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Wednesday, 24 April, 2024
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मोदी ने चार सालों में सिर्फ मिडिल क्लास ही नहीं आरएसएस को भी दिया धोखा

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संघ की निराशा का कारण धारा 370, यूनिफार्म सिविल कोड , राम मंदिर एवं आर्थिक नीतियों में मतभेद से आगे है।

रेंद्र मोदी सरकार एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के प्रति व्यवसाइयों, किसानों, अल्पसंख्यकों, दलितों एवं बेरोजगारों की नाराज़गी पर वृहद विमर्श हो चुका है।

सरकार की बड़ी विफलताओं में से एक, जो ज़्यादातर चर्चाओं में नहीं सुनने को मिलती, यह है कि सरकार अपने वैचारिक गुरु, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आकांक्षाओं को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रही है। 2014 के लोक सभा चुनावों के पूर्व संघ ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया था । उनका उद्देश्य भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के साथ-साथ अपनी स्थिति को मजबूत करना भी था।

संघ की निराशा का कारण धारा 370, यूनिफार्म सिविल कोड , राम मंदिर एवं आर्थिक नीतियों में मतभेद से आगे है जिसको लेकर संघ के नेताओं ने भाजपा के फैसलों का बार-बार विरोध किया है।

आरएसएस और भाजपा के बीच के मतभेदों का असली कारण कुछ और ही है। 2014 की भाजपा सरकार विकास के एजेंडे पर बनी । संघ ने भी इस सरकार के माध्यम से हिंदुत्व की रक्षा के अपने रोडमैप पर आगे बढ़ने की सोची। संघ की विभिन्न इकाइयों द्वारा किया जा रहे काम के मूल में धर्म परिवर्तन का मुद्दा है। उत्तरपूर्वी राज्यों एवं आदिवासी समुदायों में धर्म परिवर्तन के सफल होने का कारण ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रदान की जा रही गुणवत्तापूर्ण सेवा है। संघ के सदस्यों ने बार बार कहा है कि सरकार इन इलाकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं एवं अन्य सुविधाएं देने में विफल रही है जिसके नतीजतन मिशनरी गतिविधियों को बढ़ावा मिला है।

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मिशनरी संस्थाओं द्वारा स्थापित स्कूल गुणवत्ता के मामले में अन्य निजी स्कूलों से कहीं आगे हैं। यही नहीं, ये स्कूल भारत के कोने कोने में फैले हैं। इन मिशनरी संस्थाओं ने झारखंड के जंगलों में स्कूल एवं अस्पताल खोले जिसके फलस्वरूप धार्मिक परिवर्तन को बढ़ावा मिला ।

संघ के पदाधिकारियों को बहुत पहले यह पता चल गया था कि मिशनरियों के बढ़ते प्रभुत्व को रोकना तभी संभव है जब सरकार या तो जनता को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करे या फिर संघ स्वयं इस क्षेत्र में एक प्रतिभागी के तौर पर सुविधाएं प्रदान करे।

यही वह मुद्दा था जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मोदी सरकार से सहायता की उम्मीद थी।

आरएसएस शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार के क्षेत्रों में कई स्वयंसेवक संस्थाएं एवं एनजीओ का संचालन करता है। 1979 में आरएसएस सरसंघचालक बालासाहेब देवरस ने एक एनजीओ सेवा भारती की स्थापना की थी जो लगातार सक्रिय तौर पर सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचितों की सहायता करता आ रहा है। उसी तरह आरएसएस द्वारा समर्थित विद्या भारती देश में निजी विद्यालयों के सबसे बड़े नेटवर्क का संचालन करती है और 1977 से ही इस क्षेत्र में सक्रिय है। सरस्वती शिशु मंदिर एवं सरस्वती विद्या मंदिर जैसे लगभग 12,000 स्कूलों में काम करने के बावजूद संघ एक वृहद छाप छोड़ने में असफल रहा है। इसका कारण है संघ द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं का गुणवत्ता के मामले में कमतर होना। इसके अलावा मिशनरी संस्थाओं के पास संघ की तुलना में पैसे भी ज़्यादा हैं ।

प्रधानमंत्री मोदी स्वयं भी संघ द्वारा समर्थित संस्थाओं की निम्न गुणवत्ता पर टिप्पणी कर चुके हैं । 2016 की शुरुआत में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के प्रधानाध्यापकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने विद्या भारती विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने की इच्छा जताई

आरएसएस का एक बड़ा तबका इस उम्मीद में था कि अन्य निजी संस्थानों की गुणवत्ता को चुनौती देने की दिशा में मोदी सरकार उनका साथ देगी। यह सरकारी स्कीमों एवं कारपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड के माध्यम से संभव भी था।

भाजपा और आरएसएस, दोनों ही दलों के सदस्यों ने देश के हर ज़िले में संघ-समर्थित स्कूल एवं अस्पताल खोलने की बात की है। विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी जैसे लोगों की राष्ट्रीय सेवा संगम, जोकि 2015 में आरएसएस द्वारा बुलाया गया एक एनजीओ सम्मेलन था, में शिरकत करने से इस दिशा में उम्मीदें जगीं थीं। रतन टाटा एवं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच सामाजिक कार्यों को लेकर एक मुलाकात भी हुई थी । इसे संघ की बदकिस्मती ही कहेंगे कि इन मुलाकातों का कोई नतीजा नहीं निकला।

साल 2017 तक इस दिशा में कुछ किये जाने की उम्मीदें बरकरार थीं। लेकिन अब तो आरएसएस एवं भाजपा के हलकों में भी इस विषय पर बातचीत बंद हो गयी है। 2019 के चुनाव को लेकर बनाये जा रहे इस ध्रुवीकरण के माहौल में इस तरह के सकारात्मक प्रयासों के विचार भी आरएसएस कार्यकर्ताओं के दिलोदिमाग में आएंगे, ऐसा मुश्किल है।
यह बिल्कुल साफ हो चला है कि भाजपा के 2019 के चुनाव को लेकर बने राजनैतिक एजेंडे ने आरएसएस द्वारा कुछ भी सकारात्मक किये जाने की उम्मीद को खत्म कर दिया है।

अपनी संस्थाओं को मजबूती प्रदान करने की बजाय भाजपा का ज़ोर मुस्लिमों एवं ईसाइयों के चरित्र हनन पर रहा है ताकि एक एकीकृत हिन्दू वोट बैंक का निर्माण हो सके। यही मोदी एवं शाह की असली हार है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में अर्थशास्त्र के विद्यार्थी रह चुके शिवम शंकर सिंह ने भाजपा के उत्तरपूर्व के चुनावी अभियान के दौरान डेटा एनालिटिक्स का काम किया है। इसके अलावा वे एक लेजिस्लेटिव असिस्टेंट टु मेंबर्स ऑफ पार्लियामेंट फेलो भी रहे हैं।

Read in English: Four years of Narendra Modi have not just failed India’s middle class but also the RSS

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