कोरोना काल के इस महासंकट को यूएन की तसदीक की कोई जरूरत नहीं थी. यह हमारे चारों ओर दिख रहा है और साफ दिख रहा है. राजधानी दिल्ली से लेकर झारखंड के सुदूर गांवों तक, करोड़ों लोगों के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं. करोड़ों परिवार ऐसे हैं, जिनके पास न तो राशन कार्ड हैं और न कोई आई कार्ड और न आधार कार्ड. लिहाजा इनमें से ज्यादातर लोगों को, न तो पीडीएस के जरिये राशन मिल रहा और न ही सरकार की ओर से किए जा रहे तात्कालिक उपायों से इन तक खाना पहुंच पा रहा है.
भारत में भुखमरी कोई नई बात नहीं है. देश के पिछड़े इलाकों से अक्सर भूख से मौतों की खबरें आती रहती हैं. करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 119 देशों की लिस्ट में भारत श्रीलंका और पाकिस्तान से भी पीछे 102वें नंबर पर है. कोरोनावायरस संक्रमण को काबू करने के लिए देश में लागू लॉकडाउन के बाद तो हालात और खराब हो गए हैं. घरों से बाहर निकलने और इस वजह से काम करने पर लगी पाबंदी ने उन करोड़ों गरीब परिवार को दाने-दाने का मोहताज कर दिया है, जो पीडीएस के दायरे में नहीं आते.
अनाज की कमी नहीं है
ये हालात तब हैं जब देश में अनाज के गोदाम ठसाठस भरे हुए हैं. अनाज रखने की जगह नहीं और इसका बड़ा हिस्सा सड़ रहा है. केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान कह चुके हैं कि अगले नौ महीने के लिए अनाज देश में मौजूद है. याद रहे कि रबी की नई उपज भी इसमें जुड़ने वाली है. इसके बावजूद अगर झारखंड, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से लेकर देश से बड़े शहरों से लोगों के भूखे रहने की खबरें आ रही हैं तो पांच ट्रिलियन की इकोनॉमी का सपना देखने वाले इस देश की नीतियों में कुछ समस्या जरूर है.
लॉकडाउन के दौरान घोषित राहत पैकेज के मुताबिक सरकार ने पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) दुकानों के जरिये हर देशवासी को अतिरिक्त पांच किलो अनाज और एक किलो दाल तीन महीने तक फ्री देने का ऐलान किया था. लेकिन इस देश में लगभग 10 करोड़ गरीब लोग पीडीएस के दायरे से बाहर हैं. उनके पास राशन कार्ड नहीं है. इसी बड़ी आबादी पर आज इस भयावह दौर में भुखमरी का संकट मंडरा रहा है.
झारखंड से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र तक एक बड़ी आबादी के पास खाने को कुछ नहीं है. लॉकडाउन ने इनकी मेहनत-मजदूरी का रास्ता बंद कर दिया है. अब इनके पास जो भी बचा-खुचा है, वो भी खत्म हो रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के एक गांव में लोगों ने बताया कि तीन-तीन दिन तक भूखा रहना पड़ रहा है या पानी पीकर गुजारा करना पड़ रहा है. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में 50 आदिवासी परिवारों को जानवरों के चारे में इस्तेमाल होने वाली चीजें खाकर गुजारना करना पड़ रहा है. गंभीर बात यह है कि लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा आदिवासियों और दलितों पर वार किया है, जो हाशिये पर हैं. ये उन दस करोड़ लोगों में शामिल हैं, जिन्हें पीडीएस का राशन नहीं मिलता.
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पीडीएस के दायरे में क्यों नहीं हैं देश के दस करोड़ गरीब?
देश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2013 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू हुआ था. इसके तहत 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को केंद्र सरकार हर महीने सस्ते दर पर पांच किलो अनाज देती है. यह आबादी पूरे देश की आबादी का लगभग 67 फीसदी है. केंद्र सरकार यह अनाज राज्य सरकारों को सप्लाई करती है, जो पीडीएस के जरिये इसे लोगों में बांटती है.
2011 की जनगणना के मुताबिक देश की आबादी 1.22 अरब थी. 67 फीसदी के हिसाब से पीडीएस के दायरे में आने वाली आबादी बैठती है, 81.40 करोड़ के आसपास. इस बीच दस साल बीत गए और अनुमान के मुताबिक देश की आबादी लगभग दस करोड़ बढ़ चुकी है. लेकिन केंद्र सरकार बढ़ी हुई आबादी के हिसाब से पीडीएस कवरेज बढ़ाने की राज्य सरकार की मांग अनसुनी करती आ रही है. लिहाजा राज्यों को 2011 की जनगणना के हिसाब से पीडीएस कवरेज में आए लोगों के लिए अनाज मिल रहा है.
ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा और मेघना मुंगेकर के एक अध्ययन ने दिखाया है कि इस बीच देश की बढ़ी हुई आबादी के हिसाब से कम से कम 9.22 करोड़ और लोग पीडीएस के दायरे में आने चाहिए. लेकिन केंद्र सरकार इस आबादी को इसमें शामिल करने के लिए तैयार नहीं है. वह 2011 की जनगणना के मुताबिक पीडीएस के दायरे में आए लोगों के लिए ही अनाज जारी कर रही है. जब तक केंद्र सरकार आबादी में बढ़ोतरी के हिसाब से राज्यवार पीडीएस कवरेज को अपडेट नहीं करेगी तब तक राज्यों को बांटने के लिए ज्यादा सस्ता अनाज नहीं मिलेगा. केंद्र के इस रुख की वजह से राज्य नए राशन कार्ड नहीं जारी कर रहे हैं.
हर किसी को मिले अनाज
खाद्य सुरक्षा कार्यकर्ता लंबे समय से पीडीएस यूनिवर्सलाइजेशन की मांग कर रहे हैं. यानी देश के हर नागरिक को पीडीएस के दायरे में लाए जाने की मांग. कोरोना संकट को देखते हुए हर किसी को अनाज देने के लिए यूपी, दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना समेत कुछ राज्यों ने ऐलान किया है जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें भी अनाज मिलेगा.
लेकिन दिल्ली जैसे राज्य में इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया गया है. दिल्ली में जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें राशन लेने के लिए अपने फोन नंबर डाल कर खुद को ऑनलाइन एऩरॉल कराना पड़ता है. इसके बाद उनके नंबर पर एक ओटीपी (OTP) आता है. फिर आधार अपलोड और परिवार का फोटो डालना पड़ता है. इसके बाद एक ई-कूपन मिलता है, जिसे राशन बांटने वाले के पास खोलना पड़ता है.
आप समझ सकते हैं कि कितने गरीबों के पास स्मार्ट फोन होंगे और कितने लोग इस जटिल प्रक्रिया के जरिये राशन ले पाएंगे. इससे पीडीएस यूनिवर्सलाइजेशन का सारा उद्देश्य ही नाकाम हो जाता है. जिन लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं है, आधार कार्ड नहीं है कोई चुनाव पहचान पत्र नहीं है, वे इसके जरिये कैसे राशन लेंगे. इसलिए देश के हर नागरिक को पीडीएस के दायरे में लाया जाना चाहिए, ये अलग बात है कि वे इसका लाभ लेना चाहते हों नहीं. यूनिवर्सलाइजेशन का प्रक्रिया भी सरल होनी चाहिए. तमिलनाडु में हर कोई पीडीएस के दायरे में है, और वहां यह योजना सफल रही है.
ठसाठस भरे हैं गोदाम फिर भी लोग खाने को मोहताज
देश में इस वक्त अनाज के गोदाम ठसाठस भरे हैं. एफसीआई के गोदामों में कम से साढ़े सात करोड़ टन अनाज भरा हुआ है. यह अभूतपूर्व स्थिति है. इससे पहले इतना अनाज एफसीआई के गोदामों में कभी नहीं रहा था. इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने लिखा है, ‘इस साल मार्च में देश में अऩाज का स्टॉक 7.70 करोड़ टन पहुंच गया. रबी की फसल कटाई के बाद इसमें और दो करोड़ टन का इजाफा हो सकता है. इतना अनाज भारत के सार्वजनिक भंडारों में कभी जमा नहीं हुआ था. लेकिन दूसरी ओर हालात ये हैं कि लॉकडाउन में लोगों की रोजी-रोटी पर चोट पड़ने से बड़ी आबादी के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है.’
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इस हालात के लिए जिम्मेदार कौन?
सरकार को तुरंत एक अध्यादेश लाकर खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पीडीएस कवरेज को अपडेट करने के कदम उठाने चाहिए ताकि इससे महरूम रह गए दस करोड़ लोगों को इसमें शामिल किया जाए. इससे भी जरूरी यह है कि सबको राशन देने के कदम उठाए जाएं. इसके साथ ही केंद्र सरकार तुरंत एफसीआई से ज्यादा स्टॉक रिलीज करवाए. इस वक्त उसे फूड सब्सिडी बढ़ने की चिंता छोड़ देनी चाहिए. दरअसल स्टॉक रिलीज करने और इसके ट्रांसपोर्टेशन के खर्चे का जिम्मा लेने से केंद्र सरकार हिचकिचाती है. वह इसका अधिक जिम्मा राज्यों के सिर पर डालना चाहती है, जो पहले ही कैश संकट से जूझ रहे हैं. जबकि अतिरिक्त अनाज रिलीज करने से एफसीआई का पैसा ही बचेगा क्योंकि अनाज भंडारण में खासी रकम खर्च होती है.
केंद्र सरकार को यह रवैया बदलना होगा. इस वक्त केंद्र की ओर से राज्यों को मुफ्त में या मामूली कीमत पर ज्यादा अनाज रिलीज करना चाहिए. इस अनाज से हर महीने लोगों का कोटा तो बढ़ेगा ही साथ ही जो लोग पीडीएस दायरे से बाहर हैं उन्हें भी भोजन मिलेगा. यह बढ़ा हुआ अनाज कोरोना के संकट काल में ज्यादा से ज्यादा कम्यूनिटी किचन बनाने में मददगार साबित होगा. जब लोगों की रोजी-रोटी छिन गई तो राज्यों को मिलने वाला ज्यादा अनाज महंगाई को भी काबू में रखेगा.
अब एक बार यूएन के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के डायरेक्टर डेविड बिस्ले की चेतावनी याद कर लें. उन्होंने कहा है कि दुनिया भुखमरी के कगार पर खड़ी है. कोरोना संकट के इस दौर में अगर वक्त रहते कदम नहीं उठाए गए तो दुनिया भुखमरी की महामारी का सामना करेगी. जाहिर है, इसमें भारत की दस करोड़ आबादी का एक बड़ा हिस्सा शामिल होगा.
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य पर शोध किया है)