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Sunday, 22 December, 2024
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गुजरात चुनाव से AAP राष्ट्रीय पार्टी तो बनी लेकिन जयप्रकाश नारायण नहीं हो सकते केजरीवाल

अगर बीजेपी को लोकसभा चुनाव 2024 में दिल्ली की सातों सीटें बनाए रखनी है, तो उसे अपनी प्रदेश इकाई में भारी फेरबदल और कुछ नेताओं को विदा करने की दरकार है.

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पहले के हर चुनावी नतीजों की तरह दिल्ली, गुजरात और हिमाचल प्रदेश से भी मिले-जुले संदेश सामने आये और कुछ सबक दे गए, जिसे कोई चाहे तो गांठ बांध ले. दिल्ली में कांग्रेस का सफाया हो गया है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में उसने वापसी की है. संयोगवश राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं और कांग्रेस की छवि किसी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की तरह पेश करने पर आमादा हैं. कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हिमाचल प्रदेश सहित किसी भी राज्य में एक भी चुनावी रैली को संबोधित नहीं किया.

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पटखनी देने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की हिमाचल प्रदेश की सभी सीटों पर ज़मानत जब्त हो गई और वह गुजरात में तीसरे नंबर पर काफी पीछे रही. गुजरात में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ने वाली और सत्ता-विरोधी लहर को मात देने वाली बीजेपी प्रतिष्ठित एमसीडी और हिमाचल प्रदेश का चुनाव हार गई है. किसी राज्य में किसी पार्टी की जीत के लिए जो वजहें उंगलियों पर गिनवाई जा सकती हैं, वह वजहें दूसरे राज्य में उसी पार्टी के खिलाफ जाती हैं.


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भाजपा की हिमाचल कथा बंगाल का किस्सा

हिमाचल प्रदेश में 1985 के बाद से कोई भी पार्टी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई है. पार्टी बदल देने वाले इन नतीजों से ज़ाहिर है कि बीजेपी के हाथ से फिसलकर वहीं 18 सीटें कांग्रेस की झोली में चली गईं, जो पांच साल पहले कांग्रेस से बीजेपी की ओर खिसक गईं थीं, लेकिन कांग्रेस की जीत और बीजेपी के खराब प्रदर्शन में दोनों पार्टियों के लिए कुछ सबक हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के पास इस बार प्रचार करने वाले ताकतवर दिग्गज नहीं थे. पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह करिश्माई शख्सियत थे, जिनकी अपने समुदाय और राज्य की दूसरी बिरादरियों पर एक समान पैठ थी. बीजेपी की ओर भी इस बार प्रचार में कोई पूर्व मुख्यमंत्री नहीं उतरा.

दोनों दलों के नेताओं की अपील अपने असर वाले इलाकों से बाहर सीमित थी और न ही कोई ऐसी शख्सियत थी, जो पूरे प्रदेश के मतदाताओं में एक समान लोकप्रिय हो. दोनों दलों में नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता भी थी, बीजेपी के पाले से 68 सीटों पर करीब 21 बागी लड़ रहे थे, जिनमें नौ जीत गए. कुछ बागियों ने बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाई, जिसकी वजह से पार्टी के कईं उम्मीदवार मतों के बहुत कम अंतर से हार गए.

दिलचस्प यह है कि चुनाव से बमुश्किल एक महीने पहले, कांग्रेस के कईं वरिष्ठ नेता और विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था और उनमें से कुछ को टिकट भी दिया गया, जिससे अन्य कार्यकर्ताओं में नाराज़गी पैदा हो गई. 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ ऐसा नज़ारा देखने को मिला था. बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता भाजपा में शामिल हुए और चुनाव हार गए. बीजेपी को इससे सबक लेने की जरूरत है. फिर, अगर पार्टी 2024 में लोकसभा की सभी सात सीटों को बरकरार रखना चाहती है तो उसे अपनी दिल्ली इकाई में भारी फेरबदल और कुछ नेताओं को विदाई देने की दरकार है.


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आप को मिला चुनौती देने वाले का तमगा

आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता के लिए, विधानसभा की तीन प्रतिशत सीटें जीतनी थीं या छह प्रतिशत वोट और दो विधानसभा सीटें जीतनी थीं. इसके अलावा उसे विधानसभा चुनावों में डाले गए कुल मतों का आठ प्रतिशत हासिल करने की जरूरत थी. गुजरात की 182-सदस्यीय विधानसभा में से कुल पांच सीटें जीतने और तकरीबन 12 फीसदी वोट हासिल करने के बाद आप अब एक राष्ट्रीय पार्टी है, तो अब तथाकथित विपक्षी एकता के मामले में क्या बदलेगा?

पंजाब में जीत, गोवा में एक सीट पाने, दिल्ली विधानसभा जीतने और दिल्ली नगर निगम में बीजेपी का 15 साल का कब्ज़ा खत्म करने के बाद आप को इकलौती ऐसी पार्टी के रूप में देखा जा रहा है जो बीजेपी को प्रभावी रूप से चुनौती दे सकती है. इनमें से कईं चुनावों में, आप ने या तो कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई है या पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) या गोवा में कुछ राज्य-स्तरीय गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी दलों में सेंध लगाई है. क्या ये पार्टियां आप के साथ मंच साझा करना और उसकी चुनावी सहयोगी बनना पसंद करेंगी?

इसके अलावा, दक्षिण में तमिलनाड़ु में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) और कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) जैसी पार्टियां हैं, जो बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ अपनी लड़ाई में आप को भागीदार बनाने के बजाय एक शिकारी की तरह देख सकती हैं. कांग्रेस भी हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्यों में आप के साथ गठबंधन करने से पहले दो बार सोचेगी, जहां वह सहयोगी दलों के समर्थन के बिना भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ सकती है.

इस मामले में हिमाचल प्रदेश के नतीजे गौर करने लायक हैं जहां आप की सभी सीटों पर ज़मानत जब्त हो गई. कर्नाटक के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का आरोप है कि गुजरात में कांग्रेस के वोटों को बांटने के लिए बीजेपी ने आप को फंड मुहैया कराया. उन्होंने कहा, ‘गुजरात में आप ने बहुत खर्चा किया. मेरी जानकारी है कि बीजेपी ने कांग्रेस के वोट में बंटवारे के लिए आप को फंडिंग की. आप चुनाव लड़ी, हम पिछड़ गए.’ इसलिए, जहां तक ‘संयुक्त विपक्ष’ की मरीचिका का सवाल है, उसमें आप कहां फिट बैठती है?

लगभग चार दशक पहले जयप्रकाश नारायण जैसे दूरदर्शी थे, जिन्होंने एकदम भिन्न विचारधारा वाली करीब आधा दर्जन पार्टियों को मिलाकर एक नई पार्टी बना दिया और उन्हें इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के विरोध में एकजुट होने को राजी कर लिया. ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नारा चला और अजेय मानी जाने वालीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को करारी शिकस्त मिली. दो दशक पहले भी हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे दिग्गज थे, जिनकी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) तो हाशिए पर पहुंच गई, लेकिन वे बीजेपी के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बना सके थे.

इसलिए, फिलहाल ऐसा लगता है कि 2024 के लिए बीजेपी का कोई विकल्प नहीं है. राज्य चुनावों में कुछ आश्चर्यजनक नतीजे आ सकते हैं और कुछ झटके लग सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर पार्टी की चुनावी मशीन राष्ट्रीय स्तर पर अजेय बनी हुई है. अलबत्ता, चैन से बैठ जाने से कोई भी पार्टी बियाबान में फेंक दी जा सकती है.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrichari है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(अनुवाद: हरिमोहन मिश्रा | संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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