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Thursday, 26 December, 2024
होममत-विमतजो बाइडेन की कॉल के इंतजार में हैं इमरान खान, लेकिन अभी तक नहीं बजा है फोन

जो बाइडेन की कॉल के इंतजार में हैं इमरान खान, लेकिन अभी तक नहीं बजा है फोन

पहले ये भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी थे जो इमरान ख़ान की कॉल्स नहीं ले रहे थे. अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन हैं जो कॉल करने से मना कर रहे हैं.

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साल के मध्य के क़रीब आप जायज़ा लेने लगते हैं कि अगर चीज़ें एक ख़ास दिशा में जातीं या अगर किसी ताक़तवर दोस्त ने अपने वादे पूरे कर दिए होते, जो उन्होंने साल के शुरू में किए थे तो साल कैसे बेहतर हो सकता था. अब, अगर वो ताक़तवर दोस्त व्हाइट हाउस में रहता हो, तो? दावत मिलना तो दूर एक टेलीफोन कॉल भी बहुत मायने रखती है. लेकिन चीज़ें हमेशा वैसे नहीं होतीं, जैसा आप चाहते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन यक़ीनन उन लोगों में होंगे, जिन्हें साल के बीच में पछतावा हो रहा होगा. वो चीज़ों को किस तरह अलग तरीक़े से कर सकते थे, खेल की कुछ तारीख़ें तय कर सकते थे या कम से कम पाकिस्तान को लंबी दूरी की एक अहम कॉल कर सकते थे. किसे? आप तो जानते ही हैं. वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान को.

हुआ ये कि ओवल ऑफिस का नियंत्रण हाथ में लेने के बाद से बाइडन ने पीएम को फोन नहीं किया है. क्या? ऐसा कौन करता है? हालांकि बाइडन कह सकते हैं कि उनके पास करने के लिए और भी बेहतर काम हैं, लेकिन ज़्यादातर पाकिस्तानी साफतौर पर मानते हैं कि जब तक पीएम इमरान ख़ान का फोन नहीं बज जाता, तब तक उससे बेहतर कोई काम नहीं हो सकता. ठीक है अगर रिकॉर्ड में दिखे कि पाकिस्तान बाइडन की फोन कॉल का इंतज़ार नहीं कर रहा है, क्योंकि स्नैपचैट वग़ैरह के दौर में एक कॉल में क्या रखा है. ये भी दिखने दीजिए कि जो बाइडन अब उन लोगों के ग़ुस्से का शिकार हैं, जिनके बारे में जानने की उन्होंने कभी परवाह नहीं की. आपकी बदक़िस्मती बाइडन. अब आप अपने दम पर हैं.

‘शर्म’ की बात

इमरान ख़ान ने भले ही कृपा दिखाते हुए कह दिया हो कि बाइडन के पास जब समय हो, वो उन्हें कॉल कर सकते हैं, लेकिन साफ है कि बाइडन के पास समय नहीं हैं और उनकी दूसरी प्राथमिकताएं हैं. लेकिन पाकिस्तान में दूसरे लोग इतने रहमदिल नहीं हैं. पता ये चला है कि व्हाइट हाउस से कॉल न आने से वज़ीरे आज़म पर ताने कसकर उन्हें शर्मिंदा करने का एक मौक़ा हाथ लग गया है. विपक्ष के बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने विदेश मंत्री से कहा कि वो राष्ट्रपति बाइडन के साथ पीएम की फोन कॉल कराने का बंदोबस्त करें, क्योंकि पाकिस्तान की सियासत में उसका एक सामरिक महत्व है: ‘शर्म की बात है कि हमारे प्रीमियर को एक फोन कॉल तक नहीं आती’.

अब, जब आप शर्म को राष्ट्रीय सम्मान के साथ जोड़ देते हैं, तो फिर उसका मुंहतोड़ जवाब सुनने के लिए भी तैयार रहिए. जल्द ही, सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों ने फालतू जमुलों, भाषणों, और डींगें हांकने के दौरान, पाकिस्तान के सम्मान की बातें करनी शुरू कर दीं, इस उम्मीद में कि जो लोग फोन न आने के लिए इमरान ख़ान की हंसी उड़ा रहे हैं, वो पलटकर कॉल करेंगे.

पीएम ने पहल करते हुए 9/11 के बाद अमेरिका के रोल की आलोचना की और कहा कि वो कभी दहशतगर्दी के ख़िलाफ जंग की ‘हिमायत’ में नहीं थे और अफगानिस्तान में अपनी नाकामियों के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान पर दोष मढ़ा था. ये एक अलग बहस का मुद्दा है कि 2002 के रेफरेंडम में इमरान ख़ान, जनरल परवेज़ मुशर्रफ के ‘पक्ष’ में क्यों वोट कर रहे थे, जब दहशतगर्दी के खिलाफ जंग को छह महीने हुए थे और इमरान जनरल की सबसे बड़ी नीति के खिलाफ थे. लेकिन बाइडन, क्या आप सुन रहे हैं? ये पिघलाव आपके लिए है.

समानांतर पाकिस्तान

शासन के यूट्यूबर्स तो एक्शन से भरपूर इस लड़ाई को बाइडन के घर तक ले गए, और दांव को कुछ ज़्यादा ही बढ़ा दिया. उन्हें अब यक़ीन था कि बाइडन ने ग़लत आदमी से ‘सीधा पंगा’ ले लिया है, अमेरिका ने आर्मी चीफ जनरल क़मर जावेद बाजवा को नाराज़ कर दिया है, और अब अमेरिका के दिन बस गिने-चुने रह गए हैं. कैसे, ये उन्होंने नहीं कहा. लेकिन सबसे अच्छा तो अभी आना बाक़ी था: ‘बाइडन आग बबूला हो गए हैं, वो बस ईंट का जवाब पत्थर से देंगे’. उनका इशारा उस तरफ था जिसमें इस हफ्ते अमेरिका ने, पाकिस्तान और टर्की को बाल सैनिक भर्ती करने वाले देशों की सूची में शामिल किया. लेकिन इमरान ख़ान की तुरही पूरे अमेरिका में गूंजती रही, लेकिन हमें अभी तक पता नहीं चला कि क्यों.

इन विलक्षण पाकिस्तानियों के अनुसार, ये सब इसका नतीजा है कि पाकिस्तान ने अमेरिका को हवाई ठिकाने देने के लिए ‘मना’ कर दिया था. और फिर भी, पाकिस्तान यूट्यूब की समानांतर दुनिया में, इस हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति को मात दे दी गई, और अब वो किसी और से नहीं बल्कि दबंग ख़ान से ख़ौफ खाते हैं. ये लोग फेसबुक योद्धाओं को कड़ी टक्कर देते हैं, जहां हर दिन इज़राइल का आख़िरी दिन होता है, उस ब्रह्मण्ड की बदौलत जो रहस्यमयी तरीक़े से काम करता है. ‘ना’ कहने और अधिक करने की परवाह न करने के बीच, लोक लुभावन सार्वजनिक भाषणों में गुम ये सफर चलता रहता है.

लेकिन ज़रा इमरान ख़ान की भी सोचिए. पहले ये भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी थे जो इमरान ख़ान की कॉल्स नहीं ले रहे थे, अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन हैं जो कॉल करने से मना कर रहे हैं. एक विश्व स्तर के नेता के लिए ये एक पैटर्न बनता जा रहा है, जिसका दावा है कि उसकी विदेश नीति अनुकरणीय रही है. ये आप ‘बिल्कुल नहीं’ हैं इमरान, ये वो हैं. वो, जो न कॉल करते हैं, न कॉल लेते हैं, ना ही कॉल की परवाह करते हैं. जो दोस्ती इमरान ख़ान ने 2019 में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाक़ात के बाद, इस अहसास के साथ शुरू की थी जैसे ‘वर्ल्ड कप जीत लिया हो’, शायद अब ऐसे ख़त्म हो रही लगती है कि बाइडन सुन ही नहीं रहे हैं. या क्या आप सुन रहे हैं, बाइडन?

(पीएस: इस लेख के छपने तक जो बाइडन ने इमरान ख़ान को फोन नहीं किया था, और पाकिस्तान की समानांतर दुनिया में घमासान जारी था)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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