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Friday, 20 December, 2024
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जनरल बिपिन रावत के बाद एक सही सीडीएस का चयन करना मोदी के लिए बेहद महत्वपूर्ण क्यों है

अगले सीडीएस के लिए एक कठित चुनौती ये भी है कि बिडिंग प्रक्रिया में उसे सरकार की तरफ से काम करना होगा और उसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि दोनों के बीच एक सीमा रेखा बनी रही.

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हेलीकॉप्टर हादसे में हमारे पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की असामायिक मृत्यु से पूरा देश सदमे में है. इस बीच, सरकार ने उनके उत्तराधिकारी को चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

अगले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), जिन पर सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) के सचिव पद की भी जिम्मेदारी होगा, का चयन न केवल सशस्त्र बलों बल्कि सरकार के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत को अपने समक्ष उभरती तमाम सैन्य चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है.

नई चुनौतियों से सामना

1 जनवरी 2020 को जब जनरल रावत ने सीडीएस का पद संभाला था तब तक चीन को एक बड़े शत्रु के तौर पर नहीं देखा जाता था. उस समय तक, पाकिस्तान ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन था और सेना नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ-साथ और दुर्गम इलाकों में आतंकवाद विरोधी और चरमपंथ विरोधी अभियानों की ओर ही ज्यादा ध्यान देती थी.

लेकिन लद्दाख गतिरोध और फिर गलवान की झड़प ने स्थितियां एकदम बदल दीं. चीन अब सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. अप्रैल 2020 में गतिरोध शुरू होने से पहले ही सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे की तरफ से कही गई यह बात एकदम सही साबित हुई कि पाकिस्तान से लगे पश्चिमी क्षेत्र के साथ-साथ चीन से सटे उत्तरी क्षेत्र में भी फिर से सैन्य संतुलन कायम करने की जरूरत है.

नए सीडीएस को नई तरह की चुनौतियों से जूझना होगा क्योंकि दो मोर्चों पर लड़ाई अब किसी दूरगामी संभावना के बजाये तात्कालिक खतरा बन गई है. भारत को न केवल कश्मीर और देश के बाकी हिस्सों में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खतरे का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि पूर्वोत्तर में चीन समर्थित उग्रवाद से भी निपटना पड़ रहा है, जिसे एक तरह से ढाई मोर्चे पर लड़ाई वाली स्थिति कहा जा सकता है.

नए सीडीएस पर न केवल खुद को जनरल रावत जितना काबिल साबित करने का दबाव होगा, बल्कि उनकी तरफ से सैन्य बलों में शुरू किए गए क्रांतिकारी बदलावों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी होगी.


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बहुत बड़ी जिम्मेदारी

जनरल रावत को सेनाओं में संयुक्त ऑपरेशन और संसाधनों के साझे इस्तेमाल की मानसिकता बनाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके पीछे कई उद्देश्य निहित थे— मसलन गैर-जरूरी खर्चों में कमी लाकर रक्षा बजट का बोझ घटाना और पारंपरिक तौर-तरीकों पर ही निर्भर रहने वाले सैन्य बलों के बजाये भविष्य की जंगों को लड़ने वाली एक छोटी लेकिन सक्षम सेना तैयार करना.

सचिव डीएमए के रूप में जनरल रावत सिविलियन नौकरशाहों और वर्दीधारी सैन्य अधिकारियों के बीच खाई पाटने की जिम्मेदारी निभा रहे थे. वे नौकरशाही और सैन्य दोनों ही मामलों के लिहाज से क्रांतिकारी बदलावों के अगुआ थे. वह एक मिशन पर थे जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर सैन्य सुधार लागू करना था और इस दिशा में तेज गति से बढ़ते कदम शायद सैन्य बलों के कुछ लोगों और पूर्व सैनिक समुदाय को बहुत पसंद नहीं थे.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जनरल रावत एक ऐसे व्यक्ति थे जो निर्णय लेने में हिचकिचाते नहीं थे, चाहे मसला कितना भी संवेदनशील क्यों न हो—बात पेंशन की हो या सेवानिवृत्ति की आयु की.

कूटनीतिक बारीकियों की परवाह किए बिना बगैर किसी लाग-लपेट के अपने मन की बात कह देने की प्रवृत्ति जनरल रावत को अक्सर परेशानी में डाल देती थी. जनरल रावत एक ऐसे व्यक्ति थे जो किसी मुद्दे को निपटाने के लिए कूटनीतिक बारीकियों का सहारा लेने में भरोसा नहीं करते थे. निःसंदेह दृढ़ता के साथ राजनयिक रास्ते उनके लिए मददगार रहे होंगे, लेकिन उन्होंने अपनी खास जगह सिर्फ इसी आधार पर नहीं बनाई थी.

एक बार उनसे बातचीत के दौरान मैंने पूछा कि क्या वे आलोचनाओं से प्रभावित होते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं इससे अप्रभावित हुए बिना तो नहीं रह सकता. लेकिन मुझे पता है कि मैं अपने और अपने संगठन के प्रति निष्ठावान हूं. मेरे लिए यही सबसे ज्यादा मायने रखता है.’

इसलिए नए सीडीएस का चयन करते समय सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि वह व्यक्ति दृढ़ इरादों के साथ मजबूती से आगे बढ़ने वाला हो और यह सुनिश्चित करे कि तीनों सेनाओं के एकीकरण की दिशा में जारी कवायद आगे बढ़े.

अगले सीडीएस जिस भी मूल सैन्य सेवा से आते हों उन्हें न केवल उसकी वर्दी बल्कि उस सेना की मानसिकता को भी छोड़कर तीनों सेनाओं के नजरिये से सोचना होगा. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि सैन्य सेवाओं के बीच होने वाले परस्पर टकराव से बेहतर ढंग से निपटा जाए, उन्हें तीनों सेनाओं के मुख्यालयों को पूरी तरह दृढ़ होना होगा.

सीडीएस और डीएमए सचिव का पद जिम्मेदारियों के साथ ही तमाम जोखिम भरी चुनौतियों भी लाता है और उन्हें उससे बहुत समझदारी के साथ निपटने में सक्षम होना चाहिए ताकि सशस्त्र बलों पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े. देश के सबसे बड़े सैन्य अफसर को सुरक्षा मुद्दों को पाकिस्तान केंद्रित और आतंकवाद विरोधी/चरमपंथ विरोधी मानसिकता से बाहर निकलकर चीन और जंग के बढ़ते खतरों के नजरिये से देखना होगा.

अगले सीडीएस के लिए एक कठित चुनौती ये भी है कि बिडिंग प्रक्रिया में उसे सरकार की तरफ से काम करना होगा और उसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि दोनों के बीच एक सीमा बनी रही.

व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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