उनके पारिवारिक कर्तव्य, जन्मदिन और नए साल की छुट्टियां पार्टी में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
जबकि राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान कर्नाटक से हट चुका है लेकिन राज्य में राजनीतिक सर्कस अभी ख़त्म नहीं हुआ है।
23 मई, बुधवार को एच.डी. कुमारस्वामी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में और कांग्रेस के जी. परमेश्वर ने राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी। पांच दिनों बाद यह दो सदस्यीय मंत्रिमंडल ही बना हुआ है।
कुमारस्वामी के जनता दल (सेक्युलर) और कांग्रेस की ओर से मंत्री बनाये जाने के लिए कई विधायकों का निर्णय हो चुका है, लेकिन दोनों पक्ष अभी भी लड़ रहे हैं कि किसके पास अधिक लाभप्रद और ताकतवर विभाग होंगे।
पहले ही दिन से यह सार्वजनिक कोलाहल गठबंधन के लिए अच्छा संकेत नहीं है। यदि जेडी(एस)-कांग्रेस गठबंधन कर्नाटक में ऐसी अव्यवस्था को जारी रखता है तो यह 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य में भाजपा की मदद कर सकता है। जैसे बिहार में नीतीश कुमार भाजपा में शामिल हुए थे वैसे ही कर्नाटक में कुमारस्वामी भी आसानी से ऐसा कर सकते हैं।
इस मुद्दे को हल करने में इतना समय क्यों लग रहा है? पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया के शब्दों में: “हम कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ पोर्टफोलियो के आवंटन पर चर्चा नहीं कर सके। एक बार वह लौट कर आते हैं, फिर हम उनसे दुबारा चर्चा करेंगे। इसमें एक सप्ताह नहीं लगेगा…शायद, तीन-चार दिन की आवश्यकता होगी।”
पारिवारिक कर्तव्य
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार रात को ट्विटर पर घोषणा की कि वह अपनी मां सोनिया गांधी के साथ उनके “वार्षिक मेडिकल चेक-अप” के लिए विदेश जा रहे हैं।
हर कोई सोनिया गाँधी को उत्तम स्वास्थ्य की शुभकामनाएं देता है। “वार्षिक” शब्द से पता चलता है कि यह एक नियमित जांच है। लेकिन शायद सोनिया गाँधी को उन डॉक्टरों के पास जाने की जरूरत है जिन्होंने उनके कैंसर का इलाज किया था। शायद, राहुल गांधी को उनके साथ जाना था। शायद, प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा उपलब्ध नहीं थे। शायद, उन सभी की जरूरत है। हर किसी को अपने माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए।
लेकिन राहुल गांधी के पारिवारिक कर्तव्य कर्नाटक में शासन के रास्ते में आ रहे हैं। कर्नाटक के लोग, जिनमें से अधिकतर वार्षिक स्वास्थ्य जांच के लिए विदेश नहीं जा सकते हैं, मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने उन्हें बताया है कि वह कांग्रेस के आभारी हैं।
कुमारस्वामी कहते हैं, मैंने आपको बताया था कि मुझे पूर्ण जनादेश दें! आगे कुमारस्वामी ने कहा कि “मेरी सरकार एक स्वतंत्र सरकार नहीं है। मैंने लोगों से मुझे एक ऐसा जनादेश देने का अनुरोध किया था जो मुझे आप लोगों के सिवाय किसी और के दबाव के अधीन होने से रोकता। लेकिन आज मैं कांग्रेस की दया पर निर्भर हूँ। मैं राज्य के 6.5 करोड़ लोगों के दबाव में नहीं हूं।”
यह पहली बार नहीं है जब राहुल गाँधी की विदेश यात्राओं, जिनके पीछे प्रायः मजबूरी वाले कारण होते हैं, ने कांग्रेस पार्टी को आघात पहुँचाया है। दिसम्बर 2016 में वह नए साल की शाम का उत्सव मनाने के लिए विदेश गये थे और अमरिंदर सिंह दिल्ली में डेरा डालकर राहुल गाँधी की वापसी का इंतज़ार कर रहे थे कि वह आयें तो पंजाब चुनाव के लिए टिकटों का वितरण हो।
पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में फरवरी में चुनाव होने थे, और राहुल गांधी दिसंबर-जनवरी में 10 दिनों के लिए विदेश में थे। यद्यपि यह पहली बार नहीं था।
अप्रैल 2016 में असम विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी इसी तरह दिसंबर 2015 में यूरोप गए थे। किसी ने अमित शाह द्वारा विदेशी छुट्टियां लेने के बारे में कभी नहीं सुना है। यह प्रतिबद्धता परिणामों में दिखाई पड़ती है कि भाजपा एक के बाद एक चुनाव जीत रही है।
शायद यह महसूस करते हुए कि उनके निर्णय सही नहीं हैं राहुल गाँधी ने दिसंबर 2017 में गोवा में अपनी मां के साथ छुट्टी मनाने का फैसला किया। उनकी माँ ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पद छोड़ने के बाद यह बहुत जरूरी अवकाश लिया था।
चुनावी राजनीति एक पूर्णकालिक नौकरी है लेकिन शायद छुट्टी के हकदार सभी हैं। लेकिन राहुल गांधी सालाना 2-3 छुट्टियां लेते हैं और हम एनआरआई के साथ बातचीत करने के लिए सैम पित्रोदा द्वारा आयोजित विदेशी यात्राओं की भी गणना नहीं कर रहे हैं।
इन यात्राओं ने न केवल कांग्रेस पार्टी में निर्णय लेने को रोक दिया बल्कि अंशकालिक राजनेता के रूप में उनकी छवि को आगे बढ़ाया। यह छवि ऐसी नहीं है जिसके साथ कोई प्रधानमंत्री बनने के लिए मतदाताओं को रिझा सकता है।
यूरोप में जन्मदिन
ज्यादातर राजनेता अपने जन्मदिन का उपयोग अभियान के अस्त्र के रूप में करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना जन्मदिन ‘सेवा दिवस’, सार्वजनिक सेवा दिवस के रूप में मनाते हैं। मायावती अपना केक दलित आकांक्षाओं पर जोर देने के लिए काटती हैं। राहुल गांधी विदेश जाते हैं।
लोकसभा में जब उनकी पार्टी को 44 सीटें मिलीं, उसके एक महीने बाद राहुल गांधी जून 2014 में विदेश गए थे।
2015 की शुरुआत में राहुल गांधी ने अनुपस्थिति की छुट्टी ले ली और लगभग दो महीने के लिए चले गए। उन्होंने वियतनाम, कंबोडिया और थाईलैंड की यात्रा की, लेकिन यात्रा का अधिकांश समय म्यांमार में एक ध्यान कोर्स में व्यतीत किया।
वह अप्रैल में इस कायाकल्प व्यायाम से लौट आए और 19 जून को अपने जन्मदिन पर दिल्ली में ही थे। यह इतना दुर्लभ है कि इसे “दिल्ली में राहुल गांधी का पहला जन्मदिन” बताया गया था। किसी को निराश न करने के लिए उन्होंने अगले ही दिन भारतीय राजनीति की नीरसता से कहीं दूर उड़ान भर ली। सोनिया और प्रियंका गांधी भी चले गए। वे सब 10 दिन बाद वापस आए थे।
उन्होंने जून 2016 में अपना जन्मदिन तुर्की में मनाया। 2017 में उन्होंने अपना जन्मदिन इटली में अपनी नानी के साथ मनाया। वह वर्तमान में अपनी मां के साथ वार्षिक जाँच के लिए विदेश में गये हैं और जल्द ही मानसरोवर यात्रा पर जा सकते हैं।
मार्च 2018 में राहुल गांधी फिर से इटली में अपनी बुजुर्ग नानी को देखने गए, भले ही पूर्वोत्तर में पार्टी का खराब प्रदर्शन सुर्खियों में रहा। राहुल को इससे कुछ भी मतलब नहीं था।
राहुल गांधी ने 2019 में प्रधान मंत्री बनने की अपनी इच्छा व्यक्त की है। शायद, हवाई यात्राओं से प्राप्त हुए अंकों से इसमें मदद मिलेगी?
Read in English: How Rahul Gandhi’s foreign trips hurt the Congress