नीति आयोग ने ये सुझाव दिया है कि सिविल सर्विस में रिक्रूटमेंट के लिए जनरल कटेगरी के कैंडिडेट की अपर एज लिमिट 27 साल कर दी जाए. ये सुझाव इस सोच के तहत दिया गया है कि इससे प्रशासनिक क्षमता बेहतर होगी. अभी जनरल कटेगरी के कैंडिडेट 32 साल की उम्र तक सिविल सर्विस की परीक्षा देते हैं. नीति आयोग जनरल कटेगरी के कैंडिडेट के बारे में तो बोलता है, लेकिन आयोग इस बारे में खामोश है कि रिजर्व कटेगरी के यानी एससी, एसटी और ओबीसी कटेगरी के कैंडिडेट की एज लिमिट कितनी हो. चूंकि सिविल सर्विस के आधे (49.5%) कैंडिडेट इन कटेगरी से आते हैं, इसलिए अगर प्रशासनिक क्षमता बेहतर करनी है तो इन कटेगरी के कैंडिडेट की उम्र सीमा भी घटाई जानी चाहिए. हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि सिविल सर्विस की उम्र सीमा बदलने का कोई प्रस्ताव उसके पास नहीं है.
अभी यूपीएससी सिविल सर्विस की जो परीक्षा लेती है उसमें अधिकतम उम्र और अटैंप्ट की संख्या इस प्रकार है.
जनरल यानी ओपन कटेगरी: 32 साल- 6 अटैंप्ट
ओबीसी: 35 साल- 9 अटैंप्ट
एससी-एसटी: 37 साल- अटैंप्ट कोई लिमिट नहीं
सवाल उठता है कि सरकार एससी-एसटी और ओबीसी कैंडिडेट को एज और अटैंप्ट में छूट देती क्यों है? इस छूट की किसी ने कभी मांग नहीं की है और न ही इसके लिए किसी ने कोई आंदोलन किया है. सिविल सर्विस परीक्षा में रिजर्वेशन का नियम संविधान के अनुच्छेद 16(4) से आया है, जो वंचित तबकों के लिए उन सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान करता है, जहां उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, लेकिन इसमें एज या अटैंप्ट में छूट की कोई बात नहीं है.
इस छूट के बारे में सरकार का कोई दस्तावेज नहीं बताता कि इसके पीछे तर्क क्या है और पहली बार इसकी मांग किसने की थी. यूपीएससी का सिविल सर्विस एग्जाम का नोटिफिकेशन, यूपीएससी की वेबसाइट और डीओपीटी मंत्रालय की वेबसाइट इस बारे में कुछ नहीं कहती.
इसके बारे में सिर्फ कुछ आम धारणाएं हैं. जैसे कि सरकार एससी-एसटी-ओबीसी की भलाई के लिए ऐसा करती है. या कि एससी-एसटी-ओबीसी के लोग ज्यादातर गांव में रहते हैं और देर से पढ़ाई शुरू करते हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा उम्र तक सर्विस में आने की सुविधा मिलनी चाहिए या फिर एससी-एसटी-ओबीसी के अभी पर्याप्त कैंडिडेट नहीं हैं. उम्र की छूट से ज्यादा कैंडिडेट इन कटेगरी में आएंगे.
हर साल 10 लाख से ज्यादा कैंडिडेट सिविल सर्विस की 1,000 से कम सीटों के लिए अप्लाई करते हैं. सरकार अप्लाई करने वाले कैंडिडेट का जातिवार आंकड़ा जारी नहीं करती. इसलिए हम पक्के तौर पर ये नहीं कह सकते कि इन कैंडिडेट में एससी-एसटी-ओबीसी कितने हैं.
लेकिन हम ये जानते हैं कि सरकार संविधान लागू होने के बाद से शिक्षा में एससी-एसटी को आबादी के अनुपात में और ओबीसी को 2006 से उच्च शिक्षा में 27 फीसदी के हिसाब से आरक्षण दे रही है. ये आरक्षण आईआईटी, मेडिकल, आईआईएम से लेकर तमाम केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में लागू हैं. राज्यों में भी शिक्षा में आरक्षण है. इन संस्थानों से अब आधे या उससे ज्यादा छात्र रिजर्व कटेगरी से निकल रहे हैं. देश में 799 यूनिवर्सिटी, 39,071 कॉलेज और 11.929 अन्य इंस्टिट्यूट हैं. सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि इन संस्थानों से हर साल 39.78 लाख ग्रेजुएट निकलते हैं. इन संस्थानों में एनरोल होने वालों में 13.9 फीसदी एससी, 4.9 फीसदी एसटी और 33.75 फीसदी ओबीसी छात्र हैं. मतलब कि एससी-एसटी-ओबीसी के स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
सिविल सर्विस के लिए अप्लाई करने की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता ग्रेजुएशन है. इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि रिजर्व कटेगरी के लाखों कैंडिडेट सिविल सर्विस के लिए अप्लाई करते होंगे. मिसाल के तौर पर 2018 में सिविल सर्विस के लिए सिर्फ 782 लोगों का सेलेक्शन होना है. यानी यूपीएससी को इस साल रिजर्व कटेगरी के लाखों एप्लिकेंट्स में से 400 से भी कम अफसर चुनने हैं. उम्र की छूट से सिर्फ ये होगा कि इन कटेगरी में कंपिटिशन बढ़ जाएगा, क्योंकि कैंडिडेट की संख्या बढ़ जाएगी.
तो ऐसी क्या मजबूरी है कि यूपीएससी एससी-एसटी-ओबीसी के कैंडिडेट के लिए उम्र सीमा ज्यादा रखती है? मान भी लें कि उम्र सीमा ज्यादा होने से हर साल एससी-एसटी-ओबीसी के एक लाख या 50 हजार ज्यादा कैंडिडेट अप्लाई करते हैं, तो इससे बदलता क्या है? सेलेक्शन तो उतने ही लोगों का होना है, जिनके लिए विज्ञापन निकला है. इससे एससी-एसटी-ओबीसी का क्या भला हो रहा है?
भलाई की बात तो नहीं मालूम, लेकिन इससे एक दिक्कत जरूर हो रही है.
चूंकि इन सभी अफसरों की रिटायरमेंट की उम्र समान यानी 60 साल है, इसलिए एससी-एसटी-ओबीसी के जो भी कैंडिडेट उम्र की छूट पाकर सर्विस में आएंगे, उनकी सर्विस के कुल साल कम हो जाएंगे. मिसाल के तौर पर जनरल कटेगरी का एक अफसर 32 साल की उम्र में सर्विस जॉइन करके जब 60 साल में रिटायर होगा तब उसकी सर्विस के 28 साल पूरे हो चुके होंगे. जबकि 37 साल की उम्र में उसके साथ जॉइन करने वाला एससी-एसटी का अफसर सिर्फ 23 साल सर्विस करके रिटायर होगा. ये पांच साल का फर्क बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि 23वें साल के बाद के पांच साल में कोई अफसर अपने करिअर के सबसे ऊपर के पदों पर होगा. सिद्धांत के रूप में देखे तो सिविल सर्विस के दो अफसरों की सर्विस में 17 साल तक का अंतर हो सकता है, क्योंकि एक अफसर 21 साल में और दूसरा अफसर 37 साल में सर्विस में आ सकता है.
इसका असर भारत सरकार के टॉप के पदों पर वर्षों से नजर आ रहा है. मिसाल के तौर पर,
- केंद्र सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के 85 सेक्रेटरी में एससी-एसटी के सिर्फ 4 अफसर हैं. एंट्री लेवल पर 22.5 फीसदी अफसर एससी-एसटी के रिक्रूट हो रहे हैं. अगर उनके करिअर प्रोग्रेसन के मौके समान होते तो कम से कम 17 सेक्रेटरी एससी-एसटी के होते. चूंकि इस स्तर पर प्रमोशन में आरक्षण भी नहीं है, तो एससी-एसटी अफसरों के लिए टॉप पर पहुंचना और भी मुश्किल हो जाता है.
- 2012 में तो हालात और बुरे थे, जब सेक्रेटरी स्तर के कुल 149 पदों में से एससी का एक भी अफसर नहीं था. एडिशनल सेक्रेटरी के 108 पदों में से एससी और एसटी के मिलाकर सिर्फ 4 अफसर थे.
- 2015 में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन विभाग के राज्य मंत्री ने जानकारी दी कि केंद्र सरकार में 70 में से एससी-एसटी के सिर्फ 6 अफसर हैं. इस पद पर कोई ओबीसी नहीं है. 278 ज्वायंट सेक्रेटरी में सिर्फ 34 एससी-एसटी हैं. सिर्फ 10 ओबीसी इस पद पर हैं. ये ही वे पद हैं जो बड़े फैसले करते हैं और नीतियां बनाते हैं.
- सबसे ताजा आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार का कहना है कि केंद्र में सेक्रेटरी के 66 पद हैं, जिनमें सिर्फ 4 एससी-एसटी के हैं. जबकि ज्वांयट सेक्रेटरी के 174 पदों में सिर्फ 26 पर एससी-एसटी के अफसर हैं. इसी के साथ सरकार ने ये भी बताया कि प्रमोशन में आरक्षण ग्रुप ए की नौकरी में प्रवेश के बाद नहीं मिलता.
इसमें कोई शक नहीं है कि केंद्र सरकार के उच्च पदों पर एससी-एसटी-ओबीसी की संख्या चिंताजनक रूप से कम है. ऐसे में अगर एंट्री लेवल पर इन कटेगरी से ज्यादा उम्र के अफसरों को भरा जाएगा तो हालात सुधरने की उम्मीद कम ही रहेगी, क्योंकि उनकी सर्विस के वर्ष कम होंगे और वे टॉप पर नहीं पहुंच पाएंगे.
ऐसे में उचित होगा कि-
- अभी जो कैंडिडेट सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए. उनके हितों को सुरक्षित रखते हुए कोई भी परिवर्तन पांच साल में फेज्ड तरीके से लागू किया जाए.
- आज से पांच साल बाद से सिविल सर्विस में हर कटेगरी के कैंडिडेट के लिए उम्र और एटेंप्ट की संख्या समान कर दी जाए.
- अगर ये संभव नहीं हो पाया, तो तमाम अफसरों के लिए सर्विस के वर्ष समान कर दिए जाएं, जो अफसर सर्विस में देर से आए, वह देर से रिटायर हो.
- ज्यादा उम्र में सिविल सर्विस में आने वाले रिजर्व कटेगरी के कैंडिडेट के साथ एक समस्या यह भी होती है कि उनका आत्मविश्वास कम हो सकता है और वे अपने कलीग का पर्याप्त सम्मान भी हासिल नहीं कर पाते.
इसके अलावा 35 और 37 साल तक की उम्र तक एक ऐसी परीक्षा की तैयारी करना, जिसमें कामयाबी के मौके बेहद कम हों, कई तरह से इनके जीवन को प्रभावित करता है. इनमें से कई कैंडिडेट इस उम्र में नया कुछ भी कर पाने के लायक नहीं रह जाते. यह देश के बहुमूल्य मानव संसाधन का दुरुपयोग भी है.