. इसके अलावा, कई नयी टेक्नोलॉजी— बैटरी जैसे एनर्जी स्टोरेज साधन, छोटे मॉडुलर (परमाणु) रिएक्टर (एसएमआर), हाइड्रोजन और मांग को लचीला बनाने वाली ‘बिहाइंड द मीटर टेक्नोलॉजी’— का तेजी से विकास हो रहा है. इन नयी टेक्नोलॉजी की लागत क्या होगी और वे कैसा काम करेंगी यह स्पष्ट नहीं है और यह अनिश्चितता में और इजाफा ही करेगा.

दूसरे, बड़ी अनिश्चितता और उससे जुड़े जोखिमों का प्रबंधन करने की जरूरत के कारण निश्चयात्मक नियोजन की जगह संभाव्यता मूलक तरीका अपनाना पड़ेगा. फिलहाल, भविष्य की अनुमानित स्थितियों के मद्देनजर अधिकतर योजनाएं लागत कम से कम रखने के आधार पर तैयार की जाती हैं. जरूरत वैकल्पिक योजनाएं बनाने और संभाव्यता मूलक मॉडल का इस्तेमाल करने की है ताकि यह देखा जा सके कि वे अनिश्चित स्थितियों में कैसा काम करती हैं. तब, योजना को दो आधारों के मेल पर चुना जा सकता है कि सबसे कम अपेक्षित लागत क्या होगी और लागत में सबसे कम उलटफेर किसमें होगा. दूसरी कसौटी यह हो सकती है कि सबसे बदतर स्थिति में भी सबसे कम लागत किसमें होगी, जिसे ‘न्यूनतम अफसोस’ के रूप में जाना जाता है.

तीसरे, योजना ऐसी हो जो अनुकूलित की जा सके. अनिश्चितता के कारण योजनाओं पर कड़ी निगरानी रखनी होगी ताकि उसे लागू करने के दौरान उभरी नयी जानकारियों और अप्रत्याशित समस्याओं के लिहाज से संशोधित किया जा सके. ऐसी निगरानी और सुधार तभी हो सकते हैं जब योजना के अंदर ऐसे संकेत और फैसले निहित हों जो सेक्टर के माहौल में बदलावों की ओर इशारा करें. योजना ज्यादा अनुकूलनीय तब होगी जब उत्पादन क्षमता में बड़ी वृद्धि की जगह उसमें सुधार बिखरी हुई परिसंपत्तियों के जोखिम को कम करने वाला हो.

सौभाग्य से, अक्षय ऊर्जा तकनीक इस तरह के परिवर्तन और नयी उत्पादन क्षमता की तेजी से स्थापना की गुंजाइश बनाती है. एसएमआर जब वित्तीय दृष्टि से उपयुक्त हो जाएंगे तो वे ऐसे परिवर्तन के लिए उपयुक्त होंगे.

चौथे, भविष्य में हमें बिजली की योजना बनाने वालों और मौसम विज्ञानियों के बीच ज्यादा सहयोग की जरूरत पड़ेगी. बड़े अध्ययन के लिए ऐसे पहले सहयोग का इस्तेमाल शायद फ्रेंच ट्रांसमीशन सिस्टम ऑपरेटर ‘Réseau de Transport d’Électricité ’ (आरटीई) ने एनर्जी फ्यूचर्स 2050 के लिए किया था. इसके निष्कर्ष फरवरी 2022 में जारी किए गए.

आरटीई ने फ्रेंच मौसम विज्ञान सेवा ‘मेटीओ-फ्रांस’ से 2050 में संभावित मौसम के कई अनुमानों का विस्तृत ब्योरा हासिल किया. उन अनुमानों का उपयोग 2050 के लिए आरटीई की पावर सिस्टम का परीक्षण करने में किया. ग्रेनूलार डेटा सेटों का उपयोग करके आरटीई मांग और उत्पादन के बीच स्थानिक और सामयिक संबंध बनाए रख पाया. यह आरई-रिच पावर सिस्टम की पर्याप्तता का आकलन करने के लिए खासकर जरूरी है. आरटीई जो कर रही है उसे तुरंत भारत में भी दोहराना आसान नहीं है. लेकिन यह योजना प्रक्रिया में जरूरी बदलावों को दिशा दे सकता है.

गर्मी जल्दी शुरू हो जाने के कारण हाल में जो बिजली संकट पैदा हुआ वह हमें एनर्जी सेक्टर की योजना में जरूरी बदलावों के लिए तैयार होने की चेतवानी का काम कर सकता है ताकि हम भविष्य की चुनौतियों के लिए कमर कस सकें.

(लेखक दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) में फेलो हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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