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Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतयदि मोदी कर सकते हैं अहंकारी चीन से बातचीत, तो सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा पर बवाल क्यों ?

यदि मोदी कर सकते हैं अहंकारी चीन से बातचीत, तो सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा पर बवाल क्यों ?

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अगर इमरान खान के शपथग्रहण समारोह में सिद्धू की शिरकत “राष्ट्रविरोधी” होती तो विदेश मंत्रालय उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति ही नहीं देता।

क वरिष्ठ पत्रकार ने इमरान खान के शपथग्रहण समारोह के दौरान पाक अधिकृत कश्मीर के ‘राष्ट्रपति’ मसूद खान के बगल में स्वयं को बिठाये जाने का विरोध न करने के लिए पँजाब सरकार के मंत्री एवं पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की आलोचना की है।

पत्रकार ने सिद्धू के लिए “लानत” शब्द का प्रयोग किया।

मान लेते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 के चुनावों में भी विजयी होंगे। अगर वे पाकिस्तान को लेकर बनायी गयी हमारी योजना के विपरीत जाकर- जैसा वे दिसंबर 2015 में कर चुके हैं- अपने पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान को लाहौर जाकर उनके जन्मदिन पर बधाई देते हैं तो इसका परिणाम क्या होगा? क्या हमारे समाचार चैनल, जो सोचते हैं कि पाकिस्तान एवं अल्पसंख्यक विरोधी होना उनकी टी आर पी बढ़ाएगा, इसका स्वागत एक अभूतपूर्व कदम की तरह करेंगे या दुश्मन के समक्ष झुकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करेंगे?


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क्या भारत और पाकिस्तान के बीच कोई युद्ध चल रहा है और पाकिस्तान के साथ वार्तालाप की कोई कोशिश नहीं की जानी चाहिये, चाहे खुलकर हो या गुप्त रूप से?

ट्विटर से उठ रही ये पाकिस्तान विरोधी आवाज़ें तब क्या करतीं अगर हमारे प्रधानमामंत्री नरेंद्र मोदी न होकर अटल बिहारी बाजपेयी होते और वे लाहौर एक और बस लाहौर ले चलते ? क्या उनका स्वागत होता या उनपर गंदी गालियों की बरसात होती?

अगर भारत सरकार फिर से मित्रता का हाथ पाकिस्तान की ओर बढ़ाती है तो क्या तब भी ये ट्विटर की दुनिया के महारथी पत्रकार उस कदम पर लानत भेजेंगे?

यदि भारत डोकलाम के बावजूद चीन से वार्ता जारी रख सकता है तो पाकिस्तान से बात क्यों नहीं हो सकती? डोकलाम संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। आप मेरे सहयोगी कर्नल विनायक भट्ट(सेवानिवृत्त) द्वारा चीन को लेकर बनाई गई इस रिपोर्ट को पढ़िए जो बताती है कि चीन ने डोकलाम में फौज बढ़ाने का सिलसिला जारी रखा है , यह अलग बात है कि सरकार की आधिकारिक स्थिति इस रिपोर्ट के उलट है।

यह किसी से नहीं छुपा है कि पाकिस्तानी सेना एवं आई एस आई साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर में दिक्कतें पैदा करते आये हैं। लेकिन जब मोदी प्रधानमामंत्री नवाज़ शरीफ को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं देने गए थे, क्या तब भी हालत ऐसे ही नहीं थे? उस समय इसे मास्टरस्ट्रोक से लेकर गेम-चेंजिंग मूव तक कहा गया था। उस यात्रा के कुछ ही दिनों बाद आतंकवादियों ने पठानकोट के हवाई बेस पर हमला कर दिया था।

लेकिन समय तेज़ी से बदल रहा है और मोदी ने ऐसा (दु)साहसी कदम फिरसे उठाया तो संभव है ट्रोल्स उहें भी न बख्शें।


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वापस मूल सवाल पर आते हैं : क्या पाकिस्तान से हमारी पक्की दुश्मनी है?

अगर ऐसा है तो पाकिस्तान से सारे संबंध तोड़ लिए जाएं। अगर क्रिकेट मैचों की सिरीज़ गलत है तो पिछले साल के दिसंबर में बैंकाक में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और उनके पाकिस्तानी समकक्ष, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त ) नासिर खान जंजुआ के के बीच हुई गुप्त बातचीत भी गलत है। फिर आखिर क्यों पाकिस्तान का भारतीय उच्चायुक्त इमरान खान को भारतीय टीम द्वारा आटोग्राफ किया बल्ला भेंट करे?

लेकिन पाकिस्तान से सभी संबंध तोड़ने की बात करना एक है और ऐसा सचमुच कर पाना दूसरी।

सिद्धू पहले ही चंडीगढ़ प्रेस क्लब में घोषणा कर चुके थे कि वे इमरान खान के शपथग्रहण समारोह में तभी हिस्सा लेंगे जब केंद्र उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे। ऐसा लगता है मानो सरकार हमारे परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसी से बातचीत दोबारा शुरू होने की राह में कोई बाधा नहीं आने देना चाहती।

सिद्धू को शपथग्रहण में शामिल होने की अनुमति देने का कदम तो अच्छा था ही, पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसरिया द्वारा दस अगस्त को इमरान खान से मिलकर उन्हें क्रिकेट बैट भेंट करने का कदम भी प्रशंसनीय है।

अगर यह यात्रा राष्ट्रविरोधी होती तो विदेश मंत्रालय निश्चय ही सिद्धू को पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं देता।

कूटनीति एक बारीक कला है, एक ऐसी कला जिसका प्रदर्शन कैमरों के सामने या कैमरों के लिए नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर शनिवार को अधिकांश चैनलों की बड़ी खबर सिद्धू का यह राष्ट्रविरोधी कदम था तो इसकी थोड़ी बहुत ज़िम्मेदारी भाजपा की भी बनती है। पार्टी के प्रवक्ता लगातार पाकिस्तान के खिलाफ सामूहिक उन्माद फैलाने में लगे हैं।

तब वे शायद यह भूल जाते हैं कि अंततः उनकी सरकार भी पाकिस्तान के साथ बातचीत दोबारा शुरू करने का फैसला ले सकती है।

वाजपेयी का फार्मूला :

सिद्धू के खिलाफ उठी इस चीख-पुकार पर वाजपेयी की क्या प्रतिक्रिया होती? क्या वे भी सिद्धू-राष्ट्रविरोधी-है के विवाद में शामिल हुए होते या वे इस मौके का इस्तेमाल पाकिस्तान के साथ ठप्प पड़ी बातचीत को पुनर्जीवित करने के लिए करते? क्या वे अपने पार्टी प्रवक्ताओं को सिद्धू पर हमला बोलने को कहते या उन्हें केरल की बाढ़ पर ध्यान केंद्रित करने की नसीहत देते ?

शायद वे सही फैसला लेते और पाकिस्तान से बंद पड़ी बातचीत को शुरू करने का प्रयास करते। वह एक ऐसे नेता थे जो आज अधिकांश चैनलों पर चल रही बहसों के प्रभाव में नहीं आते। वह बस से लाहौर गए ज़रूर थे लेकिन साथ ही साथ उन्होंने दिसंबर 2001 के संसद पर हुए हमले के बाद आधी सेना को ऑपरेशन पराक्रम के अंतर्गत सीमा पर तैनात कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध के दौरान उसकी हद भी याद दिलाई थी।

वह ऐसे नेता नहीं थे जो एयर कंडीशन टीवी स्टूडियो में बैठे, न्यूज एंकरों की शक्ल धारण किये हुए युद्ध समर्थकों की पाकिस्तान संबंधी बातों पर ध्यान देते।


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मुझे उम्मीद है कि सरकार हम भारतीयों को अब यह बात देगी कि पाकिस्तान मित्र है या शत्रु। लेकिन यह उत्तर नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से आना चाहिए न कि किसी भाजपा प्रवक्ता या पत्रकार की ओर से।

Read in English : If Modi can engage with a hostile China, why can’t Sidhu go to Pakistan?

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