हिंद महासागर का द्वीप राष्ट्र मॉरीशस, आधुनिक इतिहास के अपने सबसे गंभीर संकट से गुज़र रहा है. 21 जुलाई को, सिंगापुर से ब्राज़ील के टुबाराओ बंदरगाह के लिए निकलने के क़रीब एक हफ्ते के बाद, 300 मीटर लंबा विशाल मालवाहक जहाज़ एमवी वकाशियो, जिसकी मालिक और संचालक जापानी कंपनियां थीं, अपने रास्ते से भटक गया और उसने मॉरीशस का रुख़ कर लिया, जो नियमित जहाज़ी मार्गों से कई नॉटिकल मील दूर दक्षिण में था. कुछ दिन बाद किनारे से क़रीब एक किलोमीटर दूर, जहाज़ एक समुद्री चट्टान से टकराकर रुक गया. टक्कर की वजह से इसके दो टुकड़े हो गए, और इससे क़रीब 1,000 टन तेल समुद्र में रिस गया. इस विशाल जहाज़ का अगला हिस्सा (जिसे बो कहते हैं), कुछ दूर तक खींचकर दक्षिण की तरफ ले जाया गया, जहां उसे डूबने दिया गया है. जहाज़ के बाक़ी हिस्से चट्टान पर पड़े हुए हैं, क्योंकि मौसम और समुद्री हालात उनसे निपटने नहीं दे रहे हैं. जहाज के 20 सदस्यीय चालक दल को मॉरीशस के अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया है और इसका कप्तान सुनील कुमार नांदेश्वर पर, जो एक भारतीय नागरिक हैं, कुछ चीज़ों को ख़तरे में डालने का आरोप लगाया गया है.
अगर कोविड-19 महामारी को अलग रख दें तो भी, मॉरीशस उन पर्यावरण और आर्थिक आपदाओं से निपटने में सक्षम नहीं है, जो ये समुद्री दुर्घटना उसके ऊपर लेकर आई है. पिछले एक महीने में फ्रांस और भारत के समुद्री आपदा प्रबंधन कर्मी, अपने स्थानीय समकक्षों के साथ मिलकर, नुक़सान को क़ाबू करने में जुटे हैं, और आने वाले दिनों में जापानी, और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट्स भी वहां पहुंचने वाले हैं.
उम्मीद करनी चाहिए कि मॉरीशस जल्द ही इस संकट से उबर जाएगा, और उसे उतना नुक़सान नहीं होगा, जितना फिलहाल डर है. भारत से जुड़े दो पहलू हैं जिन पर मैं फोकस करना चाहूंगा.
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भारत की प्रतिक्रिया
पहला ये कि भारत कैसे उन देशों में से एक बना, जिन्होंने सबसे पहले मॉरीशस की मदद की गुहार सुनी.
16 अगस्त को भारतीय वायुसेना का सी-17 ग्लोबमास्टर विमान, वहां 30 टन उपकरण लेकर पहुंचा, जिनका इस्तेमाल तेल रिसाव को रोकने, और बचाव कार्यों में किया जाता है. भारतीय कोस्ट गार्ड की एक 10 सदस्यीय टीम को, इस काम के लिए तैनात किया गया है. भारत ने जिस तत्परता के साथ, हिंद महासागर में समुद्री संचार लाइन्स के पास, एक अहम जगह पर उपयोगी सहायता भेजी, उस पर इस क्षेत्र की उभरती हुई भू-राजनीति में, ध्यान ज़रूर जाएगा.
जहाजी भी अग्रिम पंक्ति के कर्मी हैं
दूसरे पहलू का ताल्लुक उन चुनौती भरे हालात से है, जिनका दुनियाभर के जहाजी- जिनमें एक बड़ी संख्या भारतीय नागरिकों की है- कोरोनावायरस महामारी के दौरान सामना कर रहे हैं. सार्वजनिक बातचीत में काफी हद तक इस बात की अनदेखी की गई है कि जहाजी भी अंतिम पंक्ति के कर्मी हैं, जिन्होंने लॉकडाउन्स और क्वारेंटान के दौरान, विश्व व्यापार के पहिए को चलाए रखा है. फरवरी से फैली वैश्विक अव्यवस्था, और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के रुकने से, जहाजी या तो विदेशी बंदरगाहों पर फंस गए हैं या उन्हें जहाज़ों पर अपना समय, सामान्य रूप से कुछ महीनों से, आगे बढ़ाना पड़ा है.
भारतीय समुद्री विश्वविद्यालय की वाइस-चांसलर, मालिनी शंकर ने मुझे बताया कि वंदे भारत फ्लाइट्स और जहाज़रानी, प्रोर्ट्स, विदेशी मामले, गृह और नागर विमानन मंत्रालयों के बीच अभूतपूर्व समन्वय की बदौलत, मुसीबत में कुछ राहत मिली है. 40,000 से अधिक जहाज़कर्मी भारत में अपने घर वापस आ गए लेकिन इसमें कुछ दूसरी समस्याएं हैं, जो लोग भारत में फंसे हैं, उन्हें डर है कि उनका एनआरआई स्टेटस ख़त्म हो जाएगा और उन्हें ऐसे समय ज़्यादा टैक्स अदा करने होंगे, जब उनकी आमदनी भी कम है. जो लोग अभी भी विदेशी पोर्ट्स पर फंसे हैं, उन्हें क्वारेंटाइन, वीज़ा और क्रू बदलने के नियमों की अनिश्चितताओं से निपटना पड़ रहा है. लंबे समय तक तनावपूर्ण हालात में काम करने से, उनकी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सलामती पर बुरा असर पड़ रहा है.
और बुरा हो सकता था
हालात और भी बुरे हो सकते थे. अगर जहाज ख़ाली न होता, तो इसका सारा कार्गो समुद्र के पानी में ख़ाली हो जाता. बचाव दल के लोग अगर इतने कामयाब न होते, तो रिसाव कहीं ज़्यादा व्यापक हो सकता था. इस बीच 3,300 टन से ज़्यादा तेल- जो जहाज़ में मौजूद कुल तेल का लगभग तीन चौथाई था- बाहर निकाल लिया गया है, जिसमें इंडियन ऑयल मॉरीशस बार्ज का इस्तेमाल किया गया. अगर ये हादसा या लहरें कुछ अलग होतीं, तो पर्यावरण के हिसाब से संवेदनशील, ब्लू बे मरीन पार्क सीधा प्रभावित हो सकता था. जहां तक तेल रिसाव की सवाल है, ये कोई बहुत बड़ा नहीं था.
जैसा कि मरीन वैज्ञानिक क्रिस्टोफर रेड्डी, जो तेल रिसाव एक्सपर्ट हैं, कहते हैं कि भीषण पर्यावरण और आर्थिक आपदा की आशंका, हद से ज़्यादा बढ़ी हुई हो सकती है. वो लिखते हैं, ‘वास्तव में ये मान लेने से कि कुछ बहुत ख़राब हो जाएगा, कई बार ख़राब स्थिति और बिगड़ जाती है और इस तरह की तबाहियों में, इको-सिस्टम के अंदर सबसे कम लचीली प्रजाति इंसान की होती है- क्योंकि बड़ी सीप या ट्यूना के उलट, वो सिर्फ हताश महसूस करके ही, आपदा के असली प्रभाव को झेलने लगते हैं’.
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हमें नहीं मालूम कि एमवी वकाशियो मॉरीशस तट के इतने क़रीब क्यों चला गया. मीडिया में शुरुआती अफवाहें थीं कि ऐसा इसलिए हुआ कि क्रू द्वीप से वाइ-फाई या सेलुलर सिगनल लेना चाहता था, और जहाज़ पर चल रही एक बर्थडे पार्टी ने, ऑफिसर्स का ध्यान भटका दिया, जिन्होंने मॉरीशस के पोर्ट अधिकारियों की कॉल्स को नज़रअंदाज़ कर दिया, जो उन्हें ख़तरे से आगाह कर रहे थे. हमें जांच का इंतज़ार करना होगा, जिससे पता चलेगा कि हादसे का कारण क्या था. जिन तनावपूर्ण हालात में जहाज़कर्मी काम कर रहे हैं, इस बात की जांच होनी चाहिए, कि क्या चालक दल पर, लंबे समय तक समुद्र पर रहने का बुरा असर पड़ा रहा था, और उनकी मानसिक दशा और पेशेवराना व्यवहार कितना प्रभावित हुआ था. किसी न किसी तरह, अंतर्राष्ट्रीय मैरिटाइम संगठन और दुनियाभर की सरकारों को, तुरंत प्रभाव से जहाज़कर्मियों के मूवमेंट को सुविधाजनक बनाना चाहिए, ताकि समुद्री हादसों के ख़तरों को कम किया जा सके.
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(लेखक लोकनीति पर अनुसंधान और शिक्षा के स्वतंत्र केंद्र तक्षशिला संस्थान के निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)