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Friday, 22 November, 2024
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2019 के चुनाव में क्या भाजपा के मुख्यमंत्री बनेंगे पार्टी के गले की हड्डी

बीजेपी का 'कांग्रेसीकरण' वास्तव में इन मुख्यमंत्रियों के ख़राब प्रदर्शन के कारण हो सकता है. मोदी और शाह अपने विकल्पों और चुनाव के बारे में गलत सिद्ध नहीं होना चाहते.

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बीजेपी का ‘कांग्रेसीकरण’ वास्तव में इन मुख्यमंत्रियों के ख़राब प्रदर्शन के कारण हो सकता है.

्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैंकों में गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के लिए कांग्रेस को दोषी ठहरा सकते हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में बढ़ते एनपीए के लिए वो किसी और को जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते है.उनके मुख्यमंत्री उन पर एनपीए की तरह बोझ है.

उनमें से कई 2019 के लोकसभा चुनावों में भगवा पार्टी के लिए बड़ा बोझ बन रहे हैं. लेकिन ये वे लोग हैं जिन्हें मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने उनकी प्रशासनिक या राजनीतिक कौशल के अलावा वफ़ादारी, दोस्ती या विचारों के लिए पुरस्कार( मुख्यमंत्री का पद उपहार )के रूप में दिया था. इसलिए, सत्तारूढ़ दल के पास अगले साल इन एनपीए (मुख्यमंत्रियों) के बोझ की राजनीतिक लागत का भुगतान करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ही देखें, जिनकी नियुक्ति अक्टूबर 2014 में हुई थी, सब जान के हैरान थे कि पहली बार का विधायक हरियाणा का मुख्यमंत्री बन गया. यह पता चला की जब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रचारक थे तब वह मोदी के करीबी दोस्त थे- और उनकी खिचड़ी गुजरात नेता को पसंद थी.

चार साल बाद हरियाणा ऐसा राज्य बनकर उभरा है,उनमें से कुछ घटनाओं का उल्लेख किया जाये तो महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित जगह और हिंसक जाति संघर्ष और ग़ैरक़ानूनी, आपराधिक बाबा के पैरों पर बिछते राजनेता और राज्य पुलिस उनके सम्मान में सिर झुकाएं हुए.

बुधवार को 19 वर्षीय महिला – एक सीबीएसई बोर्ड टॉपर और बेहतरीन बेसबॉल खिलाड़ी – का कथित रूप से महेंद्रगढ़ से अपहरण कर लिया गया था और रेवाड़ी के एक गांव में गैंगरेप किया गया था. राज्य 2016 के बाद हर दो दिन में एक गैंग रेप का गवाह है, जैसा कि पिछले दिसंबर में दिप्रिंट ने रिपोर्ट किया था।

तब मुख्यमंत्री फिर आये और हर बार की तरह वक्तव्य दिया “आरोपी को बचाया नहीं जाएगा”. और समाचार पत्रों में फिर हर बार की तरह “पुलिस द्वारा सुस्त काम” के बारे में सामान्य हैडलाइन थी. हरियाणा पुलिस और नौकरशाही एक फिर राष्ट्रीय खबरो में आते है जब उन्होंने खट्टर के पूर्ववर्ती भूपिंदर सिंह हुड्डा और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ मामला दर्ज़ किया.

लेकिन, क्या हरियाणा में प्रधानमंत्री के मित्र को हटाने की बीजेपी में किसी ने भी हिम्मत की? नहीं बिलकुल नहीं.

झारखंड में रघुबर दास को मोदी-शाह की उस रणनीति के तहत चुना गया था जिसमें गैर-प्रभावशाली समुदायों के नेता को आगे लाया गया ताकि जो मुख्य समुदाय है उनको पीछे किया जाए: झारखंड में पहला गैर-जनजातीय मुख्यमंत्री, एक पंजाबी-खत्री, जाट- बहुल हरियाणा में, गुजरात में एक गैर-पाटीदार और महाराष्ट्र में गैर-मराठा.


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दास सरकार शुरुआत से ही विवादों में घिरी रही है. राज्य ने मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी है,बीजेपी शासन के अधिवास(डोमिसाइल) नीति के खिलाफ जन-जातीय समूह के लोग खड़े है. किरायेदारी बिलों में संशोधन, धर्मांतरण विरोधी कानून, इत्यादि. मुख्यमंत्री को अब अपने ही पार्टी के लोगों की आलोचना झेलनी पड़ रही है.

बीजेपी के अधिकांश सांसद और विधायक प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का विलय करने के सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं, इस बात के लिए यह तर्क दिया जा रहा है की यह कदम कई गांवों से स्कूलों की पहुंच को ख़त्म कर देगा.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ध्रुवीकरण एजेंडे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लगातार प्रदर्शित करके संघ परिवार को प्रसन्न किया होगा, लेकिन विकास के मोर्चे पर उनकी विफ़लता 2019 में भाजपा को नुक़सान पंहुचा सकती है.

आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के 18 महीनें बाद,यूपी मुख्य रूप से गौ रक्षा के नाम पर हमलों, ‘अवैध’ बूचड़खानों पर प्रतिबंध, गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत, दलितों की उपेक्षा करने के बीजेपी के नेताओं पर आरोप, जेल शूटआउट, ,विशेष जातियों और राजनीतिक संबद्धताओं से संबंधित अपराधियों की नकली मुठभेड़, एंटी- रोमियो स्क्वाड द्वारा उत्पीड़न आदि के लिए जाना जाने लगा.

गन्ना किसानों को उनकी देनदारियों के वादे को पूरा करने में विफल होने की संभावित नुकसान पर सत्तारूढ़ दल में परेशानी है। ज़ख्म पर नमक छिड़कते हुए, मुख्यमंत्री ने हाल ही में किसानों को अन्य फसल को पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि गन्ना / चीनी की अतिरिक्त खपत मधुमेह को बढ़ाती है। उनके घमंडी व्यवहार के संबंध में उनके खिलाफ भाजपा नेताओं की शिकायतें पहले से ही मौजूद हैं.

इस महीनें की शुरुआत में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को अमित शाह से ‘शहरी नक्सलियों’ पर उनकी सरकार के द्वारा कड़ी कानूनी कार्यवाई के लिए प्रशंसा मिली. पार्टी के केंद्रिय नेतृत्व का दिल उन्होंने देश के सबसे अमीर राज्य के नाते जो जिम्मेदारी थी पूरी कर के जीता. पूर्ववर्ती पार्टी के कोषाध्यक्ष पीयूष गोयल से भी उनका प्रदर्शन बेहतर रहा, एसा कुछ लोगों का मानना है.

लेकिन ब्राह्मण मुख्यमंत्री की वजह से भाजपा कठिनाई में है. दलितों और मराठों दोनों के मिला दे तो राज्य की आबादी का करीब आधा हिस्सा होता है ,वे लोग इस समय आंदोलन के पथ पर है. वह अपनी पार्टी में गठबंधन सहयोगी शिवसेना या अपने बड़बोले नेताओं पर लगाम लगाने में असमर्थ है. हाल ही में, बीजेपी के विधायक राम कदम ने कथित तौर पर लड़कियों के अपहरण में लड़कों की मदद करने का वादा किया था, अगर वे उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दे , जिससे पार्टी को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। मुख्यमंत्री की इस मुद्दे पर चुप्पी ने केवल मामले को और बिगाड़ा है.


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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का 18 महीने का कार्यकाल कैसे बीत गया पता नहीं चला। देहरादून ने रावत के करीबी सहयोगियों के भ्रष्ट प्रथाओं के बारे में किस्से और कहानियों से भरा पड़ा है. राजधानी में निर्माणाधीन फ्लाईओवर पर उग आई घास फूंस और सड़को पर गड्ढों से यह संकेत मिलता है कि कैसे छोटा राज्य विकास को बढ़ावा नहीं देते है.

अपने वक्तव्यों के साथ कई बार विवादों में आने बाद त्रिपुरा के युवा मुख्यमंत्री बिप्लाब देब की अंत में एक बात सही हो गई: बतख जल में ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाती हैं. वास्तव में सही साबित होने के अजूबे के बाद में यह तथ्य राष्ट्रीय स्तर पर ख़बर बन गया.

इसी तरह के ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले कई अन्य बीजेपी मुख्यमंत्री है. यहां सवाल यह है कि: यदि हर कोई देख सकता है कि वे 2019 के चुनावों में बीजेपी की संभावनाओं को कैसे धूमिल कर सकते हैं, तो मोदी या शाह उनके साथ क्यों हैं?

पार्टी के अंदरूनी सूत्र दो स्पष्टीकरण देते हैं. सबसे पहले, मोदी और शाह अपने विकल्पों के बारे में गलत सिद्ध नहीं होना चाहते या गलत होते देखे भी नहीं जाना चाहते . दूसरा, यह मोदी है, कोई स्थानीय प्रमुख नहीं हैं, जो अगले चुनावों का कोर्स निर्धारित करेंगे और इसलिए, जब तक वे अपने मालिक की आवाज़ बने रहते है, तब तक उन्हें रहने दिया जाए. कई लोग दूसरे स्पष्टीकरण के साथ सहमत होंगे.

तथ्य यह है कि बीजेपी का ‘कांग्रेसीकरण’ वास्तव में इन मुख्यमंत्रियों के विफ़लता का कारण हो सकता है. कार्यालय में उनकी निरंतरता मोदी और शाह के प्रति वफादारी पर निर्भर है, न कि लोगों के प्रति. याद आ रहे है वे पुराने कांग्रेसी दिन?


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