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Saturday, 21 September, 2024
होममत-विमतअगर भाजपा नेता राहुल बजाज की तरह बोल सकते तो वे मोदी और अमित शाह को यह बताएंगे

अगर भाजपा नेता राहुल बजाज की तरह बोल सकते तो वे मोदी और अमित शाह को यह बताएंगे

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है तब भाजपा नेता मीटिंग में एकालाप के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत जुटा सकेंगे.

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नई दिल्ली:  भारतीय उद्योगपति राहुल बजाज के हाल ही में दिए बयान की केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों ने ही नहीं भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी सराहना की है. राहुल बजाज ने हाल ही में कहा कि लोग नरेंद्र मोदी और अमित शाह सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने से डरते हैं, और इसकी किसी भी रूप में सराहना नहीं की जा सकती है. बजाज समूह के अध्यक्ष ने यहे बातें इकोनॉमिक टाइम्स के इटी सम्मान समारोह के दौरान खुले तौर पर कही.

भाजपा ने भले ही राहुल बजाज की चुपके-चुपके खूब सराहना की. लेकिन शाह ने स्पष्ट किया ‘किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है,’ शायद भाजपा संसदीय दल की बैठकों में कुछ नेता एक दिन इतनी हिम्मत जुटा सकें और इस उनके अनुसार ‘एकालाप’ और ‘वन-वे ट्रैफिक’ को बदल सकें.

राज्यों में भाजपा में दबदबा कायम नहीं रख सही

पर जबतक ये होता, भारतीय जनता पार्टी में यह विश्वास है और एकमतता है कि मोदी वो सबसे बेहतरीन चीज़ हैं जो भाजपा में हुई है और दूसरी सबसे अच्छी बात शाह हैं. उनमें इस बात पर भी सहमति है कि चाहें राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजे उतने अच्छे नहीं रहे फिर भी दोनों नेताओं की प्रसिद्धि और कंपीटेंस पर फिलहाल कोई शक नहीं कर रहा.

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले साल हुए चुनाव के परिणाम और इस साल हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम दिखाते हैं कि लोगों ने विधानसभा और राष्ट्रीय चुनाव में अलग-अलग मतदान किया है. दिसंबर 1998 में, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पोखरण न्यूक्लीयर टेस्ट कराए जाने के महज छह महीने बाद मध्यप्रदेश और राजस्थान में (2000 में छत्तीसगढ राज्य बना था) कांग्रेस की सरकार बनी थी. लेकिन अगले वर्ष केंद्र में एनडीए ने वापसी की थी.


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दिसंबर 2003 में, भाजपा ने इन तीनों राज्यों में सरकार बनाई लेकिन यूपीए ने केंद्र की एनडीए सरकार को महज़ पांच महीने में ही हटा दिया. नवंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने इन्हीं तीनों राज्यों (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में अपनी सरकार बनाने में सफल नहीं हो सकी यहां तक की मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने इन तीनों राज्यों में क्लीन स्वीप किया लेकिन फिर भी यह किसी तरह के नए ट्रेंड को नहीं दिखाता है.

महाराष्ट्र में भाजपा भले ही शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने से खाली हाथ रही हो लेकिन यह भी जनता में मतदान किए जाने के किसी बड़े बदलाव की ओर इशारा नहीं करती है. तीनों पार्टियों ने मिलकर 288 विधानसभा वाली सदन में 146 एमएलए के बहुमत को प्राप्त कर लिया है.

महाराष्ट्र में भाजपा कभी भी डोमिनेंट पार्टी नहीं रही हैं. यहां तक की 2014 में आई मोदी लहर के बाद भी पार्टी ने वहां सिर्फ 122 सीट ही हासिल की थी जो 2019 में घटकर 105 हो गई है.

भाजपा की सत्ता की लालसा ब्रांड की मोदी को चोट पहुंचा रही है

पिछले सप्ताह झारखंड रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को ‘सत्ता की लालची’ कहा था. यह विडंबना ही है कि जब वह यह बोल रहे थे तब भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों को तोड़ने में जुटी थी.

सत्ता में कांग्रेस की अखिल भारतीय उपस्थिति को निरस्त करने हताशा में, भाजपा अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी की प्लेबुक से भारी मात्रा में उधार ले रही है. यहां तक की वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वीयों को बेअसर करने के लिए केंद्रीय शक्तियों और एजेंसी का उपयोग कर रही है.

ब्रांड मोदी ऐसी किसी राजनीति का विरोध करती रही है. अगर यह ब्रांड सफर करता है, तो राजनीतिक जोड़-तोड़, एजेंडा-सेटिंग या ध्रुवीकरण के नारों और रणनीति फिर से नहीं होगी.

अगर वे राहुल बजाज की तरह मुक्त हैं तो भाजपा नेताओं को मोदी-शाह को कहना चाहिए कि वह चाल, चरित्र और चेहरा की पार्टी की नीति को न बदलें.

आर्थिक मंदी के लिए न कहना समाधान नहीं

मोदी सरकार आर्थिक मंदी को लगातार नकारती आ रही है. आर्थिक मंदी का उन लोगों के मतदान पर शायद कोई असर नहीं पड़ा हो  जिनका मोदी पर  विश्वास बना हुआ हैं. अगर मोदी लहर जारी है, जैसा कि 2019 के लोक सभा चुनावों में दिखा, तब भी  भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं को एसा प्रतीत हो रहा है कि क्षेत्रीय नेताओं को मोदी से मोहभंग की कीमत चुकानी पड़ रही है.

मोदी के सीएम पद पर नामांकित हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस लोगों की एक्सपेक्टेशन को भुनाने में विफल रहे. लोगों को मोदी में विश्वास था कि वह जो कहते हैं वह करते हैं और इसी को  ध्यान में रखकर ही उन्हें वोट दिया था. लेकिन वह न डिगने वाला विश्वास डावांडोल हो रहा है.

अगर वे राहुल बजाज की तरह मुक्त हैं तो बीजेपी नेताओं को मोदी और शाह को कहना चाहिए कि वे दोनो आर्थिक मंदी को नकारे नहीं.

मनमोहन सिंह की तरह नहीं बने

जैसा ही हाल में बीजेपी के एक सांसद ने मुझे कहा कि देश की जनता नोटबंदी की तरह किसी भी तरह के कठोर निर्णय के लिए तैयार होती अगर मोदी उनकी समस्याओं और अपील को सुनतें  और 13 नवंबर 2016 की तरह ही 50 दिनों का समय मांगते, तो वो उनको मिलता.

सांसद ने कहा, ‘अगर मोदी जी लोगों से कहें. देखिए भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी की वजह से इस हालात में है. मुझे थोड़ा समय दीजिए, सबकुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन समस्या ये है कि वह ऐसा कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है.’


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भाजपा सांसद शायद बहुत आशावादी हैं या हो सकता है बहुत साधारण हों लेकिन उनकी यह सलाह अच्छी शुरुआत हो सकती है. मंदी को पूरी तरह से नकार देना और इस मामले में मोदी की पूरी तरह से चुप्पी भाजपा की किसी तरह से मदद नहीं कर रही है.

अगर वे राहुल बजाज की तरह मुक्त हैं तो भाजपा नेताओं को मोदी को कहना चाहिए कि उन्हें मनमोहन की तरह चुप नहीं रहना चाहिए.

मोदी का बन रहा है मजाक

हाल ही में विधानसभा चुनाव के परिणाम दर्शाते हैं कि लोग किस कदर सिर्फ मोदी से ही नहीं बल्कि अपने राज्यों के डिलीवरी सिस्टम से पूरी तरह से निराश और मायूस हैं.

सोशल मीडिया और व्हाट्सअप पर पीएम मोदी के खिलाफ चल रहे मजाकिया जोक यह दिखाते हैं. उदाहरण के लिए व्हाट्सएप पर इन दिनों एक मजाक चल रहा है कि कर्नाटक के गांव का एक आदमी किस तरह से अपनी दो समस्याओं को मोदी के सामने रखता है जब मोदी उससे मिलने आते हैं.

उसकी पहली समस्या है कि गांव में डाक्टर नहीं है. और मजाक बनता है कि मोदी ने अपना मोबाइल फोन लिया और किसी को फोन किया. फोन के बाद वह गांव वाले से कहते हैं कि कल उसके गांव में डॉक्टर होगा.

‘उन्होंने फिर पूछा हां तुम्हारी दूसरी समस्या क्या है?’ गांव वाला तुरंत बोला, ‘सर हमारे क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क नहीं है.’

इस तरह के मजाक को भले कि विपक्षी पार्टियों ने हाथों हाथ लिया हो लेकिन मैं इस तरह के किसी मजाक को मैं दरकिनार करता हूं. जब तक ऐसे मज़ाक कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेताओं को टार्गेट कर बनाए जा रहे थे. यहां तक की उनलोगों के लिए भी जो मोदी की कसम खाते हुए कहते हैं कि एंटी मोदी मजाक से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है- यह दिखाता है कि किस तरह से मोदी के भक्तों में बदलाव हो रहा है.

अगर वे राहुल बजाज की तरह मुक्त हैं तो भाजपा नेताओं को मोदी-शाह को कहना चाहिए कि उनके खिलाफ समाज में चल रहे मीम और मजाक किस तरह से उनकी बनाई गई छवि  को धूमिल कर रही है.


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ऐसे कई उदाहरण हैं जिसे भाजपा सदस्य अपनी पार्टी के नेताओं में बदलना चाहते हैं. और वह नीति निर्माण में अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं. राज्य के नेताओं में स्थानीय नेताओं का प्रमोशन चाहते हैं साथ ही स्वामीभक्ति की जगह टैलेंट को स्थान दिलाना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने आशा नहीं खोई है.

जहां तक मोदी की लोकप्रियता का सवाल है ब्रिटिश संगीत कलाकार रॉड स्डीवर्ट का 1971 में गाया गीत लोगों के विश्वास पर फिट बैठता है-  ‘रीज़न टू बिलीविंग गिविंग व्यास टू द फेथफुल: इफ आई रिअलाइज़ड लांग एनफ टू यू, आई हैड फांइड ए वे टू बिलीव दैड इट्स औल ट्रू, आई लुक टू फाइंड अ रीज़न टू बिलीव.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. लेकिन कोई क्यों कांग्रेसियों से क्यों नहीं पूछता उनके दिल की बात ?? क्यों वह कहीं मैडम का चरण स्पर्श करना बंद ना कर दें ???

  2. अगर आपके अधिस्थ लोग आपके सामने सच कहने से डरते हैं तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप जानता व वास्तविकता से दूर होते जा रहे हैं। यह राजनीतिक पतन की शुरुआत होती है।

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