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Sunday, 28 April, 2024
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शाहिद अज़ीज़ : शीर्ष पाकिस्तानी जनरल जो बाद में इस्लामिक स्टेट का आतंकी बना और जिहाद में मारा गया

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एक सेना, वैचारिक रूप से प्रेरित बहुत सारे कट्टरपंथियों को वरिष्ठ पदों पर आसीन होने और सेवानिवृत्ति के बाद उनकी विचारधारा के अनुसार स्वच्छंद होने की अनुमति नहीं दे सकती।

पेशेवर सेना के सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों का आतंकवादियों के साथ उन सैनिकों पर हमला करते हुए, जिनका कभी वे नेतृत्व किया करते थे, ख़त्म हो जाना काफी असामान्य है।

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल शाहिद अजीज़, जिनकी 37 साल की पाकिस्तानी सेना की सेवा में सैन्य अभियानों के महानिदेशक के रूप में पोस्टिंग, अक्टूबर 2001 से दिसंबर 2003 तक जनरल स्टाफ के चीफ तथा दिसंबर 2003 से अक्टूबर 2005 तक लाहौर में IV कोर के कमांडर के रूप में सेवा शामिल है, की हाल ही में प्रस्तुत गाथा एक आधुनिक सेना की पेशेवरता को एक विचारधारा में परिवर्तित होने के खतरे को इंगित करती है।

सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद, अज़ीज़ को नेशनल एकाउंटेबिलिटी ब्यूरो का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, इस पद को इन्होंने मई 2007 में छोड़ दिया था। हालांकि उनका दिल जिहाद में लगा हुआ था। जनरल परवेज मुशर्रफ, जिनके अंतर्गत लेफ्टिनेंट जनरल अज़ीज़ ने शीर्ष पदों पर कार्य किया था, ने हाल ही में एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा कि उन्हें अज़ीज़ की लंबी दाढ़ी बढ़ाने, आईएसआईएस या अन्य जिहादी समूहों के साथ लड़ने के लिए सीरिया जाने और वहाँ मारे जाने के बारे में पता था । अन्य रिपोर्टों में पता चला कि कई महीने पहले “अमेरिकी सैनिकों के पक्ष में उन्होंने जो किया था उसकी भरपाई करने के लिए” वह अफगानिस्तान चले गए थे और अफगानिस्तान में ही उनकी मृत्यु हो गई थी।

कुछ समय से अज़ीज़ का कोई पता नहीं चला है और उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने पुष्टि की है कि उन्होंने जनवरी-फरवरी 2016 के करीब देश छोड़ दिया था। वह अपना मोबाइल फोन घर पर ही छोड़कर गायब हो गये थे। परिवार को ईमेल और एसएमएस संदेश के माध्यम से उनके जिंदा और सही सलामत होने की सूचना मिलती थी, लेकिन फिर कई महीनों से ये संदेश मिलने बंद हो गए थे।

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रिपोर्टों से पता चला है कि वह पाकिस्तान से सीमा पार अफगानिस्तान के कुनार में चले गए थे और वहाँ जाकर खुरासान में इस्लामिक स्टेट की सेना में शामिल हो गए थे। इसके बाद रिपोर्टें आईं थी कि वे सीरिया चले गए और वहाँ वह जलालाबाद, अफगानिस्तान या सीरिया में अमेरिकी बमबारी में मारे गए थे।

हाल ही में, अज़ीज़ के बेटे ने अपने पिता की मृत्यु और हाल ही की गतिविधियों के बारे में प्राप्त रिपोर्टों से इंकार कर दिया है। उसने वॉइस ऑफ अमेरिका को बताया कि उसके पिता अफ्रीका में एक तब्लीग मिशन (धर्म प्रचार) पर थे। उनके बेटे के अनुसार, “जनरल अज़ीज़ एक बहुत ही निजी जीवन व्यतीत करते हैं” और “अपनी यात्रा/तब्लीग के विषय में कोई भी सार्वजनिक प्रशंसा या नाम नहीं चाहते हैं।“

अज़ीज़ के परिवार के लिए एक उम्मीद है कि उनका बेटा सही है लेकिन सबूतों से स्पष्ट है कि उसका बयान परिवार के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना के चेहरे को बचाने के लिए है। जैसा कि उनके बेटे ने बताया अज़ीज़ कभी भी एक निजी व्यक्ति नहीं थे और हमेशा ही अपने धार्मिक और राजनीतिक कार्यों में काफी सार्वजनिक रहे।

अज़ीज़ की अतिवाद की स्वीकृति

सेवानिवृत्त जनरल ने 2013 में अपनी पुस्तक “ये खामोशी कहाँ तकः एक सिपाही की दास्तान-ए-इश्क-ओ-जुनून” में एक इस्लामिक पाकिस्तान के लिए अपनी प्राथमिकता का खुलासा किया था। अज़ीज़ पाकिस्तानी सेना के कोई मामूली इंसान नहीं थे। वह कश्मीर में लड़े और उनको राष्ट्रीय सुरक्षा विश्वविद्यालय में प्रशिक्षित किया गया था। एक मेजर जनरल के रूप में उन्होंने 1999 में आईएसआई के विश्लेषण विंग और सैन्य कार्यवाई के महानिदेशक (डीजीएमओ) का नेतृत्व किया था और यह नवाज शरीफ की निर्वाचित सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने की योजना और उसके निष्पादन में शामिल थे।

9/11 हमलों के बाद 2001 में अज़ीज़ ने सीजीएस के रूप में सेवा दी थी, यह पद प्रायः सेना प्रमुख के पद के लिए एक सीढ़ी है, लेकिन उन्हें यह अवसर न मिल पाने के पीछे कोई षडयंत्र नहीं था बल्कि कुछ ऐसा था जो दुर्भाग्यपूर्ण था और ज्यादातर सेनाएं इससे अज्ञात थीं।

अपनी पुस्तक में अज़ीज़ यूएस डॉलर बिल पर ‘आई ऑफ दज्जाल‘ (ईसा मसीह का शत्रु) की बात करते हैं। यूएस डॉलर बिल उनके लिए गुप्त संस्था के सदस्यों द्वारा चलाये गये भव्य षडयंत्रों और अमेरिकन नवरूढ़िवाद के साथ लीग में बहुत सारे शक्तिशाली परिवारों का प्रतीक है।

उनके वैश्विक दृष्टिकोण में, दुनिया भर के सभी प्रमुख कार्यक्रम ‘जीओन के बुजुर्गों के प्रोटोकॉल में उल्लिखित यहूदी साजिश के अनुरूप’ थे वह भी इस तथ्य के बावजूद कि प्रोटोकॉल एक यहूदी-विरोधी यूरोपीय जालसाजी साबित हुए हैं। उनके लिए आधुनिक दुनिया की पैशाचिक जीवन शैली में केवन कुरान ही रास्ते में खड़ी है।

अमेरिका के साथ मिलकर और पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बनकर किए गए गलत कार्यों की भरपाई करने के लिए आईएसआईएस में शामिल होने की उनकी इच्छा शायद उनकी इस धारणा से प्रेरित थी कि एक सेना, जिसमें उन्होंने 37 साल काम किया, शैतानियत में विलीन हो गई थी।

लम्बा इतिहास

इस स्थिति में पाकिस्तानी सेना के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी हैं जिन्होंने चरमपंथ के सच्चे आस्तिक बनने से लेकर एक पेशेवर सेना की ओर से सामरिक कार्यवाही के रूप में जिहादी गतिविधियों के प्रायोजक होने तक अपने आप को परिवर्तित किया है। इसमें सबसे प्रमुख उदाहरण एक अन्य विचारक लेफ्टीनेंट जनरल हामिद गुल का है – जो विश्व की छठी सबसे बड़ी सेना का नेतृत्व करने के बहुत करीब थे।

गुल ने पाकिस्तान के दो शीर्ष हमलों की रचना की कमान संभाली और सैन्य खुफिया (एमआई) और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) एजेंसी दोनों की अध्यक्षता की। उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह एलान किया था कि वह गैर-इस्लाम आधारित राज्य को स्वीकार नहीं कर सकते और अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क तक उनके पहुंचने में और पाकिस्तान के अंदर तालिबान के उदय का समर्थन करने में वह कुछ भी गलत नहीं देखते।

गुल ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(पीपीपी) को उखाड़ फेंकने के लिए सेना में रहते हुए 1990 चुनाव को अपने वश में करने की शेखी बघारी थी। उन्होंने कहा था कि उनकी सभी कार्यवाहियों का लक्ष्य, बाहरी और आंतरिक दुश्मनों से पाकिस्तान की रक्षा करने का था। यहां तक कि वह उस समय भी अपनी बातों पर कायम रहे जब उन्होंने समादेश श्रृंखला से हटकर कार्य किया था या देश के संविधान का उल्लंघन किया था।

षडयंत्रकारी सिद्धांतों, इस्लामवादी विचारधारा और पाकिस्तान की अवधारणा को स्थायी रूप से खतरे में डालने वाले सामान्य अधिकारियों की लंबी सूची में शामिल कुछ अधिकारी निम्नलिखित हैं – जैसे कि पूर्व आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जावेद नासिर, जो भूतपूर्व युगोस्लाविया में मुजाहिद्दीन को हथियारबंद करने के दौरान अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के बारे में श़ेखी बघार रहे थे और मेजर जनरल जहीरुल इस्लाम अब्बासी, जिन्हें 1995 में कुरान और सुन्नत पर आधारित शासन बनाने के लिए ‘इस्लामी तख्तापलट’ की योजना का प्रयास करते समय गिरफ्तार कर लिया गया था।

इसके बाद उत्तरी कैरोलिना में, संयुक्त राज्य अमेरिका के फोर्ट ब्रैग में प्रशिक्षित एक विशेष संचालन अधिकारी ब्रिगेडियर अमीर सुल्तान तारार, जिन्होंने तालिबान की तरफ से लड़ते हुए ‘कर्नल इमाम’ के रूप में प्रसिद्धि अर्जित की थी, जिसे उन्होंने प्रशिक्षित किया था। ‘कर्नल इमाम’ ने 9/11 के बाद अमेरिका के साथ जाने के जनरल मुशर्रफ के फैसले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और अफगान तालिबान को सार्वजनिक रूप से अपना समर्थन दिया था। हालांकि, तालिबान उनकी निष्ठा के बारे में आश्वस्त नहीं था। मार्च 2010 में ब्रिगेडियर तारार को उनके साथी पूर्व आईएसआई अधिकारी, स्क्वाड्रन नेता खालिद खवाजा, ब्रिटिश पत्रकार असद कुरैशी और उनके ड्राइवर रुस्तम खान के साथ एक अलग हो चुके जिहादी समूह द्वारा अगवा कर लिया गया था। हालांकि कुरैशी और उनके ड्राइवर को सितंबर में रिहा कर दिया गया था, अपहरण के एक महीने बाद ख्वाजा की हत्या कर दी गई थी और जनवरी 2011 में अल-कायदा के सहयोगी लश्कर-ए-झांगवी अल-अलामी द्वारा ब्रिगेडियर तारार की भी हत्या कर दी गई।

इन अधिकारियों की कहानियों को पाकिस्तान के सशस्त्र बल के शीर्ष नेताओं को इसे चिंता के एक विषय के रूप में बताया जाना चाहिए।

एक सेना, वैचारिक रूप से प्रेरित बहुत सारे कट्टरपंथियों को वरिष्ठ पदों पर आसीन होने और सेवानिवृत्ति के बाद उनकी विचारधारा के अनुसार स्वच्छंद होने की अनुमति नहीं दे सकती। हामिद गुल से शाहिद अज़ीज़ तक, पाकिस्तानी सैन्य अकादमी के कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति उन समूहों के साथ जुड़कर ख़त्म हो गए, जिन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला किया और उन्हें मार डाला। यह एक हास्य जनक अनुकरण है जिसे गुप्त रखने के बजाय इसका अध्ययन किया जाना चाहिए और इसे समझना चाहिए।

मौजूदा सीओएएस, जनरल कमर बाजवा ने सार्वजनिक रूप से उनके संस्थान द्वारा उग्रवादी विचारधारा को गले लगाने के अध्याय को समाप्त करने की अपनी अभिलाषा के बारे में बात की है। यदि ऐसा होता है, तो यह जरूरी है कि उन वैचारिक विकृतियों पर पाकिस्तान खुलेआम चर्चा करे जिनकी वज़ह से इसके कुछ सेवानिवृत्त जनरल आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे समूहों से जुड़े। क्या गलत हुआ यह जाने बिना कार्यप्रणाली में सुधार संभव नहीं है।

वॉशिंगटन डीसी में हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण और मध्य एशिया के निदेशक हुसैन हक्कानी 2008 से 2011 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत थे। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘रिइमेजिनिंग पाकिस्तान’ है।

Read in English: From key Pakistani general to ISIS terrorist ‘killed’ in Jihad, the chilling saga of Shahid Aziz

 

 

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