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Saturday, 21 December, 2024
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गोस्वामी तुलसीदास ने दिखाई थी राम जन्मभूमि आंदोलन की राह

तुलसीदास, जिन्होंने रामचरितमानस को संस्कृत की रामायण से अवधी में अनुवाद किया, और पूरे उत्तर भारत के घर-घर में भगवान राम को पहुंचाया है.

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सदियों के इंतजार के बाद अब जब अयोध्या 5 अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन के लिए तैयार हो गया है. वह दिन भी उस व्यक्ति के जयंति के साथ ही आया है जिसकी भूमिका राम जन्मभूमि ’आंदोलन के लिए मूल उत्प्रेरक की रही है.

ये हिंदू संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास की युगांतकारी रचना रामचरितमानस है जिससे उत्तर और मध्य भारत के हर घर में भगवान राम की कहानी पहुंचाईं. और जिन्होंने भगवान राम और औसत हिंदू परिवार के बीच भावनात्मक जुड़ाव भी पैदा किया.

आखिरकार यही रामचरितमानस चार शताब्दियों के बाद राम के जन्म स्थान अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए खड़े किए गए आंदोलन का महत्वपूर्ण कारक बना. इस आंदोलन ने तब और बल पकड़ा जब विश्व हिंदू परिषद ने देशव्यापी आंदोलन के लिए मोर्चा संभाला.

400 साल पहले जब उन्होंने रामचरितमानस को स्थानीय भाषा अवधी में लिखा, उससे पहले भगवान राम की कहानी उत्तर और मध्य भारत में वाल्मीकी रामायण के माध्यम से बाची जाती थी. तुलसीदास संस्कृति के विद्वान होते हुए भी उन्होंने इसे अवधी में लिखा. उन्होंने इसे लिखना तो अयोध्या में शुरू किया था लेकिन समाप्त काशी (वाराणसी ) में किया.
गोस्वामी तुलसीदास की जयंती 27 जुलाई सोमवार को है.इस साल, राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने के ठीक पहले.

एक अमेरिकी इंडोलॉजिस्ट और अमेरिका में हिंदी और आधुनिक भारतीय अध्ययन के प्रोफेसर फिलिप लुटगेनडोर्फ ने , द लाइफ़ ऑफ़ ए टेक्स्ट में तुलसीदास के रामचरितमानस में लिखा है कि उत्तरी भारत के धर्म और संस्कृति में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति अपने किसी भी संदर्भ में रामचरितमानस का जिक्र करता है. लुटगेनडोर्फ जिन्हें रामचरितमानस का प्रमुख विशेषज्ञ माना जाता है उन्होंने लिखा है कि ‘कवि तुलसीदास ने 16 वीं सदी में भगवान राम की कथा कहनी शुरू की तो वह आधुनिक भारतीय महाकाव्य के रूप में नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के रूप में कही.’

उन्होंने लिखा, ‘मध्ययुगीन हिंदी काव्य रचनाओं के जादुई बागीचे में सबसे बड़ा पेड़ है. महात्मा गांधी ने भी इसे सभी भक्ति साहित्य में सबसे महान और अच्छी किताब के रूप में चिन्हित किया है.’

पश्चिम के भी कई विद्वानों ने इसे ‘उत्तर भारत का बाइबिल’ कहा है. और इसे ‘अपने लोगों के बीच जीवंत दुनिया में सबसे अच्छी और सबसे भरोसेमंद मार्गदर्शक’ भी कहा.


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तुलसीदास का समय

तुलसीदास के जन्म के समय और साल को लेकर कई भ्रांतियां हैं. उनके जन्म के वर्ष को लेकर कोई निश्चितता नहीं है.
1497 से लेकर 1532 अलग अलग उनके जन्म के वर्ष माने जाते हैं. लेकिन इस बात पर सब एकमत है कि उनका जन्म फिलहाल उत्तर प्रदेश में ही हुआ था. और भारतीय कलेंडर के अनुसार उनका जन्म सावन महीने में हुआ था.

तुलसीदास की जयंति कृष्ण पक्ष के सप्तमी को मनाई जाती है जो इस वर्ष 27 जुलाई को है.

तुलसी दास ने लगभग 12 ग्रंथ लिखे हैं जिसमें सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए हैं ‘रामचरितमानस’ और हनुमान चालीसा.(भगवान हनुमान की स्तुति में 40 श्लोक). आज हनुमान की जो इतना पूजा जाता है उसके पीछे भी तुलसीदास ही हैं. यहां तक कि कवि तुलसीदास ने कई हनुमान मंदिर का निर्माण कराया.  उन्होंने कई ‘अखाड़े’ का निर्माण भी कराया. अखाड़ा में हनुमान की मूर्ति की स्थापना कराने का श्रेय भी तुलसीदास को ही जाता है. यह परंपरा उत्तर और मध्य भारत के अखाड़ों में आज भी देखी जा सकती है.

यह बहुत लोग नहीं जानते की देशभर में जो रामलीला होती है उसके पीछे भी कवि तुलसीदास ही हैं. विजयादश्मी (दशहरे) के समय नौ दिनों तक चलने वाली रामलीला का मंचन सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि साउथ- ईस्ट एशिया के कई देशों भी किया जाता है.

रामचरितमानस की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब प्रवासी मजदूरों को ब्रिटिश शासन के दौरान भारत से मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम और कई अन्य देशों में ले जाया गया, तो वे कविता पाठ करने और रामलीला करने की समृद्ध परंपरा को अपने साथ ले गए, समय के साथ यह परंपरा वहां भी पनप गई.


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हिंदू पुनर्जागरण का एक अग्रदूत

लुटगेनडोर्फ ने लिखा है तुलसीदास वास्तव में मध्यकालीन भारत में हिंदू पुनर्जागरण के सबसे अधिक समझे जाने वाले अग्रदूतों में से एक हैं. ‘किंवदंती के अनुसार तुलसी की सफलता इसलिए थी कि वे सांप्रदायिक मतभेदों को पार करने और हिंदू परंपरा की विविध धाराओं को एक करने में सक्षम रहे.’

इंडोलोजिस्ट और ब्रिटिश सिविल सर्वेंट एफ.एस ग्रोव्स ने तुलसीदास की रामायण (1883) में उनके प्रभाव पर काफी प्रकाश डाला है. उन्होंने लिखा कि इस दौरान ‘वल्लभचारियां और राधा-वल्लभी और मलूक दासियां और प्राण नाथियां हैं, और इनके उत्तराधिकारी हैं, लेकिन तुलसीदास का कोई तुलसीदासी नहीं हैं. वस्तुतः, हालांकि, वैष्णव हिंदू धर्म का पूरा बोलबाला था, उन्होंने जो सिद्धांत प्रतिपादित किए, उसमें उन्होंने हर संप्रदाय को अनुमति दी और स्पष्ट रूप से या निहित रूप से यह लोकप्रिय आस्था का केंद्र बन गया था. बंगाल प्रेसीडेंसी के काल में यह हरिद्वार से लेकर कलकत्ता तक व्याप्त था.

मध्ययुगीन काल में, जब हिंदू समाज कई विभाजनों से जूझ रहा था और लुटगेनडोर्फ के अनुसार, इस्लामिक आक्रमणकारियों के हमले का सामना कर रहा था, उस दौरान रामचरितमानस ने हिंदू समाज को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

लुटगेनडोर्फ ने लिखा है कि ‘पुनर्संयोजन और संश्लेषण वास्तव में तुलसी के महाकाव्य के अंतर्निहित विषय हैं: वैष्णववाद और शैववाद का सामंजस्य एक हीन विहीन दृष्टि के माध्यम से जो शिव को ब्रह्मांड के पिता के रूप में पूजा करने की वकालत करता है, जबकि वे राम के कट्टर भक्त हैं.’

‘निर्गुण और सगुण परंपराओं के बीच एक समान रूप से प्रभाव डाला जाता है – एक निराकार ईश्वर की पूजा और गुणों के साथ एक ईश्वर को माना जाना.

लुटगेनडोर्फ ने आगे कहा,’उनका नायक वाल्मीकि का अनुकरणीय राजकुमार, पुराणों के विष्णु और अद्वैत के पारंगत ब्राह्मण है.’ ‘जो इस तरह के ‘असंगत’ थियोलॉजिकल स्ट्रैंड को एक साथ बुनता है, उसकी कविता भक्तिपूर्ण मनोदशा है, जो सबसे मनोरम संगीतमयता की कविता के माध्यम से परमात्मा के लिए उत्कट प्रेम को व्यक्त करती है.’

फ्रैंक व्हेलिंग अपने द राइज़ ऑफ़ द रिलिजियस सिग्नेचर ऑफ़ राम (1980) में कहते हैं कि तुलसीदास ने भगवान राम को ‘एक नए प्रतीक के बजाय एक अभिन्न अंग’ बनाया है.

(लेखक विचार विनिमय ट्रस्ट के रिसर्च डायरेक्टर हैं और उक्त विचार निजी है)

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