scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतPM MODI जब मैसूर में योगासन कर रहे थे, तब गौड़ा कुनबा और उनका JDS शवासन में पड़ा था

PM MODI जब मैसूर में योगासन कर रहे थे, तब गौड़ा कुनबा और उनका JDS शवासन में पड़ा था

कर्नाटक में अगले साल होने वाले चुनाव से बेफिक्र जद (एस) का कमजोर पड़ना कांग्रेस और भाजपा के लिए सुनहरा मौका.

Text Size:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मैसूर में आयोजित समारोह का जब नेतृत्व कर रहे थे तब कर्नाटक का गौड़ा कुनबा कौन-सा आसन कर रहा था?

उन्हें जंचे तो योग गुरु सूर्य नमस्कार से लेकर शीर्षासन तक या भुजंगासन तक करने का सुझाव दे सकते थे. हर आसान के अपने फायदे हैं. कोई मानसिक चिंता कम कर सकता है, तो कोई शारीरिक ताकत बढ़ा सकता है और भी फायदे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि गौड़ा कुनबा अपने पारिवारिक रत्न जनता दल (एस) पर लेट कर शवासन करना पसंद करेगा. योग गुरु आपको बताएंगे कि तनावमुक्त होने के लिए आप शवासन करें मगर जाग्रत अवस्था में करें, कुंभकर्ण वाले निद्रासन में नहीं. गौड़ा के मामले में इन दोनों के बीच फर्क करना मुश्किल है. कुंभकर्ण आज अगर कर्नाटक में राजनीतिक नेता होता तो वह भी चुनावों में एक के बाद एक हार का मुंह देखने के बाद नींद से जाग जाता. लेकिन गौड़ा कुनबा जागने का नाम नहीं ले रहा.

लगातार हारता जद(एस)

पिछले सप्ताह कर्नाटक विधान परिषद की चार सीटों के द्विवार्षिक चुनाव के नतीजों को देख लीजिए. उन चार सीटों में से दो सीटें जद(एस) के पास थीं मगर वह दोनों हार गया. सबसे उल्लेखनीय नतीजा साउथ ग्रेजुएट्स क्षेत्र का था. ये ग्रेजुएट गौड़ा के गढ़ माने जाने वाले मैसूर, मांड्या, चामराजनगर, और हसन में फैले हैं. लेकिन यह सीट कांग्रेस ने पहली बार जीत कर साबित कर दिया कि पुराने मैसूर क्षेत्र में गौड़ा कुनबे की पकड़ किस तरह ढीली पड़ रही है.

इससे एक सप्ताह पहले ही जद(एस) के विधायक के. श्रीनिवास गौड़ा ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को वोट देकर कांग्रेस के प्रति अपने ‘प्यार’ का इजहार किया था. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने बताया कि उनके एक विधायक एसआर श्रीनिवास ने अपना वोट रद्द करवाने के लिए कोरा मतपत्र बक्से में डाल दिया था.

जाहिर है, गौड़ा का दल बिखर रहा है. पिछले दिसंबर में विधान परिषद के चुनाव में वह अपने कब्जे की चार में से दो सीटें हार.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इससे एक महीना पहले नवंबर में सिंदगी और हंगल विधानसभा सीटों के मध्यावधि चुनाव में उसके उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे. 2018 में 70,000 वोट लेकर जीती सिंदगी सीट पर इस बार वह मात्र 4,300 वोट ही हासिल कर पाया. हंगल में तो जद(एस) उम्मीदवार को पूरे 1000 वोट भी नहीं मिल पाए.

गौड़ा के पतन की वजह

जद(एस) का पतन कोई आठ-नौ महीने की कहानी नहीं है. 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा द्वारा स्थापित यह दल 2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपने शिखर पर पहुंचा, जब उसने कुल 224 सीटों में से 58 सीटें जीती थी. उसके बाद से गिरावट शुरू हो गई- 2008 में 28 सीटें, 2013 में 40 सीटें, और 2018 में 37 सीटें. राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से वह 2014 में 2, और 2019 में 1 सीट ही जीत पाया. 2019 में चुनाव हारने वालों में खुद देवगौड़ा और उनके पोते निखिल भी थे.

आखिर, जद(एस) के साथ क्या हो गया? इसका जवाब इस परिवार की अवसरवादी तथा स्वार्थी राजनीति और गौड़ा कुनबे को आगे बढ़ाने की खुल्लम खुल्ला कोशिशों में मिलता है, जिसके चलते दक्षिण कर्नाटक के उसके वफादार वोक्कालिगा समर्थक भी धीरे-धीरे उससे कट गए. ऊपर से कुमारस्वामी के तानाशाही रवैये ने पार्टी के उनके साथियों को भी अलग-थलग कर दिया.

जद(एस) विधायक दल के नेता ने साउथ ग्रेजुएट्स क्षेत्र के चुनाव में जो रुख अपनाया वह बहुत कुछ बता देता है. सबसे पहले तो उन्होंने उस सीट के वर्तमान पार्टी विधायक का टिकट काट दिया. इसके बाद एक प्रभावशाली पार्टी एमएलसी मारीतिब्बे गौड़ा की उपेक्षा कर दी, जो चाहते थे कि कीलरा जयराम को टिकट दिया जाए. कुमारस्वामी ने उनकी जगह एच.के. रामू को टिकट दे दिया. मारीतिब्बे ने कांग्रेस उम्मीदवार का प्रचार किया. उन्होंने कहा है कि इस चुनाव के बाद वे जद(एस) के टिकट पर कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे.

देवेगौड़ा जब बच्चे थे, एक ज्योतिषी ने उनसे कहा था कि वे एक दिन राजा बनेंगे. गद्दी तक पहुंचने के लिए उन्हें कांग्रेस में, जनता पार्टी और जनता दल और दूसरे दलों में कई लड़ाइयां लड़ने पड़ीं. अंत में, 1999 में उन्होंने जद (एस) बनाई. 1994 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने तक वे कई लड़ाइयों का अनुभव ले चुके थे, जिनमें रामकृष्ण हेगड़े के साथ लड़ाई महान थी.

1996 में में संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए प्रधानमंत्री की खोज की जा रही थी तब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने उनसे गद्दी संभालने के लिए कहा था. गौड़ा ने इसका विरोध किया सौगत श्रीनिवासराजू द्वारा लिखी उनकी जीवनी ‘फरोज़ इन अ फील्ड’ में उनका यह बयान दर्ज है कि ‘मेरा केरियर अचानक समाप्त हो जाएगा कांग्रेस पार्टी हमें ज्यादा दिन तक सरकार चलाने नहीं देगी. सर, मैं आपके जैसा बनना चाहता हूं. मैं कर्नाटक पर कई साल तक शासन करना चाहता हूं… मैं आपसे प्रार्थना करता हूं…’ बसु ने जब ज़ोर दिया तो देवेगौड़ा ने उन्हें मनाने के लिए उनके पांव तक छूए लेकिन कोई फायदा न हुआ. उन्हें अंततः मानना पड़ा. बाकी इतिहास है.“

लेकिन ऐसा लगता है कि पिता के विपरीत, पुत्र कुमारस्वामी सत्ता को अपने लिए दैवी अधिकार मानते हैं. मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने 2006 में कांग्रेस-जद (एस) की गठबंधन सरकार को गिराने के लिए अपनी पार्टी के राजनीतिक या वैचारिक आधार से समझौता करने और भाजपा से हाथ मिलाने से परहेज नहीं किया. या इसके 12 साल बाद उन्हें भाजपा को सत्ता से बाहर रखने और फिर मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस से मेल करने में कोई दिक्कत नहीं हुई. दोनों बार भाजपा ने उनका तख़्ता पलटा.

2006 में अपने बेटे को अपनी धर्मनिरपेक्ष पहचान से समझौता करते देख कथित रूप से आहत हुए पिता अब बेटे कुमारस्वामी की छवि सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. देवेगौड़ा ने अपने जीवनीकार को बताया कि 2019 में नीति आयोग की एक बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कुमारस्वामी को एक तरफ ले जाकर कहा था कि ‘आपके पिता अभी भी कांग्रेसी पॉलिटिक्स के आदी हैं. वे हमारी राजनीति को कबूल नहीं करेंगे लेकिन कांग्रेस आपको खत्म करना चाहती है. आप आज इस्तीफा दे दीजिए, और कल आप हमारे समर्थन से नितीश कुमार की तरह शपथ ले लेंगे. मैं आपको पूरे पांच साल राज करने दूंगा.’ देवगौड़ा ने कहा कि उनके बेटे ने यह कहकर पेशकश ठुकरा दी कि ‘मैं अपने पिता को इस उम्र में दुखी नहीं करना चाहता. वे परेशान हैं. मेरी सरकार रहे या जाए, मैं इस उम्र में पिता की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचा सकता.’ वैसे, भाजपा इस दावे का खंडन कर चुकी है. .

कुमारस्वामी की सत्ता की चाहत ने लोगों को उनसे दूर कर दिया, तो गौड़ा परिवार की उभार और प्रभाव ने भी जद(एस) की कोई मदद नहीं की. पिछले नवंबर में देवेगौड़ा के पोते सूरज रेवन्ना जब एमएलसी बने तब वे राजनीति में उतरने वाले गौड़ा परिवार के आठवें सदस्य बन गए. गौड़ा के दो बेटे कुमारस्वामी और रेवन्ना विधायक हैं. कुमारस्वामी की पत्नी अनीता भी विधायक हैं और रेवन्ना की पत्नी बहवानी ज़िला पंचायत की सदस्य रह चुकी हैं. प्रज्ज्वल रेवन्ना सांसद हैं जबकि सूरज एमएलसी बन गए हैं. कुमारस्वामी के बेटे निखिल जद (एस) की युवा शाखा के अध्यक्ष हैं और लोकसभा चुनाव हार चुके हैं.


यह भी पढ़ें : BJP आलाकमान जब मुख्यमंत्री बनाने या पद से हटाने की बात करे तो तुक और कारण की तलाश न करें


भाजपा, कांग्रेस के लिए मौका

गौड़ा के राजनीतिक पतन में कांग्रेस और भाजपा के लिए संभावनाएं हैं. कांग्रेस के पास पहले ही डी.के. शिवकुमार के रूप में एक प्रमुख वोकलिग्गा नेता मौजूद है, जो उसके प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे हैं. इस सप्ताह मोदी जब कभी ‘गौड़ालैंड’ कहे जाने वाले मैसूर की यात्रा कर रहे हैं, उनके साथ एक युवा वोक्कालिगा नेता, स्थानीय सांसद प्रताप सिम्हा मौजूद होंगे, जिन्होंने दो दशक बाद 2019 में उस सीट पर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की थी, जाबी कांग्रेस और जद(एस) ने मिलकर चुनाव लड़ा था.

कांग्रेस और भाजपा, दोनों को जद (एस) के पतन में अपने लिए सुनहरा मौका नज़र आ रहा है. लेकिन गौड़ा कुनबा बेफिक्र दिख रहा है, जो कि लगातार चुनावी पराजयों के बावजूद उसके लापरवाह रवैये से जाहिर हो रहा है.

अगर आपका कोई योग गुरु है, आपको मालूम हो जाएगा कि कोई शवासन करने के लिए क्यों उत्सुक होता है जबकि इसे कठिन आसनों के बाद किया जाता है. लेकिन गौड़ा कुनबा एक ही आसान, शवासन से सारे लाभ हासिल करना चाहता है. उसे दूसरा जो आसन पसंद है वह है सुखासन, जिसमें ‘सुख’ भी है और ‘आसन’ (यानी गद्दी) भी. जाहिर है, नेता लोगों के योग का अर्थ कुछ अलग ही है.

(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. वह @dksingh73 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : नूपुर शर्मा, जिंदल से आगे बढ़ BJP को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी भूलों को सुधारना होगा


 

share & View comments