यह किसी अचरज से कम नहीं था जब प्रधानमंत्री इमरान खान की तरफ से एर्तुगुल को पाकिस्तान पर एक नायक के तौर पर थोपा गया. अगर संभव होता तो शायद एर्तुगुल का नाम पहले पाकिस्तानी में शुमार कर लिया जाता. लेकिन यह सारी मेहनत बेकार नहीं गई. आखिरकार तुर्क वंश के शासन का जनक और काफिरों और ऐसे ही लोगों का खात्मा करने वाला एर्तुगुल गाजी पाकिस्तानी नागरिकों के दिलो-दिमाग पर छाने के लिए यहां पहुंच गया और इक्का-दुक्का को छोड़ किसी ने इससे बेअदबी भी नहीं की.
जब लाहौर किले में सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा दूसरी बार तोड़ी जा रही थी, तब भी शहर के रिहायशी इलाके में एर्तुगुल की प्रतिमाएं सीना ताने खड़ी थीं. रणजीत सिंह की प्रतिमा का हाथ तोड़ने के लिए गिरफ्तार शख्स कट्टरपंथी मौलवी खादिम हुसैन रिजवी का समर्थक था और उसकी राय में रणजीत सिंह की प्रतिमा का निर्माण तो कतई ही नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि उन्होंने अपने शासनकाल में मुसलमानों पर अत्याचार किए थे. कम से कम घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए एर्तुगुल की प्रतिमा को अचानक ऐसा आक्रोश नहीं झेलना पड़ता है. पाकिस्तान में केवल प्रतिमाएं ही नहीं बल्कि तुर्की के शो से प्रभावित सिंधी संस्करण, डिरिलिस: एर्तुगुल, एर्तुगुल गाजी चिकन शॉप और यहां तक कि एर्तुगुल गाजी फैमिली रेस्टॉरेंट भी छाए हुए हैं.
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एक धोखेबाज का एंबेसडर
लाहौर में एंजिन अल्टान उर्फ एर्तुगुल का मेजबान एक तुनकमिजाज टिकटॉकर और एक स्थानीय व्यापारी था. मियां कासिफ जमीर खुद किसी स्टार से कम नहीं हैं, बशर्ते नेटफ्लिक्स आला जगहों पर दोस्त बनाने, चार किलोग्राम सोने के गहने पहनकर घूमने और शेर को एक पालतू जानवर के तौर पर साथ रखने की उनकी प्रतिभा को पहचान पाता. यहां तक कि वह कीपिंग अप विद द कार्दशियन का अपना वर्जन भी बना सकते थे.
जमीर ने एक मिलियन डॉलर के करार पर हस्ताक्षर करके अपने चौधरी ग्रुप ऑफ कंपनीज के ग्लोबल ब्रांड एंबेसडर के रूप में अल्टान को शामिल किया था. पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार ने तुर्की के अभिनेता को रहने की सुविधा देने के साथ राइफल का भी इंतजाम कर दिया था. अल्टान ने किसी पाकिस्तानी फिल्म या नाटक में काम करने की इच्छा जताई थी. सब ठीक चल रहा था, ऐसा लग रहा था मानो प्रधानमंत्री इमरान खान ने विदेश से आने वाले लोगों को नए पाकिस्तान में नौकरी के मौके मिलने का अपना वादा निभा दिया था. लेकिन तभी कहानी में एक ट्विस्ट आ गया.
सोने से लदा रहने वाला यह टिकटॉकर दरअसल एक वांछित अपराधी निकला, जिसके खिलाफ लाहौर, टोबा टेक सिंह और सियालकोट में धोखाधड़ी, डकैती, विश्वासघात और कार चोरी के आठ मामले दर्ज थे. अपने आपराधिक रिकॉर्ड पर रिपोर्ट दिखाने के लिए एक स्थानीय टीवी पत्रकार को धमकाने के आरोप में जमीर को पुलिस ने बुधवार को लाहौर में गिरफ्तार किया. कुछ ऐसा है एक एंबेसडर का पाकिस्तानी ब्रांड एर्तुगुल.
यही नहीं, न्यूज़ रिपोर्ट तो यह भी बताती है कि जमीर ने अपने एंबेसडर को दिए जाने वाले एक मिलियन डॉलर में से आधा ही भुगतान किया है. बहरहाल, जमीन ने अपने पहले के बयान में कहा था कि उससे जलने वाले ऐसी बातें कर रहे हैं क्योंकि उनके एर्तुगुल को पाकिस्तान में लाने वाले पहले व्यक्ति बनने से चिढ़े हुए हैं और 50 फीसदी भुगतान तो करार का हिस्सा था. हालांकि, अभी तक तुर्की के अभिनेता की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
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आप इतना ही मुनाफा कमा सकते हैं
सभी अच्छी चीजें खत्म होती हैं लेकिन इतनी बुरी तरह से? कहा जा रहा है 4 किलो सोना केवल सोने की परत चढ़ा हुआ था, जिन कारों का उपयोग करता है, वह उसकी नहीं है, जिस घर में रहता है वह उसका मालिक नहीं है. क्या चर्चित और ताकतवर लोगों के बीच उसका उठना-बैठना असली था? और पालतू शेर, क्या यह असली था भी? जमीर तो पाकिस्तान में अपने आप में अकेले ही बंटी और बबली है. जैसा वे कहते हैं, एर्तुगुल को चूना लग गया. अगर असली एर्तुगुल होता तो अपने डिरिलिस एक्स के साथ क्या करता? अच्छी बात यह है कि ये एर्तुगुल असली नहीं है.
एर्तुगुल कलाकारों के जरिये मुनाफा कमाने का चलन पूरे साल जारी रहा है. शो की मुख्य अभिनेत्री एसरा बिलगिक, जिसे हलीमा बाजी (हलीमा सुल्तान) के नाम से ज्यादा पहचाना जाता है, अब पाकिस्तान में कपड़े के एक प्रमुख ब्रांड, एक मोबाइल फोन कंपनी, एक दूरसंचार कंपनी और यहां तक कि एक आवासीय सोसाइटी का चेहरा बन चुकी है. वही हलीमा बाजी जिनके इंस्टाग्राम पोस्ट को ‘बहुत सभ्य’ नहीं माना जाता. लेकिन एर्तुगुल इतना भाग्यशाली नहीं रहा है कि नए पाकिस्तान में किसी एक कोने में प्लॉट ही मिल सके— वो भी उस व्यक्ति के नाम पर जो राष्ट्रीय नायक बना हुआ है.
अतीत में, पाकिस्तानी कलाकार विदेशी कंटेंट के आगे घरेलू प्रतिभा की अनदेखी करने वाली सरकार की आलोचना करते रहे हैं. ऐसी ही एक तीखी टिप्पणी में अभिनेता यासिर हुसैन ने कहा था कि स्थानीय टैलेंट को ‘घर की मुर्गी ’ और विदेश से आए कचरे को भी मुनाफे का सौदा माना जाता है. कोरोनावायरस के समय में भी जब उद्योग को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा सरकार की तरफ से समर्थन नदारत ही रहा. तुर्की के नाटकों को एक के बाद प्रोमोट किया जाता रहा— वह भी एर्तुगुल की लोकप्रियता बढ़ाकर सऊदी अरब सरकार की नाराजगी का राजनयिक खतरा मोल लेने की कीमत पर.
(लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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नाएला की लेखनी सार्प है….शानदार।