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Friday, 22 November, 2024
होमदेशअर्थजगतMcD से मोदी सरकार तक, महंगाई और विपक्ष- टमाटर की कीमतों ने किसी को नहीं बख्शा, क्या यह अगला प्याज है?

McD से मोदी सरकार तक, महंगाई और विपक्ष- टमाटर की कीमतों ने किसी को नहीं बख्शा, क्या यह अगला प्याज है?

बढ़ती कीमतों ने ताज़े टमाटरों के विकल्पों के लिए बाज़ार तैयार कर दिया है. गूगल ट्रेंड्स डेटा से पता चलता है कि लोग टमाटर प्यूरी और केचप की ओर रुख कर रहे हैं.

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मैकडॉनल्ड्स से लेकर केंद्र सरकार तक – टमाटर ने इस सप्ताह आम आदमी की जेब ढीली कर दी है. 12 जुलाई को औसत कीमतें 110 रुपये प्रति किलो तक पहुंचने के साथ, अमेरिकी फास्ट फूड दिग्गज ने इसे मेन्यु से हटा दिया है और सरकार ने रियायती कीमतों पर टमाटर (आसानी से मिल सकने वाले रोज़ाना के सामान) उपलब्ध कराने के लिए हस्तक्षेप किया.

इस फल/सब्जी की कीमत दो महीने से भी कम समय में 400 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है. उपभोक्ता मामलों के विभाग के मूल्य निगरानी प्रभाग के आंकड़ों के अनुसार, 31 मई को टमाटर की औसत कीमत 25 रुपये प्रति किलो थी. लेकिन जून के अंत तक, टमाटर की कीमतें लगभग दोगुनी होकर 50 रुपये प्रति किलो हो गईं, और 5 जुलाई तक 90 रुपये प्रति किलो और एक हफ्ते बाद 110 रुपये तक पहुंच गईं. वास्तव में बठिंडा जैसे शहरों में कीमत 203 रुपये प्रति किलोग्राम तक थी. अगर सुनील शेट्टी की बातों पर विश्वास किया जाए तो सेलिब्रिटी भी कम टमाटर खा रहे हैं.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट टीम

टमाटर की बढ़ती कीमतें विदेशों में भी सुर्खियां बनी हुई हैं. सीएनएन ने बताया कि यह आवश्यक सामग्री अब मेनू से बाहर हो गई है. टमाटर की कीमतों को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक उठापटक के कारण ही यह दिप्रिंट का न्यूज़मेकर ऑफ द वीक है.

टमाटर की राजनीति

विशेषज्ञों के यह कहने के बावजूद कि मुद्रास्फीति अनियमित और तेज़ मौसम और फसल संक्रमण के कारण होती है, विपक्ष ने जून के अंत में अनियंत्रित वृद्धि और हस्तक्षेप की कमी के लिए मोदी सरकार की खिंचाई की.


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सरकार ने अंततः 12 जुलाई को हस्तक्षेप किया. इसने उपभोक्ता मामलों के विभाग, राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (NAFED), और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (NCCF) को दिल्ली-एनसीआर में बेचने के लिए आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र से टमाटर खरीदने का निर्देश दिया. इन टमाटरों को मूल्य नियंत्रित किया जाएगा और 90 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर बेचा जाएगा.

इससे पता चलता है कि कैसे खाद्य कीमतें हमारी राजनीति को आकार देती रहती हैं.

प्याज भी ऐसे राजनीतिक विवादों के केंद्र में रहा है और सत्तारूढ़ सरकारों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है.

1980 में इंदिरा गांधी के अभियान के दौरान, उन्होंने रैलियों के दौरान प्याज की माला लहराते हुए प्याज की कीमतों को मुद्दा बनाया. वह चुनाव जीत गईं. माना जाता है कि 1998 में प्याज की कीमतों में 100 रुपये प्रति किलो की बढ़ोत्तरी के कारण बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गई थी. अगर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर इसका आकलन किया जाए तो आज के हिसाब से इसकी कीमत 500 रुपये प्रति किलो होगी.

1998 की इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, दिवंगत व्यंग्यकार-सह-हास्य अभिनेता जसपाल भट्टी ब्लैक-कैट कमांडो के साथ चंडीगढ़ के एक बाजार में प्याज खरीदने पहुंचे, जिसकी कीमत उस समय 65 रुपये प्रति किलो थी. वह इन ‘कीमती वस्तुओं’ को खरीदने के लिए सुरक्षा चाहते थे.

हालांकि, यह देखना अभी बाकी है कि 2023 में टमाटर की कीमतों का कोई स्थायी राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा या नहीं, इसने इसी तरह की हरकतों को प्रेरित किया है. 9 जुलाई को, उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति ने अपने ठेले पर टमाटरों की “सुरक्षा” के लिए दो बाउंसरों को काम पर रखा. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी सरकार को टमाटरों को ‘जेड प्लस’ सुरक्षा देनी चाहिए. हालांकि, यह पता चला कि समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता ने विरोध प्रदर्शन के लिए एक सब्जी विक्रेता के स्टॉल का इस्तेमाल किया था. बाद में, विक्रेता और पार्टी कार्यकर्ता पर विभिन्न आरोपों में मामला दर्ज किया गया, जिसमें वर्गों के बीच नफरत, दुश्मनी या दुर्भावना को बढ़ावा देना भी शामिल था.

कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट ने कर्नाटक में टमाटर लदे ट्रक को लूटे जाने की घटना पर व्यंग्य किया.

विकल्प तलाश रहे हैं

सांभर से लेकर मखनी ग्रेवी तक, टमाटर अधिकांश भारतीय रसोई में अपरिहार्य हैं. और बढ़ती कीमतों ने ताज़े टमाटरों के विकल्पों (Alternatives) के लिए बाज़ार तैयार कर दिया है. भारतीय अब टमाटर प्यूरी की ओर रुख कर रहे हैं.

गूगल ट्रेंड्स डेटा से पता चलता है कि ‘टमाटर प्यूरी’ शब्द के सर्च में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, खासकर दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में.

लोग प्यूरी बेचने वाले ब्रांडों के नाम टाइप कर रहे हैं, इसे ऑनलाइन खरीदने की कोशिश कर रहे हैं और प्रति किलोग्राम इसकी कीमत की तुलना ताज़े टमाटरों से कर रहे हैं. मांग इतनी बढ़ गई है कि ट्विटर उपयोगकर्ताओं ने बताया है कि ऑनलाइन डिलीवरी प्लेटफॉर्म पर प्यूरी स्टॉक से बाहर है. टमाटर केचप के लिए भी गूगल सर्च में वृद्धि हुई है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
ग्राफिकः रमनदीप कौर । दिप्रिंट टीम

हालांकि, भारत ने अपने समग्र उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति पर कुछ नियंत्रण हासिल कर लिया है, लेकिन टमाटर की बढ़ती कीमतें इस संतुलन को बिगाड़ सकती हैं.

अभी तक, यह महत्वपूर्ण आर्थिक आंकड़ा उन कठिनाइयों को सटीक तौर पर नहीं दिखा पा रहा है जिनका कि लोग ज़मीनी तौर पर सामना कर रहे हैं.

(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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