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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतनेताओं और राजनयिकों ने कई कोशिशें की लेकिन अब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच बातचीत की जरूरत     

नेताओं और राजनयिकों ने कई कोशिशें की लेकिन अब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच बातचीत की जरूरत     

पाकिस्तान में सेना ही सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी है. भारत में उसे समझने वाला कोई महकमा है तो वह भारतीय सेना ही है. वही है जिसके साथ पाकिस्तानी फौज बैठेगी और जिसकी बात सुनेगी.

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भूगोल की अहमियत ने एक सप्ताह के अंदर दो अलग-अलग माध्यमों से भारी उछाल हासिल कर ली. अपनी किस्म के एक पहले दस्तावेज़ और उतनी ही दुर्लभ एक बातचीत, दोनों ही भूगोल की अहम भूमिका से गहरे जुड़े नज़र आ रहे हैं, बावजूद इसके कि दोनों 1947 में खीची गई भू-राजनीतिक सीमा के कारण एक-दूसरे से अलग भी हैं.

भारतीय चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ एमएम नरवणे ने टीवी पर बड़ी शांति से एक दिलचस्प इंटरव्यू दिया, जिसमें वे किसी भी विषय पर पूछे गए सवालों से परेशान होते नहीं दिखे. इसके बाद पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (एनएसपी) का पहला दस्तावेज़ जारी करते हुए दिखाया गया. भूगोल की अहमियत को इस दस्तावेज़ में भी बड़ी ईमानदारी से स्वीकार किया गया है. ये दोनों घटनाएं सैन्य कूटनीति के एक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालती हैं, जिसे कबूल करने में भारत अब तक चूकता रहा है. वह पहलू है- दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीधी मगर जरूरी बातचीत. समय आ गया है कि कूटनीतिज्ञ और नेता लोग परदे के पीछे चले जाएं.

कठोर हकीकत को कबूलती एनएसपी

सार्वजनिक तौर पर जारी की गई पाकिस्तानी एनएसपी भारत, कश्मीर, हठधर्मिता आदि-आदि पर वही पुरानी आम बातें करती है.

उसमें नया कुछ भी नहीं है और भारतीय जानकारों ने इसका काफी विस्तार से विश्लेषण भी किया है. उन सबने इस बात पर भी गौर किया है कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि के महत्व पर भी ज़ोर दिया गया है. यह बीते वर्षों के छाती-ठोक दावों से अलगाव को उजागर करता है.

अपनी अनूठी भौगोलिक स्थिति और दुनिया में सभी दिशाओं में बेहिसाब आर्थिक अवसर उपलब्ध कराने की अपनी विशेषता पर बार-बार ज़ोर देने के साथ एनएसपी इस कठोर और क्रूर भौगोलिक सच को स्वीकार करता है कि पूरब से संपर्क भारत के प्रतिगामी रुख के कारण बाधित हुआ है.

इस दृष्टि से, एनएसपी का सबसे उल्लेखनीय रूप से ईमानदार अंश, वह जो सार्वजनिक तौर पर जारी किए गए इसके दस्तावेज़ में दर्ज है वह ‘जलवायु और जल संकट’ से संबंधित है. तमाम अच्छी मंशाओं और आकांक्षाओं के बावजूद, पाकिस्तान की एनएसपी और उसके कार्यक्रम इस अंश में दर्ज निर्णायक मसलों का निपटारा किए बिना सिफर साबित होंगे. इसका महत्व इस तथ्य से आंका जा सकता है कि यह अंश भी उतना ही बड़ा है जितना पाकिस्तान के लिए सबसे बड़े सिरदर्द भारत पर दिया गया अंश बड़ा है.


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जनरल नरवणे के कदम 

उल्लेखनीय बात यह है कि इन मसलों का हल जनरल नरवणे और उनके इंटरव्यू में पेश किए गए अवसर में पाया जा सकता है. उन्होंने कहा है कि ‘पूरे क्षेत्र को ध्यान में रखकर सभी पड़ोसियों से अच्छे और मजबूत संबंध बनाने का रुख अपनाना हमेशा बेहतर होता है.’

जनरल ने अपने इंटरव्यू में इसी तरह के काम के और भी मुद्दे उठाए हैं. जलवायु और जल संकट से निपटने के लिए इन्हीं सब की जरूरत है. पड़ोसी होने के नाते भारत और पाकिस्तान, दोनों समान रूप से प्रभावित हैं क्योंकि भूगोल कोई भेदभाव नहीं करता और उसे इतिहास की तरह दोबारा नहीं लिखा जा सकता.

यहां पर जनरल नरवणे और उनकी जमात सबसे अहम भूमिका निभा सकती है. नेता और कूटनीतिज्ञ लोग इन दोनों पड़ोसियों के बीच के मामले को आगे बढ़ाने की कोशिश दशकों से कर रहे हैं. लेकिन पाकिस्तानी फौज की स्थायी असुरक्षा भावना और उसकी पुरानी चिढ़ के कारण कोई बात आगे नहीं बढ़ पाई है. कहने की जरूरत नहीं कि सबसे प्रमुख चिंता यह है कि पानी पाकिस्तान की ओर बहता है.

दोनों देशों के कई प्रधानमंत्रियों के बीच दोस्ती- 1999 में मीनार-ए-पाकिस्तान के दौरे से लेकर साथ बैठकर क्रिकेट मैच देखने या बुजुर्ग के चरण-स्पर्श तक तमाम दिखावों- के बावजूद बात घूम-फिरकर शुरुआत पर ही आकर अटक जाती है.

इसलिए तमाम मसलों की जड़ तक पहुंचना यानी भारत-पाकिस्तान की सेनाओं के बीच पहली वार्ता की पहल करना ही समझदारी की बात लगती है. इस मामले में संवाद मुख्यतः थल सेनाओं के संचालन में हो क्योंकि पाकिस्तान में नौसेना और वायुसेना यह भूमिका निभाने के लिहाज से काफी पीछे दिखती है. जनरल नरवणे के इंटरव्यू के लहजे, तेवर और उनकी बातों ने एजेंडा के मुद्दे तय कर दिए हैं, जिन्हें वे और उनकी टीम उठा सकती है.

सेना पर भरोसा क्यों न करें?

भारतीय सेना के नेतृत्व के हलके में यह काम करने का आत्मविश्वास और समझदारी है. सेनाओं की वार्ता सैन्य कूटनीति का अहम तत्व होती है, जिसे दुर्भाग्य से भारत में उतना महत्व नहीं दिया गया है जितना दिया जाना चाहिए था. जब निर्विवाद रूप से मान लिया गया है कि भारतीय सेना संकट से उबरने में हमेशा सफल होती है, तो उसे यह संवेदनशील ज़िम्मेदारी भी निश्चित ही सौंपी जा सकती है.

कोई गलबहियां नहीं होगी, न कोई आडंबर होगा. सीधी-सीधी फौजी किस्म की बातचीत होगी, और यही पाकिस्तान के कमरे (रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वाटर्स) में बैठे हाथी से निपटने का सबसे अच्छा तरीका होगा. कई दशकों से, दोनों सेनाएं बंदूक की नली के जरिए या एलओसी पर फ्लैग मीटिंग की छतरी तले बात करती रही हैं. चंद चुनिन्दा सैनिकों को साथ-साथ काम करने का मौका या तो संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले मिलता है या कहीं और फौजी कोर्स में पढ़ाई करने के दौरान. और इन मौकों पर उनके बीच संवाद में कोई मुश्किल आई हो, ऐसी कोई खबर कभी नहीं मिली.

नेताओं और राजनयिकों ने कई कोशिशें कर लीं मगर कुछ खास हासिल नहीं कर पाए. सेना बेहतर नतीजे ही दे सकती है, क्योंकि वह उन सभी चिंताओं को समेटे हुए है जो उसे पाकिस्तान की नीति पर हावी होने को प्रेरित करती है. भारत चाहे जितना खंडन करे, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान में सेना ही सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी है. भारत में उसे समझने वाला कोई महकमा है तो वह भारतीय सेना ही है. वही है जिसके साथ पाकिस्तानी फौज बैठेगी और जिसकी बात सुनेगी.

(लेखक कांग्रेस नेता हैं और डिफेंस एंड सिक्योरिटी अलर्ट के एडिटर-इन-चीफ हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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