पाकिस्तान इन दिनों टमाटर के मसले से टकरा रहा है. इसकी भारी किल्लत हो गई है इसलिए यह लाहौर, इस्लामाबाद, कराची में 320 रुपये किलो की दर से बिक रहा है. ऐसा लगता है कि इमरान खान के पाकिस्तान में टमाटर ने कीमत बढ़ने के मामले में डॉलर को भी पछाड़ दिया है, जो इन दिनों वहां के 156 रुपये की दर से उपलब्ध है.
लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं, क्योंकि वजीरे आज़म इमरान खान के वित्तीय सलाहकार हफीज शैख को जो मालूम है वह आप भी नहीं जानते. उन्होंने कहा है कि बाज़ार में टमाटर 17 रु. किलो की दर से बिक रहा है. आप कहेंगे— क्या कह रहे हैं? तो फिर हमने 320 रुपये किलो की दर से क्यों खरीदे? अरे, उन्होंने टमाटर कहां से खरीदे? और जरा ये बताइए कि वे सब्जी खरीदने के लिए सब्जी मंडी आखिरी बार कब गए थे? इतने सारे सवाल, और टमाटर कितने थोड़े !
शेख ने अभी कहना शुरू ही किया था कि ‘कराची सब्जी मंडी में….’ कि सकते में आए एक रिपोर्टर ने बीच में ही सवाल कर दिया, ‘….क्या… किस सब्जी मंडी….?’ शेख ने उसे कहा कि जाओ, जाकर पता कर लो, और वे मुस्करा दिए. इसके बाद उन्होंने बताया कि वे टमाटर के भाव टीवी पर भी देखते रहे हैं. अब पाकिस्तान सरकार की यह भी एक काबिलेगौर खासियत है कि वह हर चीज़ के लिए टीवी का पर्दा देखने लगती है. वजीरे आज़म इमरान खान को पाकिस्तानी रुपये की कीमत में गिरावट का पता टीवी की खबर देखने पर ही लगा था.
वाकई मामला दिलचस्प है. शैख वह शख्स हैं जो मुल्क की आर्थिक नीति (अगर ऐसी कोई चीज़ वाकई है) तय करते हैं. और महंगाई के मामले में जमीनी हकीकत से उनका वास्ता इसी तरह का है. यह और बात है कि उनके बॉस इमरान खान कह रहे हैं कि उनकी सरकार आम आदमी को राहत पहुंचाना तय कर चुकी है. वे यह भी दावा कर चुके हैं कि पाकिस्तान की माली हालत स्थिर हो चुकी है. यह और बात है कि पाकिस्तान का स्टेट बैंक कह रहा है कि चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं.
सियासी टमाटर
यह कोई नयी बात नहीं है कि खाने-पीने की चीजों की महंगाई को लेकर पाकिस्तानी सियासतदां काफी कल्पनाशीलता दिखाते रहे हैं. टमाटर की 17 रु. किलो की दर का दावा करके हफीज शैख ने अपने पिछले बॉस जनरल परवेज़ मुशर्रफ के ही नक्शेकदम पर चलने की कोशिश की है. 2003 में मुशर्रफ ने लोगों को सलाह दी थी कि जब भाव ऊंचे हो जाएं तो अपने खाने में टमाटर का इस्तेमाल बंद कर दें, मौसमी सब्जियां खाएं. काश मुशर्रफ को पता होता कि मौसमी सब्जियों समेत तमाम देसी खाने टमाटर के बिना नहीं बनते.
बहरहाल, हफीज शैख की मदद को आगे आए सूचना व प्रसारण मामलों में वजीरे आज़म के खास सहायक फिरदौस आशिक अवान. उन्होंने बताया कि मटर मात्र 5 रु. किलो मिल रहा है, यानी 100 रु. में 20 किलो. लेकिन दरअसल मटर बड़े शहरों में 140 रु. किलो मिल रहा है. अब लगता है, यह पता लगाना होगा कि ये सलाहकार कौन सा नशा कर रहे हैं कि ऐसा लगता है मानो हम ‘नया पाकिस्तान’ नहीं बल्कि ‘उड़ता पाकिस्तान’ में रह रहे हैं. कुछ भी हो सकता है. अगर विज्ञान और तकनीक मंत्री फावाद चौधरी यह दावा कर सकते हैं कि इमरान खान अगर हेलिकॉप्टर से अपने घर से दफ्तर जाते हैं तो महज 55 रु. का खर्च आता है, तो एक बोरी मटर 5 रु. में क्यों नहीं मिल सकता? गरीबों से हमदर्दी इस सरकार की सिफ़त नहीं है.
ग्लोबल टमाटर
टमाटर के लिए यह साल बहुत बुरा रहा है. पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद फरवरी में भारत के मध्य प्रदेश के किसानों ने फैसला किया कि वे अपनी कोई उपज पाकिस्तान नहीं भेजेंगे. इसके जवाब में पाकिस्तानी टीवी के एक रिपोर्टर ने ‘तौबा, तौबा’ बोलते हुए एटमी धमकी दे डाली, ‘ये टमाटर हम राहुल और मोदी के मुंह पर मारेंगे. वक़्त आ गया है कि टमाटर का जवाब एटम बम से दिया जाए.’
इस टमाटरी तनातनी के बावजूद आलू और टमाटर से भरे ट्रक नियंत्रण रेखा के आरपार सामान्य व्यापार करते रहे, यहां तक कि बालाकोट पर हवाई हमले के दिन भी. लेकिन कश्मीर में कार्रवाई के बाद भारत से निर्यात रुक गया और पाकिस्तान के घरेलू बाज़ारों में सब्जियों के दाम चढ़ने लगे. आम तौर पर, जब तक घरेलू फसल नहीं आती तब तक भारत से आने वाले टमाटर कमी पूरी करते हैं.
लेकिन मौसम का रुख पलटने और बेमौसम की बारिश के कारण सिंध से टमाटर की खेप बाज़ार में नहीं पहुंची है और इसके दाम आसमान छूने लगे हैं. हालांकि अफगानिस्तान से टमाटर आयात किया जा रहा है, लेकिन व्यापारियों ने ईरान से भी तुरंत आयात करने की मांग की है. इमरान खान सरकार की बदइंतजामी और ऊहापोह ने पाकिस्तानियों की परेशानियां बढ़ाई हैं.
रसोई की आम चीज़ टमाटर अब लक्जरी बन गई है. ऐसे तो वह दिन दूर नहीं लगता जब हमें सिंध के कृषि मंत्री इस्माइल राहू की सलाह लेनी पड़ेगी. सोमवार को जब टिड्डियों ने कराची पर धावा बोल दिया था तो इस्माइल राहू ने सलाह दी कि हम इस मौके का फायदा उठाते हुए टिड्डी बिरयानी, बारबेकू और कढ़ाई टिड्डी बनाकर खाएं. आखिर वे खुद उड़कर हमारे यहां आए हैं.
टमाटर से महरूम पाकिस्तानी अब तमाम तरह के विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. कुछ लोगों ने सलाहदी है कि करतारपुर साहिब आने वाला हर एक भारतीय श्रद्धालु कम-से-कम दो किलो टमाटर लेकर आए और महंगाई से लड़ने तथा टमाटर की कमी पूरी करने में पाकिस्तानियों की मदद करे. टिड्डी बिरयानी खाने से तो यह बेहतर ही होगा.
(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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Bahut accha punch line tha last me