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Sunday, 22 December, 2024
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कांग्रेस मुक्त भारत छोड़िये, क्या भाजपा बिना किसी सहयोगी के 2019 में चुनाव लड़ने की योजना बना रही है?

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भाजपा महत्वाकांक्षी है और अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहता है जबकि सहयोगियों को भाजपा पर संदेह है।

क्या जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी के साथ विभाजन के बाद भाजपा की कोई गठबंधन रणनीति है?

राजनीतिक विश्लेषक 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की योजनाओं को जानने के लिए उत्सुक हैं, क्योंकि भाजपा अपने अतीत में गठबंधन दलों को एक साथ रखने में कामयाब नहीं रही है। क्या अपने खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने और कई उप चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के खतरे के बावजूद भाजपा अकेले आगे बढ़ने का विश्वास रखती है?

बीजेपी की गठबंधन राजनीति 1998 में प्रमुख रूप से शुरू हुई जब अटल बिहारी वाजपेयी ने 24 साझेदारों के साथ एनडीए सरकार बनाई और 2004 तक शासन किया। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपनी सरकार बनाई, हालांकि भाजपा के पास बहुमत था, तो भी उन्होंने चुनाव पूर्व सहयोगियों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके उन्हें समायोजित किया।

अब एक अलग कहानी है जिसमें अधिकांश गठबंधन सहयोगी खुलेआम भाजपा के ‘बड़े भाई’ वाले रवैये से असंतोष व्यक्त किया है। बीजेपी के चार मुख्य सहयोगी शिवसेना, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) रहे हैं। इनमें से टीडीपी और पीडीपी के साथ संबंधों को तोड़ दिया गया है जबकि शिवसेना ने 2019 चुनावों के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन से इंकार कर दिया है। अकाली दल भी बीजेपी से बहुत खुश नहीं है।

विषम परिस्थितियों की मार

बीजेपी और उनके सबसे पुराने साथी शिवसेना के बीच कड़वाहट, 2014 के बाद बढ़ने लगी, जब भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में मुंबई में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से  मुलाकात की थी उसके बावजूद दोनों पक्षों के बीच मतभेद को हल नहीं हुए हैं। 2014 में शिवसेना ने 18 लोकसभा सीटें जीती थीं।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में टीडीपी एनडीए में अंदर और बाहर होती रही है। भुक्तभोगी नायडू ने, यह दावा करते हुए कि 2014 में राज्य के विभाजित होने पर वादा करने के बावजूद राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं दिया था, मार्च में एनडीए को छोड़ने का फैसला कर लिया। शिवसेना के बाद टीडीपी, लोकसभा में 16 सीटों के साथ, भाजपा की सबसे बड़ी गठबंधन सहयोगी थी।

पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सबसे विचित्र था जिसे बाद में पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बीच गठबंधन के रूप में संबोधित किया था। बीजेपी ने यह समझने में तीन साल से अधिक समय लगा दिया कि यह गधबंधन सही नहीं था । आतंकवादी हमलों और बढ़ते सार्वजनिक क्रोध के चलते महबूबा मुफ्ती सरकार चलाने में सक्षम नहीं थी। बीजेपी ने पीडीपी के साथ संबंधों को अलग करने में अग्रणी भूमिका निभाई।

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन रोलर कोस्टर सवारी के समान बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है। एसएडी का मानना है कि बीजेपी, जो राज्य में कनिष्ठ सहयोगी (जूनियर पार्टनर) है, गठबंधन धर्म का पालन नहीं कर रही है। पंजाब विधानसभा चुनाव में हार के बाद, दोनों पक्षों के बीच संबंध तनावग्रस्त हो गया है। लोकसभा में एसएडी की चार सीटें हैं।

नीतीश कुमार की अगुआई वाली जनता दल (यूनाइटेड) की एनडीए में वापसी की वजह से छोटी पार्टियां हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (एचएएम) और राष्ट्रीय लोक समित पार्टी (आरएलएसपी) भी भाजपा से नाराज़ हैं। अगले कुछ महीनों में ही, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की एचएएम पार्टी ने भी एनडीए को छोड़ दिया।

सहयोगियों को मनाना

2019 में हालात 2014 के जैसे नहीं हैं। बीजेपी ने अपना आधार बढ़ाया है और राज्यसभा में भी कांग्रेस को पीछे छोड़कर सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। इसकी जीत जारी है क्योंकि 20 राज्यों में एनडीए की सरकार है।

अधिकांश बड़े राज्यों में इसकी बड़ी उपस्थिति है और अब आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु पर इसकी नजर है। भगवा पार्टी ने त्रिपुरा में भी वामपंथी पार्टी को हटा कर सरकार बना ली है  और पश्चिम बंगाल और ओडिशा में  कांग्रेस को किनारे करते हुए सत्तारूढ़ दल के लिए एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामने आई है।

हांलाकि पार्टी विरोधाभासी संकेत भेज रही है। हाल ही में मिली उपचुनावों में हार से तिलमिलाई बीजेपी ने सहयोगियों को मनाना चालू कर दिया है। मई में जो उपचुनाव आयोजित किए गए थे उनमें बीजेपी और सहयोगी चार लोकसभा सीटों में से दो और 10 विधानसभा सीटों में से एक ही सीट जीतने में कामयाब रहे।

उपचुनावों में दोहराई गई हार पर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाह ने कहा कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने कहा, “एनडीए को अपने सहयोगियों के साथ चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलानी चाहिए।”

परिणामों के बारे में चिंतित, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, सामाजिक योगदान प्रयास के हिस्से के रूप में, उद्धव ठाकरे के मातोश्री में उनको मनाने पहुचे। शाह ने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के नेता राम विलास पासवान से मुलाकात की, जो बीजेपी से नाखुश हैं। बीजेपी ने लंगर के लिए इस्तेमाल की गई वस्तुओं पर जीएसटी हटाकर अकाली दल को खुश करने की कोशिश की।

बीजेपी के अथक प्रयास का परिणाम उस समय आया जब कांग्रेस, जो पतन पर है, भाजपा को चुनौती देने के लिए राज्य-दर-राज्य गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस को सहयोगियों की आवश्यकता महसूस हुई है। विपक्ष की पूरी रणनीति 2019 के लोकसभा चुनावों में भगवा पार्टी को हराने के लिए है।

एनडीए के भीतरी परिदृश्य के साथ इसकी तुलना करें, जिसने हाल ही में प्रमुख सहयोगियों को खो दिया है, भले ही बाकी अपनी भविष्य की रणनीति का पुन: मूल्यांकन कर रहे हैं। बीजेपी महत्वाकांक्षी है और विस्तार करना चाहती है जबकि सहयोगी पार्टियां भाजपा पर भरोसा नहीं दिखा रही हैं । सवाल यह है कि क्या बीजेपी एक सहयोगी मुक्त दल बनना चाहती है या क्या यह सहयोगियों की भावनाओं को समझते हुए गठबंधन का पुनर्निर्माण करेगी?

Read in English : Forget Congress-mukt Bharat, is BJP planning an ally-mukt party for 2019?

 

 

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