मर्दों की पोशाक पहनने वाली, उभयलिंगी सिपहसालार ओलिव यांग, जिसके लिए उसके लड़ाके ‘बालों से भरे पैरों वाली मिस’ जैसे अपमानजनक जुमले का इस्तेमाल करते थे, जब म्यांमार के लाशिओ में गार्डियन एंजेल्स कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थी तब उसने स्कूल में बंदूक ले जाकर साथियों को डरा दिया था. यही नहीं, जब उसके पति त्वान साओ वेन ने शादी की जबरन पुष्टि करने की कोशिश की थी तब उसने त्वान पर पेशाब से भरा बरतन उलट दिया था. यांग से उसके 10,000 सैनिक चाहे जितने नाराज रहे हों, वे उनके साथ नरक के दरवाजे तक जाने को तैयार नज़र आते थे और उन्होंने उसकी खातिर अफीम के कारखाने स्थापित करने की बर्बर लड़ाई लड़ी. इन कारखानों में दक्षिण-एशिया और उससे आगे भेजे जाने वाले हेरोइन बनाए जाते थे.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने म्यांमार और विश्व अर्थव्यवस्था के बीच दीवार खड़ी कर दी, जिसका फायदा चीन चुपचाप उठाता रहा है. शान में साल्वीन नदी पर विशाल मोंग टोंग बांध बनाने का काम फिर शुरू होने वाला है. म्यांमार में जब लोकतांत्रिक सरकार थी, इस परियोजना को पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर हुए विरोध के कारण रोक दिया गया था. इसके अलावा, दक्षिण चीन के कुनमींग से राखाइन में समुद्र के अंदर क्याउफ़िऊ बंदरगाह तक सड़क और रेल से व्यापार का रास्ता बनाने की अरबों की परियोजना भी शुरू हो गई है.
सीमा के आर-पार स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन भी बनाया जाने वाला है, जो चीन के यून्नान में लिनकांग को म्यांमार के कोकांग क्षेत्र में लौक्कई शहर से जोड़ेगा. कोकांग में करीब 30 कुख्यात कसीनो बनाए गए हैं ताकि इस क्षेत्र में चीन द्वारा संगठित ताकतवर स्थानीय अपराध गिरोहों से होने वाली कमाई को ठिकाने लगाने में मदद मिले.
ओलिव यांग का प्रेत आज खुश हो रहा होगा क्योंकि म्यांमार के अफीम माफिया अंततः उनके देश के भाग्य निर्माता बन रहे हैं और वे राज्यतंत्र के ढांचे से एकाकार हो रहे हैं.
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चीनी साम्राज्य और माफिया
पिछले महीने कोकांग क्षेत्र के मोंग ला में एथलेटिक्स मैदान पर 3000 से ज्यादा लोग जमा हो गए थे. वे 91 वर्षीय अंतरराष्ट्रीय माफिया, बंदूक व्यापारी, नारकोटिक्स तस्कर और हवाला सरदार पेंग जियाशेंग की तीन दिवसीय श्राद्ध कर्म में भाग लेने के लिए जमा हुए थे. उसके दोस्त ही नहीं, दुश्मन भी उसे श्रद्धांजलि देने आए थे. उस भीड़ में यह बताना मुश्किल था कि कौन कौन है. उसमें अराकान फौज के लोग भी थे, शान स्टेट आर्मी, कारेन्नी नेशनलिटीज़ डिफेंस फोर्स, तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी और काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी के लोग भी थे. म्यांमार सेना के केंग्तुंग के गोल्डन ट्रैंगल कमांड के कमांडर-इन-चीफ मिन ऑन्ग हलेइंग और सबसे उल्लेखनीय यह कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राजनयिक भी मौजूद थे.
मूल बात यह है कि चीन कोकांग के ‘कार्टेलों’ को भुगतान कर रहा है ताकि लोकतांत्रिक सरकार की ओर से दखल और दबावों के बावजूद उसका काम आगे बढ़ता रहे. इस क्षेत्र में चीन ने यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी के रूप में अपना मुख्य प्रतिनिधि तैयार किया है, जिसमें 30,000 लड़ाके हैं. वह इन्हें सीमा पार से हथियार मुहैया करा रहा है.
इसके बदले में कोकांग के ‘कार्टेल’ म्यांमार बॉर्डर गार्ड फोर्सेज़ के बगावत विरोधी ग्रुपों को पैसे देते हैं और स्पेशल स्वायत्त ज़ोन के करीब स्थित चिनस्वे हाव और कुनलोंग जैसे कॉरीडोर को खुला रखते हैं. पैसे देने का मॉडल सरल है. ड्रग्स और संगठित अपराध के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय का कहना है कि चीनी परियोजनाओं को सुरक्षा देने के एवज में बागी अफीम के मिथेन्फ़ेटामाइन जैसे नशीले पदार्थों का विशाल मात्रा में उत्पादन करने की छूट हासिल करते हैं.
पिछले साल के फौजी तख्तापलट के बाद स्थानीय प्रतिद्वंद्वी बागी गुटों को फौज से नहीं लड़ना पड़ा बल्कि उन्होंने आपस में सहयोग करके अपना इलाका बढ़ाया, जहां से वे संसाधन का दोहन कर सकें. तख्तापलट के खिलाफ शान की राजधानी ताउंग्गी में हालांकि बड़ी रैलियां हुईं लेकिन केवल तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी ने तख्तापलट विरोधी पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज़ का थोड़ा समर्थन किया. नॉर्दर्न अलायंस में म्यांमार की सेना के खिलाफ बागियों के गठबंधन काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी सरकार के खिलाफ लड़ रही है.
पर्यावरणवादी कार्यकर्ता सई खुर हसेंग ने पत्रकार टॉम फावथ्रोप को बताया कि ड्रग्स और अपराध में वृद्धि के बावजूद इस नयी घटना का स्वागत क्यों किया जा रहा है, ‘शान के हर तबके के लोग आर्थिक संकट झेल रहे हैं, वे पैसे के भूखे हैं.’
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ड्रग्स का धंधा करने वाले हैं जनरल के दोस्त
1962 में एक रात यांगून में एक ऑपेरा देखने के बाद जनरल ने विन की नयी फौजी हुकूमत ने मोतियों-जवाहरातों के देश म्यांमार को बदरंग करना शुरू कर दिया. साहित्यकार बर्टिल लिंटनर ने लिखा है कि घुड़दौड़, सौंदर्य प्रतियोगिताओं, नृत्य प्रतिस्पर्द्धाओं पर रोक लगा दी. बियर लोगों की ब्रूअरी से बनकर आने लगी, केक उनके बेकरी में बनने लगे और टूथपेस्ट टायलेट उद्योग में. विरोध करने वाले छात्रों की हत्या की गई.
कोकांग के अपने अड्डे से यांग जैसे ड्रग माफिया दुनिया में हेरोइन की बढ़ती मांग को पूरा करने लगे. इस प्रक्रिया में जनरल ने विन के ‘बर्मी समाजवाद’ के कारण बदहाल अर्थव्यवस्था में नकदी आने लगी. कोकांग के माफिया का पूरे इलाके पर नियंत्रण तो था ही, फौजी हुकूमत के साथ उनके रिश्ते भी अच्छी थे. यांग का भाई जिमी यांग सांसद बन गया था. इसी तरह, लो हसिंग हान को स्थानीय बागियों से लड़ने के लिए लड़ाके मुहैया कराने के एवज में अपना अफीम का कारोबार बिना फौजी दखल के चलाने की छूट दी गई. उसके भाई लो हसिंग-को को कोकांग पुलिस का मुखिया नियुक्त किया गया.
व्यवस्था समय-समय पर लड़खड़ाती रही. 1970 के दशक में पेंग जिआशेंग ने ड्रग्स के धंधे में सबको पछाड़ने के लिए कम्यूनिटी पार्टी ऑफ बर्मा (सीपीबी) से गठजोड़ कर लिया. 1980 के दशक में जब पार्टी टूट गई तो इसके धड़ों ने सरकार के साथ युद्धविराम कर लिया. पेंग ने भी एक सौदा किया लेकिन एक समय इलाके और हिस्सेदारी को लेकर सेना के साथ टकराव ने उसे सीमा पार करके यून्नान भागने पर मजबूर कर दिया.
कमजोरी का लाभ दूसरों ने भी उठाया, मसलन— पेंग के भाई पेंग जियाफू के नेतृत्व वाले म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस, पेंग के दामाद लिन मिंगझियान के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी और बाओ यूझियांग के नेतृत्व वाली यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी ने.
लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के कारण अपनी वैधता को मिल रही चुनौती के चलते म्यांमार फौजी हुकूमत ने कई माफियाओं से फिर रिश्ते बनाए हैं. लिन मिंगझियान ने फेंगे की सबसे बड़ी बेटी पेंग झिनचुन से शादी कर ली. म्यांमार की फौजी हुकूमत के मुखिया जनरल मिन ऑन्ग हलैंग ने, जिसने 2009 में फौजी अफसर के रूप में पेंग पर हमला करने के लिए जिम्मेदार था, विशेष श्रद्धांजलि संदेश भेजा.
ड्रग्स माफिया द्वारा खड़े किए गए साम्राज्य यांगून में सब तरफ देखे जा सकते हैं. अमेरिका के ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, हेरोइन से हुई कमाई को वैध बनाया गया है. जैसे, क्याव विन का मेफ्लावर बैंकिंग ग्रुप, यांग माओलिंग का पीस म्यांमार ग्रुप और समर्पण कर चुके ड्रग माफिया खुन सा का गुड शान ब्रदर्स.
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भारत के लिए चुनौती
भारत के उपद्रवग्रस्त उत्तर-पूर्व में शांति बनाए रखने के लिए म्यांमार की फौजी हुकूमत से गहरा संबंध बनाए रखना भारत के लिए जरूरी है. 1988 में, लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों के बाद भारत को म्यांमार से रिश्ता तोड़ना बहुत महंगा पड़ा था. लेकिन बाद में भारत ने रिश्ते सुधार लिये थे. 1995 में, भारतीय सेना ने उस गुट को निशाना बनाया था, जो बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से हथियार मिजोरम के जंगलों के रास्ते से मंगा रहा था. सेना के 57 डिवीजन ने म्यांमार सेना के साथ मिलकर 38 बागियों का सफाया किया था.
2010 में भारत और म्यांमार ने एक समझौता किया जिसके तहत भारतीय सेना बागियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सीमा पार भी जा सकती है. इसके चार साल बाद, दोनों देशों ने संयुक्त गश्ती और खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान का भी समझौता किया. सीमा पार नगा और मणिपुरी बागियों के अड्डे बंद किए गए. इसके बदले भारत ने म्यांमार को आर्थिक और सैन्य सहायता दी ताकि वहां के जनरल चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर न रहें.
लेकिन यह कहना मुश्किल है कि यह सब कितनी दूर तक जाएगा. चीन वहां जितना भारी निवेश कर रहा है वह उसे निश्चित ही बढ़त प्रदान करेगा, भारत डॉलर दर डॉलर मुकाबला नहीं कर सकता. चीनी सेना ने भी उन गुटों से रिश्ता बनाना शुरू कर दिया है जो भारत के पक्षधर हैं, जैसे राखाइन की अराकान आर्मी. चीनी सेना ऐसे गुटों को हथियार और पैसे दे रही है. यानी चीन म्यांमार में अपना वर्चस्व कायम करने पर आमादा है और वह उसकी फौजी हुकूमत तथा उसका विरोध करने वाले माफिया पर भी अपना दबदबा बनाने में लगा है.
इसलिए खतरा यह है कि भारत म्यांमार की सेना और उसके समर्थकों पर अपना प्रभाव खो सकता है और लोकतंत्र समर्थक समूहों के बीच उसने जो नैतिक साख बनाई थी उसे भी गंवा सकता है. इसलिए ऐसा लगता है कि उसे निकट भविष्य में ही कोई कड़ा फैसला करना पड़ेगा.
(लेखक दिप्रिंट के नेशनल सिक्योरिटी एडिटर हैं. वह @praveenswami पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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