हाल के समय में कोविड महामारी के कारण जनसाधारण को इतनी कठिनाईयां सहनी पड़ी हैं कि आगामी केन्द्रीय बजट में उन्हें बड़ी राहत मिलनी ही चाहिए. इस संदर्भ में हाल ही में 25 जनवरी को जारी की गई आक्सफैम इंडिया विषमता रिपोर्ट में न्यायसंगत राजस्व व जरूरी खर्चों के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य व सुझाव दिए गए हैं.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के हमले से पहले ही भारत का सकल घरेलू उत्पाद कठिन दौर में था. वर्ष 2017-18 में संवृद्धि दर 7 प्रतिशत थी. वर्ष 2018-19 में यह 6.1 प्रतिशत पर सिमट गई और वर्ष 2019-20 में और भी कम होकर 4.2 प्रतिशत पर. यह मुख्य रूप से विमुद्रीकरण व जीएसटी के क्रियान्वयन के कारण हुआ, जिससे नकदी पर चलने वाला अनौपचारिक क्षेत्र व छोटे उद्यम बुरी तरह प्रभावित हुए.
कोविड-19 से यह स्थिति और बिगड़ गई, सकल घरेलू उत्पादन (जीएसटी) की संवृद्धि दर और कम हो गई तथा इसका देश की राजस्व प्राप्ति पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है. यह अनुमानित है कि नौमीनल जीएसटी वर्ष 2020-21 में वर्ष 2019-20 जितना ही रहेगा.
महामारी के कारण जो वित्तीय आवश्यकताएं उत्पन्न हुई हैं उनकी पूर्ति पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. देश के कुल रेवेन्यु का 73 प्रतिशत हिस्सा करों के रूप में प्राप्त होता है. अप्रत्यक्ष करों (कस्टम ड्यूटी व जीएसटी) का हिस्सा वर्ष 2014-15 (वास्तविक) में 44 प्रतिशत था जबकि वर्ष 2018-19 (बजट अनुमान) में यह बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया. वर्ष 2019-20 (बजट अनुमान) में यह 46 प्रतिशत है. इससे पता चलता है कि इस समय भी कस्टम ड्यूटी व जीएसटी पर भारी निर्भरता बनी हुई है.
इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020-21 वित्तीय वर्ष के लिए कुल कर रेवेन्यू प्राप्ति का लक्ष्य 16.35 लाख करोड़ रुपए था. अभी तक अपेक्षाकृत कम भाग ही प्राप्त हुआ है. सितंबर 2020 तक बजट-अनुमान का 50 प्रतिशत खर्च हो चुका था जबकि कुल प्राप्ति का एक तिहाई ही प्राप्त हुआ था. यदि कर – जीडीपी का अनुपात बढ़ाने के लिए जीएसटी पर निर्भरता बढ़ाई जाती है तो देश में असमानता और बढ़ेगी क्योंकि जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है व यह गरीब व अमीर पर एक ही दर से लगता है. इस कमी को दूर करने के लिए जीएसटी की पैसे वालों व गरीबों के लिए अलग दर हो सकती है, या आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी पूरी तरह हटाया जा सकता है. इसके साथ प्रत्यक्ष करों की दरें बढ़ाने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए. आय कर व कारपोरेट कर प्रत्यक्ष कर हैं जिनके माध्यम से अधिक धनी करदाताओं से अधिक कर प्राप्त किए जा सकता है.
यह भी पढ़ें: वो पांच चीज़ें जो 2021 में तय करेंगी भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा
क्या कहता है फोर्स
भारतीय रेवेन्यू सर्विस (राजस्व सेवा) की एसोसिएशन ने एक नीति पत्र तैयार किया था जिसका शीर्षक है, ‘कोविड-19 का रिस्पांस व राजस्व विकल्प’. संक्षेप में इसे ‘फोर्स’ दस्तावेज कहा गया है. इसमें सलाह दी गई है कि जिनकी आय एक वर्ष में एक करोड़ रुपए से अधिक है, उन पर आय कर की दर 40 प्रतिशत तक बढ़ा देनी चाहिए. इसमें कहा गया है कि संपत्ति कर की वापसी करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त 10 लाख रुपए से अधिक की कर देय आय पर केवल एक बार 4 प्रतिशत का विशेष कोविड-19 उपकर (सेस) लगाना चाहिए.
इस नीति-पत्र के अनुसार इन उपायों को अपनाकर लाकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाया जा सकता था, उसे गति दी जा सकती थी. यदि इस तरह कर-राजस्व को बढ़ाया जाए तो जनसाधारण के उपयोग की वस्तुओं पर जीएसटी लगाने से बचा जा सकेगा व निर्धन वर्ग पर अधिक बोझ डालने से बचा जा सकेगा.
सबसे धनी 954 परिवारों पर 4 प्रतिशत कर
एक अनुमान के अनुसार यदि देश के सबसे धनी 954 परिवारों पर 4 प्रतिशत कर लगा दिया जाए तो सकल घरेलू उत्पाद के 1 प्रतिशत के बराबर धनराशि प्राप्त की जा सकती है. भारतीय सरकार ने कोविड-19 के संकट से उभरने का जो आत्म-निर्भरता पैकेज घोषित किया, उसका प्रत्यक्ष बजट असर लगभग 2 लाख करोड़ रुपए के आसपास ही है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत ही है. यह महामारी के बहुत व्यापक व अधिक प्रतिकूल असर को दूर करने के लिए अपर्याप्त है. साथ में यह भी स्पष्ट है कि महामारी से प्रतिकूल प्रभावित मध्यम वर्ग से कर प्राप्त बढ़ाने के स्थान पर सरकार को सबसे धनी करदाताओं पर कोविड-19 सरचार्ज लगाना चाहिए था और इसका उपयोग जन-कल्याण पैकेज के लिए करना चाहिए था.
रिपोर्ट के अंत में बजट को आम लोगों के पक्ष में बनाने के लिए कुछ संस्तुतियां भी की गई हैं. कहा गया है कि कोविड-19 के आगे के दौर में सबसे अधिक धनी व्यक्तियों व निगमों पर टैक्स बढ़ाने के संदर्भ में बदलाव करना चाहिए.
50 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक आय के कर दाताओं की आय पर दो प्रतिशत का अतिरिक्त सरचार्ज लगाना चाहिए.
महामारी के दौरान अप्रत्याशित/अत्यधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों पर एक अल्प-कालीन टैक्स लगाना चाहिए.
निर्धन वर्ग पर बोझ कम करने के लिए आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं पर जीएसटी हटा देना चाहिए या कम कर देना चाहिए.
उम्मीद है कि इस तरह के उपायों से निर्धन वर्ग को राहत दी जा सकेगी व इसके लिए जरूरी संसाधन भी जुटाए जा सकेंगे.
इस वर्ष बजट में वित्त मंत्री के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां हैं. जीडीपी और रेवेन्यू प्राप्ति के गिरावट के बीच कई तरह के खर्च को बढ़ाना जरूरी हो गया है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि सबसे कमजोर वर्गों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाए. नरेगा के आवंटन में बड़ी वृद्धि के साथ ग्रामीण रोजगार गारंटी की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी की योजना आरंभ करने की भी चर्चा रही है. मूल बात ये है कि बढ़ती आर्थिक व आजिविका की कठिनाइयों के बीच शहरों और गावों के सबसे कमजोर परिवारों की सहायता व राहत बहुत जरूरी है.
(भारत डोगरा फ्रीलांस जर्नलिस्ट, शोधकर्ता और एक्टिविस्ट हैं, व्यक्त विचार निजी है)
यह भी पढ़ें: बजट 2021 होगा अलग क्योंकि सरकार को इस बार वास्तविक फिस्कल डिफिसिट को छुपाने की ज़रूरत नहीं