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Monday, 6 May, 2024
होममत-विमतकोविड के बाद मोदी-शाह अपने सबसे प्रिय मुद्दे पर वापस लौटेंगे वो है हिंदुत्व की गोली

कोविड के बाद मोदी-शाह अपने सबसे प्रिय मुद्दे पर वापस लौटेंगे वो है हिंदुत्व की गोली

अर्थव्यवस्था से लेकर स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाएं जब सब कुछ विफल हो जाएंगी, तब कट्टर हिंदुत्व चेहरे की तुलना में भाजपा के लिए बचने के लिए बड़ा मुद्दा क्या होगा?

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कोरोनो संकट के कम होने और सामान्य परिस्थिति में लौटने पर उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी अपने आक्रामक हिंदुत्व एजेंडे के साथ राजनीतिक लॉकडाउन से बाहर आएगी. यह भाजपा के लिए सुविधाजनक है और काफी लंबे समय से उनके लिए काम करता आ रहा है. यह सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकायेगा और सभी को अपनी तरफ आकर्षित करेगा.

मोदी-शाह सरकार के लिए यह उतार-चढाव का दौर है. गिरती अर्थव्यवस्था से लेकर लाखों श्रमिकों की भीषण गर्मी में घर वापस जाने की तस्वीरें और कुछ ट्रेनों और रेलवे प्लेटफार्म पर गरीब श्रमिकों को मरने से छवि ख़राब हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जानते हैं कि ये तस्वीरें भविष्य में उन्हें परेशान कर सकती हैं और उन्हें जल्दी से इस मुद्दे से पीछा छुड़ाकर अपनी सुविधा के अनुसार काम करने की आवश्यकता है.

बीजेपी के लिए अपने कट्टर हिंदुत्व के चेहरे से बड़ा क्या है? यह मुख्य रूप से 1990 के दशक की शुरुआत से राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के तेजी से वृद्धि का मुख्य कारण है.

हम उम्मीद कर सकते हैं कि ‘हम हिंदुओं का और हिंदुओ के लिए देश’ से भी बड़े मुद्दे सामने आ सकते हैं. जैसे – भव्य, गगनचुंबी राममंदिर बनाने के लिए तेज आवाज़, नागरिकता कानून, एनआरसी, यूसीसी की बात हो सकती है, साथ ही घुसपैठियों और कपड़ों से ही पहचान जाते हैं के जैसे वाक्यांश सुनाई देंगें.

एक निराशाजनक पीआर फेज 

नरेंद्र मोदी और अमित शाह जानते हैं कि उन्हें इससे जल्द ही बाहर निकलने की जरूरत है. कोई भी सरकार, विशेष रूप से जो खुद को एक कल्याणकारी और गरीब समर्थक दृष्टिकोण के रूप में स्वीकार कर चुकी है, वह यह नहीं देख सकती है कि उसने सबसे कमजोर वर्ग को परेशानी में डाल दिया है खासकर मजदूर वर्ग को. सरकार जो लगातार विकास पर जोर दे रही है. वह नौकरी के नुकसान, आर्थिक विफलता और सकल घरेलू उत्पाद के गिरते आंकड़ों का सहजता से सामना नहीं कर सकती.

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राजनेता के रूप में अपने ‘इन-कंट्रोल’ छवि के लिए प्रसिद्ध मोदी और शाह अब इस अभूतपूर्व संकट और इसके बाद की चुनौतियों जैसे अर्थव्यवस्था से लेकर कृषि तक के सामने लड़खड़ाते दिख रहे हैं. यह और भी भयावह है क्योंकि जब से नरेंद्र मोदी 2019 में एक बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आए हैं. वह पूरी तरह से आश्वस्त लग रहे हैं. उनकी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने से लेकर ट्रिपल तालक और नागरिकता के नियमों पर कानून लाने तक के सख्त नीतिगत फैसलों की भरपाई करने में कामयाबी हासिल की है. सभी राजनीतिक और सामाजिक रूप से विवादास्पद मुद्दों को मोदी-शाह ने अपने तरीके से संभाला है.


यह भी पढ़ें : आधार, मनरेगा, डीबीटी, ग्रामीण आवास– कांग्रेस की विरासत को मोदी ने कैसे हड़पा


वास्तव में, भाजपा ने इन ध्रुवीकरण कदमों के माध्यम से जो उन्माद पैदा करने की कोशिश की, उसने कोविड संकट से पहले की धीमी अर्थव्यवस्था और उसके खराब प्रदर्शन के मुद्दों को ढकने में मदद की. लेकिन वायरस ने पहले से ही पस्त अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई है और गरीबों को कठिन परिस्थिति डाल दिया दिया है. राज्य सरकारें विद्रोह कर रही हैं और रेलवे और एयरलाइंस को फिर से खोलने, जैसे फैसले बड़े पैमाने पर भ्रम पैदा हो रहा है. मोदी-शाह की जोड़ी अपने पीआर गेम के बारे में जानती है.

सबसे बड़ा पलायन

मोदी जानते हैं कि वह अभी भी एक बेहद लोकप्रिय नेता हैं और कोई भी राष्ट्रीय राजनेता उनसे मेल नहीं खाता है. लेकिन वह यह भी जानते हैं कि उनकी सरकार के लिए बुरा प्रचार शायद ही उनके लिए अच्छा हो सकता है और जरुरत यह है कि वायरस का प्रभाव कम होते ही मुद्दे से ध्यान हटाया जाये.

हिंदुत्व फिर बचाव में आएगा. 1990 दशक के राम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर 2019 के विभाजनकारी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम तक कट्टर, बहुसंख्यक और धर्म भाजपा के मूल में रहा है.

यह हमेशा जरूरी नहीं है कि हिंदू बनाम मुस्लिम का एक उग्र रूप हो, जो भाजपा उठाती है. कभी-कभी, यह ‘मुस्लिम-घुसपैठ करने वाले’ या मुस्लिम-बहुल दुश्मन पाकिस्तान का एक और अधिक सूक्ष्म रूप हो सकता है. किसी भी तरह से, हिंदुत्व को आगे बढ़ाना और अल्पसंख्यकों को दबाना इनका मुख्य उद्देश्य रहता है.

भाजपा का मतदाता इस तरफ देखता है. कोई गलती न हो, इसी के लिए वोट देता है और चाहता है कि यह उनका मुख्य एजेंडा बना रहे. किसी भी असहज मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए भाजपा को उन्हें मुख्य एजेंडे को याद दिलाने की जरूरत है.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के द्वारा इस मोडस ऑपरेंडी का अनुसरण करने की संभावना है. इसमें अयोध्या के मुद्दे को उठाना, बाहरी को एनआरसी के अंतर्गत पहचान करना, सभी धर्मों में व्यक्तिगत कानूनों को हटाना शामिल हैं.

कोरोनावायरस से ध्यान हटाना, जो शक्तिशाली मोदी की कमजोरियों को उजागर करता है और अर्थव्यवस्था से ध्यान हटाने के साथ ही सभी विफलताओं को छिपाना है. नौकरी, उद्योगों के धीमे विकास, ख़राब व्यवसाय और श्रमिकों की भीड़ की दुर्दशा ने भारतीय राज्य की अयोग्यता को उजागर किया? इसके बजाय, एक हिंदुत्व की गोली लें. फ्रांस की मैरी एंटोनेट ने एक बार कहा था, ‘रोटी के बदले उन्हें केक खाने दो.’ मोदी-शाह के भारत में लोगों को रोटी न होने की बात करने से रोकने के लिए केक बहुत जरूरी उपाय हो सकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. Your one-sided assessment is not correct, because the public has accepted problems of lockdown and they very well understand this fact, corona problem is created by Chinese, and India has done better than other countries i.e, well developed western countries including the USA. It is the duty of every journalist to give a well-balanced opinion. There is nothing in your article.

  2. Atrocities on Hindu community for 70 years by inserting different Articles inside the Indian Constitution and a constant favouritism to a perticular community on the basis of their religion for political benifit has to be cropped up for which No Modi No Saha or no BJP/RSS is responsible. Each citizen of India should have been viewed paralleled with equal rights.

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