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Wednesday, 20 November, 2024
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हाजीपुर से दिल्ली तक– रामविलास पासवान हमेशा मेरे कैमरे में कैद होते रहे

वर्षों तक उनकी तस्वीरें खींचते रहने के कारण मैं रामविलास पासवान को बहुत अच्छी तरह जानने लगा था और ये भी कि हाजीपुर का ये शख्स क्यों हर किसी का पसंदीदा मंत्री था.

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मेरे कैमरे को वह पसंद थे. अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के इच्छुक युवा नेता के रूप में वह राजनीति के दिग्गजों के साथ फोटो में आने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे, बात चौधरी चरण सिंह की हो या जार्ज फर्नांडिस या चंद्रशेखर या जगजीवन राम की. यदि वह वरिष्ठ नेताओं के साथ पहली पंक्ति में जगह नहीं बना पाते, तो पीछे की पंक्ति में बैठकर भी वह मेरे कैमरे में झांकना नहीं भूलते. 1980 के दशक के आरंभ में, जब मेरा करियर शुरू हुए कुछ ही समय बीता था, वह मेरी तस्वीरों का हिस्सा बनने लगे. अपने ट्रेडमार्क काले बालों और सफेद कुर्ते-पजामे वाला, बिहार के हाजीपुर का यह नेता महत्वाकांक्षा और विनम्रता का मिश्रण था. उन दिनों दिल्ली के विंडसर प्लेस स्थित लोकदल कार्यालय हर तरह के राजनीतिक नेताओं का अड्डा हुआ करता था. राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी वहां चाय के लिए पहुंच जाते थे. रामविलास पासवान की राजनीति का वो शुरुआती दौर था और उनके लिए जेपी आंदोलन और आपातकाल विरोधी संघर्ष से निकले युवा नेताओं के बीच अपनी खास पहचान बनाना महत्वपूर्ण था.

मैंने इस दलित नेता की राजनीतिक यात्रा को शुरू से ही बेहद करीब से देखा था, जब वह हाजीपुर लोकसभा सीट से भारी मतों के साथ 1977 का चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे. पासवान राजनीति की सीढ़ियां तेजी से चढ़ते गए. ज़्यादा वक्त नहीं बीता जब उन्हें मंत्री के रूप में सरकार में शामिल होने का मौका दिया गया. लेकिन सत्ता की ताकत हासिल करने के बावजूद अहंकार पासवान को छू नहीं पाया. वह उदारचित और लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले शख्स थे– पत्रकारों के लिए उनके दिल में खास जगह थी. मेरे प्रति उनका विशेष लगाव था और हमारे बीच एक स्नेहिल रिश्ता था, जिसकी यादों को मैं हमेशा संजोकर रखूंगा. वर्षों तक अपने कैमरे में दर्ज करते हुए मैं उन्हें अच्छी तरह जानने लगा था और मुझे यकीन था कि उनका व्यक्तित्व सच्चा है.

फोटो: प्रवीन जैन

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मददगार मंत्री

मुझे 1997 का एक वाकया याद आता है जब ‘पैडी’ के नाम से जाने जाते वरिष्ठ पत्रकार पद्मानंद झा नोएडा में एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गए. हम उन्हें जिस अस्पताल में ले गए वहां उनकी बिगड़ती स्थिति को लेकर असंवेदनशीलता दिखाई जा रही थी. हमेशा की तरह मैंने पासवान को सहायता के लिए आपात संदेश भेजा, इसलिए भी कि वह स्वयं पैडी को जानते थे. उन्होंने त्वरित कदम उठाते हुए यह सुनिश्चित किया कि नोएडा के कैलाश अस्पताल में पैडी को सबसे अच्छा उपचार मिले. कैलाश अस्पताल महेश शर्मा का था जो कि आगे चलकर केंद्रीय मंत्री बने. पासवान खुद अस्पताल भी पहुंचे ताकि पैडी को वीआईपी ट्रीटमेंट मिल सके. बाद में उन्होंने पैडी को एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भर्ती कराने की व्यवस्था की. उन्होंने इतनी चिंता की कि वह कुछ नकदी भी लेकर आए, जो उन्होंने चुपके से मुझे थमा दिया कि मैं उसे पैडी की पत्नी को सौंप सकूं. उन्होंने बड़े चिंतित स्वर में मुझसे कहा कि ऐसे वक्त में हाथ में थोड़ी नकदी रहनी चाहिए. पैडी की पत्नी ने इसके लिए उनका आभार जताया था.

जैसे-जैसे पासवान के साथ मेरी घनिष्ठता बढ़ी, मैंने पाया कि वह एक ऐसे नेता थे जो उस पार्टी मात्र से ही बंधकर नहीं रहते थे जिसके साथ उन्होंने गठबंधन किया हो. अधिकांश अन्य नेताओं के विपरीत विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों में उनके मित्र थे और ये मित्रता किसी तरह के निजी लाभ के लिए नहीं थी. मुझे याद है कि वरुण गांधी को कांग्रेस में लाने के लिए उन्होंने किस तरह प्रयास किए थे. पासवान का अपने साथ के बंगल में रहने वाली सोनिया गांधी के साथ विश्वास और परस्पर सम्मान वाला संबंध था. लेकिन सोनिया जहां वरुण को स्वीकार करने के लिए तैयार थी, वहीं उनकी मां मेनका गांधी को लेकर उनके मन में कुछ शंकाएं थीं. अंतत: यह मामला आगे नहीं बढ़ पाया.

From left to right: Former party members of Janata Party (Secular) Ram Vilas Paswan, former PMs Chaudhary Charan Singh and Atal Bihari Vajpayee | Photo: Praveen Jain
बाएं से दाएं: पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रामविलास पासवान, जनता पार्टी के दिनों में | फोटो: प्रवीन जैन

जब पासवान संचार मंत्री थे, तो इंडियन एक्सप्रेस का कार्यालय कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में शिफ्ट हुआ था और हमें संचार नेटवर्क स्थापित करने में परेशानी हो रही थी. मैं अपने सहयोगी हरपाल सिंह के साथ उनसे मिलने के लिए पहुंचा लेकिन उस समय वह कुछ सांसदों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक में व्यस्त थे. हम काफी समय तक इंतजार करते रहे क्योंकि अकड़ दिखा रहे उनके सुरक्षाकर्मियों ने हमें अंदर नहीं जाने दिया था. अंतत: मेरा धैर्य खत्म हो गया और मैं दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हो गया. पासवान की तुरंत मुझ पर नज़र पड़ गई और वह मुस्कुराते हुए मेरे पास आए. ‘कैसे आना हुआ?’ उन्होंने पूछा और यह कहते हुए वह बैठक से निकल आए कि ‘मेरा दोस्त आया है.’

मैंने पासवान से हमारी समस्या बताने की कोशिश की, उन्होंने बीच में ही रोककर पूछा: ‘काम छोटा है या बड़ा?’ मैंने बताया कि काम अच्छा-खासा ही है, तो उन्होंने अपनी टीम के एक वरिष्ठ सदस्य को बुलाया और यह सुनिश्चित किया कि अधिकारी हमारी समस्या का तत्काल समाधान करे. मैंने इस बात पर भी गौर किया कि उस समय उनके पास मोबाइल फोन नहीं था. मैंने जानना चाहा कि संचार मंत्री होते हुए भी उनके पास सेलफोन क्यों नहीं है. उन्होंने स्पष्टता और परिहास के अपने विशिष्ट अंदाज में कहा कि उस समय तक वह मोबाइल फोन चलाना सीख नहीं पाए थे.


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विनम्र इंसान

रामविलास पासवान जब 1996 में रेलमंत्री नियुक्त किए गए, तो उन्होंने मुझे कॉल किया था. हमने कुछ देर बात की होगी कि अचानक उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने कभी भारतीय रेल की विशेष ट्रेन में यात्रा की है. उन्होंने कहा कि इसमें बेडरूम और आगंतुक कक्ष भी होते हैं, हमें इसमें सफर करके देखना चाहिए, साथ-साथ. तो फिर इस विशेष यात्रा की योजना बनाई गई. मैं खुश था कि मुझे रेलयात्रा के दौरान रेलमंत्री की तस्वीरें खींचने का मौका मिलेगा और उन्हें मुझे इस यात्रा पर ले जाने की खुशी हो रही थी. अगले ही दिन हम बहादुरगढ़ होते हुए हरियाणा की यात्रा पर थे. रास्ते में एक स्टेशन पर वह हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन कर रहे थे कि एक व्यक्ति ने अचानक भीड़ से सामने आकर उन्हें धक्का दे दिया. मैं ठीक उनके पीछे था और हतप्रभ होकर ये सब देख रहा था. लेकिन वह अविचलित रहे और लोगों की ओर हाथ हिलाते रहे. मैं भी दोबारा फोटो खींचने में जुट गया.

एक बार मैं अपने संपादक शेखर गुप्ता के साथ हैदराबाद हाउस में एक इफ्तार पार्टी में गया था. जब हम वहां से निकले, तो खुद को ट्रैफिक जाम में फंसा पाया क्योंकि मंत्रियों की गाड़ियों को प्राथमिकता दी जा रही थी. शेखर को एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेना था और देर होते जा रही थी. मैं देख सकता था कि वह बहुत तनाव में थे. अचानक, मैंने पासवान को पास से गुजरते देखा, मैंने हाथ लहराते हुए उन्हें आवाज़ दी और उनसे शेखर को लिफ्ट देने का अनुरोध किया. पासवान एकमात्र मंत्री थे जिनके साथ मैं इस तरह की स्वतंत्रता ले सकता था. उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘गुप्ताजी को कौन नहीं ले जाना चाहेगा? इसी बहाने मैं उनसे बात भी कर लूंगा.’

From left to right: veteran leader L.K. Advani, Ram Vilas Paswan and former President of India Giani Zail Singh in Parliament house | Photo: Praveen Jain
बाएं से दाएं: संसद भवन में एलके आडवाणी, रामविलास पासवान और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह | फोटो: प्रवीन जैन

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पुराना मित्र

मेरे प्रति स्नेह के कारण पासवान ने अपने तमाम मंत्रालयों में मुझे विभिन्न समितियों में शामिल करना चाहा. ऐसा मेरी जानकारी के बगैर होता था और इस पर मुझे शर्मिंदगी भी होती थी. जैसे, उन्होंने संचार समिति में मेरा नाम डाल दिया और मुझे अपना नाम हटवाने के लिए उनसे आग्रह करना पड़ा. उन्हें ये समझने में थोड़ा वक्त लगा कि मैं उनसे कोई विशेष अनुग्रह नहीं चाहता था. जब उन्हें मेरी परेशानी का एहसास हुआ, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक खेद जताया.

एक बार मैंने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गोवा में छुट्टियां मनाने की योजना बनाई. मैंने ट्रेन टिकट बुक करा लिए थे लेकिन रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं था. मैंने पासवान के निजी सहायक जोगेंदर के ज़रिए कन्फर्मेशन के लिए अर्जी डाल दी और मुझे उम्मीद थी कि काम हो जाएगा. अगले दिन जोगेंदर ने मुझे पासवान के निवास पर आने को कहा. मैं यह सोचते हुए वहां पहुंचा कि पता नहीं क्या मामला है.

वहां पहुंचते ही जोगेंदर ने मुझे एक दस्तावेज सौंपा और बताया कि वो गोल्डेन पास था जिसकी सहायता से मैं अपने परिवार के साथ फर्स्ट एसी श्रेणी में कहीं भी यात्रा कर सकता था. जोगेंदर ने कहा कि अब आगे से मेरे सामने ट्रेन रिजर्वेशन की कोई समस्या नहीं होगी. ये बात मेरे दिल को छू गई थी लेकिन मैंने पास लेने से दृढ़ता के साथ इनकार कर दिया. मैं सिर्फ ये चाहता था के मेरे टिकट कन्फर्म हो जाएं.

Ram Vilas Paswan with former PM H. D. Deve Gowda | Photo: Praveen Jain
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के साथ रामविलास पासवान | फोटो: प्रवीन जैन

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मौसम विज्ञानी

अपने बेटे चिराग को बॉलीवुड में सफलता नहीं मिलने पर रामविलास पासवान उसके भविष्य को लेकर बहुत चिंतित थे और वह इस बारे में मुझसे अपने दिल की बात बताया करते थे. मैं उनसे यही कहता कि स्वाभाविक रूप से चिराग का करियर राजनीति में ही है और अंतत: चिराग ने राजनीति में कदम रखा भी.

जब एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने तो कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने विरोध जताते हुए उन्हें हटाने की मांग की. केसरी को लगता था कि देवेगौड़ा पीवी नरसिम्हा राव के आदमी हैं. प्रेस क्लब में दो पैग लगाने के बाद पासवान ने मुझे अपने कार्यालय में आने को कहा. उन्होंने मुझसे कहा कि देवेगौड़ा के हटने के बाद उनके प्रधानमंत्री बनने की बहुत संभावना हो सकती है. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो वह मुझे प्रधानमंत्री का ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) बनाना चाहेंगे. मैंने इस प्रस्ताव पर हामी भरने से मना कर दिया. मैंने उनसे कहा कि आप सिर्फ एक साल के लिए प्रधानमंत्री बन सकेंगे और मैं इस्तीफा देकर आपके साथ जुड़ गया, तो मेरी इंडियन एक्सप्रेस की नौकरी चली जाएगी. मैंने कहा कि मेरे लिए सिर्फ इतना कर सकते हैं– यदि आप पीएम बन गए और अवसर किसी सार्वजनिक आयोजन या प्रेस कॉन्फ्रेंस का हो, तो आप हाथ हिलाकर सिर्फ इतना कह देना: ‘हेलो प्रवीण जैन, कैसा है ?’ उतने से मैं खुश हो जाऊंगा. उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था और वह मेरी ओर देखकर मुस्कुरा कर रह गए.

रामविलास पासवान के समर्थन के कारण ही मैं अपनी राजनैतिक तस्वीरों की सिंहावलोकन प्रदर्शनी आयोजित करने का साहस कर पाया था. एक दिन, मैं उनके साथ बैठकर बातें कर रहा था और उन्होंने सुझाव दिया कि मुझे एक बड़ी फोटो प्रदर्शनी लगानी चाहिए. मैंने उनकी सलाह को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि इसके लिए मैं पैसे कहां से जुटाऊंगा. इस पर उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनका मंत्रालय खुशी-खुशी मेरी प्रदर्शनी का प्रायोजक बन सकता है. उन्होंने उससे भी अधिक समर्थन किया. प्रदर्शनी के शुभारंभ के अवसर पर वह मुख्य अतिथि बने, हालांकि वह अस्वस्थ थे. उन्होंने उस अवसर पर मौजूद अन्य छायाकारों को भी वैसी ही प्रदर्शनियों के आयोजन के लिए प्रेरित किया और भरोसा दिलाया कि वे उनकी मदद करेंगे. आश्चर्य नहीं कि वे सबके प्रिय मंत्री थे. सचमुच में वह एक उदारचित इंसान थे.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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