चमकता नियोन साइनबोर्ड चीख-चीखकर कह रहा था — ‘गेट एक्स-लव बैक ऐंड टॉप ब्लैक मैजिक रिमूवल’. पीछे देखते हुए उसे शायद कुछ मिनट के लिए रुक जाना चाहिए था. अमेरिका में मिनी भारत कहे जाने वाले न्यू जर्सी के इसेलीन के बीच से ड्राइव करते हुए वह ताहिर पान की दुकान, बीकानेरवाला और एक लाइन से खड़ी शादी के गहनों की दुकानों से गुज़रा और तब उबेदुल्ला अब्दुलरशीद रेडियोवाला को ट्रैफिक लाइट के कारण रुकना पड़ा और यही उसके लिए मुसीबत साबित हुई. 2015 के इंटरपोल नोटिस के साथ लैस फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (एफबीआइ) ने आखिर उसे धर दबोचा.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पराए विदेशियों के खिलाफ जो जंग छेड़ी है, कुछ हफ्तों से उसके नतीजे भारत के पक्ष में निकल रहे हैं. कथित गैंगस्टर हरप्रीत सिंह, जो हैप्पी फासला के नाम से भी जाना जाता है और जो कथित तौर पर खालिस्तानी आतंकवादियों के हथगोले पंजाब के अपराधियों तक पहुंचाता रहा है, उसे देशनिकाला देकर भारत भेजे जाने की संभावना है. वैसे, पंजाब के ये अपराधी उन हथगोलों से नाकाम हमले ही करते रहे हैं.
हालांकि, उसका मामला 26/11 कांड को अंजाम देने वाले तहव्वुर राणा के निष्कासन की खबरों में दब गया, लेकिन पंजाब पुलिस पिछले कुछ महीनों में विदेश से कई अपराधियों को हासिल करने में सफलता पाई है. संगठित अपराध के सात मामलों में जिस विक्रमजीत सिंह की तलाश थी, उसे यूएई से यहां लाया गया; पॉप सिंगर सचिन बिश्नोई को अज़रबैजान से लाया गया और मनप्रीत सिंह ‘पीता’ और मंदीप सिंह को फिलीपींस से लाया गया.
निर्वासितों में सबसे अहम रमनजीत सिंह ‘रोमी’ को हांगकांग से लाया गया. उस पर नवंबर 2016 में जेल से भागने की साजिश करने का आरोप है, जिसमें खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) के चीफ हर्मिन्दर सिंह मिंटू फरार हो गया था. हालांकि, उसे कुछ घंटे के अंदर ही फिर गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन बताया जाता है कि रमनजीत ने हांगकांग में गिरफ्तार किए जाने से पहले वहां कई सशस्त्र डकैतियां की थीं.
आंकड़े बताते हैं कि खालिस्तानी आतंकवाद की पंजाब में अब कोई बड़ी ताकत नहीं रह गई है. 2000 के बाद से इस राज्य में दो साल को छोड़ दें तो सभी वर्षों में आतंकवादी हत्याओं का वार्षिक आंकड़ा दहाई अंक से नीचे का रहा है. अलगाववाद से लड़ाई के मामलों के विशेषज्ञ अजय साहनी का कहना है कि “इस स्थिति में अचानक कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है. हालांकि, कोई एकाध घटना होती है तो सोशल मीडिया पर और ‘मुख्यधारा’ के मीडिया चैनलों पर सोचा-समझा हंगामा खड़ा कर दिया जाता है.”
लेकिन पंजाब में और उसके बाहर वास्तव में जो विस्फोट हो रहा है उस पर खतरनाक रूप से कम ध्यान दिया जा रहा है.
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उलझे धागे
अमेरिका की अदालतों में रेडियोवाला की जो विचित्र कहानी दर्ज है वह यह समझने में मदद करती है कि भारतीय अधिकारियों को ऐसे तत्वों का विदेश से देशनिकाला करवाने और अपने कब्ज़े में हासिल करने में दिक्कतों का क्यों सामना करना पड़ता रहा है. उनके खिलाफ सबूत प्रायः कमज़ोर होते हैं और मुकदमा गड़बड़ चलता है. रेडियोवाला ने अमेरिका के एक इमिग्रेशन ट्रिब्युनल को बताया था कि कई वर्षों तक वह मुंबई के एक गैंगस्टर हुसैन वास्त्रा के लिए ऑटोरिक्शा ड्राइवर का काम करता रहा था. बाद में दाऊद इब्राहिम के गिरोह की गतिविधियों से संबंधित खबरों के लीक होने से पता चला कि उसके तार वास्त्रा से जुड़े थे. वास्त्रा ने अपने ड्राइवर पर सारा आरोप थोप दिया और दावा किया कहा कि रेडियोवाला ही मुखबिर था.
बाद में, रेडियोवाला ने कबूल भी किया कि यह सच था. मुंबई के विख्यात पुलिस अधिकारी विजय सलासकर, जो 26/11 वाले कांड में मारे गए थे, उसे जबरन वसूली की अगली कोशिश या हत्या की साजिश से संबंधित हर एक सूचना के एवज में 2,000 से 6,000 रुपये तक दिया करते थे.
अपने गवाहों की सुरक्षा के लिए किसी कानूनी ढांचे या संसाधन के अभाव में सलासकर ने रेडियोवाला के लिए पासपोर्ट बनवा दिया था और उसे सलाह दी थी कि वह न्यू जर्सी में अवैध प्रवासी बनकर रहे. रेडियोवाला को महीनों तक 300 डॉलर पार्टी हफ्ता की आमदनी पर चार लोगों के अपने परिवार को पालने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा. बाद में, कॉस्मेटिक्स के उसके बिजनेस से सालाना 120,000 से 225,000 डॉलर के बीच कमाई होने लगी तो एक प्रवासी के रूप में वह बड़े सपने देखने लगा. उसके तीन बच्चे कॉलेज में और चौथा हाइस्कूल में पहुंच गया था.
लेकिन मुंबई पुलिस अज्ञात कारणों से यह शक करने लगी कि उस शहर के म्यूजिक इंडस्ट्री से जो जबरन वसूली की जाती थी उस पैसे से रेडियोवाला काला धंधा कर रहा था. अमेरिका में उसके अपराध का कोई सबूत नहीं था, लेकिन जजों ने अंततः यही फैसला किया कि अमेरिका में उसका अवैध प्रवेश उसे निर्वासित करने की पर्याप्त वजह बनती है.
रेडियोवाला समेत 12 लोगों पर चलाए गए मुकदमे में यह आरोप लगाया गया था कि उन सभी ने वाहन से गुज़रते हुए खार में फिल्म निर्माता करीम मोरानी के घर पर गोलीबारी की थी. 2021 में अभियोजन पक्ष की ओर से एक गवाह ने कहा था कि रेडियोवाला ने मोरानी पर यह दबाव बनाने के लिए हमला करवाया था कि मोरानी विदेश में अपने फिल्म राइट्स कथित गैंगस्टर रवि पुजारी को बेच दे. सभी 12 संदिग्धों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया, लेकिन रेडियोवाला दूसरे आरोपों के कारण जेल में बंद रहा.
बड़ी संख्या में दूसरे मामलों का यही हश्र हुआ है. इस साल के शुरू में पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट ने जगतार सिंह को बरी कर दिया, जिसे पुलिस ने इस दावे के साथ गिरफ्तार किया था कि वह फरीदकोट में सशस्त्र डकैती करने की साजिश बना रहा था. पुलिस ने उसके पास से जो बंदूक बरामद की थी उसे जब मुकदमे की सुनवाई के दौरान पेश किया गया तो पाया गया कि उसमें गोली चलाने वाली पिन ही नहीं है जिसके कारण वह इस्तेमाल के लायक नहीं थी.
इसी तरह, हाल में सुखप्रीत सिंह बुड्ढा और दिलप्रीत सिंह बाबा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. बताया गया कि दिलप्रीत और उसके साथी सुखप्रीत ने दिसंबर 2024 में गायक रुपिंदर ‘गिप्पी’ ग्रेवाल से जबरन वसूली करने की कोशिश की. गायक ने पैसे देने से मना कर दिया तो 14 अप्रैल 2018 को ग्रेवाल पर कथित रूप से गोली चलाई गई जिसमें वह घायल हो गए.
पूरी दुनिया में तलाशी के बाद आर्मेनिया के अधिकारियों ने दो लोगों को ढूंढ निकाला और निर्वासित कर दिया. अदालत का फैसला यही बताता है कि भारत को अपने प्रयासों के रूप में दिखाने को शायद ही कुछ है.
और, ब्रिटेन के जिस जगतार सिंह जोहल को केएलएफ की उसकी कथित सदस्यता के आरोप में एमआई6 की मदद से 2017 में गिरफ्तार किया गया था उसे इस साल के शुरू में पंजाब की एक अदालत ने बरी कर दिया. आठ अन्य मामले लटके पड़े हैं. हालांकि, पंजाब पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूतों पर गंभीर संदेह ज़ाहिए किए गए हैं.
खालिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ जंग में पुलिस जबकि हाथ-पैर मार रही है, असली समस्या का इलाज नहीं किया जा रहा है.
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कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
खालिस्तान से जुड़े वैचारिक उद्देश्य ने युवाओं के कच्चे मन में जो विसंगति पैदा की है उसे सहज देखा जा सकता है, यह विसंगति गैंगस्टर से जुड़े पॉप म्यूजिक से ज़ाहिर होती है जिसमें बंदूकों और पहुंच से दूर लड़कियों के बारे में कल्पनाएं शामिल होती हैं. शोधकर्ता कोनोर सिंह वांडरबीक का कहना है कि मारे गए गायक मूसेवाला और उनके साथियों ने इस पॉप म्यूजिक को “पंजाबी मर्दानगी के प्रतीकों से जोड़ दिया और दमित जाटों को अपनी अधिकारहीनता से उबरने का नया साधन दे दिया”.
कभी एक प्रमुख जाति रहे जाट अब उस दुनिया में रहते हैं जिसमें ज़मीन न अब ताकत देती है और न ही स्वतः सामाजिक प्रतिष्ठा. वांडरबीक का कहना है कि “विस्थापित होने की चिंताएं इन गीतों में गूंजती हैं, जिनमें यह दावा किया जाता है कि जाट आज निचले स्तर के काम, मजदूरी आदि भले कर रहा हो, उससे पंगा मत लेना.”
गैंगों की दुनिया के तमाम सदस्यों की तरह मूसेवाला भी दक्षिण पंजाब में पैदा हुए, जहां कपास की खेती संकट में थी. कीटनाशकों के व्यापक इस्तेमाल की ज़रूरत और भारी कर्ज़ों ने किसानों की हालत खराब कर दी थी. परिवार की अपर्याप्त आमदनी के कारण उन्हें सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए भी अक्सर कर्ज़ लेना पड़ता था. खाने की दिक्कत हुआ करती थी. इस युवा जमात को रोज़गार देने वाली औद्योगिक तथा बाज़ार संबंधी नीतियां बनाने में सरकार की विफलता ने मूसेवाला और उसके जैसे दूसरे कलाकारों के संगीत के लिए अनुकूल हालात बना दिए.
प्रायः विश्वविद्यालयों में और साथियों के बीच गिरोहबंदी की संस्कृति को निम्न स्तरीय नशीले पदार्थों के धंधे से मदद मिलती है. हालांकि, पंजाब ड्रग्स के इस्तेमाल के लिए बदनाम है, लेकिन सबूत यही बताते हैं कि नशीले पदार्थों का इस्तेमाल उतना ज़्यादा नहीं है जितना दावा किया जाता है. पंजाब में 2015 में हुए ‘ओपिओइड डिपेंडेंस सर्वे’ (दर्द निवारक दवाओं पर निर्भरता के सर्वे) के मुताबिक, राज्य की 2.86 करोड़ आबादी में मात्र 0.81 फीसदी ही दर्द निवारक दवाओं पर निर्भर थी.
फिर भी, युवाओं में शराबखोरी और ड्रग्स का इस्तेमाल असली समस्या बनी हुई है, लेकिन इस राज्य ने इस कमज़ोर जमात को सड़कों से अलग खेलकूद, पढ़ाई, या पुनर्वास की दुनिया में ले जाने वाली सेवाओं में कम ही निवेश किया है.
ऐसे तत्व खासकर कनाडा में बसे प्रवासी भारतीयों में भी उभरे, जहां ये गिरोह नए प्रवासियों के लिए मौके और मर्दानगी जताने का मंच उपलब्ध कराते हैं जिसकी कमी वह महसूस करते हैं. हालांकि, पंजाबी प्रवासियों की आबादी उस देश की आबादी की मात्र 2.6 फीसदी है, लेकिन 2008 के बाद से गिरोहों के बीच लड़ाई या पुलिस कार्रवाइयों में मारे गए 21 फीसदी गैंगस्टर इसी समुदाय के हैं. पंजाबी गिरोह लैटिन अमेरिकी और एशियाई गिरोहों से ज्यादा होड़ लेने लगे हैं. इस साल अमेरिकी अभियोजकों ने छह भारतीय तथा कनाडाई पंजाबियों के खिलाफ न्यूयॉर्क में बांटने के लिए कोकीन लाने के आरोप लगाए हैं.
असली दुश्मन
हालांकि, भारतीय खुफिया तथा पुलिस सेवाएं खालिस्तानी आंदोलन और प्रचार के खिलाफ लगातार अभियान चलाती रही हैं, लेकिन संगठित अपराध से पैदा होने वाला खतरा कहीं ज्यादा गंभीर और घातक है. एक तो यह गहरे सामाजिक बिखराव की ओर इशारा करता है जिससे निबटने में राजनीतिक व्यवस्था और सिविल सोसायटी विफल हो रही है. दूसरे, यह सरकारी व्यवस्था से बाहर आर्थिक गतिविधियों के विशाल दायरे के अस्तित्व को उजागर करता है, जो गिरोहबंदियों को मजबूती देती हैं. इनमें रेत खनन, सरकारी ठेके, जबरन वसूली, और शराब के ठेकों के घोटाले शामिल हैं.
जैसा कि पुलिस अधिकारी वी.एस. देउसकर ने एक मौलिक अध्ययन में कहा है, गिरोहबाज़ी को बढ़ावा देने वाली एक जो सबसे बड़ी चीज़ है वह है अवैध सामान और सेवाओं की मांग, जो अक्सर कानूनी तथा नौकरशाही व्यवस्थाओं के निकम्मेपन से पैदा होती है.
अंत में, गिरोहों के लोगों के खिलाफ विश्वसनीय मुकदमा चलाने और उन्हें सज़ा दिलवाने में अपराध न्याय व्यवस्था की अक्षमता कानून के लिए नफरत को जन्म देती है. पंजाब सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 2023 के बीच पुलिस ने नशीले पदार्थ रखने के आरोप में 85,000 से ज्यादा गिरफ्तारियां की. इसका एक उल्लेखनीय नतीजा यह हुआ है कि गिरोहों को अपने यहां भर्ती करने के लिए जेलों में एक बड़ा समूह उपलब्ध हो गया है.
भारत को असली खतरा ब्रैंपटन के गुरुद्वारे में खालिस्तान के आंदोलन और प्रचार से नहीं है. खतरा साफ दिख रहा है, जो दिल्ली से कुछ घंटों की दूरी पर स्थित उस क्षेत्र में पनप रहा है जहां राष्ट्र-राज्य विस्फोट के कगार पर पहुंच गया है और जहां के लोग अपना रास्ता भटक गए हैं.
(प्रवीण स्वामी दिप्रिंट में कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @praveenswami है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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