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Sunday, 28 April, 2024
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कैसे मोदी सरकार के अचानक प्रतिबंधों ने भारत को वैश्विक स्तर पर नुकसान पहुंचाया

मोदी सरकार को भारत के हित में अपनाई गई विश्व स्तर पर विघटनकारी नीतियों पर अमल करने की जरूरत है. निर्यात पर अचानक लगाए गए प्रतिबंध से भारत के दोस्तों को ठेस पहुंची है और यह उसकी विश्व गुरु महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ है.

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नई दिल्ली में जी20 नेताओं का शिखर सम्मेलन करीब है और राजधानी दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के प्रमुखों की मेजबानी के लिए हलचल में आ गई है. यह बेशक भारत के लिए महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा का विषय है, जिसने पिछले कुछ सालों में काफी स्थिर और विश्वसनीय वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा हासिल की है. हालांकि, भारत सरकार के कुछ हालिया व्यापार-संबंधी फैसले इस भरोसे को ख़त्म कर रहे हैं.

इन फैसलों में दिक्कत उनके सार में नहीं है, बल्कि उन्हें कैसे लागू किया गया, इसमें है – जो अचानक, नरेंद्र मोदी सरकार की प्रबंधन शैली की पहचान बन गई है. घरेलू स्तर पर, इन अचानक बदलावों को प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की ओर से निर्णायकता के रूप में बेचा गया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, वे अविश्वसनीयता के रूप में देखा गया है.

भारत के दृष्टिकोण से देश के हितों को प्राथमिकता देना एक प्रधानमंत्री का अच्छा गुण है. हालांकि, विश्व गुरु बनने की किसी भी महत्वाकांक्षा को हासिल करना बहुत कठिन हो जाता है. वैश्विक स्तर पर सामंजस्य स्थापित करना कठिन है, क्योंकि देखभाल करने वाला देश अपने फैसले केवल खुद को लाभ पहुंचाने के लिए लेता है, चाहे दूसरों को इसकी कीमत चुकानी पड़े.


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अचानक, बैन

सितंबर 2022 में, सरकार ने टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी और इस साल जुलाई में, उसने इस प्रतिबंध को सभी गैर-बासमती सफेद चावलों तक बढ़ा दिया. खाद्य मंत्रालय ने कहा कि प्रतिबंध खाद्यान्नों में महंगाई को नियंत्रित करने “और भारतीय बाजार में गैर-बासमती सफेद चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए था.”

जुलाई में अनाज की महंगाई दर 13 प्रतिशत थी, और इसने खाद्य मुद्रास्फीति को 10.5 प्रतिशत तक बढ़ा दिया, जिसके कारण समग्र मुद्रास्फीति 7.4 प्रतिशत पर आ गई, जो आरबीआई की 6 प्रतिशत की अपर कंफर्ट लिमिट से काफी ऊपर थी. इसलिए, यह शायद स्वाभाविक ही था कि सरकार कीमतों को कम करने के लिए घरेलू बाजार में चावल की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कुछ करने की कोशिश करेगी.

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समस्या यह है कि सरकार ने रातोंरात भारतीय एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाकर दुनिया भर के बाजार में उपलब्ध 40 फीसदी चावल पर रोक लगा दी और ऐसे में जब भोजन की बात आती है तो हर कोई चाहता है कि उसे बाजार में उस सामान की अनुपलब्धता के बारे में पहले से बताया जाए.

अधिसूचना में एक प्रावधान शामिल था जो भारत के व्यापारिक भागीदारों के बीच खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार की अनुमति से निर्यात की अनुमति देता था. एक बात तो यह है कि सरकारी अनुमति मिलने में थोड़ा समय लगता है. अगस्त 2023 के अंत में ही सरकार ने सिंगापुर, भूटान और मॉरीशस को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात की अनुमति दी – ये तीनों भारतीय चावल पर बहुत अधिक निर्भर हैं.

देश ऐसे व्यापार सौदे करना पसंद करते हैं जो स्थिर और लंबे समय तक चलने वाले हों, खासकर जब यह भोजन और ईंधन से संबंधित हो. इस आत्मविश्वास को हिलाने वाली एक भी घटना भविष्य में बहुत नुकसानदेह हो सकती है. इसकी अत्यधिक संभावना है कि इनमें से प्रत्येक देश, और कई अन्य, अब अपनी खाद्य आपूर्ति योजनाओं पर फिर से विचार करेंगे, अगर भारत फिर से कुछ कठोर कदम उठाता है तो आकस्मिकताएं तय की जाएंगी.

आपूर्ति संबंधी समस्याओं के अलावा अचानक लगाए गए प्रतिबंधों का भी कीमतों पर बड़ा असर पड़ता है. वैश्विक मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत के चावल प्रतिबंध के कारण वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि हुई, जिससे दोस्तों और दुश्मनों को बराबर नुकसान हुआ.

चावल निर्यात पर चरणबद्ध प्रतिबंध – जिसकी शुरुआत आपूर्ति आधी करने से हो सकती है – से न केवल भारत को घरेलू आपूर्ति बनाए रखने में मदद मिलती, बल्कि व्यापारिक साझेदारों को अपनी आपूर्ति की योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता.

भले ही कम लेकिन गेहूं के साथ भी यही बात लागू होती है. भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन वैश्विक गेहूं व्यापार में इसकी हिस्सेदारी बहुत कम है. हालांकि, भारत के मई 2022 के गेहूं निर्यात प्रतिबंध से पहले के महीनों में, सरकार ने कहा था कि उसकी अपने गेहूं निर्यात को पांच गुना बढ़ाने की योजना है, और ध्यान एशियाई और अफ्रीकी देशों पर होगा.

ये देश स्वाभाविक रूप से उत्सुक थे, लेकिन निर्यात प्रतिबंध ने भारत को फिर से खराब रोशनी में डाल दिया.


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बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच भी अनिश्चितता

जल्दबाजी में निर्णय लेने से संप्रभुता के साथ भारत की प्रतिष्ठा ही प्रभावित नहीं होती है. नियामक स्पष्टता के साथ एक स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में बहुराष्ट्रीय निगमों के बीच देश की प्रतिष्ठा भी दांव पर है.

इस साल अगस्त की शुरुआत में, सरकार ने एक बार फिर लैपटॉप, सर्वर, पर्सनल कंप्यूटर और कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, जब तक कि आयात करने वाली कंपनियों ने सरकार से एक विशेष लाइसेंस प्राप्त नहीं किया. इसका प्रभावी रूप से मतलब यह हुआ कि ऐप्पल जैसी कई कंपनियां मुश्किल में पड़ गईं क्योंकि उनके कई मॉडल इस समय देश के भीतर असेंबल नहीं किए जा रहे हैं.

सरकार ने देर से उस विंडो को बढ़ा दिया जिसमें आयात की अनुमति दी जाएगी जब तक कि कंपनियां लाइसेंस प्राप्त करने में कामयाब नहीं हो जातीं, लेकिन इससे कंपनियों के बीच अनिश्चितता की भावना ही प्रबल हुई.

सरकार ने आयात प्रतिबंध के लिए जो कारण बताए, वे आंतरिक सुरक्षा और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने से संबंधित थे. वास्तविक परिणाम यह हुआ कि आईटी हार्डवेयर के लिए संशोधित उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना की मांग में वृद्धि देखी गई.

एक प्रभावी पीएलआई योजना किसी भी स्थिति में इस तरह की मांग को आकर्षित करेगी, जैसा कि कई अन्य क्षेत्रों में देखा गया है. कंपनियों को भारत में निवेश करने के वास्ते प्रेरित करने के लिए व्यापार बाधाओं को एक उपकरण के रूप में उपयोग करना निवेश करने की इच्छुक कंपनियों के साथ अच्छा नहीं होने की संभावना है.

ऐसा भी नहीं है कि वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश के लिए कतार में खड़ी हैं. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्तर पिछले साल के स्तर की तुलना में 2022-23 में 16 प्रतिशत गिर गया, और 2023-24 की पहली तिमाही में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 34 प्रतिशत नीचे आ गया.

यहां तक ​​कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर भारत द्वारा अपनी तेल आपूर्ति को संभालने के तरीके ने एक उच्च नैतिक देश के रूप में इसकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठाया है. हां, अपेक्षाकृत सस्ते रूसी तेल का आयात करना भारत के लिए अच्छा है, लेकिन युद्ध में मुनाफाखोरी के आरोप भी लगते हैं, जो कि एक स्पष्ट रूप से अरुचिकर प्रतिष्ठा है.

भारत पिछले कुछ समय से लगातार एक स्थिर वैश्विक शक्ति होने की प्रतिष्ठा विकसित कर रहा है. इसे अमेरिका के साथ 123 परमाणु समझौते, प्रणब मुखर्जी द्वारा लाए गए विवादास्पद पूर्वव्यापी कर संशोधन को रद्द करने, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे अंतरराष्ट्रीय समूह की मेजबानी करने और और अब जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहे हैं (भले ही वह बारी-बारी से हो.)

इसे छोटी, अधिक अदृश्य चीज़ों में भी देखा जा सकता है जैसे फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए), एडवांस प्राइसिंग एग्रीमेंट्स (एपीए), डबल टैक्स अवॉइड एग्रीमेंट्स (डीटीएए), और ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑफ इंफॉर्मेशन (एईओआई) जिनके हम पक्षकार रहे हैं.

भारत के दृष्टिकोण से, सरकार द्वारा लिए गए निर्णय लगभग सभी सकारात्मक हैं, चाहे अल्पावधि में हों या मध्यम अवधि में. दूसरे देश भी ऐसा ही करते हैं. लेकिन फिर, आपने शी, स्कोल्ज़, पुतिन या यहां तक ​​कि बाइडेन जैसे लोगों को भी विश्व गुरु के समकक्ष दर्जा पाने की आकांक्षा रखते हुए नहीं सुना होगा. वे वही करते हैं जो केवल उनके देश के लिए सर्वोत्तम होता है, बिना किसी दिखावे के. आइए हम भी इसी तरह स्पष्ट रूप से अपने स्वार्थ को स्वीकार करें.

विचार व्यक्तिगत हैं.

(अनुवाद/ हिना फ़ातिमा)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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