scorecardresearch
Saturday, 2 November, 2024
होममत-विमतभारत अर्थव्यवस्था को लेकर ब्रिटेन और पूर्वी एशियाई देशों की सरकारों से ले सकता है सबक

भारत अर्थव्यवस्था को लेकर ब्रिटेन और पूर्वी एशियाई देशों की सरकारों से ले सकता है सबक

पूर्वी एशिया की तुलना में भारत का सरकारी क्षेत्र जीडीपी के हिसाब से बड़ा है. फिर भी, हर मामले में हमारी सार्वजनिक सेवाएं खराब स्तर की हैं. यह जांचना भी बेहतर होगा कि हमारी सरकारें वास्तव में क्या प्रदर्शन कर रही हैं और किस कीमत पर.

Text Size:

ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने जिनकी विदाई पर किसी को अफसोन नहीं हुआ, ‘नीची टैक्स दरें, ऊंची आर्थिक वृद्धि’ के फॉर्मूले को बदनाम कर दिया. यह जरूरी भी था क्योंकि वास्तव में आयकर दरों और आर्थिक वृद्धि में कोई स्पष्ट संबंध नहीं है. आम तौर पर विकसित देशों में टैक्स दरें पूर्वी एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में लागू दरों (जिनकी अधिकतम सीमा 35 फीसदी होती है) से ऊंची होती हैं.

ब्रिटेन में आयकर की अधिकतम दर 45 फीसदी है, जो अमेरिका में इस दर से कुछ ऊंची और जापान से कुछ नीची है. सिंगापुर जैसी जगहों को छोड़ बाकी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में केवल कनाडा में अधिकतम दर कम है (33 फीसदी). पूर्वी एशिया (दक्षिण कोरिया और ताइवान) के उच्च आय वाले देशों में अधिकतम दरें यूरो औसत के करीब हैं, जबकि आर्थिक वृद्धि दरें भिन्न हैं.

अगर कोई उल्लेखनीय प्रवृत्ति है तो वह यह है कि समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में टैक्स ऊंचा हो रहा है क्योंकि इससे महत्वाकांक्षी जनकल्याण कार्यक्रमों के लिए पैसा मिलता है. जिन उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सामाजिक सुरक्षा के उपाय लागू हैं उनमें जीडीपी के मुक़ाबले सरकारी खर्च का अनुपात छोटा होता है. यह प्रवृत्ति पूर्वी एशिया की सफल मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में दिखती है जिनमें सरकार और बजट का आकार छोटा होता है और दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले घाटे का स्तर जीडीपी के अनुपात में नीचा होता है.


यह भी पढ़ें: बरकरार है अगड़ी जातियों की गिरफ्त भारतीय मीडिया पर


बेहद कामयाब दक्षिण कोरिया में सरकारी खर्च जीडीपी के केवल एक चौथाई के बराबर है (सरकार नियंत्रित अर्थव्यवस्था वाले फ्रांस में यह 60 फीसदी से ऊपर है) और घाटा 2.8 फीसदी के बराबर है.

मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, वियतनाम दक्षिण कोरिया के उदाहरण को ही पेश करते हैं. इसकी तुलना में भारत की सरकारें ज्यादा बड़ी हैं, जिनमें यह जीडीपी के एक तिहाई के बराबर है और घाटे का स्तर ऊंचा होता है (केंद्र और राज्यों को मिलाकर करीब 10 फीसदी). सरकारी कर्ज का मामला भी अलग नहीं है. दक्षिण कोरिया का कर्ज उसकी जीडीपी के 50 प्रतिशत से भी कम के बराबर है, जबकि भारत में यह 85 फीसदी से ऊपर है. ताइवान की सरकार जीडीपी के मामले में दक्षिण कोरिया की सरकार से भी छोटी है और उस पर कर्ज भी कम है.

इससे यह संकेत मिलता है कि असली चीज सरकार का आकार नहीं बल्कि अधिकतम टैक्स दर है, और यह छोटी सरकार के पक्ष में थैचर-रीगन के बहुत पहले खारिज किए जा चुके विचार के अनुरूप है. लेकिन क्या ब्रिटेन या कोई भी दूसरा विकसित देश नीची टैक्स दरों और छोटी सरकार रखने की खातिर छोटे कल्याणकारी छोटे बजट (मसलन छोटी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था) को कबूल कर सकती है?

काबिले गौर बात है कि वर्तमान और पूर्व, दोनों अमेरिकी राष्ट्रपति ने सरकारी खर्च में वृद्धि के नये महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों का वादा किया. ऋषि सुनक ने भी बड़े वादे किए हैं लेकिन कोई नहीं जानता कि वे उसे पूरा कैसे करेंगे. वे बड़ा घाटा और भारी सरकारी कर्ज (जो कभी भारत के घाटे और कर्ज से भी बड़ा होता है) का सामना कर रहे हैं और कोई अमीर अर्थव्यवस्था भी ज्यादा पैर पसारने की कोशिश नहीं कर सकती. यह राजनीतिक या वित्तीय या दोनों मोर्चे पर हाराकीरी करने जैसा होगा, जिससे ट्रस का सामना हो चुका है.

ऐसे में भारत कहां है? पूर्वी एशिया (जापान और चीन को छोड़) की तुलना में उसका सरकारी क्षेत्र जीडीपी के हिसाब से बड़ा है. फिर भी, हर मामले में हमारी सार्वजनिक सेवाएं खराब स्तर की हैं, और रक्षा क्षेत्र पर खर्च कम है. यह हमें  सोचने को प्रेरित कर सकता है कि क्या भारत का सरकारी क्षेत्र वास्तव में काफी छोटा है.

लेकिन पूर्वी एशियाई देश छोटे बजट के बावजूद अच्छा प्रदर्शन कैसे कर रहे हैं? बांग्लादेश भी तुलनीय वृद्धि दरें हासिल कर रहा है और कुछ सामाजिक संकेतकों में हमसे बेहतर भी हैं जबकि वहां टैक्स दरें कम हैं और बजट भारतीय बजट का आधा है, जीडीपी के 15 फीसदी के बराबर; और सरकारी कर्ज जीडीपी के 34 फीसदी के बराबर है.

तो क्या भारत में सरकारें जो काम कर रही हैं उसके हिसाब से वे आकार में जरूरत से ज्यादा बड़ी हैं? इसके अलावा, यह तथ्य एक चेतावनी दे रहा है कि मध्य आय वाली अधिकतर समस्याग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं की सरकारें बड़ी हैं, उनका घाटा बड़ा है, कर्ज बड़े हैं, और भ्रष्टाचार भी बड़े पैमाने पर है.

इसकी दो प्रमुख मिसालें हैं—ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका. भारत को सावधान रहना होगा कि वह कहीं उनके रास्ते पर न चल पड़े. वित्त मंत्रलाय और नीति आयोग शायद इस पर नज़र रखेंगे कि सरकारें वास्तव में क्या प्रदर्शन कर रही हैं और किस कीमत पर. उनकी सेवाओं में सुधार और जरूरत के मुताबिक विस्तार कैसे होगा, अलग कार्यशैली अपना कर कितनी बचत की जा सकती है, और सरकार जो कुछ कर रही है उनमें से कितने काम निजी क्षेत्र को सुरक्षित रूप से सौंपे जा सकते हैं. कुछ अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन एक अच्छी शुरुआत साबित हो सकती है.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष व्यवस्था द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार के लिए अगले बजट में खर्चीली योजनाओं की घोषणा से परहेज करना ही बेहतर होगा


 

share & View comments