आर्टिकल 15 के हीरो आईपीएस अफसर की जाति क्यों ब्राह्मण बताई गई है, इस बारे में डायरेक्टर अनुभव सिन्हा का बयान आ चुका है. उनके मुताबिक, ‘वे चाहते थे कि अगर कोई व्यक्ति जाति के विशेषाधिकार को तोड़कर जाति भेद के खिलाफ कुछ करता है, तो उसका जश्न क्यों न मनाया जाए.’ अनुभव सिन्हा के मुताबिक, उन्होंने हीरो को ब्राह्मण इसलिए दिखाया है, ताकि जाति से लड़ने में सवर्णों की भूमिका के बारे में सवर्णों को पता चल सके.
लेकिन इसी तर्क से क्या हम ये नहीं जानना चाहते कि फिल्म सुपर 30 में ह्रितिक रोशन ने जिस टीचर आनंद कुमार का किरदार निभाया है, उनकी जाति क्या है?
बिहार पर बनी फिल्म और जाति का जिक्र गायब?
सुपर 30 बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म है, जहां बिना जाति जाने ट्रेन और बसों में बातचीत तक आगे नहीं बढ़ती. हालांकि, ये बीमारी बिहार के बाहर भी है. बिहार के जाति वर्चस्व विरोधी संघर्षों को जातिवाद के रूप में चिन्हित और बदनाम करने की मीडिया और एकेडेमिक्स में परंपरा भी रही है. फिर ये कैसे हो गया कि बिहार के एक किरदार पर पटना की पृष्ठभूमि में एक फिल्म बन गई और न हीरो की जाति पता चली न विलेन की?
बिहार की पृष्ठभूमि पर बनने वाली फिल्मों में जाति बताने की परंपरा रही है. मिसाल के तौर पर, उत्तर बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित राम गोपाल वर्मा की फिल्म शूल (1999) में हीरो का नाम समर प्रताप सिंह और विलेन का नाम बच्चू यादव है. इस फिल्म के आखिरी सीन में समर प्रताप सिंह असेंबली के अंदर बच्चू यादव को गोली मार देता है और पब्लिक तालियां बजाती है. प्रकाश झा की बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म मृत्युदंड (1997) में विलेन का नाम तिरपत सिंह है. प्रकाश झा की ही फिल्म गंगाजल (2003) में विलेन के नाम साधु यादव, बच्चा यादव और सुंदर यादव हैं. उनकी अगली फिल्म अपहरण (2005) में विलेन बने हैं तबरेज आलम और हीरो हैं अजय शास्त्री. हाफ गर्लफ्रैंड (2017) में बिहारी हीरो का नाम माधव झा है. इनमें से कोई भी फिल्म जाति या जातिवाद पर नहीं बनी है, लेकिन हीरो और विलेन के नाम अक्सर इस प्रकार रखे गए हैं कि उनकी जाति जाहिर हो जाती है.
यह भी पढ़ें : आयुष्मान खुराना की फिल्म आर्टिकल 15 से जातिवाद को कोई खतरा नहीं है
फिर सुपर 30 के हीरो की जाति क्यों नहीं पता चलती? ऐसा भी नहीं है कि आनंद कुमार की जाति जानना मुश्किल रहा होगा. बिहार में ही क्यों, देश में किसकी जाति छिपी है? शहर में न पता चले, तो गांव तक पहुंचकर और किसी के नाम से पता न चले तो बाप का नाम पूछकर पता कर लेते हैं लोग. मतलब यही है कि सुपर 30 के हीरो की जाति हम इसलिए नहीं जानते क्योंकि फिल्म बनाने और लिखने वाले नहीं चाहते कि ये बात पता चले.
लेकिन ऐसा करने की वजह क्या रही होगी?
आखिर आर्टिकल 15 भी तो एक क्राइम थ्रिलर हो सकती थी. मर्डर मिस्ट्री. लेकिन डायरेक्टर ने चाहा तो इसमें जाति का पुट डाल दिया और एक ब्राह्मण रक्षक खड़ा कर दिया. फिर सुपर 30 में ऐसा क्यों नहीं?
किस जाति के हैं आनंद कुमार?
बिहार के बाहर के लोगों को बता दिया जाए कि आनंद कुमार बिहार की एक अति पिछड़ी जाति- कहार से आते हैं. इस जाति का शास्त्र निर्धारित जातीय पेशा पालकी उठाना था. आनंद कुमार के जीवन में बहुत सारी तकलीफें और समस्याएं अपनी जाति की वजह से भी आई हैं. उन्हें पग-पग पर जो अपमान झेलना पड़ा है, उसकी एक वजह उनकी जाति भी है. उनके टैलेंट को देर से स्वीकृति मिलने की ये भी एक वजह थी. उन्हें भूमिहार जाति की एक लड़की से प्यार हुआ और उन्हें शादी में काफी समस्याएं आईं. इसकी वजह भी उनकी जाति ही है.
उन्हें कोचिंग के काम से उखाड़ने की कम कोशिशें नहीं हुई हैं. बिहार के उच्चवर्णीय सामंती विचारों के लोग ये आसानी से स्वीकार नहीं कर पाए कि कहार जाति का एक युवक पूरे देश और दुनिया में सुपर स्टार बन गया है. उनके चरित्र हनन और उन्हें फ्रॉड बताने की पटना मीडिया ने बेशुमार कोशिशें की हैं. देश के सबसे बड़े अखबार समूहों में से एक के पटना संस्करण ने आनंद कुमार को फ्रॉड बताते हुए कई दिन पूरे पन्ने का कवरेज किया. सुपर 30 के खिलाफ अभियान चलाने वाले भी सवर्ण जाति से ही हैं. इस तरह के हमलों से बचने के लिए आनंद कुमार कभी नीतीश कुमार, तो कभी तेजस्वी यादव के साथ दिखते रहे.
यह भी पढ़ें : आर्टिकल 15: जाति से मुक्त हो जाने पर भी औरतों को लड़ाई अलग से ही लड़नी पड़ेगी
इनमें से बहुत कुछ सुपर 30 फिल्म में कहानी की शक्ल में है, काफी कुछ नहीं भी है. जो एक चीज पूरी तरह छिपा ली गई है वह है जाति. ये अच्छा है या बुरा, ये कह पाना मुश्किल है. लेकिन आर्टिकल 15 में जिन लोगों को हीरो को ब्राह्मण दिखाए जाने पर एतराज नहीं हुआ, उन्हें नैतिकता के नाते सुपर 30 के डायरेक्टर से पूछना चाहिए कि उन्होंने आनंद कुमार की जाति क्यों छिपाई. आखिर जाति बताने और छुपाने के पीछे नैतिकता के मापदंड एक जैसे होने चाहिए.
क्या आनंद कुमार की जाति इसलिए छिपाई गई कि ये बताने से कि देश का सबसे लोकप्रिय टीचर कहार जाति से है- जिसके पुरखे पालकी उठाते थे, मल्टिप्लेक्स में बैठकर पॉपकॉर्न खाते हुए फिल्म देखने वाले दर्शकों के मुंह का जायका खराब हो जाएगा!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
क्या पता आर्यभट्ट भी दलित जाती के हो। लेकिन इन ब्राह्मणों ने अपने को महान बताने के लिए उन्हें ब्राह्मण साबित कर दिया हो
Ye manu ke soch rakhne vale aatnki gunde nahi chate ki koi dalit ka beta aage bade Or log use desh me jane. Joki kise ka rol model na ban sakhe.