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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतइमरान खान के मुरीद अब ‘…सपना टूट गया’ गाना गा रहे हैं, और लाहौर के ‘स्मॉग’ को उनसे बेहतर मान रहे हैं

इमरान खान के मुरीद अब ‘…सपना टूट गया’ गाना गा रहे हैं, और लाहौर के ‘स्मॉग’ को उनसे बेहतर मान रहे हैं

मीडिया में लोगों के सोच को बदलने का रसूख रखने वालों ने शुरू में तो इमरान खान का समर्थन किया था मगर अब कबूल कर रहे हैं कि ‘सॉरी यार, गलती से मिस्टेक हो गई’

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यहां स्मौग यानी हवा के प्रदूषण के साथ-साथ लगता है गलती कबूल करने का मौसम भी आ गया है. सालाना रस्म की तरह कानाफूसियां तेज होने लगी हैं. इस बार वे कह रह हैं कि रावलपिंडी और बानी गाला के बीच रिश्ता ‘पेचीदा’ होता जा रहा है. कुछ लोग कह रहे हैं कि बदलाव की हवाएं बह रही हैं, तो कुछ लोग यह कह रहे हैं कि ‘मुल्क इसका मुतहमिल नहीं हो सकता’. मानो आज कुछ भी चल सकता है. जल्द ही मंत्री लोग कह सकते हैं कि उनका बादशाह कहीं नहीं जाने वाला, लेकिन जब आप बादशाह को जोकरों के साथ खड़ा करके देखते हैं तब यह दुविधा पैदा होने लगती है.

दिल बदलने का संकेत क्या है? ऊपर से तो यह महंगाई और तीन साल की अक्षमता (और न जाने क्या-क्या) है. लेकिन दिल के अंदर के दिल की बात यह है कि खुफिया एजेंसी के प्रमुख की नियुक्ति में वजीरे आजम इमरान खान ने जो देरी की उसके चलते तमाम तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं. एक तो उनके सियासी साथी इस तरह के मिले-जुले संकेत देने लगे कि इस हाल में तो ‘सरकार का समर्थन करना मुश्किल है’; दूसरे, पिछले सप्ताह के लिए निर्धारित संयुक्त संसदीय सत्र को जब इसलिए टाल दिया गया क्योंकि शासक दल के पास कानून पास कराने लायक बहुमत नहीं था, तो ये अटकलें तेज हो गईं कि ‘बदलाव अब होने ही वाला है’. ‘तब्दीली’ के नाम पर हमें जो हासिल हुआ है वह यह है कि हम उस ‘तब्दीली’ का इंतजार कर रहे हैं जो इस तब्दीली को नाकाम कर दे.


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इमरान खान नामक ‘प्रोजेक्ट’ का विकास

बहुत दिन नहीं हुए हैं जब इमरान खान नामक ‘प्रोजेक्ट’ ने ‘भ्रष्ट’, ‘धोखेबाज’ शरीफों और ज़रदारियों के निजाम से बदलाव का वादा किया था. लाहौर के मीनार-ए-पाकिस्तान पर अक्तूबर 2011 में जो रैली हुई थी उसने ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ’ (पीटीआइ) पार्टी के चेयरमैन को नया जन्म लेते हुए देखा था. कुछ लोगों के मुताबिक, उस विशाल रैली में एक लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए थे, और उसने सटीक संदेश दिया था कि तब्दीली की जरूरत है, और इसके साथ अमेरिका विरोधी नारे भी खूब बुलंद किए गए थे. वैसे, यह कोई हैरत की बात नहीं थी. यह वह समय था जब अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अबोटाबाद में हमला किया था, और आतंकवाद के खिलाफ उसकी जंग जारी थी. फिर भी, कई लोग हैरत में थे कि इमरान खान ने इतनी भारी भीड़ कैसे जुटा ली. जैसे यह भी हैरत की बात थी कि ‘साम्राज्यों’ की मदद से पाकिस्तान में कोई सियासी फायदा कैसे हासिल किया जा सकता है. ये ‘साम्राज्य’ बाद में इमरान खान को चुनने वाले बने.

इमरान खान की पार्टी को 2011 तक नेशनल एसेंबली में केवल एक सीट हासिल थी, जो उसने 2002 में जीती थी. इससे पहले, तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने इमरान खान की 100 सीटों की मांग के जवाब में केवल 10 सीटें दी थी. इमरान खान ने 2008 के चुनाव का बायकॉट कर दिया था. उन्होंने पहला चुनाव 1997 में लड़ा था और जिन नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था वे सभी सीटें हार गए थे, सात सीटों में तो उनके उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई थी. आखिरकार ‘तब्दीली’ 2013 के चुनाव से शुरू हुई, जब उनकी पीटीआआइ नेशनल एसेंबली में 32 सीटें जीत कर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. इसके बाद से इमरान खान नामक ‘प्रोजेक्ट’ को ‘तीसरे विकल्प’ के रूप में गंभीरता से लिया जाने लगा. 2018 में उनकी मुराद पूरी हो गई, जब धांधलियों, मीडिया का मुंह बंद करने और राजनीतिक विरोधियों को धमकाने की घटनाओं के बीच हुए चुनाव में ‘तीसरा रास्ता’ को मुल्क चलाने का मौका दिया गया.

नये अवतार के रूप में सामने आने के 10 साल बाद और वजीरे आजम के तख्त पर 39 महीने से बैठे रहने के बाद इमरान खान की सरकार और उनके लिए तालियां बजाने वालों के लिए अगर कोई विशेषण इस्तेमाल किया जा सकता है तो वह है—दिग्भ्रमित. इमरान खान की कामयाबी का श्रेय मुख्यधारा की मीडिया को ही दिया जा सकता है जिसने उनके धरनों की ‘गेंद-दर-गेंद’ खबरें दी और उन्हें ‘नया पाकिस्तान’ नामक अपनी कहानी बुनने में मदद दी. मीडिया में ऐसे लोग भी थे जिन्होंने उनके इस वादे को खूब उछाला कि ‘पाकिस्तान के बेहतरीन दिन बस आने ही वाले हैं’, और पाकिस्तानियो! इस काफिले में शामिल हो जाओ वरना पीछे छूट जाओगे. और, जरा देखिए कि इस काफिले का सफर कैसा रहा!


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लापता मंत्रिमंडल

‘प्रोफेशनल्स की अपनी टीम’, जो ‘शैडो कैबिनेट’ की तरह काम करती रही है, के साथ इमरान खान जिस शान का भ्रम पैदा करते हैं उस पर भी नज़र डालिए. इंतजार कीजिए कि वे आएंगे और आपके होश उड़ा देंगे. यह ‘शैडो कैबिनेट’ (छाया मंत्रिमंडल) अभी भी छाया में ही है, हालांकि वह 26 साल से तैयारी कर रहा है. वजीरे आजम की टीम के ‘प्रोफेशनल’ चेहरे ये हैं— फवाद चौधरी, फिरदौस आशिक़ अवान, शेख रशीद अहमद, शाह महमूद कुरेशी, और ज़रदारी तथा मुशर्रफ के मंत्रिमंडलों से उधार लिये गए कुछ चेहरे. सरकार के अंदर अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के दावे करने वाले महाथिर, सर्वज्ञानी अरस्तू, पाकिस्तान की विदेश नीति की समस्याओं को दूर करने वाले अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ अभी तक कुछ करके नहीं दिखा पाए हैं. ‘शैडो टीम’ वाले अगर मोदी और बाइडन के फोन कॉल से उभरने वाली समस्याओं से निबटने की तैयारी कर रहे थे, तो कहा जा सकता है कि मामला अच्छी तरह निबटा. तो क्या यह सब धोखा ही था?

मीडिया के वही ‘आशिक़ान-ए-इमरान’ आज यह कबूल कर रहे हैं कि ‘सॉरी यार, गलती से मिस्टेक हो गई’. हमने सोचा था कि इमरान खान का नेतृत्व दूरदर्शी है लेकिन यह तो लाहौर के स्मौग से भी धुंधला है. वे करिश्माई, आकर्षक, ईमानदार, आत्मविश्वास से भरे लगते थे और हमें अपनी जवानी के दिनों की याद दिलाते थे. लेकिन अब इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि मुहब्बत में जर्मनी और जापान भी पड़ोसी देश नज़र आते हैं. आप गलत लोगों से मुहब्बत करने की बेवकूफी के लिए किसी को फांसी तो नहीं दे सकते. ऐसा होता ही रहता है. बिनाशर्त मुहब्बत का इमरान खान की ओर से जवाब न मिलने से निराश उनके आशिक़ मजबूर होकर यह कह रहे हैं कि इमरान खान केवल खुद से मुहब्बत करते हैं, वे किसी के दोस्त नहीं हैं, और केवल अपनी इबादत करते हैं. खान साहब! पूर्व आशिक़ों के श्राप से सावधान हो जाइए. वे अब इस बात के लिए पछता रहे हैं कि उन्होंने 1992 का विश्व कप जिताने वाले अपने क्रिकेट कप्तान पर इतना भरोसा क्यों किया. एक समय था जब इमरान खान के समर्थकों के हारने पर उन्होंने अपने टीवी स्टुडियो में गुलाबजामुन खाए थे, आज वे अधूरे वादों के लिए शिकायत कर रहे हैं. एक इंकलाब लाने के वादे, पाकिस्तान से चुराए गए अरबों डॉलर वापस लाने के वादे, एक करोड़ रोजगार के वादे, गैस और तेल जैसे संसाधन खोज निकालने के वादे… सब अचानक हवा हो गए. अब ये पूर्व आशिक़ उदास हैं क्योंकि ‘छन्न से कोई सपना टूट टूट गया’ और उनकी दुनिया बरबाद हो गई.’

लोग कह सकते हैं कि ‘नया पाकिस्तान’ नाम की यह फिल्म झूठी है, और यह महज नौटंकी है या यह कि टाइटैनिक से कूद कर दूसरे जहाज में सवार होने का वक़्त आ गया है. आप जो भी कहें, उन्हें चुनने वालों, उनके पीछे चलने वालों, निराश समर्थकों से मेरा एक ही सवाल है— यह तब्दीली आपको कैसी लग रही है?

लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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