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Saturday, 21 December, 2024
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‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में ट्रंप की भागीदारी भारतीयों और पीएम मोदी के बढ़ते महत्व का सबूत है

ह्यूस्टन की रैली में राष्ट्रपति ट्रंप की उपस्थिति निश्चय ही भारत-अमेरिका मित्रता को प्रगाढ़ बनाएगी.

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टेक्सस इंडिया फोरम द्वारा ह्यूस्टन में 22 सितंबर को आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भाग लेने की घोषणा बहुतों के लिए किसी झटके से कम नहीं रही होगी. यहां तक कि मुझे भी सहज विश्वास नहीं हुआ, हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में किसी शासन प्रमुख के भारतीय प्रवासियों के कार्यक्रम में शिरकत करने और लोगों को संबोधित करने का ये कोई पहला मौका नहीं होगा. कनाडा, ब्रिटेन, कीनिया, इज़रायल और स्वीडन के नेता विगत पांच वर्षों के दौरान ऐसा कर चुके हैं. फिर भी, अमेरिकी राष्ट्रपति की उपस्थिति के कारण यह भारत और अमेरिका के लिए, दुनिया भर में मौजूद प्रवासी भारतीयों के लिए तथा वैश्विक भू-राजनीति के लिए बहुत ही खास अवसर बन जाता है.

‘ह्यूस्टन में हमारे साथ मौजूद रहने का राष्ट्रपति ट्रंप का विशेष भाव हमारे रिश्तों की मज़बूती तथा अमेरिकी समाज और अर्थव्यवस्था में भारतीय समुदाय के योगदान की स्वीकारोक्ति को रेखांकित करता है.’

मज़बूत होते भारत-अमेरिका रिश्ते

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत-अमेरिका रिश्ते सामरिक स्तर पर पहुंच चुके हैं. ये संबंधों की मज़बूती ही है कि शासन में बदलाव- डेमोक्रेट्स से रिपब्लिकन का इन पर कोई असर नहीं पड़ा. मैंने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से सिर्फ चार दिन पहले एक लेख में दलील दी थी कि भारत चुनाव परिणाम से परे अमेरिका के साथ संबंधों को संभालने में सक्षम है. इस सतर्क आशावाद के कई कारण थे और उनमें से अधिकांश आज भी मान्य हैं.

सबसे अहम है. भारत का बढ़ता भू-सामरिक महत्व. अन्य कारणों में प्रमुख हैं- भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था, बाज़ार और दुनिया भर में मौजूद प्रभावशाली प्रवासी भारतीय. भारत-अमेरिका साझेदारी अब अंतरिक्ष, रक्षा और कृषि समेत विभिन्न सेक्टरों में फैल चुकी है. करीब 100 भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 10 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर वहां हज़ारों नौकरियां सृजित की हैं. इसी तरह, करीब दो लाख भारतीय छात्र अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 7 अरब डॉलर का योगदान करते हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के 2025 तक 238 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच जाने की उम्मीद है. इन तथ्यों की कोई भी अनदेखी नहीं कर सकता.

महत्वपूर्ण भारतीय प्रवासी

अमेरिका की घरेलू राजनीति में भारतीय प्रवासियों की भूमिका जटिल है. कोई आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन ये माना जा सकता है कि भारतीय-अमेरिकियों में से ज़्यादातर डेमोक्रेट्स हैं. हालांकि इस संबंध में संतुलन धीरे-धीरे रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में जाता दिख रहा है. इस समय अमेरिकी कांग्रेस के भारतीय मूल के सारे सदस्य डेमोक्रेट्स हैं. आंकड़ों से ये भी ज़ाहिर है कि भारतीय-अमेरिकी चुनावों में रिपब्लिकन उम्मीदवारों के बजाय डेमोक्रेट्स उम्मीदवारों को अधिक वित्तीय मदद देते हैं. रिपब्लिकनों ने पिछले कुछ समय से भारतीय-अमेरिकियों को दक्षिणपंथ की तरफ खींचने का समन्वित प्रयास किया है और समृद्ध भारतीय प्रवासी धीरे-धीरे मगर पक्के तौर पर ऐसा करते दिख रहे हैं. खुद डोनल्ड ट्रंप ने अपने पिछले चुनाव अभियान के दौरान इस दिशा में ठोस प्रयास किया था.


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कुल मिला कर, पहली बार अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय-अमेरिकियों को अपने साथ करने में दिलचस्पी ले रहे हैं. ये प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ भारत के लिए भी अनुकूल स्थिति है. यह बात भी उल्लेखनीय है कि अमेरिकी संसद के भारत समर्थक गुट (इंडिया काकस) में 100 से अधिक सदस्य हैं, जिनमें दोनों दलों का प्रतिनिधित्व लगभग बराबर अनुपात में है. ये अमेरिकी विधायी तंत्र में भारत को मिल रहे द्विपक्षीय समर्थन को प्रदर्शित करता है.

विवादों का समाधान

बेशक, दोनों देशों के बीच असहमति के कुछ मुद्दे हैं. इस सूची में व्यापार शीर्ष पर है, जबकि बाकी मुद्दों में भारत का रूस से अत्याधुनिक हथियार खरीदना तथा अफ़ग़ानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान में समझौता वार्ता (जिसे ट्रंप ने हाल में रदद् कर दिया) प्रमुख हैं, पर दोनों ही पक्ष इन विषयों पर बातचीत करने के लिए तैयार हैं और इससे ज़ाहिर होता है कि भारत-अमेरिका मित्रता परिपक्वता और समझदारी के एक नए स्तर को छू रही है.

ह्यूस्टन की रैली में राष्ट्रपति ट्रंप की उपस्थिति निश्चय ही भारत-अमेरिका मित्रता को प्रगाढ़ बनाएगी. इससे दुनिया को एक स्पष्ट संदेश जा सकेगा कि कतिपय मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद भारत और अमेरिका अपनी सामरिक साझेदारी को लेकर एकजुट हैं.

हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि अमेरिका की घरेलू राजनीति के संदर्भ में भारत पक्षपाती रुख अपना रहा है. ‘हाउडी मोदी’ के आयोजकों ने डोनल्ड ट्रंप को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर आमंत्रित किया है. ये भी उल्लेखनीय है कि आयोजकों ने दोनों ही प्रमुख दलों के सांसदों और गवर्नरों को भी आमंत्रित किया है. जिनमें में अनेक अपनी भागीदारी की पुष्टि भी कर चुके हैं.

प्रधानमंत्री मोदी का बढ़ता कद

पूर्व अमेरिकी प्रशासन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी और बराक ओबामा ने निजी स्तर पर विशेष समीकरण विकसित कर लिए थे. सबने भविष्यवाणी की थी, और सही ही, कि मोदी-ट्रंप संबंध अधिक व्यावहारिक होंगे. पर कई अवसरों पर, ट्रंप ओबामा से भी एक कदम आगे निकल गए. उन्होंने रक्षा संबंधों को लेकर भारत के स्तर को ‘प्रमुख रक्षा साझेदार’ से बढ़ा कर ‘सामरिक साझेदार अधिकार-1’ कर दिया. ट्रंप प्रशासन ने एशिया-प्रशांत को ‘हिंद-प्रशांत’ का नाम भी दिया है.


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ह्यूस्टन के आयोजन में ट्रंप की मौजूदगी से निश्चय ही दुनिया में भारत का कद बढ़ेगा और एक वैश्विक नेता की प्रधानमंत्री मोदी की हैसियत मज़बूत होगी. मई 2019 में लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद मोदी और ट्रंप की दो बार मुलाकात हो चुकी है. इसके अलावा दो बार दोनों ने फोन पर भी बातचीत की है. दूसरे पक्ष की अप्रत्याशितता की अनदेखी किए बिना भी ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत और अमेरिका के बीच निरंतर विभिन्न मुद्दों पर सहमति बन रही है, और दोनों पक्ष विवादित मुद्दों का बातचीत के ज़रिए समाधान करने के इच्छुक हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 की चुनावी जीत के तुरंत बाद भारत की सौम्य शक्ति के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में प्रवासी भारतीयों के महत्व को पहचान लिया था. राष्ट्रपति ट्रंप की मौजूदगी में ह्यूस्टन के कार्यक्रम से इस विश्वास को और मज़बूती मिलेगी.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक भाजपा के विदेशी मामलों के प्रकोष्ठ के प्रभारी हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(यह लेख इससे पहले 16 सितंबर को प्रकाशित किया जा चुका है)

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