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Tuesday, 25 February, 2025
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जॉर्ज सोरोस फंड और USAID दुनिया भर में एक साथ काम करते हैं

पिछली आधी सदी में USAID ने मानवीय संकट राहत की आड़ में अक्सर अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाया है.

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क्या यह आरोप कि भारत में चुनावों में हेराफेरी करने के लिए USAID का इस्तेमाल किया जा रहा है, महज़ एक बकवास है या इन अफवाहों में कुछ दम है?

पिछले तीन दिनों से — और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के एक हफ्ते बाद — आरोप लगाए जा रहे हैं कि यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में मतदान को प्रभावित करने के लिए 21 मिलियन डॉलर आवंटित किए हैं. एलोन मस्क के नेतृत्व वाली DOGE द्वारा USAID को दिए जाने वाले सरकारी फंड में कटौती किए जाने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “…और भारत में मतदान के लिए 21 मिलियन डॉलर. हम भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दे रहे हैं? उनके पास वहां बहुत सारा पैसा है. हमारे हिसाब से यह दुनिया में सबसे ज़्यादा टैक्स लगाने वाले देशों में से एक है. हम वहां मुश्किल से ही जा सकते हैं क्योंकि उनके टैरिफ बहुत ज़्यादा हैं.” अगले दिन, उन्होंने दोहराया: “और भारत में मतदान के लिए मेरे मित्र, प्रधानमंत्री मोदी को 21 मिलियन डॉलर दिए जा रहे हैं. हम भारत में मतदान के लिए 21 मिलियन डॉलर दे रहे हैं. हमारा क्या? मैं भी मतदान चाहता हूं, गवर्नर?”

विवाद तब शुरू हुआ जब अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने सूचना जारी की, जिसमें बताया गया कि USAID ने भारत में “मतदाता मतदान” पहल के लिए 21 मिलियन डॉलर निर्धारित किए हैं.

सच या हिम्मत?

पुरानी कहावत है कि सच हमेशा सामने आता है. मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा ने लंबे समय से आरोप लगाया है कि भारत के मतदान को प्रभावित करने के प्रयास में एक ‘विदेशी हाथ’ है. मई में 2024 के चुनावों से ठीक पहले, एक राजनीतिक रैली को संबोधित करते हुए, पीएम मोदी ने कहा, “विदेशी शक्तियां भारत के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन वह असफल होने के लिए अभिशप्त हैं.” इससे पहले, अप्रैल 2024 में, एंटनी ब्लिंकन ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें इस बात की आशंका जताई गई थी कि क्या भारत में चुनाव “स्वतंत्र और निष्पक्ष” होंगे, जिसे भारत सरकार ने निश्चित रूप से खारिज कर दिया था.

20 जनवरी 2025 के अपने लेख में, मैंने उल्लेख किया था कि “डेमोक्रेटिक प्रशासन का हस्तक्षेप- कथित तौर पर जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित पहलों से प्रभावित- ने बांग्लादेश संकट, किसानों के विरोध और अन्य गतिविधियों के माध्यम से भारत पर नकारात्मक प्रभाव डाला.”


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मुफ्त भोजन?

USAID की स्थापना 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने अमेरिकी सरकार की मानवीय शाखा के रूप में की थी. इसे गरीब देशों में स्वास्थ्य, भोजन, आर्थिक कल्याण और विकास के लिए अमेरिकी फंड का उपयोग करके सहायता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, साथ ही लोकतांत्रिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए भी. USAID खाद्यान्न की कमी वाले देशों में मुफ्त भोजन प्रदान करता है, लेकिन हम जानते हैं कि मुफ्त भोजन जैसी कोई चीज़ नहीं होती.

पिछली आधी सदी में, USAID ने मानवीय संकट राहत की आड़ में अक्सर अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाया है. इसने विकासशील देशों में वैचारिक घुसपैठ करने और तथाकथित “लोकतांत्रिक सुधारों” को लागू करने के लिए विदेशी सहायता का उपयोग किया है, जिससे अमेरिकी भू-राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हुई है. उदाहरण के लिए अल साल्वाडोर में, सरकार के खिलाफ USAID द्वारा वित्तपोषित विरोध प्रदर्शनों ने राष्ट्रपति नायब बुकेले को यह कहने के लिए प्रेरित किया, “यह स्पष्ट है कि USAID के पैसे के बिना कोई विपक्ष नहीं है.” दो फरवरी को एक्स पर एक पिछली पोस्ट में, उन्होंने कहा, “अधिकांश सरकारें नहीं चाहतीं कि USAID के फंड उनके देशों में आएं क्योंकि वह समझते हैं कि उस पैसे का ज़्यादातर हिस्सा असल में कहां जाता है. विकास, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के समर्थन के रूप में विपणन किए जाने पर, इनमें से अधिकांश निधियों को विपक्षी समूहों, राजनीतिक एजेंडे वाले गैर सरकारी संगठनों और अस्थिर करने वाले आंदोलनों में लगाया जाता है.”

इंडियन एक्सप्रेस ने बाद में रिपोर्ट की थी कि विचाराधीन 21 मिलियन डॉलर वास्तव में बांग्लादेश के लिए निर्धारित थे — भारत के लिए नहीं. दस्तावेज़ का हवाला देते हुए रिपोर्ट ने संकेत दिया कि इन फंड्स का उद्देश्य राष्ट्रीय चुनावों से पहले बांग्लादेशी युवाओं के बीच राजनीतिक और नागरिक जुड़ाव का समर्थन करना था. यूएसएआईडी पर बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों और फंडिंग में हेराफेरी करने का भी आरोप है. आलोचकों का दावा है कि बांग्लादेश के वर्तमान “लोकतांत्रिक” राष्ट्रपति ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति को उखाड़ फेंका और उन्हें भ्रष्ट घोषित कर दिया.

मोदी के बढ़ते प्रभाव से विदेशी खौफ?

जापानी प्रकाशन गृह निक्केई द्वारा प्रकाशित एक लेख में विश्लेषकों के हवाले से कहा गया है कि वैश्विक मंच पर भारत के जनसांख्यिकीय, आर्थिक और राजनीतिक उदय पर मोदी का ध्यान “भारतीय राजनीति में एक नया फैक्टर है”. यह लेख प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की लगातार तीसरी ऐतिहासिक जीत के बाद आया था. यह स्पष्ट हो गया है कि वैश्विक राजनीतिक महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने के खिलाफ काफी बयानबाजी ने भारत के भीतर और विदेशों में कई शक्तिशाली लॉबी को परेशान किया है.

कोविड-19 महामारी के दौरान, जब भारत मैत्रेयी वैक्सीन योजना में विश्व में अग्रणी था, तब इसकी स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सिन को दुनिया भर के देशों में निर्यात किया गया था. अचानक, इसकी स्वीकृति प्रक्रिया और प्रभावकारिता के बारे में अफवाहें फैलने लगीं. USAID के अपने मीडिया प्रचार में कहा गया है कि “USAID द्वारा समर्थित प्रयासों ने COVID-19 टीकाकरण की मांग, पहुंच और उपयोग को बढ़ाया है, जिससे सीधे तौर पर 15.6 मिलियन से अधिक लोगों को COVID-19 टीके मिलने और 55 मिलियन से अधिक लोगों को भारत भर में COVID-19 के बारे में विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली है.” हालांकि, ऐसा लगता है कि भारत की आबादी को टीका लगाने के लिए कोवैक्सिन का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है; इसके बजाय, यूएसएआईडी के प्रभाव में विदेशी टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.

राहुल गांधी का ‘लोकतंत्र की मौत’ वाला बयान

10 दिसंबर 2024 को दिप्रिंट के लिए लिखे गए पिछले कॉलम में मैंने बताया था कि कैसे राहुल गांधी ने सितंबर 2024 में अपने “लोकतंत्र की मौत” दौरे के दौरान विदेशी धरती पर भारत की आलोचना की थी. गांधी की यात्रा का आयोजन और प्रायोजन इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस ने किया था, जिसका नेतृत्व उनके “पारिवारिक मित्र” सैम पित्रोदा कर रहे थे. 2009 में पित्रोदा ने ग्लोबल नॉलेज इनिशिएटिव (GKI) की सह-स्थापना की थी, जिसे कथित तौर पर अमेरिकी संगठनों से फंडिंग मिली है. GKI का उद्देश्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में चुनौतियों का समाधान करने के लिए वैश्विक ज्ञान साझेदारी का निर्माण करना है.

संसद में ग्रेटा थनबर्ग के खुलासे से लेकर हाल ही तक गांधी परिवार के संबंधों और पित्रोदा के यूएसएआईडी से संबंधों को लेकर सवाल उठाए गए हैं. यह स्पष्ट होता जा रहा है कि गांधी के “लोकतंत्र की मौत” वाले बयान और भारत में लोकतंत्र की “सुरक्षा” के लिए कथित तौर पर अमेरिकी फंडिंग के बीच संबंध है.

जॉर्ज सोरोस और USAID

ऐसा लगता है कि सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) — जो दुनिया भर में विभिन्न परोपकारी गतिविधियों में संलग्न है और USAID द्वारा वित्तपोषित पहलों के बीच एक मजबूत संबंध है. हालांकि, OSF स्वतंत्र रूप से काम करता है, लेकिन USAID और OSF दोनों से समर्थन प्राप्त करने वाले संगठनों ने कभी-कभी लोकतंत्र और नागरिक समाज को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं पर सहयोग किया है. क्या उस सहयोग को गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” से जोड़ा जा सकता है?

हाल की रिपोर्टें बताती हैं कि पिछले 15 वर्षों में, ईस्ट-वेस्ट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट — OSF के साथ भागीदारी करने वाला एक संगठन, को USAID से 270 मिलियन डॉलर से अधिक अनुदान मिला. ये फंड्स पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया सहित विभिन्न देशों में लोकतांत्रिक संस्थानों और नागरिक समाज को मजबूत करने के उद्देश्य से कार्यक्रमों के लिए आवंटित की गईं. ट्रंप सहित कुछ आलोचकों ने आरोप लगाया है कि इस तरह के सहयोग का इस्तेमाल भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में राजनीतिक परिणामों को प्रभावित करने के लिए किया गया था. हालांकि, OSF का कहना है कि इसकी पहल केवल खुले समाजों का समर्थन करने के लिए है और सरकारों को अस्थिर करने के लिए नहीं बनाई गई है.

भारत के चुनावों को प्रभावित करने के लिए USAID के कथित वित्तपोषण से जुड़े आरोपों ने भारत की स्थिर लोकतांत्रिक प्रणाली में विदेशी हस्तक्षेप के बारे में गुप्त गतिविधियों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और वास्तविक चिंताओं के एक जटिल जाल का पर्दाफाश किया है. ऐसी खबरों के बीच कि विवादास्पद 21 मिलियन डॉलर बांग्लादेश के लिए थे, यह घटना संप्रभु राष्ट्रों के भीतर विदेशी-वित्तपोषित गतिविधियों की सतर्कता, पारदर्शिता और गहन जांच की ज़रूरत को रेखांकित करती है. वर्तमान अमेरिकी प्रशासन के लिए यह भी उचित होगा कि वह इन फंड्स को भेजने वाले व्यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करके मेजबान देशों की सहायता करे.

यह सुनिश्चित करना कि विकास सहायता मेजबान देश के हितों के अनुरूप हो और उसकी संप्रभुता का सम्मान करे, विश्वास बनाए रखने और वास्तविक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए सर्वोपरि है. इसके अलावा, भारत में पढ़े-लिखे एलीट क्लास को अपनी मोदी विरोधी प्रतिक्रियाओं पर लगाम लगानी चाहिए और गंभीरता से आकलन करना चाहिए कि लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार है.

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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