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Saturday, 23 November, 2024
होममत-विमतभारतीय बाज़ार के लिए मुकेश अंबानी और जेफ़ बेज़ोस के बीच भिड़ंत तय थी

भारतीय बाज़ार के लिए मुकेश अंबानी और जेफ़ बेज़ोस के बीच भिड़ंत तय थी

मोदी सरकार अमेज़ॉन के सीईओ जेफ़ बेज़ोस का एक हाथ पीछे बांध कर अंबानी से भिड़ने के लिए बाध्य कर रही है.

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भारतीय उपभोक्ताओं के लिए प्रतिस्पर्द्धा कभी भी मात्र अमेरिकी कंपनियों के बीच नहीं होनी थी.

अमेज़ॉन डॉटकॉम इन्कॉर्पोरेटेड को कड़ी टक्कर देने वाली भारतीय कंपनी फ्लिपकार्ट ऑनलाइन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड को पिछले साल वॉलमार्ट इन्कॉर्पोरेटेड द्वारा अधिग्रहण के बाद बहुतों को ऐसा लगा होगा कि अब भारतीय उपभोक्ताओं के लिए मुक़ाबला इन दो अमेरिकी कंपनियों के बीच ही रह जाएगा. पर जैसा कि मैंने कहा था, अरबपति मुकेश अंबानी हाशिये पर खड़े रहने वाले नहीं थे.

आखिरकार पिछले सप्ताह भारत का सबसे धनी व्यक्ति मुक़ाबले में शामिल हो गया. पेट्रोकेमिकल से लेकर दूरसंचार तक कई व्यवसायों में सक्रिय उद्योग समूह रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के चेयरमैन अंबानी ने भारत के तीन करोड़ छोटे रिटेलरों को उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए चार स्तरों वाली एक योजना तैयार की है.

सबसे पहले, मोहल्ला स्तर पर दुकानों को 10,000 स्टोर संचालित कर रही रिलायंस रिटेल लिमिटेड के नेटवर्क से जोड़ा जाएगा. इन दुकानों को साझा स्टॉक प्रबंधन, बिलिंग और टैक्स नेटवर्क से जुड़ने की पेशकश की जाएगी. उन्हें कम लागत वाले भुगतान टर्मिनल भी उपलब्ध कराए जाएंगे. इस तरह बने विस्तारित रिटेल नेटवर्क के पास उत्पादों का ज़बर्दस्त भंडार होगा.

दूसरे स्तर की योजना में अंबानी के दूरसंचार व्यवसाय की भूमिका होगी. भारत में इस समय ई-कॉमर्स शहरी मध्यवर्ग पर केंद्रित है. जबकि, देश में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले 50 करोड़ लोगों में से 20 करोड़ ग्रामीण इलाक़ों में रहते हैं. इन ग्रामीण उपभोक्ताओं में से एक चौथाई महीने में बमुश्किल एक बार ऑनलाइन हो पाते हैं. इसलिए आश्चर्य नहीं कि तेज़ बढ़ोत्तरी के बावजूद इस साल भारत में ऑनलाइन उपभोक्ताओं की संख्या मात्र 12 करोड़ रहने की संभावना है.

जियो नेटवर्क की देशभर में मौजूदगी और इसके द्वारा सस्ते में डेटा उपलब्ध कराने से आए परिवर्तनों के कारण अब कस्बों और गांवों के दुकानदार भी कम संपन्न ग्राहकों के साथ ऑफलाइन-ऑनलाइन वाली एक मिश्रित भुगतान प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं.

तीसरे स्तर पर हैं, जियो के फोन और फाइबर ब्रॉडबैंड नेटवर्क से जुड़े लोग जो हर महीने करीब 5 अरब घंटे के बराबर वीडियो कंटेंट देखते हैं. अपने इन ग्राहकों के बल पर अंबानी खुद के फैशन ब्रांड एजियो को फैलाने में सक्षम हैं.

और, चौथे स्तर पर है अपने घरेलू बाज़ार में नीतियों को प्रभावित करने की अंबानी की क्षमता, जिसे कम नहीं आंका जाना चाहिए. रिलायंस अभी भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार में पांव फैलाने की तैयारी ही कर रही थी कि भारत सरकार ने ई-कॉमर्स नियमों में फेरबदल कर उसे अमेज़ॉन और वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट के लिए पहले से ज़्यादा दुरूह बना दिया.

अभी तक, विदेशी रिटेल कंपनियों के पास उस प्रावधान से बचने के तरीके उपलब्ध थे जो कि उन्हें मात्र एक ऑनलाइन बाज़ार की तरह काम करने तथा अपना स्टॉक नहीं रखने या डिस्काउंट पर माल नहीं बेचने को बाध्य करता है. अब अगले माह से इस प्रावधान से बचने के रास्तों को बंद किया जा रहा है, और अंबानी इस बात पर ज़ोर देने लगे हैं कि भारतीय उपभोक्ताओं के शॉपिंग से जुड़े डेटा को भारत में ही स्टोर किया जाए.

रिलायंस जियो का डिटिजल व्यवसाय में निवेश 40 अरब डॉलर से ऊपर जा चुका है. पर गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा वाले भारतीय दूरसंचार बाज़ार में यह हर महीने प्रति उपभोक्ता 2 डॉलर भी नहीं कमा रही है. नेटवर्क और कंटेंट के व्यवसाय से मुनाफा कमाने का एक तरीका है- ईकॉमर्स जोड़ कर इसे ‘ट्रिपल प्ले’  बनाना, और उसमें भरोसे वाली पुराने ढंग की लॉबीइंग का तड़का लगाना.

भारत सरकार अमेज़ॉन के सीईओ जेफ़ बेज़ोस को एक हाथ पीछे बांध कर मुक़ाबला करने के लिए बाध्य कर रही है. इसके बावजूद वह अंबानी को पछाड़ सकते हैं, पर वह खुद चोटिल होने से नहीं बच पाएंगे.

(ब्लूमबर्ग के सौजन्य से)

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