भारतीय जनमानस में गृहमंत्री घरेलू औरतों को कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जब पुरुष पैसे कमाने में व्यस्त होता है, गृहमंत्री घर को बांध के रखती है और नौजवान पीढ़ी को मार्गदर्शन देती है. इसलिए जब देश के गृहमंत्री की भी बात आती है तो लोग उसे एक पोस्ट या महकमे के हेड से इतर अपने घर यानी देश को बांध के रखनेवाला समझते हैं. ये बात तब और महत्वपूर्ण हो जाती है जब देश की सत्ताधारी पार्टी लगातार सांस्कृतिक विरासतों और मूल्यों की ही बात करती हो. पर वर्तमान गृहमंत्री श्री अमित शाह इस ‘मिथक’ को तोड़ रहे हैं और ये कह रहे हैं कि देश के युवा अपना भविष्य खुद देखें, उनके लिए गृहमंत्री खड़ा नहीं है. गृहमंत्री की अपनी इच्छाएं हैं और वो उन्हें ही पूरा करेंगे.
नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार के गृहमंत्री राजनाथ सिंह जब कश्मीर गये थे तो उन्होंने वहां के युवाओं को संबोधित करते हुए भावनात्मक बातें कही थीं. भाजपा के राजनीतिक रुख के विपरीत उन्होंने जो बोला, उसे उनके राजनीतिक करियर का ‘वाटरशेड मोमेंट’ कहा गया था. उन्होंने युवाओं के बारे में कहा था कि अगर गलती भी की हो तो उनसे अपराधियों की तरह व्यवहार ना किया जाए.
पर वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह युवाओं को ही अपना दुश्मन मान बैठे हैं. उनके लिए सिर्फ कश्मीर के ही युवा अपराधी नहीं हैं बल्कि देश के किसी भी भाग में बोलनेवाला युवा अपराधी है. अगर वो उनकी ही भाषा बोलता है फिर तो ठीक है. कल देश के पहले सीडीएस बिपिन रावत ने कहा, ‘कश्मीर में छोटे-छोटे बच्चे ‘रेडिकलाइज’ (कट्टरपंथी) हो रहे हैं, उन्हें ‘डी-रेडिकलाइजेशन’ कैंप में रखा जाना चाहिए. उनका ये कैंप इज़राइल और चीन के कैंपों जैसा है. रावत ने ये भी कहा कि ऐसे कैंप पहले से ही भारत में हैं. संभवतः गृहमंत्री को ये प्रस्ताव पसंद भी आएगा. क्योंकि कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
अभी तक युवाओं के लिए अमित शाह का सिर्फ एक संबोधन पॉपुलर हुआ है. सितंबर 2018 में राजस्थान के कोटा में सोशल मीडिया वालंटियर्स को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- ‘रियल हो या फेक हो, हम किसी भी संदेश को वायरल करा सकते हैं.’
इससे पहले जब एंटी सीएए और जेएनयू की फीस को लेकर हुए आंदोलनों में पुलिस द्वारा छात्रों का उत्पीड़न किया गया तो गृहमंत्री का बयान हैरतअंगेज था. वो इनको ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ कहकर संबोधित कर रहे थे और समर्थकों की भीड़ से पूछ रहे थे कि इनको सजा मिलनी चाहिए या नहीं. जबकि हाल में ही आई एक आरटीआई के जवाब में गृहमंत्रालय ये नहीं बता पाया है कि ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ क्या है और इनमें कौन से लोग आते हैं. फिर गृहमंत्री यूनिवर्सिटी के युवाओं के खिलाफ जनता को क्यों भड़का रहे हैं?
अपनी रक्षा में गृहमंत्री कह सकते हैं कि उनका काम है देश को आंतरिक और वाह्य दुश्मनों से बचाना. पर युवाओं को दुश्मन बनाना तो उनका काम नहीं है ना?
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एक मिलेनियल के तौर पर मैं देख पा रही हूं कि गृहमंत्री को युवाओं से कोई मतलब नहीं है. अगर युवतियों की बात हो तो गृहमंत्री के लिए वो कहीं ‘एग्जिस्ट’ भी नहीं ( उनका कोई वजूद ही नहीं है) करती हैं. उनके किसी संबोधन में देश की महिला, युवा पीढ़ी का जिक्र नहीं मिलता. ऐसा लगता है जैसे वो किसी मिशन को पूरा करने आए हैं, जिनमें युवावर्ग की उपस्थिति नगण्य है. ऐसा लगता है जैसे वो देश के मृत लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर रहे हैं. हालांकि उनके अपने युवा बेटे जय शाह के लिए ये स्थिति नहीं है. जय के लिए वो एक ‘प्राउड फादर’ हैं. उनके युवा बेटे ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद अपने लिए जगह बना ली है.
सवाल ये है कि अगर युवा अमित शाह को पितातुल्य ही मान लें उन्हें क्या हासिल होगा? क्योंकि उनके लिए गृहमंत्री के पास कोई संदेश नहीं है. बस एक डर है कि अगर कोई ‘गलती’ की तो उन्हें किसी कैंप में भेजा जाएगा या उन पर मुकदमा चलेगा या उनको प्रताड़ित किया जाएगा. वॉट्सऐप ग्रुप्स पर गृहमंत्री की ऐसी छवि उभरती है जैसे वो प्राचीनकाल के कोई राजा हों जो विश्व जीतने के लिए निकला है. उसके लिए युवाओं का एक ही उपयोग है- सेना में शामिल हो जाना. वो उन युवाओं की आकांक्षा को नहीं देखता, उसके लिए बस अपना लक्ष्य पूरा करना ही महत्वपूर्ण है. युवतियां तो कहीं हैं ही नहीं.
क्या गृहमंत्री अमित शाह के लिए युवा का एक ही मतलब है- फोन लेकर दूसरों को ट्रोल करनेवाला व्यक्ति?