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Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतजी-20 की अध्यक्षता ने मोदी के भारत को ग्लोबल स्पॉटलाइट में ला दिया, अपेक्षाएं पहले ही बहुत बढ़ गई हैं

जी-20 की अध्यक्षता ने मोदी के भारत को ग्लोबल स्पॉटलाइट में ला दिया, अपेक्षाएं पहले ही बहुत बढ़ गई हैं

उद्योग जगत को लगता है कि भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना एक ऐसा मौका हैं जिसका वे लाभ उठा सकते हैं, जैसा सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी कहते हैं कि यह बिजनेस के लिए एक दुर्लभ अवसर है.

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भारत ने 1 दिसंबर 2022 को बाकायदा जी-20 की अध्यक्षता संभाल ली और सरकार ने भी यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि हर किसी को इसके बारे में पता चल जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर एक खास लेख लिखा, जिसे उनके कैबिनेट सहयोगी तुरंत ही साझा करने में जुट गए. समाचार चैनल और ऑप-एड इस पर टिप्पणी से भरे पड़े थे कि कैसे यह भारत के लिए एक बड़ा अवसर है.

सरकार ने घोषणा की कि इस मौके पर देशभर के 100 स्मारकों को रोशन किया जाएगा और वहां सप्ताह तक भारत की जी-20 अध्यक्षता से जुड़ा लोगो प्रदर्शित होता रहेगा.

जहां तक न्यूजमेकर का सवाल है, केंद्र सरकार की मशीनरी और उत्साही मीडिया ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि पिछला सप्ताह बिना किसी संदेह जी-20 अध्यक्षता के नाम पर रहे. और, 1 दिसंबर की सुबह अधिकांश नेशनल न्यूजपेपर के पूरे-पूरे पन्ने के विज्ञापन बतौर जी-20 अध्यक्ष भारत के कार्यकाल की शुरुआत पर केंद्रित थे. और इसीलिए भारत का जी-20 अध्यक्ष बनना दिप्रिंट का न्यूजमेकर ऑफ द वीक है.

सरकार का लक्ष्य, भारत की चुनौतियां

प्रधानमंत्री ने अपने लेख में भारत की जी-20 अध्यक्षता के संदर्भ में एक आशावादी, आदर्शवादी, और कुछ हद तक थोड़ा अवास्तविक दृष्टिकोण सामने रखा. इसमें उन्होंने कहा कि यह ‘एकता की सार्वभौमिक भावना’ को बढ़ावा देने का काम करेगा. इसकी थीम—’एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है.

पीएम मोदी ने लिखा, ‘जी-20 की पिछली 17 अध्यक्षताओं के दौरान वृहद आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतरराष्ट्रीय कराधान को तर्कसंगत बनाने और विभिन्न देशों के सिर से कर्ज के बोझ को कम करने समेत कई महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘हम इन उपलब्धियों से लाभान्वित होंगे तथा यहां से और आगे की ओर बढ़ेंगे. अब, जबकि भारत ने इस महत्वपूर्ण पद को ग्रहण किया है, मैं अपने आपसे यह पूछता हूं- क्या G-20 अभी भी और आगे बढ़ सकता है? क्या हम समग्र मानवता के कल्याण के लिए मानसिकता में मूलभूत बदलाव लाने की पहल कर सकते हैं? मेरा विश्वास है कि हां, हम ऐसा कर सकते हैं.’

बहरहाल, ऐसे समय में जब देश कोविड-19 महामारी के बाद खुद को अपने हितों तक समेट रहे हैं और यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर फिर से फोकस किया जा रहा है, तो वसुधैव कुटुम्बकम जैसी भावनाओं को बढ़ावा देना चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है.

सरकार इन चुनौतियों से अवगत है, जैसा गुरुवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर की तरफ से दिए गए बयानों से भी साफ है.

जयशंकर ने कहा, ‘आज दुनिया विभिन्न गुटों में बंटी है. यहां तक कि बाली में सम्पन्न जी-20 की पिछली बैठक में भी सभी को एक मंच पर लाना एक वास्तविक चुनौती थी.’


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ऑल-आउट अपॉर्च्युनिटी, ग्लोबल स्पॉटलाइट

गौरतलब है, यहां तक भारत के बिजनेस लीडर्स को भी लगता है कि भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना एक ऐसा मौका हैं जिसका वे लाभ उठा सकते हैं, जैसा सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी कहते हैं कि यह बिजनेस के लिए एक दुर्लभ अवसर है.

बनर्जी ने द हिंदू बिजनेस लाइन में लिखा, ‘ऐसे समय में जबकि भू-राजनीतिक स्थितियों में स्पष्ट बदलाव हो रहे हैं, जी-20 अध्यक्ष के तौर पर भारत की भूमिका वैश्विक स्थिरता लाने और वृहद आर्थिक समन्वय बढ़ाने पर केंद्रित होगी. क्योंकि इस समय पूरी दुनिया महामारी और यूक्रेन में जंग के असर से उबरने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से दुष्प्रभावों से निपटने में जुटी है.’

जी-20 अध्यक्षता संभालने का एक बड़ा फायदा यह है कि इसने भारत को वैश्विक स्तर पर सुर्खियों में ला दिया है. वैसे आकांक्षाएं तो पहले से ही बहुत ज्यादा हैं. अक्टूबर में ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने बता दिया था कि वह भारत के नेतृत्व के दौरान क्या हासिल किए जाने की उम्मीद करते हैं. यह काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है.

गुटेरस ने यह उम्मीद तो जताई ही कि भारत का नेतृत्व ऋण पुनर्गठन की प्रभावी प्रणाली बनाने की अनुमति देगा—जो कि ऐसा मुद्दा है जिससे भारत खुद आंतरिक तौर पर जूझ रहा है—साथ ही उस अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और आर्थिक प्रणाली को खत्म करने की वकालत भी की जो ‘काफी हद तक अमीरों द्वारा और अमीरों के लिए ही बनाई गई थी.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत की जी-20 अध्यक्षता बहुपक्षीय विकास बैंकों की संभावना के लिए ऋण पुनर्गठन और ऋण राहत की व्यवस्था के निर्माण की अनुमति देगी, जो खासकर कमजोर मध्यम आय वाले देशों को रियायती वित्त पोषण मुहैया कराने में सक्षम होंगे.’

भारत सरकार भी इस तरह ग्लोबल स्पॉटलाइट में आने का मतलब समझती है और उसने पहले ही कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जिनके राजनीतिक निहितार्थ अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में असर डालने वाले हैं. टिप्पणीकार इस जानकारी से अनभिज्ञ नहीं होंगे कि भारत ने जम्मू-कश्मीर में जी-20 से जुड़े कुछ कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बनाई और यह पाकिस्तान और चीन के लिए एक राजनीतिक संदेश है.

भारत की जी-20 अध्यक्षता में अंतर्निहित नारा वसुधैव कुटुम्बकम ही है, जिसे प्रधानमंत्री कुछ इस तरह कहते हैं कि यह ‘दुनिया के प्रति भारत की कल्याणकारी भावना का प्रतीक है.’ सद्भावना दिखाने के लिए बहुत कुछ है. हमारे पड़ोस में ही श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. यूक्रेन संकट सबके सामने है. महामारी कम हुई है, लेकिन पूरी तरह गई नहीं है. दुनिया का एक बड़ा हिस्सा बिना टीकों के रह गया है.

भारत के पास इन और ऐसे ही अन्य अत्यावश्यक मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए पूरा एक साल है. जी-20 एक बेहद प्रभावशाली समूह बन सकता है. इसके सदस्य दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 80 प्रतिशत, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में लगभग इतने ही अनुपात में और वैश्विक आबादी में करीब 60 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस समूह के निर्णय दुनियाभर के लिए एक सशक्त संकेत होते हैं. और अब भारत को ही यह सुनिश्चित करना है कि आने वाला वर्ष प्रभावशाली साबित हों.

(व्यक्त विचार निजी हैं.)


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