धारायें कई प्रकार की होती हैं. धारा 144, धारा 302, धारा 304, धारा 307 इत्यादि. कुछ लोग 370 को भी धारा में गिन लेते हैं, जबकि वो अनुच्छेद है. लेकिन ऐसी मासूम चूकें क्षम्य हैं. बाकी धाराओं का भारतीय दण्ड संहिता में विस्तार से ज़िक्र है. लेकिन एक धारा ऐसी भी होती है जिसके आगे-पीछे कोई संख्या दर्ज़ नहीं होती. उसका उल्लेख भारतीय दण्ड संहिता में भी नहीं मिलता लेकिन ऐसी अपेक्षा की जाती है कि बाकी की तमाम संख्यायें उसके साथ चलें. वह मुख्यधारा कहलाती है.
मुख्यधारा बाकी धाराओं की बॉस
मुख्यधारा के साथ संख्या इसलिए नहीं लिखी जाती क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उसमें अनगिनत संख्यायें पहले से ही समा्हित होती हैं. मतलब वह ‘बाई डिफॉल्ट’ बहुसंख्यक होती है. इसीलिए लोकप्रिय मत कहता है कि जो बहुसंख्यकों की धारा है, वही मुख्यधारा है. कह सकते हैं कि मुख्यधारा बाकी सभी धाराओं की बॉस होती है.
जैसे पुराण में लिखा है- महाजनो येन गत: स पन्था:, मतलब कि जिस रास्ते पर बहुत सारे लोग चले हैं, महापुरुष चले हैं, वही सही रास्ता है. अर्थात् वही श्रेष्ठ मार्ग होता है. नए ज़माने की रघुकुल रीत कहती है कि मुख्यधारा भी एक तरह का श्रेष्ठमार्ग है जिस पर चलना सबका धर्म है, सबका कर्तव्य है. जो उस मुख्यधारा के साथ नहीं, वह अधर्मी है, राष्ट्रद्रोही है, पथभ्रष्ट है.
प्राय: धारायें देश, काल और परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं. जैसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा इस पर निर्भर करती है कि किस किस्म का अपराध और किन परिस्थितियों में हुआ है. जैसे हत्या के मामले में धारा 302 लगाने का प्रावधान है, लेकिन हत्या के ही मामले में धारा 304 भी लगाई जाती है. हत्या दोनों में होती है, लेकिन सिर्फ इरादतन और ग़ैर-इरादतन की परिस्थिति उस गुनाह को अलग-अलग श्रेणी में बांट देती है. लेकिन मुख्यधारा इस तरह की परिस्थितिजन्य नहीं है. उसमें इतनी गुंजाइश नहीं है कि वह आरोपी को इरादतन और ग़ैर-इरादतन के भेद की वजह से कुछ राहत दे. उसका सीधा सा फंडा है, या तो आप मुख्यधारा में हैं या नहीं हैं.
फिर अपेक्षा क्यों कि धारा के साथ चलें
वैसे सबसे अपेक्षा ये की जाती है कि वो धारा के साथ चलें. धारा के साथ बहें. प्राय: लोग ऐसा करते भी हैं. बड़े-बड़े, नामी लोग भी ऐसा करते हैं. उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता कि वो जिस धारा के साथ बह रहे हैं, वो उन्हें कहां ले जाकर पटक देगी. बहना एक आसान कर्म है. उसमें ज़्यादा मेहनत नहीं लगती. लेकिन धारा के ख़िलाफ़ चलना सबसे दुष्कर होता है. उसके लिए बड़ा ज़िगर चाहिए. ऐसे दुस्साहसी लोगों का ज़िगर निकालने और उनका हौसला तोड़ने के लिए चतुर व्यवस्थायें अक्सर उस धारा को ही मुख्यधारा में बदल देती हैं.
इससे होता यह है कि धारा के ख़िलाफ़ चलने वालों, धारा के ख़िलाफ़ बोलने वालों को मुख्यधारा के ख़िलाफ़ घोषित करने में आसानी हो जाती है. यह धारा कब मुख्यधारा में बदल गई? यह मुख्यधारा फूटती कहां से है और इसको मुख्यधारा का दर्जा कैसे हासिल हुआ? ये सारे प्रश्न रहस्यों में लिपटे हुए हैं. उसके बारे में ज़्यादा पूछताछ करना आपको मुश्किल में भी डाल सकता है. धारा को चुपचाप मुख्यधारा में बदल देने वाले आपको शास्त्रों का हवाला देने लगेंगे, जहां लिखा है- महाजनो येन गत: स पन्था:.
(लेखक टीवी पत्रकार और व्यंगकार हैं, यह लेख उनका निजी विचार है.)
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