पाकिस्तान के पूर्व वजीरे आज़म नवाज़ शरीफ को पिछले सप्ताह अस्पताल में दाखिल करना पड़ा क्योंकि उनके खून में प्लेटलेट बहुत खतरनाक रूप से नीचे गिर गया. उनकी हालत अभी भी नाज़ुक बनी हुई है और उनके निजी डॉक्टर अदनान खान का कहना है कि ‘नवाज़ शरीफ अपनी सेहत और ज़िंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं.’
69 वर्ष के हो चुके शरीफ दिल के मरीज हैं. इसके अलावा वे ब्लड प्रेसर, डायबटीज़, और किडनी की समस्याओं से भी जूझ रहे हैं. 2017 में उन्हें पनामा पेपर्स के लीक होने के बाद भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराकर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गद्दी से बेदखल कर दिया था. पिछले साल जुलाई में वे अपनी बेटी मरियम नवाज़ के साथ देश लौटे और तब से जेल में बंद हैं तथा दूसरे कई मुकदमे लड़ रहे हैं.
नवाज़ शरीफ के परिवार और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) के नेता इमरान खान की सरकार पर अरसे से आरोप लगा रहे हैं कि वह नवाज़ की सेहत को गंभीरता से नहीं ले रही और उन्हें जेल में इलाज से वंचित कर रही है. ‘पीटीआई’ के नेताओं के कुत्सित रवैये और नवाज़ की बीमारी पर उनके कटाक्षों के मद्देनजर सरकार को इन आरोपों से पल्ला झड़ना मुश्किल हो रहा है.
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इमरान का निजी बदला
वजीरे आज़म इमरान खान जब अपने राजनीतिक विरोधी नवाज़ शरीफ के बारे में कुछ बोलते हैं तो लगता है मानो उनसे उनकी कोई जाती दुश्मनी हो. वे आरोप लगाते हैं कि नवाज़ को जेल में घर का खाना मिलता है, जबकि ‘क्रिमिनलों’ को कोई सहूलियत नहीं मिलनी चाहिए. जुलाई में अमेरिका के दौरे में इमरान ने पाकिस्तानियों के एक जमावड़े में कहा कि ‘मैं लौट कर जाता हूं तो देखूंगा कि जेल में नवाज़ शरीफ को कोई एसी, या टीवी न मिले.. मरियम बीबी कुछ शोर मचाएंगी लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि पैसे वापस कीजिए.’
इसलिए, जब पीएम इमरान यह कहते हैं कि वे किसी की ज़िंदगी की गारंटी नहीं दे सकते, तो उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि वे इस तरह का व्यवहार क्यों करते रहे हैं कि अपने विरोधी की ज़िंदगी पर उनका नियंत्रण है. राजनीतिक नेताओं को आम माफी देने वाले नेशनल रीकंसीलिएशन ऑर्डनेन्स (एनआरओ) को विपक्षी नेताओं पर न लागू करने के बारे में, भले ही वे नेता साझा मोर्च क्यों न बना लें, वे जो लगातार बयान देते रहे हैं वह शर्मिंदगी भरा ही लगता है. हर कोई जानता है कि वे कोई समझौता करने की ताकत नहीं रखते, खासकर उस आज़ादी मार्च के साथ जिसका सामना वे फिलहाल कर रहे हैं.
पिछले दो साल से, जिसमें जेल में बिताए 14 महीने शामिल हैं, नवाज़ ने सत्ता-तंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. झुकने से उनका इनकार इमरान की सरकार को परेशान किए हुए है. अदालत में अपनी एक पेशी के बाद नवाज़ ने अपनी पार्टी के लोगों से कहा, ‘वे चाहें तो मुझे गुआंतानामो खाड़ी या कालापानी भेज दें, वे मुझे झुका नहीं पाएंगे.’
पिछले सप्ताह नवाज़ जब अस्पताल में भर्ती हुए उसके बाद इमरान की विशेष सलाहकार फिरदौस आशिक अवान ने नवाज़ की सेहत को लेकर खतरों को कमतर बताने की कोशिश की और कहा कि पीएमएल-एन के नेता काफी जोशीले मूड में हाथ हिलाते हुए अस्पताल पहुंचे, कि इस फिल्म की शूटिंग अभी और चलेगी. प्लेटलेट के बारे में पूर्व पीएम का मखौल उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि वे तो निहारी और हरीसा खा रहे हैं और अपनी आदतें बदलने को तैयार नहीं हैं.
संवेदनशून्य हैं पीटीआई के नेता
पूरे साल मंत्री लोग नवाज़ की सेहत को हल्के में कैसे लेते रहे, इसकी मिसाल फवाद चौधरी के इस बयान से मिलती है, ‘उनके दिल में एनआरओ की ख़्वाहिश के सिवा कुछ नहीं है.’ फय्याजुल हसन चोहन ने कहा, ‘नवाज़ शरीफ की सेहत बिलकुल दुरुस्त है. आखिर उन्होंने हम लोगों को 40 साल तक लूट कर अपनी सेहत बनाई है!’ वे लोग शरीफ परिवार की शिकायतों के प्रति भी बेदर्द रहे हैं. यह क्रूरता भले हो मगर पीटीआई के नेताओं की बेरहमी इसके समर्थकों में भी समा गई है. इसका एक इतिहास भी है और पीटीआई के नेता कोई सबक लेने को राजी नहीं हैं.
नवाज की बेगम कुलसूम जब लंदन में मरणासन्न थीं तब इन लोगों ने उसे भी नौटंकी कहा था. हमें बार-बार बताया गया कि वे बीमार नहीं हैं बल्कि नवाज़ पाकिस्तान में जेल से बचने के लिए अपनी बेगम की बीमारी का बहाना बना रहे हैं. पीटीआई के एक समर्थक ने तो इसे साबित करने के लिए लंदन के उस क्लीनिक में घुसपैठ भी कर डाली थी. हमें कहा गया कि वे उनकी बीमारी का फायदा चुनाव में उठाना चाहते थे. पिछले साल सितंबर में जब वे चल बसीं तब उन्होंने कहा कि ‘अरे, वे तो पहले ही गुजर चुकी थीं, और अब वे उनकी मौत पर सहानुभूति बटोरना चाहते हैं.’
यहां तक कि 2016 में जब नवाज़ की ओपेन-हार्ट सर्जरी हुई तब उसे भी पीटीआई नेताओं ने नाटक ही कहा था. इमरान के आज प्रवक्ता बने नईमुल हक़ ने आरोप लगाया था कि नवाज़ अपनी बीमारी के बारे में झूठ बोल रहे हैं, ‘न किसी डॉक्टर का नाम था और न कोई ओपेन-हार्ट सर्जरी हुई.’
उनसे हमदर्दी की उम्मीद करना एक बात है, लेकिन यह तो खतरनाक संकेत है कि इमरान के नये पाकिस्तान में लोगों को मर कर साबित करना होगा कि वे सचमुच बीमार हैं. बशर्ते आप पूर्व फौजी शासक परवेज मुशर्रफ़ न हों. तब तो इमरान की सरकार के लिए आपकी बीमारी न तो नाटक मानी जाएगी और न आपके ऊपर यह आरोप लगाया जाएगा कि आपने सौदा कर लिया है इसलिए आप पर मुकदमा नहीं चला है.
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नवाज़ से सीखें
अकेले नवाज़ ही ऐसे कैदी नहीं हैं जो परेशानी झेल रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी को भी सरकार बुनियादी इलाज नहीं दे रही है. उनके परिवार का कहना है कि उनकी जेल में इंसुलिन रखने के लिए एक फ्रिज तक नहीं है. एक और पूर्व पीएम शाहिद खाकान अब्बासी की सेहत नवाज़ जैसी बुरी तो नहीं है मगर वे जेल में पड़े हैं और अभी तक उनके खिलाफ कोई औपचारिक मामला दायर नहीं किया गया है. अब्बासी की सेहत भी गिर रही है और डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल में दाखिल करने की सलाह दी है.
पाकिस्तानी सियासी तहजीब में, बीमार विरोधी की देखभाल या श्रद्धांजलि पेश करना सबसे हमदर्दी भरी पेशकश मानी जाती है. जब इमरान के वालिद इकराम उल्लाह नियाजी 2008 में गुजरे थे तब नवाज़ उन्हें श्रद्धांजलि देने लाहौर गए थे. 2013 के चुनाव में इमरान जब गिरने के बाद जख्मी हुए थे तब नवाज़ उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे थे. तब इसे कोई बड़ी बात नहीं माना गया था लेकिन आज इमरान के राज में पाकिस्तान और इसकी सियासत में जिस तरह का ध्रुवीकरण हो गया है उसमें इसे बड़ी बात माना जा रहा है.
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(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)