अब हलाल इस्लाम की नई सनक का मुद्दा बन गया है. हलाल रहन-सहन, हलाल डेटिंग, यहां तक कि हलाल सेक्स जैसे विषय भी इंटरनेट पर छाए हुए हैं. इस नव-इस्लाम में हलाल का सर्टिफिकेट एक बड़ा ग्लोबल उद्योग बन गया है. जो मजहब अब तक बड़ी शान से एक सियासी मामला था वह अब खुले तौर पर व्यावसायिक मामला बन गया है. और क्यों न हो, जब ‘इस्लाम एक संपूर्ण जीवनशैली है’ जैसे मुहावरों को कोई चुनौती नहीं दी जा रही है, और जबकि इसके तहत सियासत से लेकर अर्थव्यवस्था और जीवन के लगभग हर पहलू के लिए विस्तृत नुस्खे सुझाए जा रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक मुकदमे में सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि मांस के लिए हलाल का सर्टिफिकेट जारी किया जाए, इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन अब तो सीमेंट, लोहे की छड़ों और बोतलबंद पानी के लिए भी हलाल का सर्टिफिकेट जारी किया जा रहा है. यह सर्टिफिकेट जारी करने वाली निजी एजेंसियां इसके लिए पैसे वसूल रही हैं. जिन ग्राहकों को इस तरह के सर्टिफिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं है उन्हें भी इस तरह से प्रमाणित चीजों के लिए ज्यादा कीमत देने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
यह धंधा नव-धनी मुसलमानों की भलमनसाहत का लाभ उठाकर चल रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर प्रगति कर रही है और इसमें बाकी लोगों की तरह मुसलमान समुदाय भी हिस्सेदारी कर रहा है. लेकिन इस प्रगति के साथ आत्मसम्मान और सामाजिक सम्मान भी जुड़ा होना चाहिए, जो कि मुस्लिम समुदाय में अभी भी धार्मिक पवित्रता और धार्मिकता के प्रदर्शन से जुड़ा है. हलाल उद्योग ऐसी भावना को उभारता है और इससे अच्छी कमाई कर रहा है. इस प्रक्रिया में यह पूरी तरह अनजाने में तो नहीं मगर मुसलमानों में संकीर्ण तथा कट्टर धार्मिकता को बढ़ावा दे रहा है, जो उन्हें अंततः कट्टरपंथी बनाता है.
यह भी पढ़ें: भारतीय मुसलमानों में बौद्धिक वर्ग का अभाव क्यों है? उनके लिए यह सबसे पहले राजनीति है
हलाल और आर्थिक अलगाववाद
हलाल मार्केट राजनीतिक अर्थव्यवस्था को जो नुकसान पहुंचा रहा है उसकी तुलना में सोशल मीडिया पर मुस्लिम फेरीवालों का बहिष्कार करने की जो हिदायत दी जा रही है वह मुख्य मुद्दे को भटकाने जैसा है. अगर यह सामान्य बात बन गई और मुख्यधारा में शामिल हो गया तो यह समुदायों के आपसी रिश्ते पर दूरगामी असर डालेगा— मुस्लिम पर्सनल लॉ या वोट बैंक की सियासत ने अब तक जो असर डाला है उससे भी ज्यादा.
कोई गैर-मुस्लिम अगर हलाल मार्केट में खरीद-बिक्री करना चाहेगा तो उसे शरिया की शर्तों का पालन करना होगा, जिसकी परिभाषा हलाल सर्टिफिकेट देने वाले एजेंट करेंगे. ऐसे बाजार में वे दोयम दर्जे के खिलाड़ी होंगे. हमारे पल्ले पड़ेगा ‘इस्लामी स्टेट’ का आर्थिक संस्करण. दो राष्ट्रों के सिद्धांत के नतीजे भुगतने के बाद क्या अब हम आंख मूंदकर दोहरी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं? यह रास्ता लगभग तैयार हो चुका है क्योंकि इस्लामी बैंकिंग, हलाल शेयरों, हलाल म्यूचुअल फंडों, और हलाल ट्रैवल्स आदि के इर्दगिर्द समानांतर अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है.
यह सब अंततः इस मांग तक पहुंच सकता है कि भारत को मुसलमानों के लिए उपयुक्त मुल्क के रूप में हलाल सर्टिफिकेट लेना चाहिए. संविधान के लिए इस तरह के सर्टिफिकेट की मांग की जा सकती है कि उसका शरिया से कोई संघर्ष नहीं है. और अनौपचारिक रूप से राजनीतिक दलों को तो यह सर्टिफिकेट दिया ही जा रहा है कि वे कौन ऐसे दल हैं जिन्हें वोट देना मुस्लिम समुदाय के लिए मुफीद है.
‘पॉप’ इस्लाम की फर्जी पवित्रता
आखिर, लोहे की छड़ों से लेकर सीमेंट और बिजली के तारों और बैटरियों तक को धर्म के चश्मे से क्यों देखा जाए? जो लोग लोहे और सीमेंट को इस्लामी चश्मे से देखते हैं वे दूसरे धर्मों के लोगों को किस नजर से देखेंगे? इस तरह का नजरिया वाकई इस्लामी क्यों न हो, आधुनिक दुनिया में इसकी कोई जगह नहीं हो सकती.
इस लेख में आगे मैं यह बताऊंगा कि किस तरह यह तो इस्लामी भी नहीं है. इतिहास में या धर्मशास्त्र में भी ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि उसके आधार पर इसे जायज ठहराया जा सके. यह ‘पॉप’ इस्लाम है— फर्जी पवित्रता वाला, जो छद्म इस्लामी धार्मिकता की ताकत से संचालित है और पूरी दुनिया को हरे रंग में रंग देना चाहता है. यह दुनिया को इस्लामी और गैर-इस्लामी हिस्सों में बांटता है और मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच दुश्मनी का रिश्ता तय करता है. समानांतर अर्थव्यवस्था दार-उल-इस्लाम और दार-उल-हर्ब के बीच का पुराना विभाजन नये नाम के साथ सामने आया है.
हर चीज को हलाल और हराम के दो खांचों में बांट कर क्यों देखा जाए? धार्मिक और अ-धार्मिक या इस्लामी और गैर-इस्लामी के बाहर भी दुनिया बहुत बड़ी है. कोई चीज अच्छी है या बुरी, उपभोग के लाया है या नहीं है इसका निर्णय करने की धर्मनिरपेक्ष, वैज्ञानिक और तार्किक कसौटी मौजूद है.
कोई यह सवाल कर सकता है कि इस्लाम के इतिहास में क्या कभी किसी ऐसी संस्थागत व्यवस्था (खासकर गैर-सरकारी और कानूनेतर) के सबूत मिलते हैं जो यह सर्टिफिकेट देती रही हो कि कोई चीज हलाल है या हराम? जिसे इस व्यवस्था में उपभोग के लायक न माना जाता हो?
इस सवाल का जवाब यही है कि ऐसी कोई व्यवस्था कभी नहीं रही. न पैगंबर साहब के जमाने में थी, न रसीदून खलीफ़ों के राज में थी और न मुगल सल्तनत में थी. यह नया इस्लाम है, जो इन कील-कांटों के बूते अपनी पुराना वर्चस्व हासिल करने को बेताब है.
इस्लाम में हलाल क्या है?
पहले एक स्पष्टीकरण. अगर इस्लाम में हर चीज के लिए हलाल का सर्टिफिकेट कानूनन जरूरी भी रहा हो तो भी यह आधुनिक भावनाओं और संवैधानिक नैतिकता के अनुकूल नहीं हो सकता. कई दूसरी धार्मिक निषेधों की तरह, इसे भी आकलन तथा मूल्यांकन के वैज्ञानिक मानकों के अनुसार आंका जाएगा कि स्वीकार्य है और क्या प्रतिबंधित है.
वैसे, हम यह देखें कि हलाल की आर्थिक धार्मिकता का आधार इस्लाम के मूल ग्रंथ क़ुरान के किसी पाठ में मिलता है.
क़ुरान की कई आयतें यह तो लगभग बताती हैं कि क्या-क्या हराम हैं, जो किसी मुसलमान के लिए निषिद्ध, प्रतिबंधित या गैरकानूनी हैं. इन चीजों में मुख्यतः खाने और उपयोग की जाने वाली चीजें शामिल हैं, खासकर मांस के प्रतिबंधित आहार.
क़ुरान के सूरा अल-बक़रा (2:173), अल-माइदा (5:3, 90,91), अनम (6: 145), और अल-नहल (16: 115) में बताया गया है की कौन-कौन जीवों का मांस हराम है. विस्तृत सूची 5:3 में दी गई है जिसमें कहा गया है :
‘ तुम्हारे लिए हराम हुआ मुर्दार, खून, सूअर का मांस और वह जानवर जिसे ज़बह करते हुए अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो और वह जो घुट कर या चोट खाकर या ऊंचाई से गिरकर या सींग लागने से मारा हो, या जिसे किसी हिंसक जानवर ने फाड़ खाया हो—सिवाय उसके जिसे तुमने ज़बह कर लिया हो—और वह जिसे किसी थान पर ज़बह किया गया हो. और वह भी तुम्हारे लिए हराम है जिसे किसी खेल में तीरों से शिकार किया गया हो.’
सूरा अल-आराफ़ (7:33) उपभोग की चीजों के अलावा कुछ कामों को हराम बताता है :
‘कह दो: मेरे रब ने केवल अश्लील कर्मों को हराम किया है, जो प्रकट हों या छिपे हुए हों, हक़ मारना, नाहक ज्यादती, ऐसी बातें जिनके लिए तुम अल्लाह को साझीदार ठहराओ जिनके लिए उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा और वे बातें भी जिनके बारे तुमको पक्की जानकारी न हो.‘
ऊपर जिन चीजों और कर्मों का जिक्र किया गया है उनके अलावा दूसरी शायद ही कोई ऐसी बात है जिसे हराम ठहराया गया है हालांकि कुछ और समान चीजें इस सूची में शामिल की जा सकती हैं. वैसे, सबसे अच्छा नियम यह है कि जो हराम नहीं है वह हलाल है. निषेध या अनुमति के मामले में कोई नियम इस्लाम से निर्देशित नहीं हो सकता बल्कि उसे धर्मनिरपेक्ष, वैज्ञानिक और तार्किक आधारों की कसौटी पर ही तय किया जा सकता है.
क़ुरान क्या करें और क्या न करें इसकी एक सूची देता है. हर एक धर्म में कुछ वर्जनाएं निर्धारित हैं, और हराम भी इस्लाम की वर्जनाएं हैं. वह परिभाषित करता है कि पवित्रता (हराम का दूसरा अर्थ) की उसकी धारणा क्या है और वह बाहरी सीमारेखा खींचता है, जिसे लक्ष्मणरेखा जैसा माना जा सकता है और जिसे न तो फैलाया जा सकता है और न सिकोड़ा जा सकता है. इसलिए वह उन लोगों की भारी आलोचना करता है जो अल्लाह के नाम पर उन बातों को निषिद्ध बताते हैं जिनकी छूट दी गई है, या निषिद्ध बातों की छूट देते हैं. यानि जो हलाल को हराम बताते हैं या हराम को हलाल बताते हैं.
सूरा अल-माइदा (5:87), अल-यूनुस (10:59), और अल-नहल (16:116) में साफ तौर पर माना किया गया है कि किसी चीज को गलत तरह से हलाल या हराम मत घोषित करो. आयत 16:116 कहती है :
‘अपनी ज़बान के बयान किए हुए झूठ के आधार पर यह मत कहो कि यह हलाल है या यह हराम है, ताकि इस तरह अल्लाह पर झूठ आरोपित करो. जो लोग आलाह से जोड़कर झूठ गढ़ते हैं वे कभी कामयाब नहीं होने वाले हैं.’
इस तरह हम देखते हैं कि क़ुरान में हलाल और हराम के इर्दगिर्द साफ-साफ रेखाएं खींच दी गई हैं, और इनके साथ छेड़छाड़ की कोशिश करना अल्लाह के गुस्से को बुलावा देना है. इस हद तक कि सूरा अल-तौबा (9:31) में कहा गया है कि लोग गलत व्याख्याओं और अति विस्तार की आदत के कारण अपने मुल्लाओं और धार्मिक विद्वानों को अल्लाह का दर्जा दे देते हैं क्योंकि उन्हें हराम और हलाल का फैसला करने के अधिकार दिए गए हैं.
इसलिए, जो लोग मेरे कमरे के एसी और स्टेबिलाइजर पर यह फैसला सुनाते हैं कि वे हलाल हैं या हराम, वे नव-इस्लाम के खुदा नहीं तो और क्या हैं?
अब तक के पूरे इतिहास में मुसलमानों को पता रहा है कि हराम क्या है और हलाल क्या है. यह जानने के लिए उन्हें किसी एजेंसी के सर्टिफिकेट की कभी दरकार नहीं पड़ी. इस्लाम के नाम पर एक जालसाजी चल रही है और यह मुसलमानों को ही सबसे ज्यादा ठग रही है. हलाल सर्टिफिकेट देने के इस धंधे पर सरकार को प्रतिबंध लगाना चाहिए.
(इब्न खल्दुन भारती इस्लाम के छात्र हैं और इस्लामी इतिहास को भारतीय नज़रिए से देखते हैं. उनका एक्स हैंडल @IbnKhaldunIndic है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
संपादक का नोट: हम लेखक को अच्छी तरह से जानते हैं और छद्म नामों की अनुमति तभी देते हैं जब हम ऐसा करते हैं.
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: भले ही इज़रायल खत्म हो जाए, फिर भी मुसलमान यहूदियों के प्रति दुश्मनी का भाव रखेंगे- यही समस्या है