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Thursday, 14 November, 2024
होममत-विमतदुनिया को भले पता ना हो पर पाकिस्तान में इमरान खान के करीबी मौलाना ने कोरोना महामारी की जड़ खोज ली है

दुनिया को भले पता ना हो पर पाकिस्तान में इमरान खान के करीबी मौलाना ने कोरोना महामारी की जड़ खोज ली है

कोविड-19 वायरस के खिलाफ जंग के वास्ते फंड इकट्ठा करने के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान ने जो लाइव टेलीथन किया उसमें वाहवाही लूट ले गए तबलीगी जमात के रसूखदार अगुआ मौलाना तारीक़ जमील.

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दुनियाभर में अभी कयास ही लगाया जा रहा है कि कोरोना का वायरस चमगादड़ों ने पैदा किया या यह मनुष्य की करतूत है, लेकिन पाकिस्तान के एक मौलाना ने अपनी खोज से सबको हैरत में डाल दिया है. इन मौलाना की खोज यह है कि यह महामारी औरतों की देन है. मौलाना ने अपनी वैज्ञानिक खोज का खुलासा करते हुए कहा कि यह महामारी औरतों के तंग कपड़ों की वजह से फैली है. अब किसे पता था कि यह वायरस जनाना है.

कोविड-19 वायरस के खिलाफ जंग के वास्ते फंड इकट्ठा करने के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान ने जो ‘एहसास’ नामक लाइव टेलीथन किया उसमें वाहवाही लूट ले गए तबलीगी जमात के रसूखदार अगुआ मौलाना तारिक जमील. मौलाना जमील ने अपने आंसुओं को जब्त करते हुए सवाल उठाया कि आखिर पाकिस्तान की बेटियों को नाचने पर कौन मजबूर कर रहा है? वैसे, उन्होंने खुद इस सवाल का जवाब नहीं दिया.


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जो जिम्मेदार हैं उन पर तोहमत न लगाओ

मौलाना जमील ने घोषित कर दिया कि कोरोनावायरस समाज में बढ़ती नग्नता, अश्लीलता और बेशर्मी के लिए अल्लाह का कहर है. पापों और पापियों की बढ़ती संख्या के कारण ही यह महामारी हम पर कहर बनकर टूटी है. औरतें बेशक इसकी जड़ हैं. मौलाना जमील की वैज्ञानिक खोज को चुनौती नहीं दी जा सकती— न तो प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा, न उस आयोजन में मौजूद पत्रकारों के द्वारा और न ही उसमें भाग ले रहीं महिलाओं के द्वारा.

विडम्बना यह है कि पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के 27 फीसदी मामले राइविंड शहर में तबलीगी जमात के सालाना मजहबी जमावड़े ‘इज्तेमा’ की वजह से पैदा हुए हैं, जिसमें सरकारी आदेश की अनदेखी करते हुए ढाई लाख लोग जमा हुए थे. फिर भी मौलाना इस वायरस के फैलाव के लिए औरतों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. इसलिए, औरतों के कपड़े खूब फैले हुए होने चाहिए. अगर पाकिस्तान के मौलवियों की चले तो वे कोरोना के मामलों की गिनती औरतों के कपड़ों की लंबाई के हिसाब से ही करेंगे.

महिलाएं ‘बेहया हैं’, कोरोनावायरस भी ‘बेहया’ है.

यह पहला मौका नहीं है, न ही यह आखिरी जब महिलाओं को आपदाओं के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. भूकंप से लेकर बाढ़ और सूनामी, और अब इस महामारी तक हर मुसीबत के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है— कभी उनके कपड़ों के बहाने, तो कभी उनकी बेशर्मी के बहाने, जिसके चलते मुल्क को भारी मुसीबतों से जूझना पड़ा है. उनके जन्म के बाद से ही समाज उनके साथ जो भी दुर्व्यवहार करता है या लोगों पर जो भी आपदा आती है उनका दोष उनके सिर ही मढ़ा जाता है.

जिस समाज में लड़की के जन्म को ही प्राकृतिक आपदा माना जाता है, उसमें जमील जैसे मौलाना मजहबी तबके को खुश करने की कोशिश में ऐसी महिला-द्वेषी धारणाओं को ही मजबूती देते हैं. वे अपने भीतर नहीं झांकते, इसलिए यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वे पुरुषों को किसी तरह से जिम्मेदार ठहराएंगे.

मौलवियों का फंडा सीधा-सा है

पाकिस्तान में सीधा-सा नियम है- जब भी किसी उलझन में पड़ो, औरतों को दोषी ठहरा दो. इस महामारी पर बहस के केंद्र में औरतों के जिस्म को लाना कट्टरपंथियों के लिए माकूल पड़ता है, जिनके जिस्म में विज्ञान नाम की की कोई हड्डी नहीं है. लेकिन यह केवल मौलवियों की बात नहीं है, यह सांस्कृतिक किस्म का मामला है. आखिर, सबसे कमजोर को निशाना बनाना सबसे आसान जो होता है! और पाकिस्तान के मर्द तो इसमें माहिर हैं ही.

लॉकडाउन के दौरान पूरे पाकिस्तान में घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए हैं क्योंकि औरतों को दिन-रात उनसे बदसलूकी करने वालों के साथ रहना पड़ रहा है. वे कहीं शिकायत नहीं कर सकतीं, किसी से मदद नहीं मांग सकतीं. चार बच्चों की एक मां ने इसलिए खुदकशी कर ली क्योंकि वह जुल्मों को नहीं सह सकी. पेशावर में एक शख्स ने बर्बर वारदात कर डाली, उसने सात साल की अपनी भतीजी को इसलिए मार डाला क्योंकि वह घर में खेल रही थी और बहुत शोर मचा रही थी.

सवाल यह है कि महिलाओं पर जब इस तरह के जुल्म और अपराध किए जा रहे हैं, तो मौलवियों को टीवी पर इनके खिलाफ चीखने-चिल्लाने से कौन रोक रहा है? ‘गुनाहों की माफी’ के उस सामूहिक जज्बे और अल्लाह के कहर की बातें तब कहां गुम हो जाती हैं जब मदरसों में बच्चों का बलात्कार किया जाता है या औरतों के शवों को कब्र से निकालकर उनसे बलात्कार किया जाता है?

क्या यह सब मौलानाओं के लिए कमतर अज़ाब के लायक है? हो सकता है कि असली मुद्दों की बात करने से कारोबार पर असर पड़ता हो, या तारिक जमील जैसे प्रभावशाली मौलाना को इन बुराइयों के खिलाफ बोलना या अपने रसूख से इन पर रोक लगाने की कोशिश करना जरूरी नहीं लगता हो.

यहां तक कि प्रधानमंत्री इमरान खान की नैतिकता का पैमाना भी हॉलीवुड और बॉलीवुड से जुड़ा है और वे पाकिस्तान में बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफ़ी (फ़ाहशी) के लिए इन्हें ही जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. शायद इमरान और मौलाना जमील, दोनों को उस गुप्त डाटाबेस का पता नहीं है जिसका इस्तेमाल करके इस तरह की धारणाओं को फैलाया जाता है. पाकिस्तान में औरतों और बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों के लिए पश्चिम का सिनेमा कितना जिम्मेदार है, इस बारे में कोई अध्ययन न तो पहले कभी हुआ था, न अभी हुआ है.


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आखिर किसने उन्हें सिर आंखों पर चढ़ाया?

मौलाना जमील के उपरोक्त बयान के लिए जब उनकी काफी निंदा होने लगी तो उन्होंने ‘अनजाने में किसी मर्द या औरत को ठेस पहुंचाने’ के लिए माफी मांगी. पाकिस्तानी पत्रकारों कों झूठा कहने के लिए भी उन्होंने माफी मांगी. उस आयोजन में शामिल वरिष्ठ पत्रकारों ने मौलाना की आलोचना करते हुए कहा कि वे हमेशा हुक्मरानों के साथ जुड़े रहे हैं, चाहे वे नवाज़ शरीफ रहे हों या आसिफ ज़रदारी, इसलिए अब वे इमरान की तारीफ कर रहे हैं.

मुद्दा यह नहीं है कि मौलाना हर किसी की तारीफ करते हैं या उसे कैरेक्टर सर्टिफिकेट देते हैं, मुद्दा यह है कि मीडिया ही इन मौलवियों को सिर आंखों पर चढ़ाता रहा है. जिन मसलों पर बोलना मौलानाओं के लिए जरूरी नहीं है उस पर भी उनके बयानों को वह सुर्खियां देता रहा है.

महामारी से लेकर औरत मार्च, वैलेंटाइन डे, मानवाधिकारों से लेकर विदेश नीति तक, यौन उत्पीड़न से लेकर बाल विवाह तक तमाम मसलों पर अगर आप किसी मौलाना से सलाह लेने जाएंगे तब आपको इस बात के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा जब वे आपसे इत्तफाक न रखें तो आपको ‘झूठा’ कह डालें. किसी बंटे हुए समाज में मजहब को व्यापार में तब्दील करने और मौलवियों को सेलिब्रिटी बनाने का यही नतीजा निकलता है.

पाकिस्तान के सेलिब्रिटी मौलवी अब विज्ञान में भी अपनी दखल दिखाना चाहते हैं. और वे कोविड-19 पर भी अपना ज्ञान बघारना चाहते हैं. इसलिए तैयार हो जाइए, वे इस वायरस के लिए इलाज भी सुझा सकते हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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