कांग्रेस के साथ उनकी समस्याएं निराली है.
छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की जनता कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का मायावती का निर्णय आश्चर्यजनक है. दावा किया जा रहा है कि मायावती भाजपा के विरोध और उत्तर प्रदेश में मोदी के रथ को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर रही है। फिर, क्यों वह छत्तीसगढ़ में एक छोटे से दल के साथ गठबंधन कर रही हैं, जो हर कोई मानता है कि कांग्रेस के वोटों को काटेगा और बीजेपी को जीतने में मदद करेगा ?
उत्तर प्रदेश में मायावती का एसपी के साथ गठबंधन हो सकता है, लेकिन उन्होंने अब कांग्रेस को परेशानी में डालने का संकेत दिया है. कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि ईंधन की बढ़ती कीमतों लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ज़िम्मेदार थे.यह एक स्पष्ट संकेत था: सिर्फ इसलिए कि बीएसपी ने यूपी में एसपी के साथ गठबंधन किया है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मायावती की पार्टी आसानी से विपक्षी दलों के राष्ट्रीय महागठबंधन में शामिल नहीं होगी.
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मई में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मायावती जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन कर चुकी है. जिसने थर्ड फ्रंट के रूप में कांग्रेस को बीजेपी से ज़्यादा नुकसान पहुंचाया था. उसी तरह से यह भी मुमकिन है कि शायद मध्यप्रदेश में बसपा और कांग्रेस के बीच प्रस्तावित गठबंधन काम न करें.
कुछ लोगों कयास लगा रहे हैं कि क्या मायावती और उनके भाई आनंद पर सीबीआई दबाव के साथ इसका कोई संबंध है. अगर ऐसा होता तो इस दबाव में वे समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने को मज़बूर नहीं होती क्या. इसके अलावा, वह वास्तव में जेल जाने से परहेज़ नहीं करेंगी क्योंकि इससे दलितों में उनके लिए सहानभूति बढ़ जाएगी और उनका कद भी बढ़ जायेगा.
कांग्रेस के साथ टकराव
सच्चाई यह है कि मायावती और कांग्रेस एक दूसरे के साथ गठबंधन करने के लिए उचित पार्टियां नहीं है. दलित जो मायावती को वोट देते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कुछ राज्यों में कितनी कम संख्या में है, वो सब कांग्रेस के साथ थे. दोनों पार्टियां दलित वोट की दावेदार हैं. किसी भी गठबंधन समझौते में, दोनों पार्टियां लंबे समय तक एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने से चौकन्ना रहेंगी.
इसी प्रकार, कांग्रेस बसपा को बहुत सीट देने से पहले होशियार रहती है.थोड़े समय के लिए , ऐसा करने से मायावती का कद बढ़ेगा,और उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा जगज़ाहिर हैं। इससे मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में राहुल गांधी का कद छोटा हो जायेगा. लंबे समय के लिए , मायावती बीएसपी को अन्य राज्यों में विस्तारित करने और यूपी के बाहर एक गंभीर दल बनने के इस अवसर का उपयोग कर सकती है.
वास्तव में, बसपा और यहां तक कि एसपी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ सहयोग करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं हैं। उन्हें मालूम है कि कांग्रेस के आने से ज़्यादा असर नहीं होगा. एसपी-बसपा गठबंधन के लिए यह बेहतर होगा अगर कांग्रेस भाजपा के मूल वोट में कटौती के लिए यूपी में उच्च जाति के उम्मीदवारों को उतारती है.
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बीएसपी ऐतिहासिक रूप से चुनाव पूर्व गठजोड़ में शामिल होना पसंद नहीं करती है .यह एक अनोखी पार्टी है. जो अक्सर कहीं और हर जगह चुनाव लड़ती है , इसी तरह से उसने राष्ट्रीय पार्टी का पद हासिल किया है. बीएसपी चुनावों को दलितों के बीच अम्बेडकर विचारधारा फैलाने की गतिविधि के रूप में देखती है, और इसलिए आमतौर पर गठबंधन भागीदारों के लिए सीट खाली करना पसंद नहीं करती है. जब भी ऐसा होता है, मायावती ने अक्सर सार्वजनिक रूप से शिकायत की है, गठबंधन की सहयोगी पार्टियां अपने वोटों को बसपा में स्थानांतरित कराने में असमर्थ रही है . जबकि उनकी पार्टी के दलित वोट आसानी से खिसक जाते हैं.
फिर भी बीएसपी यूपी में एसपी के साथ और अन्य राज्यों में छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाने के लिए तैयार हुई. यह एक हताशा भरा कदम है. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में एक भी सीट न मिली. इससे भी बदतर बात यह थी कि मोदी लहर के कारण दलितों के एक बड़े वर्ग ने बीजेपी को वोट दिया था. यह सिलसिला यही नहीं थमा उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनावों में कहानी ने खुद को दोहराया, जब बीएसपी ने 403 सीटों में से 19 सीटें जीतीं. दोनों चुनावों में बीएसपी ने 19 से 22 प्रतिशत का ठोस वोट-शेयर बनाए रखा.
बीएसपी के मूल वोट का एक हिस्सा मज़बूत बीजेपी के कारण खतरे में है. यूपी में दलित मतदाता, खासतौर पर 2012 में मायावती के सत्ता से जाने के बाद जाटव (मायावती की जाति),बहुत शांत है. सत्ता तक पहुंच के बिना, अगर दलित असंतोष प्रकट कर रहे है तो दलित वोट को अपने विकल्पों पर पुनर्विचार करना चाहिए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर रावण का उद्भव इसका द्योतक है.
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2017 में ठाकुर योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट के मुख्यमंत्री बनने के बाद मामला ख़राब हो गया है .इसने उत्तर प्रदेश में ठाकुरों के प्रभुत्व को पुनर्जीवित किया है.उत्तर प्रदेश में ठाकुरवाद को टी-सीरीज़ भी कहा जाता है, ने दलितों को यादव के साथ असंभव गठबंधन बनाया . एसपी के साथ बीएसपी के गठबंधन की मांग इस प्रकार की ज़मीन से आई है.
मायावती की पहली प्राथमिकता प्रधानमंत्री बनना नहीं है. पीएम के लिए मायावती की बात केवल दलित मतदाताओं को जागरूक करने के लिए है. उनकी पहली प्राथमिकता उत्तर प्रदेश में दलित वोट बनाए रखने की होगी. एसपी गठबंधन के बिना, उन्हें फिर से शून्य सीटों मिल सकती है और दलित मतदाता उन्हें अकेले छोड़ सकते है.
एसपी-बीएसपी गठबंधन को औपचारिक रूप से यूपी में घोषित नहीं किया गया है क्योंकि दोनों दल जल्द ही अपने पक्ष नहीं दिखाना चाहते हैं. यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन को तोड़ने के लिए बीजेपी साम, दाम, दंड और भेद का उपयोग करेगी. यदि मायावती वास्तव में ऐसा करती है, तो वह यूपी में दलित वोटों को खोने का जोख़िम उठाएंगी. इसलिए एसपी-बीएसपी गठबंधन को कोई भी पैसा या सीबीआई केस भी नहीं तोड़ सकते है.
Read in English : Why Mayawati won’t break her alliance with Samajwadi Party in Uttar Pradesh